राजपथ - जनपथ

अदालत और कानूनी पढ़ाई
नान घोटाले में फंसे प्रमुख सचिव डॉ आलोक शुक्ला ने नौकरी के बीच वकालत की पढ़ाई पूरी की है। उन्होंने फेसबुक पर अपनी मार्कशीट साझा किया है। कुछ इसी तरह घोटालों में फंसने के बाद पूर्व आईएएस बाबूलाल अग्रवाल ने भी वकालत की पढ़ाई पूरी की थी।
दोनों अफसरों में एक समानता है कि वो घोटालों की वजह से खुद को बेकसूर साबित करने के लिए अदालती लड़ाई लड़ रहे हंै। ऐसे में कानून की बारीकियां जानना जरूरी भी है। अब देखना है कि दोनों ही अपने कानूनी ज्ञान का किस तरह इस्तेमाल करते हैं।
फिलहाल मुख्यमंत्री के मंच पर आलोक शुक्ला को देखकर लोग हैरान होते हैं कि सामने बैठे लोगों को क्या-क्या याद आ रहा होगा।
दारू का हिमायती
प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा के कार्यकर्ता शराबबंदी के लिए मुहिम चला रहे हैं। पार्टी विधानसभा चुनाव में शराबबंदी को मुद्दा बनाने की सोच रही है। इन सबके बीच बालोद जिले में भाजपा के एक पंचायत पदाधिकारी ने पार्टी लाइन से हटकर अपने पंचायत क्षेत्र में शराब दुकान खोलने की वकालत की है। खास बात यह है कि आबकारी विभाग ने पंचायत पदाधिकारी की बात मानते हुए दो दिन पहले उनके यहां शराब दुकान खोलने के आदेश जारी भी कर दिए हैं।
बताते हैं कि पहले जिस जगह शराब दुकान थी, वहां इसका विरोध हो रहा था। आबकारी अमला किसी दूसरी जगह शराब दुकान को स्थानांतरित करने की कवायद में लगा था। और जब पंचायत पदाधिकारी का पत्र मिला, तो विभाग ने दुकान को स्थानांतरित करने में देर नहीं लगाई। अब इस मामले पर पार्टी के भीतर कलह मच गया है। कहा जा रहा है कि जिले के प्रमुख नेताओं ने प्रदेश नेतृत्व को इससे अवगत कराया है। इसको लेकर पूछताछ भी चल रही है। देर सवेर यह मामला बड़ा रूप ले सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
धर्मजीत के पुराने रिश्ते
आखिरकार जनता कांग्रेस के निष्कासित विधायक धर्मजीत सिंह भाजपा में शामिल हो गए। धर्मजीत सिंह के पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह से करीबी संबंध हैं, और ऐसे में अटकलें लगाई जा रही थी कि वो देर सवेर भाजपा में शामिल हो सकते हैं।
धर्मजीत सिंह को भाजपा में शामिल करने की भूमिका काफी पहले बन चुकी थी। उनका पूर्व विधायक देवजी पटेल से याराना है। धर्मजीत सिंह, देवजी पटेल के उसी सरकारी बंगले में रहते हैं, जिसे पटेल को पाठ्य पुस्तक निगम के चेयरमैन रहते आवंटित किया गया था। यह बंगला अब धर्मजीत के नाम पर आवंटित हो गया है। यही नहीं, धर्मजीत, देवजी के पुराने स्टॉफ की सेवाएं भी ले रहे हैं।
बताते हैं कि सब कुछ तय होने के बाद देवजी पटेल ने ही धर्मजीत की केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया से मुलाकात करवाई। इसके बाद ही धर्मजीत ने मंडाविया के सामने भाजपा में शामिल होने का फैसला लिया।
आज हमारा दिन है...
छत्तीसगढ़ में सरगुजा को हाथियों का सबसे पुराना घर माना जाता है। यहां के हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र रमकेला में विश्व हाथी दिवस खास तरीके से मनाया गया। उनका श्रृंगार किया गया। केले, सेब, पूडिय़ा और कई तरह के पकवान खिलाये गए। प्रदेश में इस समय हाथियों की संख्या 254 हैं, जिनमें से सरगुजा रेंज में 110 हाथी हैं। ऐसे हाथी जो अपने दल से बिछड़ गए हों, या हताहत हो गए हों, उन्हें इस पुनर्वास केंद्र में रखा जाता है। यहां इस समय 7 हाथी हैं। इनकी देखभाल प्रशिक्षित महावत करते हैं।
पंचायतों में बढ़ती दबंगई
दुर्ग जिले में भिलाई के पास बागडूमर ग्राम पंचायत के एक पंच ने एसडीएम दफ्तर के बाहर फांसी लगाकर जान दे दी। उनसे सुसाइड नोट छोड़ा है जिसमें बताया है कि राशन कार्ड के लिए सरपंच और सचिव पैसों की मांग करते थे, नहीं मिलने पर प्रताडि़त किया। कुछ दिन पहले तखतपुर तहसील की एक पंचायत ढनढन के सरपंच ने एक ग्रामीण को खंभे से बांधकर लाठियों से पीटते हुए अधमरा कर दिया था। ग्रामीण की शिकायत थी कि प्रधानमंत्री आवास सूची में नाम जोडऩे के लिए सरपंच ने 20 हजार रुपये मांगे थे। सूची में नाम नहीं आया तो उसने अपने पैसे वापस मांगे। उसे इसी वजह से मारा गया।
प्रदेश के कुछ गांव आदर्श हो सकते हैं। पर, अनेक पंचायतों में भ्रष्टाचार चरम पर है। हाल ही में भाजपा ने गोठान चलो अभियान चलाया था। जिन गौठानों के पर लाखों रुपये खर्च किए गए वे खंडहर बन चुके हैं। प्रदेश का कोई ब्लॉक नहीं है जहां से स्कूलों के जर्जर होने, प्लास्टर गिरने की खबरें नहीं आ रही हों। पांच सात साल पहले बने भवनों की हालत जर्जर है। सडक़ बनती हैं, पर टिकती नहीं। तमाम केंद्रीय व राज्य की योजनाओं के लिए बनने वाले भवन भी इसी हालत में दिखाई देंगे। ये सब बनवाने वाले पंच-सरपंच ही हैं। कोविड काल में प्रवासी मजदूरों को ठहराने की जिम्मेदारी पंचायतों को दी गई थी। हर जिले से खबर आई कि फर्जी बिल बनाए गए, लाखों रुपये जनप्रतिनिधि और पंचायत सचिव मिलकर डकार गए। इसमें जनपद और जिला पंचायतों के प्रतिनिधि, अफसर, मॉनिटरिंग करने वाले सब इंजीनियर-सबकी मिलीभगत होती है।
तखतपुर और भिलाई में हुई दो घटनाएं हाल की हैं जो बताती है कि सशक्त होते सरपंच और दूसरे पंचायत पदाधिकारी अपने ही मतदाताओं के लिए खतरा बन रहे हैं। जबसे इन चुनावों को दलीय आधार पर लडऩे-लड़ाने की होड़ बढ़ी है, सही-गलत कामों के बावजूद उन्हें संरक्षण मिल रहा है। उनको किसी न किसी विधायक, मंत्री, सांसद का साथ मिल जाता है।
एक पुलिया और देखें बस्तर की
यह उसी कोंडागांव की तस्वीर है, जहां एक उफनते नाले में बनी बांस की पुलिया को स्कूली बच्चे जोखिम उठाकर पार करते हुए दिखे थे। हाईकोर्ट की सख्ती के बाद प्रमुख सचिव सहित लोक निर्माण विभाग के तमाम अधिकारी वैकल्पिक व्यवस्था करने में जुटे और कोर्ट को जवाब दिया कि यहां बारिश के बाद स्थायी पुलिया बना दी जाएगी।
यह दूसरी तस्वीर भी कोंडागांव की ही है। स्थायी पुल न होने के कारण बांस और बल्लियों से पलना गांव में यह पुलिया तैयार की गई, ताकि बारिश में नदी पार की जा सके। छोटे वाहन इससे पार भी हो जाते हैं। पर जब एक ट्रैक्टर को निकालने की कोशिश की गई तो पुलिया ने दम तोड़ दिया और ट्रैक्टर भी वहीं फंसकर रह गया।