राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : जिलाध्यक्ष कैसे लड़ेंगे
17-Aug-2023 3:23 PM
राजपथ-जनपथ : जिलाध्यक्ष कैसे लड़ेंगे

जिलाध्यक्ष कैसे लड़ेंगे 

कांग्रेस ने विधानसभा प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। दावेदारों से आवेदन बुलाए गए हैं। दावेदार पहले ब्लॉक में आवेदन करेंगे, और फिर जिलों में कमेटी दावेदारों का पैनल तैयार कर प्रदेश को भेजेगी। अब पार्टी के अंदरखाने में प्रक्रिया पर ही सवाल उठाए जा रहे हैं। वजह यह है कि कई जिलाध्यक्ष खुद टिकट के दावेदार हैं। यह पूछा जा रहा है कि दावेदार जिलाध्यक्षों के रहते पैनल कैसे निष्पक्ष हो सकते हैं। 

बताते हैं कि आधा दर्जन से अधिक जिलाध्यक्ष विधानसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। पहले यह बात उठी थी कि जो जिलाध्यक्ष चुनाव लडऩा चाहते हैं उन्हें पद से इस्तीफा देना होगा। पिछले चुनाव से पहले कई जिलाध्यक्षों ने इस्तीफा भी दिया था। मगर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। प्रदेश की कार्यकारिणी अटकी पड़ी है, और इसी बीच प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। 

कहा जा रहा है कि रायपुर ग्रामीण के जिलाध्यक्ष, धरसींवा सीट से चुनाव लडऩा चाहते हैं। इसी तरह राजनांदगांव शहर, और ग्रामीण के जिलाध्यक्ष भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। दुर्ग ग्रामीण, भिलाई शहर, बिलासपुर ग्रामीण, मुंगेली, बलौदाबाजार, जांजगीर-चांपा, महासमुंद, बालोद, और कांकेर के जिलाध्यक्ष भी टिकट के दावेदार हैं। पार्टी के कई लोग मानते हैं कि जिलों से तैयार पैनल में जिलाध्यक्ष का नाम स्वाभाविक रूप से आ जाएगा। ऐसे में पैनल निष्पक्ष नहीं हो सकता है। इसके चलते आने वाले दिनों में विवाद खड़ा हो सकता है। देखना है आगे क्या होता है। 

बृहस्पति के खिलाफ तिर्की ? 

कांग्रेस में प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया शुरू होते ही पार्टी के अंदरखाने में जंग छिड़ गई है। सरगुजा के तेज तर्रार नेता बृहस्पति सिंह की विधानसभा सीट रामानुजगंज से अंबिकापुर के पूर्व मेयर डॉ. अजय तिर्की ने ताल ठोक दी है। डॉ. तिर्की बुधवार को रामानुजगंज पहुंचे, तो सैकड़ों की संख्या में कार्यकर्ताओं ने उनका स्वागत किया। 

डॉ. तिर्की के स्वागत का वीडियो भी वायरल हो रहा है। जिसमें उत्साही कांग्रेस कार्यकर्ता डॉ. तिर्की को भावी विधायक बताते हुए नारेबाजी कर रहे हैं। डॉ. तिर्की रामानुुजगंज में सीएमओ रहे हैं। लिहाजा, इलाके में अच्छी खासी पकड़ भी रखते हैं। इससे परे बृहस्पत सिंह, डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव के धुर विरोधी माने जाते हैं। बृहस्पत सिंह  खुले तौर पर सिंहदेव के खिलाफ काफी कुछ कह चुके हैं। इसके कारण सिंहदेव ने विधानसभा सत्र के दौरान सदन भी छोड़ दिया था। ऐसे में अब बारी सिंहदेव की है। 

चर्चा है कि सिंहदेव की शह पर ही डॉ. तिर्की ने रामानुजगंज सीट से दावेदारी की है। सिंहदेव खुद भी प्रत्याशी चयन के लिए गठित छानबीन कमेटी के सदस्य भी हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि बृहस्पत सिंह के लिए टिकट हासिल करना आसान नहीं होगा। मगर बृहस्पत सिंह भी खामोश रहने वालों में नहीं है। देखना है कि डॉ. तिर्की की दावेदारी को बृहस्पत सिंह किस रूप में लेते हैं। 

शिशुओं की मौत पर राजनीति?

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर 7 दिन के भीतर रिपोर्ट मांगी है। इसमें पूछा गया है कि प्रदेश में 4 साल के भीतर 39000 से अधिक शिशुओं की किन परिस्थितियों में मौत हुई? दरअसल विधानसभा में उपमुख्यमंत्री टी एस सिंहदेव ने ही इसकी जानकारी दी थी। तब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव ने इसे चिताजनक बताते हुए आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो को पत्र लिखा था। आयोग ने इस पत्र को संज्ञान में लिया है।

यह स्थिति सचमुच चिंताजनक है। शिशु मृत्यु दर पर रूरल हेल्थ स्टैटिसटिक्स 2021-22 का आंकड़ा बताता है कि छत्तीसगढ़ में उत्तर प्रदेश के बराबर एक हजार बच्चों के पीछे 38 की मौत हो गई। मध्यप्रदेश पूरे देश में टॉप पर है, जहां 40 बच्चों की मौत हुई। इसके बाद असम और ओडिशा है, जहां प्रति एक हजार में 36 बच्चों की मौत हुई। राजस्थान में 32 और मेघालय में 29 मौत दर्ज की गई। यानी हेल्थ सर्वे के मुताबिक कांग्रेस-भाजपा ही नहीं, दूसरे दलों के शासित राज्यों में एक जैसी स्थिति है। छत्तीसगढ़ में भाजपा विपक्ष में है। उसकी जिम्मेदारी तो है कि वह कांग्रेस को घेरे, मगर समाधान क्या है?

जीपीएम जिले के भवन कहां बनें?  

10 फरवरी 2020 को गौरेला-पेंड्रा-मरवाही के जिला बनने के बाद से इसका संचालन यहां की पुरानी इमारतों में हो रहा है। कुछ ऐतिहासिक महत्व के हैं, जहां रवींद्रनाथ टैगोर ठहरे थे। कुछ वृक्ष हैं जहां गुरुदेव बैठा करते थे। यहीं पर अब नये कलेक्ट्रेट परिसर की तैयारी चल रही है। यह कहां बने इसके लिए जिला प्रशासन और स्थानीय नागरिकों के बीच विवाद काफी बढ़ चुका है। खासकर मरवाही इलाके की मांग है कि मुख्यालय पेंड्रा और मरवाही के बीच में बनाया जाए ताकि जिला बनाने की मंशा पूरी हो और अधिकारियों, दफ्तरों तक आम लोगों की आसान पहुंच हो सके। प्रशासन तो चाहता है कि यहां के गुरुकल और सेनेटोरियम की जमीन पर ही नई बिल्डिंग तैयार की जाए। इसकी तैयारी भी शुरू कर दी गई है। इसके लिए सौ दो सौ साल पुराने और टैगोर की स्मृतियों से जुड़े कई पेड़ भी काट दिये गए, तो लोगों ने विरोध प्रदर्शन भी किया, श्रद्धांजलि सभा रखी। बीते 11 अगस्त को मरवाही इलाके में बंद का भी आयोजन किया गया था।

जब यहां शिखा राजपूत कलेक्टर थीं तो उन्होंने मरवाही और पेंड्रा के बीच स्थित कोदवाही ग्राम में 50 एकड़ जमीन का चयन किया था। वर्तमान विधायक डॉ. केके ध्रुव सहित अधिकांश जनप्रतिनिधि इस बात से सहमत हैं कि इसी तय जगह पर जिला मुख्यालय बने। इससे सबके लिए मुख्यालय तक पहुंच आसान होगी। दूरी सबके लिए बराबर होगी। अभी पेंड्रा से मरवाही की दूरी 38 किलोमीटर है। नई जगह पर विकास होने से पूरे क्षेत्र का संतुलित विकास होगा और दूर दूर बसे गांवों वाले आदिवासी क्षेत्र में जिला बनाने की मंशा पूरी होगी।

इन सबके बावजूद पेंड्रा में ही जिला मुख्यालय बनाने के लिए प्रशासन क्यों जिद कर रहा है इसके दो कारण सामने आए। एक तो जिला बनाने के लिए चले आंदोलन का केंद्र पेंड्रा-गौरेला ही रहा। यहां के निवासियों के लिए सुविधाजनक होगा कि नई बिल्डिंग भी यहीं बने। यह पहले से विकसित इलाका है, तमाम सुविधायें हैं। दूसरी बात और यह सामने आ रही है कि ज्यादातर बाबू और अफसर अभी यहां नहीं रुकते, वे शाम को बिलासपुर निकल जाते हैं। यदि मरवाही और पेंड्रा के बीच की जगह कोदवाही को मुख्यालय बनाया गया तो ट्रेन पकडऩे के लिए 25 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ेगी, जो अभी सिर्फ 6 किलोमीटर है।

खुद ही बना ली सडक़

स्थानीय विधायक, अफसरों और पंचायत के प्रतिनिधियों से बार-बार मांग करने के बावजूद सडक़ नहीं बनाई गई। बारिश में चलना दूभर हो रहा था। तब गरियाबंद जिले के ताड़ीपारा के ग्रामीणों ने फैसला किया कि वे खुद ही सडक़ बनाएंगे। जनसहयोग से मटेरियल मंगा ली गई। डेढ़ किलोमीटर रास्ते में पूरे गांव के लोगों ने श्रमदान किया और अब सडक़ बन गई। कुछ दिन पहले ऐसी ही एक तस्वीर राजनांदगांव जिले से भी आई थी।

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