राजपथ - जनपथ

खरगे की सभाएँ
राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस के बुजुर्ग नेता मल्लिकार्जुन खरगे पिछले छह महीने में छत्तीसगढ़ में तीन सभाएं ले चुके हैं। दिलचस्प बात ये है कि जब भी वो सभा को संबोधित करने पहुंचते हैं, उनके संबोधन से पहले ही भीड़ का निकलना शुरू हो जाता है।
दो दिन पहले राजनांदगांव में भरोसे के सम्मेलन में कुछ ऐसा ही हुआ। तब सीएम भूपेश बघेल को माईक थामकर लोगों से खरगे के संबोधन तक रूकने का आग्रह किया। खरगे ने तंज भी कसा और कहा कि सीएम साहब पहले सब कुछ बांट जाते हैं। यदि वो सभा के आखिरी में घोषणाएं करते तो भीड़ कुछ मिलने के इंतजार में रूकती।
खरगे की पहली सभा जोरा में हुई थी, जब वो संबोधन के लिए आए तब तक तीन चौथाई भीड़ छंट चुकी थी। पिछले दिनों जांजगीर-चांपा के कार्यक्रम में भी कुछ ऐसा ही हुआ। चर्चा है कि उस समय प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने कमजोर मैनेजमेंट के लिए जांजगीर-चांपा के प्रभारी अर्जुन तिवारी को फटकार भी लगाई थी।
अर्जुन तिवारी ने उस वक्त कह दिया था कि चूंकि सरकारी कार्यक्रम है इसलिए संगठन की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है। तब सीएम ने हस्तक्षेप कर भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो, इसका ध्यान रखने के लिए कहा था। मगर राजनांदगांव में फिर वही स्थिति बन गई। ये अलग बात है कि सीएम के आग्रह पर भीड़ कुछ देर रूक गई। कांग्रेस के शीर्ष नेता की सभा को लेकर लोगों में अरूचि से पार्टी के अंदरखाने में काफी चर्चा हो रही है। और चुनाव के दौरान खरगे की जगह राहुल-सोनिया और प्रियंका गांधी की सभाएं ज्यादा करने पर जोर दिया जा रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
विधायक ईडी से बेफिक्र
कोल घोटाले में ईडी ने कांग्रेस के दो विधायक देवेन्द्र यादव और चन्द्रदेव राय को भी आरोपी बनाया है। खास बात यह है कि दोनों ने अब तक जमानत नहीं ली है, और वो सरकारी-निजी कार्यक्रमों में धड़ल्ले से शिरकत कर रहे हैं। ईडी ने भी दोनों को गिरफ्तार करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। इसकी भी राजनीतिक हलकों में खूब चर्चा हो रही है।
कहा जा रहा है कि विधायकों की गिरफ्तारी से भाजपा के खिलाफ माहौल बन सकता है। यही वजह है कि दोनों की गिरफ्तारी नहीं हो रही है। अब वाकई ऐसा है या ईडी की कोई रणनीति है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
जी-20 से बाहर ढोकरा आर्ट पर जीएसटी
नई दिल्ली में हो रहे जी-20 सम्मेलन में विदेशी मेहमानों के सामने भारत मंडपम् में बस्तर की प्रसिद्ध शिल्प ढोकरा की कलाकृतियां प्रस्तुत की गई हैं। देश-विदेश में इन कलाकृतियों की काफी मांग रही है। देश के कई महानगरों और पर्यटन स्थलों में इनकी बिक्री होती है। ऑनलाइन भी मिल रहे हैं। बीते साल नवंबर महीने में दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में भी ढोकरा शिल्प की मूर्तियां छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने पंडाल पर प्रदर्शित की थी।
बस्तर अपनी विरासत, प्राकृतिक वैभव और कौतूहल से भरी जीवन शैली के कारण पहले से ही देश-विदेशों में जाना जाता है। भारत मंडपम में आकर वे दुनिया के 20 बड़े देशों के राष्ट्र प्रमुखों व अन्य मेहमानों तक पहुंच गए। मोहन जोदड़ो की खुदाई के दौरान भी ढोकरा शैली की मूर्तियां मिली थीं। मगर हजारों साल पुरानी इस कला का दूसरा पहलू भी है। कोंडागांव में करीब 500 परिवार इस कला से जुड़े हैं। ढोकरा कारीगर बीते कुछ सालों से सबसे अधिक जिस समस्या से जूझ रहे हैं, वह है जीएसटी। मूर्तियों पर 12 प्रतिशत जीएसटी से इन्हें कोई रियायत नहीं है जबकि यह छत्तीसगढ़, झारखंड आदि राज्यों में सिर्फ आदिवासी इस कला से जुड़े हैं। इसका कच्चा माल महंगा होने के कारण पहले से ही मार्जिन कम हो चुका है। मधुमक्खियों से प्राप्त मोम इसकी एक जरूरी सामग्री है, जिसे खरीद पाना आसान नहीं हैं। अब इसका उपयोग वे कम कर रहे हैं। इसके अलावा तांबा, जस्ता, रांगा (टीन) का इस्तेमाल होता है, वह भी महंगा हो चला है। सरकारी पैवेलियन, मंडप में जरूर ये कलाकृतियां दिखें, पर स्थिति यह है कि घोड़े, हाथी, ऊंट, नर्तक, देवी-देवता पहले इस कला के पहचान होते थे, उसे महंगा होने के कारण कारीगरों ने बनाना कम कर दिया है। उसकी जगह पेपरवेट, पेन होल्डर, मोमबत्ती होल्डर जैसी चीजों ने ले ली है।
बस्तर में आप के प्रत्याशी
दंतेवाड़ा सीट पर 2018 के चुनाव में बल्लू राम भवानी को 4903 वोट मिले थे। सन् 2019 में हुए उपचुनाव में भी वे खड़े हुए और पिछली बार से एक तिहाई से भी कम 1533 वोट हासिल कर पाए। यह उपचुनाव भाजपा विधायक भीमा मंडावी के नक्सली हमले में मारे जाने के बाद हुआ था, जिसमें कांग्रेस की देवती कर्मा को जीत मिली। 2023 में आम आदमी पार्टी ने इन्हीं बल्लू राम भवानी पर फिर भरोसा जताया है। नारायणपुर में नरेंद्र कुमार नाग आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी होंगे, जिन्हें सन 2018 में 2576 वोट मिले थे। आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेन्डी को 2018 के चुनाव में 9634 वोट हासिल हुए थे। पिछले साल विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडावी के निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव भी हुआ। इसमें आप ने अपना कोई उम्मीदवार यह कहते हुaए खड़ा नहीं किया था कि वे आम चुनाव के लिए संगठन को मजबूत कर रहे हैं।
प्रदेश की 10 सहित बस्तर की इन तीन सीटों पर आम आदमी पार्टी ने अपने प्रत्याशी कल घोषित कर दिए हैं। इन तीनों सीटों पर क्या आम आदमी पार्टी ने क्या इतनी तैयारी की है कि मुकाबले में टक्कर दे सके? सर्व आदिवासी समाज का प्रयास था कि बस्तर में छोटे-छोटे दलों के साथ समझौता कर पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस भाजपा के उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर दी जाए। उनका पहला लक्ष्य बस्तर ही है। ऐसे में एक तरफा आप पार्टी ने जिस तरह से उम्मीदवार घोषित कर दिए, वोटों का विभाजन निश्चित दिखाई दे रहा है। यह भविष्य ही बताएगा कि इसका फायदा कांग्रेस को मिलता है या बीजेपी को।