राजपथ - जनपथ

वक्त के पहले मुनादी का सिरदर्द
प्रत्याशियों के नाम समय से पहले घोषित करने के नकारात्मक प्रचार जोर पकडऩे लगे हैं। इससे पार्टी हाईकमान पर मंथन का दबाव बढ़ता जा रहा है। कुछ प्रचार तो असफल दावेदार ही कर रहे हैं या करवा रहे हैं। भाजपा के सरगुजा इलाके के एक प्रत्याशी ऐसे ही एक षड्यंत्र में फंस गए है। उनका एक वीडियो खासा वायरल हो गया है। और पार्टी के भीतर हडक़ंप अलग मचा है कि इससे कैसे निपटें। कुछ अति उत्साही भाजपा नेता, कार्यकर्ताओं को लेकर एसपी के पास पहुंचे। उनके न मिलने पर कलेक्टर से मिलकर प्रत्याशी का वीडियो और अधिक वायरल होने से रोकने का आग्रह किया। कलेक्टर भला ये क्यों करने लगे? और कलेक्टर के पास ऐसा कोई अधिकार भी नहीं। सो संगठन के लिए यह एक सिरदर्द हो गया है । यह समस्या दूसरे दलों में भी उठ रही है। आप पार्टी के एक बस्तरिया प्रत्याशी, सागौन लकड़ी के चिरान जब्त होने से परेशान है।
10 हजार आवेदन!!
हमने कुछ दिन पहले ही बताया था कि विधानसभा की 90 सीटों से भाजपा के 10 हजार दावेदारों के आवेदन जमा हुए हैं। जो एक तरह से रिकॉर्ड है। यह लंबी फेहरिस्त संगठन महामंत्री, मंत्रियों की वजह से भी हो गई है। ठाकरे परिसर के सूत्र बताते हैं कि इन महामंत्रियों ने प्रत्याशी चयन की कवायद जनवरी से ही शुरू कर दी थी । जिला, विधानसभा क्षेत्र का दौरा कर हर हैसियत पर की खातिरदारी, आतिथ्य स्वीकार कर कह आते तुम तैयारी करो। बस फिर क्या सभी जुट गए । इन छ-आठ महीनों में इन लोगों ने लाखों फूंक दिए, तैयारी में। कुछ का बजट तो सीआर (ष्ह्म्) भी पार कर गया है। पहली सूची को देखने के बाद से इनमें ज्वाला धधक रही है ?।
सब कुछ दिल्ली से मुहैया
लगता है न खाउंगा, न खाने दूंगा की उक्ति पार्टी संगठन में भी चल रही है। यह प्रचार सामग्री और संसाधनों की उपलब्धता को देखकर समझा जा सकता है । अशोक रोड मुख्यालय ने सब कुछ सेंट्रलाइज्ड कर रखा है। पार्टी ने बड़े नेताओं के दौरे, बैठकों के लिए एक हेलीकॉप्टर भेज दिया है, दूसरा भी पखवाड़े भर में लैंड कर जाएगा। इसी तरह से घोषित 21 और दूसरी सूची के संभावितों के लिए साधन सुविधाएं मुहैया कराने दिल खोल दिया है। पार्टी हर विधानसभा क्षेत्र में कार्यालय खोलेगी जो सीधे दिल्ली से कनेक्ट होगा। साधन सुविधा के लिए ठाकरे परिसर की जरूरत नहीं होगी।
नेताजी की चिरपरिचित तैयारी
छत्तीसगढ़ के एक कद्दावर नेता अपने क्षेत्र में अभी से कैलेंडर बंटवा रहे हैं। जिसमें शंकराचार्य की तस्वीर के साथ गणेश, दुर्गा और लक्ष्मी जी की आरती छपी है। नेताजी की बड़ी सी तस्वीर भी उसमें लगी है।
नेताजी जानते हैं कि आने वाले समय में चुनाव के दौरान इन तीनों देवियों के सानिध्य में लोग जाएंगे ही। अभी से इसलिये बांट रहे हैं ताकि चुनाव आयोग इसे चुनाव प्रचार के खर्च में न जोड़ दे।
वैसे प्रदेश के इस कद्दावर नेता का पुराना पैंतरा है जिसे अपनाकर वे सात बार जीत दर्ज कर चुके हैं। जोगी शासन में तो उन्होंने शंकराचार्यों का समागम ही करा दिया था। दरअसल उनके विधानसभा में लोधी अधिक संख्या में हैं जो महादेव शंकर के अनन्य भक्त रहते हैं, उनके प्रभाव का प्रसाद नेताजी को मिलते रहा है। लेकिन एक बार जब नेताजी विधानसभा के नेता बने थे, तब कैलेंडर बांटने से चूक गए थे। लगातार जीतने का रिकॉर्ड टूट गया था। लिहाजा इस बार ज्यादा सतर्क हैं, बरसों पुराना जांचा परखा फार्मूला अपना रहे हैं।
ईडी प्रमुख के चार दिन शेष..
प्रवर्तन निदेशालय के प्रमुख संजय कुमार मिश्रा का कार्यकाल 15 सितंबर तक है। उनका कार्यकाल खत्म हो जाने के बाद भी नया निदेशक नियुक्त नहीं करने का मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया था। उनको बार-बार एक्सटेंशन मिलने पर शीर्ष अदालत ने नाराजगी जताई थी। केंद्र सरकार की ओर सॉलिसिटर जनरल ने उनके पद में रहने को उचित ठहराते हुए बताया था कि नवंबर महीने में एफएटीएफ ( फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स) की टीम भारत आने वाली है। इस टीम को मिश्रा की आवश्यकता पड़ेगी। यह सुनकर जज ने कहा था कि कल अगर मैं न रहूं तो क्या सुप्रीम कोर्ट ढह जाएगा। बहरहाल, सरकार की अपील पर मिश्रा को नवंबर तक तो नहीं, 15 सितंबर तक बने रहने की अनुमति कोर्ट ने दी।
मिश्रा के प्रमुख रहते हुए गैर-भाजपा दल शासित राज्यों में ताबड़तोड़ छापेमारी हुई है, ब्यूरोक्रेट्स और राजनीतिक चेहरे ईडी के गिरफ्त में आए हैं। इनमें छत्तीसगढ़ के लोग भी शामिल हैं। कांग्रेस ने कहा है कि यह कार्रवाई डराने के लिए हो रही है, चुनाव ईडी लड़ रही है, भाजपा नहीं। ईडी ने मुख्यमंत्री के विश्वासपात्र प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर उनके निजी सलाहकार को भी जांच के घेरे में लिया है, कई गिरफ्तारियां हो चुकी है। अब जब मिश्रा के कार्यकाल में चार दिन शेष बचे हैं, क्या कोई बड़ी कार्रवाई ईडी करने वाली है, या फिर आगे का टास्क नए अफसर को दिया जाएगा, लोग नजर गड़ाए हुए हैं।
तब कांग्रेस की, अब भाजपा की
भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश सरकार के खिलाफ आज से एक बड़ा चुनाव प्रचार यात्रा बस्तर से शुरू हो गई है। दूसरे छोर से 15 सितंबर को जशपुर से भी एक यात्रा निकलने जा रही है। इस दौरान सडक़ मार्ग से 31 जिलों के 60 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों को कवर करने का लक्ष्य रखा गया है। इसको नाम दिया गया है- परिवर्तन यात्रा। पिछले कुछ चुनावों को जिन्होंने देख रखा है उन्हें पता है कि परिवर्तन यात्रा नाम से कांग्रेस का बड़ा गहरा रिश्ता है। इसी बस्तर से 2013 के चुनाव के समय कांग्रेस ने भाजपा सरकार के खिलाफ अभियान शुरू किया था, जिसे परिवर्तन यात्रा नाम दिया गया था। उस दौरान 25 मई को हुए भीषण नक्सली हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। इसमें प्रदेश कांग्रेस की पहली पंक्ति के लगभग सारे नेता खत्म कर दिए गए। भाजपा सरकार पर भी छीटें पड़ीं, लेकिन चुनाव परिणाम उसके पक्ष में गया।
इधर बस्तर से यात्रा निकलने के पहले कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने एक बयान भी दिया और भाजपा नेताओं से गुजारिश की कि वे झीरम घाटी जाकर शहीदों का नमन कर यात्रा शुरू करें। मान लेते हैं, यह राजनीतिक बयान है, पर बात यह उठ रही है कि क्या परिवर्तन यात्रा की जगह भाजपा को कोई दूसरा नाम नहीं सूझा? चुनाव अभियान में अभियान के नाम और नारों का जबरदस्त असर होता है। बैज न भी कहें तब भी परिवर्तन यात्रा नाम लोगों को झीरम घाटी की याद तो दिलाता ही है। और यह भयावह वारदात भाजपा कार्यकाल की है, लोग यह भी नहीं भूल पाए हैं। पर भाजपा को लगा होगा यही नाम यात्रा का सबसे सटीक है।
अब कुछ नारों की तरफ देखें- अऊ नहीं सहिबो बदल के रहिबो। भाजपा के इस नारे से मिलता जुलता सन् 2018 में कांग्रेस ने- वक्त है बदलाव का नारा दिया था। इस बार आम आदमी पार्टी ने भी कुछ ऐसा ही नारा बदलाव के लिए दिया है।
नारों और प्रचार अभियान के नामकरण का बड़ा असर दिखाई देता है। जब भाजपा ने चुनाव घोषणा पत्र को संकल्प पत्र कहना शुरू किया तो कांग्रेस सहित बाकी दलों ने भी घोषणा-पत्र की जगह दूसरा असरदार नाम ढूंढा। गंगा जल की शपथ ली जाने लगी, घोषणाओं का ऐलान शपथ-पत्र पर किया जाने लगा।
एक नारा, या स्लोगन हमेशा काम नहीं आता। हर बार कुछ नया करने की जरूरत होती है। जैसे कांग्रेस अब वक्त है बदलाव का- नहीं कहेगी, या 2013 जैसी परिवर्तन यात्रा नहीं निकालेगी। क्योंकि उनके हिसाब से 2018 में तो बदलाव और परिवर्तन हो चुका है। कांग्रेस का रमन का उल्टा चश्मा कैंपेन तब चर्चित हुआ था। भाजपा ने अब की बार, 65 पार दिया था। उसे भी इस बार कुछ अलग सोचना होगा। 65 पार वाला नारा दोहराने से गड़बड़ हो जाएगी।
केंद्र में भी 2014 में अच्छे दिन आएंगे का नारा, 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने हटा दिया। पिछली बार था- एक बार फिर मोदी सरकार। कभी इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ नारा दिया था। आज तक वह लोगों के दिमाग में है। देश का नेता कैसा हो, अटल बिहारी जैसा हो, इस नारे ने भाजपा को सता की सीढिय़ों तक पहली बार पहुंचाया। दिमाग के भीतर सीधे असर डालने वाला नारा इस बार अभी तक किसी दल ने नहीं दिया है।