राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : चुनाव के बीच संगठन में बदलाव
17-Oct-2023 4:08 PM
 राजपथ-जनपथ : चुनाव के बीच संगठन में बदलाव

चुनाव के बीच संगठन में बदलाव 

चुनाव के बीच भाजपा ने धमतरी जिला संगठन में छोटा सा बदलाव किया है। जिला महामंत्री कविन्द्र जैन को महामंत्री पद से हटाकर उपाध्यक्ष बनाया है। अविनाश दुबे को महामंत्री का दायित्व सौंपा गया है। चर्चा है कि पार्टी के दिग्गज नेता पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर की नाराजगी के चलते बदलाव हुआ है। 

सुनते हैं कि जिला संगठन ने टिकट वितरण से पहले प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, और अन्य प्रमुख पदाधिकारियों को सुझाव दिया था कि कुरूद से साहू समाज से प्रत्याशी उतारा जाना चाहिए। पार्टी चाहे तो धमतरी विधायक रंजना साहू को कुरूद शिफ्ट कर सकती है। साथ ही यह भी सुझाया था कि धमतरी से सामान्य वर्ग से प्रत्याशी तय कर सकती है। 

दिग्गज नेता अजय चंद्राकर के लिए सुझाव यह था कि उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़ाया जा सकता है। जिले के प्रस्ताव पर पार्टी नेताओं ने विमर्श भी किया था, लेकिन बात छनकर अजय, और रंजना तक पहुंची, तो दोनों नाराज हो गए। अजय और रंजना को प्रत्याशी बनाने की घोषणा के बाद महामंत्री कविन्द्र जैन को बदल दिया गया। चुनाव का समय है इसलिए महामंत्री पद पर चंद्राकर की पसंद से नई नियुक्ति की गई, और जैन को उपाध्यक्ष बनाकर संतुष्ट किया गया।

चुनाव आयोग की किफायत 

वैसे से चुनाव कराना बहुत ही कठिन कार्य है। इसमें निष्पक्ष होने के साथ पारदर्शिता भी आवश्यक है। प्रत्याशियों की पाई-पाई के खर्च का ब्यौरा पूछने वाला चुनाव आयोग  अपने खर्चे पर कैसे पारदर्शिता रखता होगा। चुनाव कराने के लिए निर्वाचन आयोग को करोड़ों रुपए का बजट मिलता है, जिसमें से बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के मानदेय पर देना होता है, लेकिन उसके पहले कई आवश्यक खर्चे होते हैं जैसे वाहन, वीडियोग्राफी, सीसीटीवी कैमरा, पंडाल इत्यादि। चुनाव में इनका ठेका लेने वाले जानते हैं कि चुनाव का पैसा कब मिलेगा, इसका भगवान ही मालिक होते हैं। लिहाजा वे बिल तीन-चार गुना बनाते हैं।

लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में आयोग ने ये सारे ठेके सेंट्रलाइज्ड करवा दिये थे। राजधानी से ठेकेदार तय किये गए थे, उन्हें जिले में जाकर काम करना था।
अब नए अधिकारी के जिम्मे यह कार्य है। उनकी तासीर अलग तरह की है। उन्होंने एकमुश्त ठेका देने के बजाय जिला कलेक्टरों को बजट का आबंटन कर दिया है। इसका नतीजा यह हुआ कि जिस वीडियोग्राफी के लिए पिछली बार हर विधानसभा में 20 लाख खर्च हुए थे, वह काम अब महज चार लाख रुपए में हो रहा है। सीसीटीवी का ठेका सेंट्रलाइज्ड करने पर एक जिले में दो करोड़ में दिया गया था, वह इस बार केवल 24 लाख रुपए में पूरा हो जा रहा है। निर्वाचन आयोग की खर्च में पारदर्शिता से उम्मीद की जा रही है कि चुनाव में भी पारदर्शिता बनी रहेगी।

पीएससी विवाद अब घर के भीतर 

पीएससी और विवाद दोनों एक दूसरे के पर्याय हो गए हैं  कहना संस्था को अपमानित करना नहीं होगा। पीएससी में भर्ती तो चल ही रहा था, कि अब एक नया पदभार विवाद भी सामने आया है। विवादास्पद अध्यक्ष के बाद सरकार ने एक वर्तमान सदस्य को अध्यक्ष का अधिकार दिया गया है । और उनके साथ एक सदस्य को नियुक्त किया गया है। दोनों ने नियुक्ति के अगले ही दिन अपनी अपनी कुर्सी संभाल ली। और एक सदस्य ने तो बकायदा पोस्टिंग,प्रमोशन कमेटी की बैठक कर ली। कुछ फैसले भी ले लिए। अब ये फैसले पाक साफ हैं या विवादास्पद, यह तो वक्त बताएगा। 

बात यहीं खत्म नहीं हो रही। दरअसल पीएससी परिसर में चर्चा है कि सरकार के आदेश से पहले दोनों ने पदभार लिया या इनके पदभार लेने के बाद सरकार ने नियुक्ति की। अध्यक्ष, सदस्य ने सात अक्टूबर को पदभार लिया और सामान्य प्रशासन विभाग ने इनकी नियुक्ति का आदेश पांच दिन बाद 12 अक्टूबर को आदेश जारी किया। अब देखना यह है कि किसी ने यदि चुनौती दे दी तो सरकार और पीएससी इसे जस्टिफाई कैसे करेगा।

फिर बगावत, भितरघात की राह पर ?

अब से सात-आठ माह पहले जब कांग्रेस ने अपने विधायकों के कामकाज की समीक्षा की तो यह जाहिर किया कि दो चार को छोडक़र शेष की रिपोर्ट ठीक-ठाक है। समय नजदीक आते-आते यह साफ हो गया कि असल सर्वे रिपोर्ट कुछ अलग है, जिसके अनुसार कुछ मंत्रियों सहित 30-35 विधायकों की टिकट काटी जाएगी। पहली सूची में  30 में से 8 विधायकों को टिकट नहीं दी गई। हालांकि इनमें से एक सीट दंतेवाड़ा है, जहां से देवती कर्मा की जगह उनके बेटे को मैदान में उतारा गया है।

मौजूदा विधायकों, सांसदों की टिकट काटने जैसा ‘साहसिक’ फैसला पहले से भाजपा लेती रही है। गुजरात, उत्तरप्रदेश और कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में उसने यह प्रयोग किया था, जो कर्नाटक छोडक़र बाकी दोनों राज्यों में सफल रहा। सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ से उसने सभी प्रत्याशी नये दिए, यह भी सफल रहा। इस चुनाव में भाजपा ने यहां वैसा निर्मम फैसला नहीं लिया। सन् 2018 के चुनाव में जिन मंत्रियों को हार की वजह मानकर कार्यकर्ता चल रहे थे उन्हें भी उदारता के साथ टिकट दी है। टिकट वितरण का भाजपा में विरोध कम नहीं हो रहा है। जशपुर से रायमुणि भगत को टिकट देने के विरोध में  तो पूर्व मंत्री गणेशराम भगत के समर्थक राजधानी आकर पार्टी कार्यालय के सामने राशन पानी लेकर धरने में बैठ गए। करीब दर्जन भर सीटों पर कार्यकर्ता सडक़ों पर आये।  

वहीं कांग्रेस में जिनकी टिकट कटने की आशंका थी, उनमें तीन से चार मंत्री भी थे। यह जानते हुए भी सीट खतरे में आ सकती है, पार्टी ने किसी की टिकट नहीं काटी। एक मंत्री गुरु रुद्र कुमार की सिर्फ सीट बदली। कुछ लोगों को लग रहा है कि विधायकों की टिकट काटने का फैसला सुविधा के अनुसार लिया गया। टिकट फाइनल करने वाले सदस्यों की निजी राय का असर इसमें दिख रहा है। सन् 2018 के चुनाव में 27 हजार से अधिक मतों से जीत हासिल करने वाली खुज्जी विधायक छन्नी साहू की टिकट काटी गई है, जबकि 26 सौ वोट से जीतने वाले चंदन कश्यप की टिकट बरकरार रखी गई है। करीब 18 हजार मतों से जीतने वाले राजमन बेंजाम की भी टिकट बीजापुर से कट गई है। यहां से प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज मैदान में उतारे गए हैं।

2003, 2008 और 2013 के चुनावों में भितरघात और बागी उम्मीदवारों की वजह से नुकसान नहीं होता, तो वह शायद पहले ही सत्ता में वापस आ चुकी होती। सन् 2018 में एंटी इनकमबेंसी के अलावा कांग्रेस की यह बात भी खूब प्रचारित हुई थी कि जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे), भाजपा की ‘बी’ टीम है। पूरी कांग्रेस किसी सूरत में सत्ता में वापस के लिए सन् 2018 में एकजुट थी।

मगर, 2023 में वह एक बार फिर बगावत और भितरघात का सामना कर सकती है। इसकी शुरूआत भी हो चुकी है। चित्रकोट विधायक राजमन बेंजाम के समर्थक टिकट कटने से नाराज हैं। बेंजाम ने भी कह दिया है कि समर्थकों की जिद के आगे उन्हें लडऩे के लिए मजबूर होना पड़ेगा। पहले चरण की कुछ सीटों पर असंतुष्टों ने फार्म खरीद रखे हैं। नामांकन के लिए अभी तीन दिन बाकी है। नाम वापसी के लिए भी वक्त मिलेगा। इस बीच काफी उठापटक, समझाने, मनाने का सिलसिला नजर आ सकता है।

किसको नुकसान पहुंचाएंगे वेदराम

आरंग विधानसभा क्षेत्र में इस बार दिलचस्प तस्वीर बन रही है। दो माह पहले कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए सतनामी समाज के धर्मगुरु बालदास के बेटे खुशवंत साहेब को भाजपा ने उम्मीदवार घोषित कर दिया है। यहां पर उनका मुकाबला मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया से होने वाला है। मगर, इसी सीट पर वेदराम मनहरे भी भाजपा की टिकट चाहते थे। सन् 2018 के चुनाव में खुशवंत साहेब और वेदराम मनहरे ने कांग्रेस प्रत्याशी डहरिया का साथ दिया था। करीब 25 हजार मतों से डहरिया की जीत हुई थी। कांग्रेस में रहते हुए ही वेदराम दो बार तिल्दा से जनपद अध्यक्ष पद संभाल चुके हैं। सतनामी समाज के संरक्षक भी हैं। उन्हें उम्मीद थी कि डहरिया की जीत में जी जान से मेहनत करने का पार्टी उन्हें कोई पुरस्कार देगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। दो साल पहले सितंबर 2021 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और भाजपा की सदस्यता ले ली। पार्टी में प्रवेश तत्कालीन प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी ने खुद कराया था। कुछ दिन बाद उन्हें दिल्ली बुलाया गया और राष्ट्रीय नशा मुक्ति आंदोलन का छत्तीसगढ़ प्रभारी बनाया गया। प्रदेश के सतनामी समाज में गुरु बालदास के प्रभाव को देखते हुए उनके बेटे खुशवंत साहेब को भाजपा ने आरंग से टिकट दी है। पर वेदराम ने अपने समर्थकों के साथ बगावत कर दी है। कुछ दिन पहले काफी संख्या में कार्यकर्ता पैदल रायपुर पहुंचे थे। भाजपा कार्यालय में उन्होंने वेदराम को ही प्रत्याशी बनाने की मांग की। मगर भाजपा ने एक भी प्रत्याशी नहीं बदला है। अब वेदराम ने निर्दलीय लडऩे का ऐलान कर दिया है। वे जगह-जगह सभायें ले रहे हैं, जिनमें भीड़ भी आ रही है। जानकार बता रहे हैं कि वेदराम आरंग में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति पैदा कर सकते हैं। हालांकि यह कोई यह बताने की स्थिति में नहीं है कि वे किसका वोट काटेंगे। बरसों कांग्रेस में रहे, पिछले चुनाव में डहरिया को उनसे मदद मिली है और इधर दो साल के भीतर उन्होंने भाजपा में भी जगह बना ली थी।

यह तस्वीर पंडरी रोड शराब दुकान की है। जहां के सेल्समेन कहना है कि शराबी काउंटर में आते ही जेबकटी की शिकायत करने लगते हैं। पूछने पर बताया कि पैसे कम पडऩे पर शराबी ही एक दूसरे का जेब साफ कर रहे।

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