राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : कन्हैया की जगह राम
18-Oct-2023 4:06 PM
राजपथ-जनपथ : कन्हैया की जगह राम

कन्हैया की जगह राम 

रायपुर दक्षिण से पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ काफी माथापच्ची के बाद कांग्रेस ने दूधाधारी मठ के महंत रामसुंदर दास के नाम पर मुहर लगाई। बताते हैं कि महंत जी खुद जांजगीर-चांपा से टिकट चाह रहे थे। वो एक बार पामगढ़ से विधायक रहे हैं। लेकिन चर्चा है कि रायपुर दक्षिण से बृजमोहन के खिलाफ लडऩे के अनिच्छुक रहे हैं।

दूसरी तरफ, पूर्व पराजित प्रत्याशी कन्हैया अग्रवाल ने अपनी टिकट के लिए खूब कोशिश की। डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव उनके समर्थन में थे। कहा जा रहा है कि इस बात की खबर मिलने पर कन्हैया, महंत जी से मिलने मठ भी गए। और उनसे टीएस सिंहदेव की बात कराई। कन्हैया ने महंत जी से कहलवाया कि पार्टी चाहे तो उनकी जगह कन्हैया को प्रत्याशी बना सकती है। सिंहदेव ने हाथ खड़े कर दिए, इसके बाद प्रदेश प्रभारी सैलजा से चर्चा की कोशिश की गई, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया। और कन्हैया प्रत्याशी बनने से रह गए। 

दो नेताओं के सींग उलझे 

प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। एक बड़े नेता ठाकरे परिसर से मानो खो कर दिए गए हैं।  चुनाव सिर पर न होता तो नेताजी  ठाकरे परिसर से ही नहीं पद से भी हाथ धोना पड़ जाता। हालांकि वे टिकट हासिल करने में सफल रहे। ठाकरे परिसर की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखने वालों का कहना है कि  इन दिनों दो नेताओं के बीच बोलचाल ही बंद है। न तो फोन पर बात हो रही न वन टू वन मुलाकात में। इसे संगठन के महामंत्री भी समझ रहे हैं। इसके पीछे एक कारण यह बताया जा रहा है कि एक सह प्रभारी, न्यायधानी की एक टिकट भाजयुमो नेता को दिलाना चाहते हैं और नेताजी नहीं चाहते। इससे बड़ी चर्चा है कि  नेताजी के किसी लेनदेन  फंस गए हैं और हाईकमान को पता चल गया है। उसके ही कहने पर नेताजी साइड लाइन किए जा रहे हैं।

जंगल से मोहब्बत और नफरत

भाजपा में एक वन अफसर को लेकर बड़ी खींचतान चल रही है। 2018 जुलाई तक जो अफसर मानो लख्ते जिगर था । उसकी अब परछाई भी पसंद नहीं है। जो लोग विरोध कर रहे हैं उन्होंने ही कभी इन अफसर को आरा मिल घोटाले से पाक साफ किया था। हालांकि इसके लिए अफसर ने नीचे से लेकर ऊपर तक खूब गांधीजी को खूब इस्तेमाल किया था। अब उनसे ऐसी चिढ़ समझ से परे है। हर दूसरे दिन लोग आयोग में जाने बड़े नेताओं पर दबाव बनाए रहते हैं। वो तो भला हो भाई साहबों का कि ये एक घर छोडक़र चलने के स्टैंडिंग आर्डर दे रखे हैं। 

राज्योत्सव मैदान में विकास या विनाश

साइंस कालेज का मैदान काफी प्रसिद्ध रहा है। कई प्रधानमंत्री से लेकर दिग्गज नेताओं की सभाएं यहां कई दशकों से होती आ रही हैं। लेकिन अब पहले जैसी बात नहीं रही। राज्य गठन के पहले मैदान जितना विशाल था, आज आधे का भी आधा रह गया है। राजधानी बनने के बाद यहां राज्योत्सव का आयोजन हुआ तो यह राज्योत्सव मैदान कहलाने लगा। शहर से लगा और आम लोगों की आसान पहुंच वाला राजधानी में इतना बड़ा मैदान और कहीं नहीं था।  यहां रोजाना सुबह-शाम क्रिकेट खेलने वाले दर्जनों टीम दिखती है। लेकिन इस मैदान को तथाकथित विकास करने वालों ने निगल लिया है। चुनावी का मौसम है तो एक पार्टी के कद्दावर नेता अपने विकास कार्यों की फेहरिस्त में इस मैदान में बने ढांचों को उपलब्धियों के रूप में गिनाते नहीं थकते। पर आम लोगों का कहना है कि इस मैदान में हॉकी के दो स्टेडियम बनाए गए हैं, जिसमें केवल अंतरराष्ट्रीय मैच होते हैं। वह भी कई सालों में कभी-कभार, जबकि रोज खेलने वाले बच्चों के लिए मैदान ही नहीं है।

इस मैदान में ही खेल विभाग का बड़ा सा कार्यालय बन गया है। एक हिस्से में युवा आयोग है तो दूसरे हिस्से में छात्रावास बन गया है। लेकिन यह कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन सका कि आम लोगों की सुविधाओं में कैसे कटौती हो रही है। रोजाना खेलने वाले बच्चों के लिए शहर के नजदीक ही मैदान होना चाहिए। राष्ट्रीय स्तर के मैच तो कभी-कभी होते हैं, वो शहर से बाहर हो सकते हैं। अब दूसरी पार्टी की सरकार बनी तो इस मैदान को मानों जीवनदान मिला। यहां राज्योत्सव आयोजित होने से मैदान की जान लौट गई, लेकिन छोटा होने के कारण अव्यवस्थित लगता है। पर इस सरकार ने भी विकास के नाम पर एक तो चौपाटी बना दी, दूसरी ओर छात्रावास के सामने एक लंबी दीवार खड़ी कर दी है। कुल मिलाकर मैदान सिकुड़ते जा रहा है। खिलाडिय़ों का भी दोष है कि उन्होंने कभी इसके खिलाफ आवाज भी नहीं उठाई, नहीं तो कम से कम चुनाव में मुद्दा तो जरूर बन जाता।

बाहर का मतलब सोनिया गांधी

केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह नामांकन दाखिले के लिए भरतपुर-सोनहत पहुंचीं तो बाहरी प्रत्याशी कहे जाने को लेकर पूछे गए सवाल से विचलित हो गईं। उन्होंने कहा कि पहले सोनिया गांधी को धक्के मारकर इटली भेजें, फिर मुझसे क्वेश्चन करें। इधर,  यही सवाल भाजपा प्रत्याशी प्रबल प्रताप सिंह से किया गया, जो बिलासपुर जिले के कोटा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा- कांग्रेस के जो लोग मुझे बाहरी कह रहे हैं, उन्हें अपने गिरेबान में झांकना चाहिए और बताना चाहिए कि सोनिया गांधी कहां की हैं? इटली की है न? राहुल गांधी चुनाव कहां से लड़ते हैं?

कोटा प्रत्याशी का बयान कुछ शालीन है, वहीं रेणुका सिंह का सोनिया गांधी को धक्के मारने, जैसा बयान कुछ लोगों को अशोभनीय लग सकता है और विधानसभा चुनाव के संदर्भ में ऐसा उदाहरण बेतुका भी। पर एक साथ दोनों ही प्रत्याशी सोनिया गांधी को याद कर रहे हैं। यह अटकल आप लगाएं कि क्या यह संयोग है। या फिर भाजपा ने तय कर रखा है कि सोनिया गांधी को छत्तीसगढ़ के चुनाव में किसी बहाने चर्चा में लाया जाए?

विधायक का वायरल ऑडियो

दूसरी सूची के लिए दिल्ली में हुई कांग्रेस की बैठक के पहले कई विधायकों को इसका आभास भी हो चुका था कि उनकी टिकट खतरे में है। यह एक दिलचस्प मोड़ है। लोगों ने नजर गड़ा रखी है कि टिकट से वंचित विधायक पार्टी के आदेश को मानकर खामोश बैठ जाएंगे या फिर बगावत करेंगे। एक दो दिन में सब साफ होने वाला है। ऐसे में एक ऑडियो वायरल हुआ है जो कथित तौर पर मनेंद्रगढ़ विधायक डॉ. विनय जायसवाल और एक कार्यकर्ता के बीच की बातचीत है। इसमें विधायक कह रहे हैं कि उन्हें टिकट नहीं मिल रही है। डॉ. जायसवाल कार्यकर्ता से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की टिकट पर चुनाव लडऩे के बारे में सलाह ले रहे हैं और कार्यकर्ता उन्हें वोटों का गणित समझा कर बता रहा है कि वे किस तरह से गोंडवाना की टिकट पर जीत सकते हैं। ऑडियो वायरल होने पर डॉ. जायसवाल ने सफाई दी है कि यह फर्जी है। जिस वक्त उनकी प्रतिक्रिया आई है, कांग्रेस की सूची जारी नहीं हुई है। उनका कहना है कि अभी तो टिकट फाइनल नहीं हुई। आगे जो कुछ भी होता है, मीडिया के माध्यम से मैं सार्वजनिक करूंगा। हालांकि विधायक ने यह नहीं कहा कि पार्टी का जो निर्णय होगा मानेंगे और टिकट कट जाने पर भी कांग्रेस के लिए काम करेंगे।

जीएसटी गंगाजल की डिलीवरी पर

छत्तीसगढ़ में जब कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि हिंदुओं के लिए पवित्र गंगाजल को केंद्र की भाजपा सरकार ने कमाई का साधन बना लिया है और इस पर जीएसटी लगाया जा रहा है, तो भाजपा ने कांग्रेस पर झूठ फैलाने का आरोप लगाया। सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स एंड कस्टम (सीबीआईसी) की ओर से सोशल मीडिया पर बयान जारी कर कहा गया कि गंगाजल सहित किसी भी पूजा सामग्री में टैक्स नहीं लगता। पहले से ही इस पर जीएसटी कौंसिल की बैठक में निर्णय लिया जा चुका है।

गंगाजल की देशभर में आपूर्ति का काम डाक विभाग ने बीते वर्षों से शुरू किया है। जिन लोगों ने डाक से कभी गंगाजल मंगाया नहीं, उनको यह समझ में नहीं आ रहा कि कांग्रेस सही है या केंद्र सरकार। कांग्रेस नेत्री अलका लांबा की पोस्ट से यह साफ होता है कि गंगाजल पर तो कोई टैक्स नहीं है पर पोस्टल चार्ज पर 18 प्रतिशत जीएसटी देना होता है, यह चार्ज डाक विभाग की ओर से किया जाता है। इसका मतलब यह है कि डाक खर्च और गंगाजल के कुल खर्च में जीएसटी का एक हिस्सा जुड़ा तो है, पर वह कांग्रेस की मानें तो गंगाजल पर है, भाजपा की मानें तो डिलीवरी पर।

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