राजपथ - जनपथ
डॉ. प्रेमसाय का पत्ता क्यों कटा?
डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम अकेले ऐसे विधायक हैं, जो भूपेश सरकार में मंत्री रहे और टिकट काट दी गई। मंत्रिमंडल से जुलाई महीने में उनका इस्तीफा ले लिया गया था, हालांकि इसके कुछ दिन बाद कैबिनेट मंत्री दर्जा बरकरार रखते हुए उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बना दिया गया। डॉ. साय का कार्यकाल बहुत विवादित रहा। मंत्री बनने के तुरंत बाद पत्नी डॉ. रमा सिंह को उन्होंने अपना विशेष सहायक नियुक्त कर लिया था। विवाद बढऩे के बाद मुख्यमंत्री ने आदेश रद्द कराया।
दो साल पहले डीपीआई के डिप्टी डायरेक्टर आशुतोष चावरे का एक शिकायती पत्र वायरल हुआ था, जिसमें डायरी के पन्नों का हवाला देते हुए शिक्षकों की पदस्थापना में 366 करोड़ के लेन-देन की बात कही गई थी। चावरे ने रायपुर के राखी थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी कि उनके फर्जी दस्तखत और सील से मनगढ़ंत शिकायत की गई। इस मामले में दो तरह की जांच होनी थी। एक तो कि क्या चावरे का दस्तखत फर्जी था, दूसरा ट्रांसफर पोस्टिंग में 366 करोड़ के लेनदेन की शिकायत क्या सही थी? जानकर हैरानी हो सकती है कि दोनों ही जांच अब तक अंजाम तक नहीं पहुंची हैं।
स्कूल शिक्षा में छत्तीसगढ़ की रैंकिंग पूरे देश में बेहद खराब है लेकिन ऐसा कभी नहीं लगा कि सुशिक्षित डॉ. प्रेमसाय इस मसले पर चिंतित हैं। इनके लगभग 4 साल के कार्यकाल में रैंकिंग सुधरी नहीं।
उनके इस्तीफे के कुछ पहले 4500 से अधिक पदोन्नत शिक्षकों की पोस्टिंग में करोड़ों के रिश्वतखोरी के आरोप से विभाग घिर गया। विभाग को रविंद्र चौबे ने संभाला। डॉ. साय के हटते ही इस मामले में कई बड़े अधिकारी सस्पेंड कर दिये गए। हालांकि इनके विरुद्ध एफआईआर के आदेश का पालन नहीं हुआ है।
रायपुर में आरटीई की प्रतिपूर्ति के नाम पर 76 लाख रुपये संदिग्ध खाते में भेजे गए थे। इसकी जांच की फाइल स्कूल शिक्षा मंत्री के बंगले में साल भर पड़ी रही। उनके दफ्तर से निकलने के बाद भी जांच अधूरी है।
अक्टूबर 2021 में विधायक बृहस्पत सिंह और चंद्रदेव राय ने ट्रांसफर पोस्टिंग में लाखों का लेन-देन का आरोप लगाकर उनका बंगला घेरा। शायद ही पहले ऐसा हुआ हो कि 35 कांग्रेस विधायकों ने अपने ही किसी मंत्री की मुख्यमंत्री से शिकायत की हो। इनका कहना था कि मंत्री मनमानी कर रहे हैं, सारा दफ्तर उनके चहेते पीए और दूसरे भ्रष्ट अफसर चला रहे हैं। उनसे इस्तीफा लेने की मांग की गई। डॉ. साय के समर्थकों ने कहा कि यह सब उनके टीएस सिंहदेव खेमे से होने के कारण किया जा रहा है। सिंहदेव ने यह कहते हुए मंत्री का बचाव किया था कि विवाद सार्वजनिक करने से विपक्ष को लाभ मिलता है।
इन सब तथ्यों के बावजूद यह निष्कर्ष निकालना ठीक नहीं है कि डॉ. साय सिर्फ इन्हीं कारणों से टिकट से वंचित हुए। प्रदेश के शीर्ष नेता सहमत हो गए होंगे कि दो टिकट हमारे कटेंगे, दो आपके। दो हमारी सिफारिश से मिलेगी, दो आपकी।
हाथ का साथ रास आया साय को?
भाजपा में करीब 40 साल की राजनीतिक यात्रा के बाद कांग्रेस में अचानक शामिल हुए नंदकुमार साय ने लैलूंगा, कुनकुरी या पत्थलगांव से टिकट मांगी थी। लैलूंगा रायगढ़ तो बाकी दो जशपुर जिले में हैं। 77 वर्षीय साय इस इलाके से तीन बार विधायक रह चुके हैं, छत्तीसगढ़ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष, लोकसभा,राज्य सभा सदस्य, अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष होने के साथ-साथ कई महत्व के पदों पर रहे।
कांग्रेस में शामिल होने के बाद केबिनेट मंत्री दर्जा के साथ सीएसआईडीसी के अध्यक्ष बनाए गए साय ने जिन तीन सीटों से टिकट मांगी, उन सभी पर कांग्रेस का कब्जा था। इनमें से कुनकुरी और पत्थलगांव सीट पर मौजूदा कांग्रेस विधायकों की टिकट नहीं काटी गई लेकिन लैलूंगा में एक विकल्प था। यहां से विधायक चक्रधर प्रसाद सिदार ने भाजपा को 2018 में भाजपा को 24 हजार से अधिक वोटों से हराया था, जिनकी टिकट काटकर विद्यावती सिदार को प्रत्याशी बनाया गया है। अपनी टिकट कटने की चर्चा के बीच विधायक चक्रधर सिदार अपनी पुत्रवधू यशोमति सिदार का नाम आगे कर चुके थे, पर पूर्व विधायक प्रेम सिंह सिदार की पुत्रवधू विद्यावती सिदार पर कांग्रेस ने भरोसा जताया। वे इस समय जिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष भी हैं। जिन तीन सीटों पर साय ने लडऩे की इच्छा जाहिर की थी, उनमें से यही एक सीट है- जहां पर कांग्रेस ने फेरबदल किया।
साय की महत्वाकांक्षा ऊंची रही है। उनका बयान आ चुका है कि राजनाथ सिंह और डॉ. रमन सिंह की सांठगांठ के चलते वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने से वंचित रह गए। प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग वे हमेशा करते हैं।
जब वे कांग्रेस में शामिल हुए तो भाजपा ने गिनाया था कि पार्टी ने उन्हें क्या-क्या दिया। अब कांग्रेस ने टिकट को लेकर उनकी दावेदारी को नकार दिया है। अब, पता नहीं साय खुद को कांग्रेस में ज्यादा उपेक्षित महसूस कर रहे हैं, या बीजेपी में करते थे। मालूम होगा तब होगा, जब वे अपने इन इलाकों में हाथ के निशान को वोट देने के लिए निकलेंगे।