राजपथ - जनपथ
अप्रिय चर्चा भी काम आई
कांग्रेस में रायपुर उत्तर से प्रत्याशी तय करने के लिए काफी किचकिच हुई। टिकट के दो प्रमुख दावेदार कुलदीप जुनेजा, और डॉ. राकेश गुप्ता से परे तीसरे नाम पर विचार से काफी विवाद हो रहा था। तीसरे शख्स का नाम तकरीबन फाइनल माना जा रहा था, लेकिन स्थानीय प्रमुख नेताओं के कड़े विरोध के बाद आखिरकार कुलदीप के नाम पर मुहर लग गई।
बताते हैं कि पार्टी के कुछ राष्ट्रीय नेता, रायपुर उत्तर के टिकट को लेकर काफी दिलचस्पी दिखा रहे थे। इसके बाद टिकट के एवज में महंगे गिफ्ट बांटने की चर्चा शुरू हो गई। इन सबके बीच एक व्यापारी नेता तो एआईसीसी में यह कहते सुने गए, कि वो सबसे ज्यादा खर्च कर सकते हैं। इस तरह की अप्रिय चर्चा प्रदेश प्रभारी सैलजा तक पहुंची।
सीएम, और अन्य नेताओं ने भी इसको गंभीरता से लिया। बाद में विवादों से बचने के लिए छानबीन समिति के सदस्यों की सहमति से कुलदीप को फिर से प्रत्याशी बनाने का फैसला लिया गया। दिलचस्प बात यह है कि पिछले तीन चुनाव में कुलदीप की टिकट आखिरी समय में तय होती रही है। इस बार भी ऐसा ही हुआ।
बगावत उम्मीद से बहुत कम
सरगुजा संभाग में भाजपा को बड़ी उम्मीदें हैं। यहां की सभी 14 सीटें कांग्रेस के पास हैं। ऐसे में भाजपा यहां विशेष रूप से ध्यान दे रही है। भाजपा के रणनीतिकार टिकट वितरण के बाद सरगुजा में कांग्रेस के दावेदारों में असंतोष को देखकर काफी खुश थे, और उन्हें अपने लिए अपार संभावनाएं दिख रही थी। लेकिन जैसे-जैसे कांग्रेस में असंतोष कम हो रहा है, भाजपा के रणनीतिकार चिंतित हैं।
सरगुजा में टिकट नहीं मिलने से नाराज बड़े नेता बृहस्पति सिंह के सुर भी बदल गए हैं। वो कह चुके हैं कि किसी भी दशा में कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे। एक और कांग्रेस विधायक चिंतामणि महाराज के लिए कहा जा रहा था कि वो पार्टी छोड़ सकते हैं। इसके बाद पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, और कई अन्य नेता उनसे मिलने पहुंच भी गए। मगर चिंतामणि महाराज ने ऐसी-ऐसी शर्त रखी, जिसे सुनकर बृजमोहन, और बाकी नेता बगल झांकने को मजबूर हो गए।
चिंतामणि महाराज ने अंबिकापुर से प्रत्याशी बनाने की मांग रख दी। भाजपा ने यहां से अब तक उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। बृजमोहन ने उनसे लोकसभा टिकट पर विचार करने का भरोसा दिलाया। लेकिन बात नहीं बनी। उनके जाने के बाद चिंतामणि महाराज यह कहते सुने गए, कि भाजपा उनके साथ पहले धोखा कर चुकी है। ऐसे में वो अब उन पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। अब जब कांग्रेस में बड़े नेता बागी होते नहीं दिख रहे हैं, तो भाजपा के नेता नई रणनीति बनाने में जुटे हैं। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
चुनाव ड्यूटी कटवाने का खेल
विधानसभा चुनाव का आगाज हो चुका है। इसमें जिला निर्वाचन अधिकारी जिले का प्रमुख होता है। कलेक्टर को इसका जिम्मा दिया जाता है, लेकिन ज्यादातर काम उपजिला निर्वाचन अधिकारी करता है। चुनाव है तो अधिकारी से लेकर बाबू तक चुनाव में व्यस्त हैं। उनका दशहरा दीवाली की छुट्टी चुनाव की भेंट चढ़ गई है।
चुनाव अधिकारी इतनी मेहनत के बाद मलाई की तलाश में रहते हैं, जिले में मतदान कराने के लिये छह हजार कर्मी की आवश्यकता है तो दस हजार की ड्यूटी लगा दी। अब चुनाव ड्यूटी करना किसको पसंद है तो हर जिले में इसके नाम कटवाने बाबू सेटिंग करा रहे हैं। दुर्ग जिले में एक अधिकारी इसके जरिये अपना चुनावी मेहनताना का इंतजाम करने में लगे हैं। ऐसे लोग हर जिले में तैनात हैं। इनसे निपटने राजधानी में तो डीआरओ आफिस में ही मेडिकल बोर्ड बिठा दिया गया है। ताकि मौके पर ही बिमारी पता चल जाए।
हमर राज का समाज में विरोध
सर्व आदिवासी समाज ने तय किया कि वे एक राजनीतिक दल बनाएंगे और विधानसभा चुनाव में उतरेंगे। वजह यह है कि सत्ता में बार-बार आए दलों ने आदिवासियों के लिए संविधान में मिले विशेष प्रावधानों को लागू नहीं किया और जो नये कानून लाए जा रहे हैं उससे आदिवासियों के अधिकारों का हनन हो रहा है। यह लड़ाई बिना राजनीतिक दल बनाये ही भानुप्रतापपुर विधानसभा उप-चुनाव से शुरू हो चुकी थी। विधानसभा चुनाव में संगठन हमर राज पार्टी के बैनर पर मैदान में उतर रहा है। इसके 20 उम्मीदवार घोषित किये जा चुके हैं। पार्टी ने 50 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की घोषणा की थी। दूसरे चरण के प्रत्याशियों की भी आज, कल में घोषणा हो सकती है।
मगर इसका दूसरा पहलू सामने आ रहा है। किसी सामाजिक संगठन में काम करने वाले लोग अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा के हो सकते हैं। इसके सभी सदस्यों को किसी एक राजनीतिक लाइन पकडऩे के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। सर्व आदिवासी समाज के सदस्य भी भाजपा, कांग्रेस या अन्य दलों के समर्थक-विरोधी हो सकते हैं। सर्व आदिवासी समाज उनका राजनीतिक नजरिया तय करे यह उन्हें मंजूर नहीं है। महासमुंद जिले में यह विरोध शुरू हुआ है। खल्लारी में सर्व आदिवासी समाज के महासमुंद जिला इकाई की बैठक हुई। इसने तय किया कि समाज का कोई भी व्यक्ति सर्व आदिवासी समाज की ओर से अधिकृत उम्मीदवार नहीं होगा। यदि वह हमर राज पार्टी से लड़े या निर्दलीय वह समाज का उम्मीदवार नहीं कहा जाएगा। सर्व आदिवासी समाज, सामाजिक संगठन है और यह अपनी यही जिम्मेदारी निभाएगा।
महासमुंद जिले में महासमुंद, खल्लारी, बसना और सरायपाली विधानसभा सीटें हैं। इनमें से सरायपाली अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, जबकि शेष तीन सामान्य सीटें हैं। दिलचस्प यह है कि इन चारों में कोई सीट अनुसूचित जनजाति आरक्षित नहीं है, जबकि 2011 की जनगणना में इनकी संख्या 60 प्रतिशत से अधिक थी।
महासमुंद से आई प्रतिक्रिया का यह संकेत है कि सर्व आदिवासी समाज के सभी सदस्य हमर राज पार्टी के भी साथ हों, यह जरूरी नहीं है। मगर यह भी मुमकिन है कि जो इस संगठन से नहीं जुड़े हैं, वे भी कांग्रेस भाजपा के विकल्प के रूप में हमर राज पार्टी को साथ दे दें।
टिकट के लिए शीर्षासन..
छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश दोनों ही जगह कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की लड़ाई का अनुमान है। दोनों ही दलों के कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि उनकी सरकार बनेगी। इसीलिये टिकट से वंचित दोनों ही दलों के नेताओं और उनके समर्थकों में तीव्र प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। टिकट बंटने के बाद छत्तीसगढ़ की तरह मध्यप्रदेश में भी एक से बढक़र एक नजारे दिखाई दे रहे हैं। भोपाल में कांग्रेस नेता कमलनाथ के घर के सामने पार्टी कार्यकर्ता धरने पर बैठे हैं। वे निवाड़ी सीट से रमेश पटेरिया की टिकट कट जाने से नाराज हैं। मौके पर एक कार्यकर्ता शीर्षासन कर ध्यान खींच रहा है।
टाइगर रिजर्व का यह हाल
यह तस्वीर उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व की है। इंदागांव परिक्षेत्र में दो पेड़ों के बीच फंस जाने से एक तेंदुये की मौत हो गई। पर वन विभाग को इसकी खबर चार दिन तक नहीं मिली। लाश चार दिन तक ऐसे ही फंसी रही। जानकारी मिलने पर पोस्टमार्टम कर शव दाह कराया गया। जब ऐसी सूचना वन विभाग के अफसर और मैदानी अमले को चार दिन तक न मिले तब अंदाजा लगा सकते हैं कि अभयारण्य में पेट्रोलिंग की क्या स्थिति होगी।