राजपथ - जनपथ
30 तारीख गर्म रहेगी
विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी, पीएम मोदी के बजाए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की सभाओं की डिमांड कर रहे हंै। दूसरे चरण की सीटों के लिए सारे प्रत्याशी अलग-अलग तिथियों में एक साथ नामांकन दाखिल करेंगे। इस मौके पर तकरीबन सभी जिलों से योगी आदित्यनाथ की सभा की डिमांड आई है।
योगी आदित्यनाथ की 30 तारीख को बलरामपुर, और कवर्धा जिले में सभा होगी। यही नहीं, पीएम की सभा भी 30 तारीख को दुर्ग में होगी। इससे परे कांग्रेस की भी 30 तारीख को दुर्ग में बड़ी सभा है। इसमें पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा प्रमुख रूप से रहेंगी। कुल मिलाकर नामांकन दाखिले के आखिरी दिन प्रदेश का राजनीतिक माहौल गर्म रहेगा।
दिग्विजय सिंह भूले नहीं..
मध्यप्रदेश में टिकट वितरण के खिलाफ कांग्रेस भाजपा दोनों में नाराजगी है। वे अपने ही नेताओं का पुतला फूंक रहे हैं, मुंडन करा रहे हैं, शीर्षासन कर रहे हैं। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को कई दावेदार टिकट कटने के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं। पत्रकारों से चर्चा के दौरान दिग्विजय सिंह ने इस विरोध को लेकर कहा- टिकट तो पार्टी ने बांटी है। आएं, जिसे मेरा कुर्ता फाडऩा है-आकर फाड़ लें। साथ ही याद करते हुए कहा कि- वैसे आज तक एक ही बार मेरा कुर्ता फटा है। तब, जब मैं सन् 2000 में (स्व.) अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बनवाने के लिए रायपुर गया था...।
बृजमोहन के खिलाफ लडऩे के फायदे
भाजपा और कांग्रेस ने सिंधी समाज से एक भी प्रत्याशी नहीं दिए हैं। इससे समाज के लोग खफा हैं। कांग्रेस से तो ज्यादा उम्मीद नहीं थी। मगर भाजपा के तो परम्परागत वोटर माने जाते हैं। ऐसे में भाजपा ने टिकट नहीं दी, तो समाज के लोगों में काफी प्रतिक्रिया हुई है।
सिंधी समाज के नेता अपना गुस्सा पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल पर निकाल रहे हैं। बताते हैं कि बृजमोहन की प्रत्याशी चयन में कोई भूमिका नहीं थी, और वो खुद भी चाहते थे कि रायपुर उत्तर से सिंधी समाज से प्रत्याशी बनाया जाए। मगर समाज के लोग मानने के लिए तैयार नहीं है। इस सिलसिले में रणनीति तैयार करने के लिए एक बड़ी बैठक भी रखी गई है।
कहा जा रहा है कि बृजमोहन के खिलाफ कुछ सिंधी नेता चुनाव मैदान में उतरने का मन बना रहे हैं। एक-दो ने तो फार्म भी ले लिए हंै। बृजमोहन के खिलाफ चुनाव लडऩे के फायदे भी हैं। वो अपने विरोधियों का पूरा ख्याल रखते हैं। देखना है कि आगे क्या होता है।
मतदान की तारीख
चुनाव आयोग सारे पहलुओं को देखकर मतदान की तारीख घोषित करता है। फिर भी कई बार मतदान की तारीख बदलनी पड़ जाती है। राजस्थान में देवउठनी पर शादियां होती हैं, राजनीतिक दलों ने फरियाद लगाई तो चुनाव आयोग ने मतदान की तारीख बदल दी।
इसे देखकर छत्तीसगढ़ में भी मतदान तारीख बदलने की मांग उठी। कारण बताया गया कि छठ पूजा की शुरुआत इस दिन होती है। सबसे पहले आम आदमी पार्टी ने यह मुद्दा उठाया, क्योंकि नई पार्टी है, वोट बैंक बढ़ाना है। भिलाई, बिलासपुर, अंबिकापुर सहित कुछ क्षेत्रों में बिहारी से आए प्रवासी इसे मनाते हैं।
वोटबैंक का मामला है, इसलिये सभी दल इसमें कूद पड़े। छत्तीसगढिय़ा स्वाभिमान का झंडा बुलंद करने वाली पार्टी भी इसके समर्थन में आ गई। पूर्व कद्दावर नेता ने भी इसकी मांग कर दी। इस मामले में आयोग का फैसला आया भी नहीं था कि एक समाज ने भी यह कहकर मतदान तारीख बदलने की मांग कर दी कि हमारे समाज के कई लोग इस दिन तीर्थयात्रा पर जा रहे हैं।
इन बातों को सुनकर गांव में मातर और देवारी मानने वाले कहने लगे कि आखिर चुनाव त्यौहार के समय क्यों होते हैं। छत्तीसगढ़ में नवरात्रि, दशहरा और दीवाली प्रमुख त्यौहार होता है। इस दौरान चुनाव होने से लोगों के व्यापारी व्यवसाय में असर पड़ता है। नगद राशि पर आयोग की नजर रहती है। इसे तीन महीने आगे कर देना चाहिए।
जहां जरूरत, वहां निगरानी ही नहीं
विधानसभा चुनाव 2023 के लिए सितंबर महीने में राज्य स्तरीय मीडिया प्रमाणन और अनुवीक्षण समिति, जिसे संक्षेप में एमसीएमसी कहते हैं, बना दी गई थी। प्रत्येक जिले में भी ऐसी समितियां काम कर रही है। इनमें डिप्टी कलेक्टर, जनसंपर्क विभाग के अधिकारी और कुछ रिटायर्ड अधिकारी रखे गए हैं। पहले ये सिर्फ अखबार, टीवी और रेडियो पर प्रकाशित, प्रसारित खबरों पर नजर रखते थे लेकिन पिछले कुछ चुनावों से सोशल मीडिया को निगरानी के दायरे में लाया जा चुका है। चुनाव आयोग की दिल्ली में चुनाव पर प्रेस कांफ्रेंस जैसे ही हुई, अखबार, टीवी से सरकारी विज्ञापन हट गए। अब पार्टियों के फंड से मिले विज्ञापन चलाए जा रहे हैं। खबरों में भी संतुलन रखा जा रहा है ताकि किसी खास दल या प्रत्याशी के पक्ष में झुकाव न दिखे। एमसीएमसी को खुद भी ऐसी कोई खबर हो तो संज्ञान में लेना है और शिकायत मिलने पर तो कदम उठाना ही है।
मगर, अखबार-टीवी आम तौर पर सतर्क हैं। सवाल यह है कि सोशल मीडिया पर कमेटी कितना नजर रख पा रही है? प्रचार का इस समय सबसे बड़ा हथियार बना है डिजिटल प्लेटफॉर्म। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में देखें तो भाजपा और कांग्रेस के कार्टून, मीम और जोड़-तोड़ करके बनाए गए फोटो, वीडियो से ट्विटर पेज भरे पड़े हैं। फेसबुक में कुछ कम है लेकिन वाट्सएप ग्रुपों का भी ट्विटर जैसा ही हाल है। दशहरे पर एक दल दूसरी पार्टी के नेताओं को रावण बताने पर तुला रहा। ये पोस्ट इतने आक्रामक, असंतुलित और कहीं-कहीं अमर्यादित हैं कि अखबार कभी छापने की हिम्मत ही न करें। मालूम नहीं एमसीएमसी में इतने जानकार लोग हैं भी या नहीं कि वे सोशल मीडिया पर नजर रख सकें। मजे की बात यह है कि ये दल अपने खिलाफ सोशल मीडिया पोस्ट की शिकायत लेकर एमसीएमसी के पास जा भी नहीं रहे हैं। वजह यह है कि सब एक दूसरे पर हमला कर रहे हैं। दूध का धुला कोई नहीं। सोशल मीडिया पर ही पोस्ट का जवाब देकर हिसाब बराबर किया जा रहा है। वैसे आम मतदाता ऐसी पोस्ट से नाखुश हो तो सी-विजिल ऐप है। वे सीधे निर्वाचन पदाधिकारी को इसके जरिये शिकायत भेज सकते हैं।
एक यादगार बस्तर दशहरा
बस्तर का पारंपरिक दशहरा उत्सव हरेली अमावस्या से प्रारंभ हो चुका है। मावली परघाव की रस्म कल पूरी हुई। कहा जाता है कि बस्तर दशहरा की शुरूआत 13वीं शताब्दी में राजा पुरुषोत्तम देव ने शुरू की थी। यह खास तस्वीर सन् 1962 की है। सन् 1961 में महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव को तत्कालीन सरकार ने अपदस्थ कर उनके भाई विजयचंद्र को राजा घोषित कर दिया था। प्रशासन सिर्फ इसी शर्त पर बस्तर दशहरा में सहयोग करने के लिए तैयार था कि इसे विजयचंद्र भंजदेव की अगुवाई में मनाया जाए। लाला जगदलपुरी ने अपनी एक किताब में बताया है कि बस्तर की जनता के दिल पर तो प्रवीरचंद्र राज करते थे। लोगों ने आपसी सहयोग कर संसाधन जुटाए और प्रवीरचंद्र भंजदेव के नेतृत्व में ही बस्तर दशहरा मनाया। राजा प्रवीरचंद्र महारानी के साथ रथ पर सवार होकर निकले तो लाखों लोग उनका स्वागत करने के लिए मौजूद थे।