राजपथ - जनपथ
शिकायत भारी पड़ी
एफसीआई पर अवैध वसूली की शिकायत कर कुरूद के एक राईस मिलर मुश्किल में फंस गए हैं। मिलर, राईस मिलर एसोसिएशन के सचिव हैं, और उनकी शिकायत पर 40 से अधिक अफसरों को हटा दिया गया था। अब जांच आगे बढ़ी, तो दर्जनभर मिलर भी लपेटे में आ गए।
मिलरों के यहां पहले आईटी ने दबिश दी थी, और फिर ईडी भी जांच में कूद गई। ईडी ने मिलिंग में करीब 5 सौ करोड़ की हेराफेरी का दावा किया है। गोबरा-नवापारा से लेकर कोरबा तक मिलरों के ठिकानों पर छापे पड़े हैं।
ईडी की टीम शिकायतकर्ता मिलर के घर भी पहुंची थी। लेकिन वो नहीं मिले। उनके कर्मचारियों से पूछताछ हुई है। अब ईडी की टीम मिलर से पूछताछ करना चाहती है, लेकिन वो सामने नहीं आ रहे हैं। कुछ लोग बताते हैं कि आईटी, और ईडी के सक्रिय होने के बाद विदेश चले गए हैं। कहा जा रहा है कि ईडी, शिकायतकर्ता को ही आरोपी बना सकती है। इसको लेकर कुछ प्रमाण भी जुटाए गए हैं। देखना है आगे क्या होता है।
यूपी के इश्तहार कैसे बंद कराएँ ?
विधानसभा चुनाव हर तरह की सरकारी योजना का प्रचार प्रतिबंधित रहता है। हर सरकारी चीजों पर नेताओं के फोटो हटा लिये जाते हैं। यहां तक शिलान्यास के पत्थरों में लिखे नाम में स्टीकर चिपका दिए जाते हैं।
ऐसे में केंद्र सरकार की उज्जवला गैस सिलेंडर योजना का प्रचार कैसे हो सकता है। पेट्रोलियम कंपनियां इसके लिए फार्म भरने का प्रचार कर रही थीं, कांग्रेस ने चुनाव आयोग में तुरंत फरियाद लगा दी। पर अब कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती यह आ गई कि वे यूपी सरकार के विज्ञापन कैसे बंद कराएं, जो हर टीवी चैनल पर चल रहे हैं, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गरीबों को गैस सिलेंडर बांटने का गुणगान कर रहे हैं।
एक विज्ञापन में मोदी के नेतृत्व में महिलाओं को आरक्षण देने का बखान कर रहे हैं। विज्ञापन में यह भी संदेश दिया जा रहा है कि यह सब तभी संभव हुआ, जब डबल इंजन की सरकार होती है। कांग्रेसी इसकी काट खोजने माथापच्ची कर रहे हैं।
डीए और बोनस में चुनाव का अड़ंगा
केंद्र सरकार ने चुनाव के बीच में केंद्रीय कर्मचारियों के लिए डीए की घोषणा कर दी। अब राज्य के कर्मचारी भी इसकी मांग कर रहे हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में तो अभी आचार संहिता है, लिहाजा सत्तापक्ष चाहकर भी घोषणा नहीं कर सकती।
केंद्र ने रेलवे के कर्मचारियों को 78 दिन का बोनस देने की घोषणा कर दी तो छत्तीसगढ़ के ऐसे उपक्रम जहां हर साल दिवाली पर बोनस दिया जाता है, उनके कर्मचारियों की उम्मीद बढ़ गई है। राज्य के एक सार्वजनिक उपक्रम के कर्मचारियों को हर दिवाली में बोनस मिलता है। पहले इसे चेयरमेन ही तय करते थे लेकिन पिछली दिवाली में बोनस देने की घोषणा मुख्यमंत्री से कराई गई थी। अब इस बार आचार संहिता है तो यहां के कर्मी बोनस को लेकर आक्रोश मिश्रित मायूसी में हैं वे मांग तो कर रहे हैं पर कोई सुनने को तैयार नहीं है।
प्रत्याशियों पर आपराधिक मामले
सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद निर्वाचन आयोग ने आपराधिक मामलों में लिप्त रहे प्रत्याशियों को लेकर कुछ कड़े दिशानिर्देश दिए हैं। उन्हें नामांकन दाखिल करते समय एक अलग फॉर्म में लंबित मामलों की जानकारी देनी होगी। चुनाव चिन्ह आवंटन से लेकर मतदान के 48 घंटे के भीतर तीन बार टीवी अखबार में एफआईआर का प्रकाशन, प्रसारण भी कराना होगा। यदि उस दल की अपनी कोई वेबसाइट है तो उसमें भी इसकी घोषणा करनी होगी, आदि।
यदि अपराध व्यक्तिगत स्तर का हो तो प्रत्याशी को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। जैसा भानुप्रतापपुर के उप-चुनाव में भाजपा प्रत्याशी ब्रह्मानंद नेताम के साथ हुआ। उनके खिलाफ झारखंड में रेप और पॉक्सो एक्ट का अपराध दर्ज था। शपथ-पत्र में उन्होंने इस बात की जानकारी भी नहीं दी। पर कांग्रेस को जैसे ही पता चला उसने इसे मुद्दा बना लिया। झारखंड से पुलिस भी उनकी धरपकड़ के लिए पहुंच गई, फिर आनन-फानन में उन्हें अग्रिम जमानत का कागजात पेश करना पड़ा।
पर कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिसके बारे में प्रत्याशी सीना ठोक कर बता सकता है । कांकेर के गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के उम्मीदवार हेमलाल मरकाम ने प्रेस को जानकारी दी है कि उनके खिलाफ दो आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिसका उल्लेख नामांकन दाखिल करते समय दे दिया गया है। उनके मुताबिक एक मामले में पुलिस बेकसूर ग्रामीणों को पकडक़र थाने ले गई थी। इस पर उनकी थानेदार से बहस हो गई और उनके खिलाफ कई धाराओं में अपराध दर्ज कर लिया गया। दूसरा मामला रायगढ़ में आदिवासी भूमि के अधिग्रहण के विरोध में किये गए आंदोलन के चलते दर्ज किया गया। दोनों मामले आदिवासियों और ग्रामीणों के हक में लडऩे के चलते दर्ज किए गये। निष्कर्ष यह है कि यदि आंदोलन राजनीतिक हो तो एफआईआर के बारे में बताकर प्रत्याशी अधिक समर्थन और सहानुभूति भी हासिल कर सकता है।
आरक्षण के विरोधी की जीत
छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों के चुनाव में आरक्षण एक बड़ा मुद्दा बन गया है। अभी एक बार फिर कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि भाजपा की वजह से राजभवन में विधानसभा से पारित विधायक रुका हुआ है। मगर एक दौर तब भी आया था जब छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में मंडल आयोग के विरोध में आंदोलन हुआ था। अभी जो अकलतरा विधानसभा क्षेत्र जांजगीर जिले में शामिल है, वह बिलासपुर में हुआ करता था। अकलतरा में मंडल आयोग के विरोध का झंडा डॉ. जवाहर दुबे ने उठा रखा था। वे भाजपा से जुड़े हुए थे। सन् 1990 में विधानसभा टिकट उन्हें नहीं मिली तो निर्दलीय मैदान में उतर गए। उन्हें मिला मशाल चुनाव-चिन्ह। उन्होंने कड़ी टक्कर में कांग्रेस के धीरेंद्र कुमार सिंह को 2966 वोटों से हरा दिया। हालांकि चुनाव परिणामों के बाद यह साफ हुआ कि केवल आरक्षण के मुद्दे पर डॉ. दुबे को वोट नहीं पड़े बल्कि त्रिकोणीय संघर्ष ने उनके लिए रास्ता साफ किया और भाजपा कांग्रेस दोनों ही दलों के अनेक कार्यकर्ता उनसे जुड़ गए थे। फिर भी यह तो माना ही गया कि एक ऐसे उम्मीदवार ने जीत हासिल की जो आरक्षण के विरोध में थे।
सडक़ बनाकर गांव में घुसें
सडक़, पानी, नाली जैसी मूलभूत सुविधाएं भी यदि जनप्रतिनिधि उपलब्ध नहीं करा पाते तो हताश ग्रामीण चुनाव बहिष्कार जैसा कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। कसडोल विधानसभा क्षेत्र के कोदवा सहसा ग्रामीणों को भी यही चेतावनी देनी पड़ी है। यहां से देवसुंदरा जाने वाली सडक़ का निर्माण बीते 10 सालों में नहीं हुआ। इस बीच भाजपा की सरकार चली गई फिर कांग्रेस का भी एक कार्यकाल पूरा हो गया। ग्रामीणों ने वोट मांगने वालों से कहा है कि पहले सडक़ बनवाएं, फिर हमारे गांव में प्रवेश करें।