राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : नड्डा ने पवन साय से क्या कहा
29-Oct-2023 4:01 PM
राजपथ-जनपथ : नड्डा ने पवन साय से क्या कहा

नड्डा ने पवन साय से क्या कहा

चर्चा है कि रायपुर जिले की तीन सीटों पर भाजपा के चुनाव प्रचार की रणनीति से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा नाखुश हैं। उन्होंने शनिवार को कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में महामंत्री (संगठन) पवन साय से नाराजगी भी जताई।

बैठक में यह बात उभरकर सामने आई है कि तीनों सीट पर प्रत्याशी चयन से बाकी दावेदार, और अन्य प्रमुख नेता नाराज चल रहे हैं। यही वजह है कि वो राष्ट्रीय अध्यक्ष की बैठक से भी दूर रहे। नड्डा ने पवन साय से कह भी दिया कि ऐसे में कैसे सरकार बनेगी?

बताते हैं कि नड्डा ने नाराज नेताओं की लिस्ट मांगी है। कुछ प्रमुख नेताओं को नाराज लोगों से चर्चा करने के लिए कहा है। वो खुद भी बात करेंगे। देखना है कि  नाराज लोगों पर क्या कुछ असर होता है।

महिला नेत्री की परेशानी

कांग्रेस की एक महिला नेत्री ने पार्टी के बड़े नेताओं की सहमति से एक विधानसभा सीट छाँटकर चुनाव लडऩे की तैयारी शुरू कर दी थी। महिला नेत्री ने उस विधानसभा क्षेत्र के लोगों की खूब खातिरदारी की। कई गांव के लोगों को तीर्थ यात्रा भी कराया। वो पिछले कुछ महीनों से गांव के लोगों को  गिफ्ट आदि बांट रही थीं। मगर ऐन वक्त में उनकी सीट बदल दी गई। 

सीट बदलने से उन पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। इससे वो काफी परेशान हैं, लेकिन महिला नेत्री की जगह जिस प्रत्याशी का चयन किया गया उनकी पोजीशन ठीक हो गई। महिला नेत्री की मेहनत का उन्हें फायदा मिल रहा है। कहावत भी है कि मेहनत करे मुर्गा, अंडा खाए फकीर। देखना है कि सीट बदलने के बाद भी महिला नेत्री के पक्ष में चुनाव नतीजे आते हैं या नहीं।

कर्ज माफी से बेचैनी

कांग्रेस के किसानों की कर्ज माफी के ऐलान से भाजपा में बेचैनी है। कुछ भाजपा प्रत्याशियों ने तो प्रचार के दौरान अपनी तरफ से कर्ज माफी की बात कह रहे हैं। कवर्धा से भाजपा प्रत्याशी विजय शर्मा जोर शोर से इसका प्रचार भी कर रहे हैं। पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में कर्ज माफी को प्रमुखता से शामिल करने पर जोर दिया गया है।

भाजपा का घोषणा पत्र दो दिन में जारी हो सकता है। इसमें धान खरीद को लेकर बड़े वादे किए जाएंगे। साथ ही कर्ज माफी, और तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए वादे किए जा सकते हैं। देखना है कि घोषणा पत्र में क्या कुछ होता है, और चुनाव पर क्या असर होगा।

केजरीवाल पैटर्न, भाजपा का शक

कांग्रेस और बघेल के केजरीवाल स्टाइल से रमन सिंह और भाजपा पसोपेश में  पड़ गई है। केजरीवाल ने पहले दिल्ली, फिर पंजाब में एकमुश्त घोषणा ( पत्र) करने के बजाए एक एक कर गारंटियां देते रहे। छत्तीसगढ़ में भी केजरीवाल ने राजधानी, न्यायधानी में 9 और बस्तर में एक गारंटी की घोषणा कर चुके थे। बघेल भी उसी पैटर्न पर चल रहे हैं। पहले स्वयं एक घोषणा कर भरोसा दिलाया। फिर राहुल, प्रियंका से तीन घोषणाएं कराईं। और भाजपा से बार-बार एक ही सवाल पूछ रहे हैं कि हम तो चार कर दिए आप बताएं क्या देंगे? भाजपा और रमन सिंह उन घोषणाओं का खंडन, मंडन ही कर पा रहे हैं । न की घोषणा। वैसे पार्टी, अपना घोषणा पत्र बना रही है। उसे इसके लिए तीन लाख से अधिक सुझाव, मांगें मिल चुकी हैं। इनकी छंटनी, लिस्टिंग में पसीने निकल रहे हैं। भाजपा को शक है कि इन्हीं में से कुछ लीक हो रहे हैं। लीक करने वाले अपने ही विभीषण या वराह के लोग तो नहीं। जो भी हो कांग्रेस अपने लिए भरोसा बढ़ा रही है। लगता है कि कांग्रेस को अब घोषणा पत्र लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

डॉ. साहब और मैडम की मुलाकात

जिला निर्वाचन अधिकारी निष्पक्षता को लेकर सरकार से कितनी भी शाबासी ले लें। सच्चाई तो उनका ज़मीर और ऊपर वाले को पता है। मन की बात समझ कर ये सभी अपनी अपनी स्थिति की टोह लेते रहते हैं। कल भी कुछ ऐसा ही हुआ । केंद्रीय मंत्री, सीईओ मैडम से मिलने गए थे। शिकायत कर आए कि प्रदेश के 33 जिलों से मिल रही शिकायतों को लेकर 158 मामले मैडम को भेज चुके हैं । और कार्रवाई मात्र 23 पर हुई। यह ठीक नहीं है, दिल्ली वाले कुमार साहब से भी  शिकायत करेंगे। बस इसी बात से कई डीआरओ घबराए हुए हैं। वो जानते हैं कि कुमार साहब पहले दो कलेक्टर, तीन एसपी को बदल चुके हैं। यह तो सामान्य कार्रवाई हुई। पर ये लोग भविष्य में किसी भी चुनावी कार्य के लिए डिबार रहेंगे। यह बदनामी सबसे अहम होती है। डॉ,साहब ने दंतेवाड़ा, नारायणपुर, बीजापुर जिलों के नाम भी लिए। बस क्या था,राजधानी से लेकर हर जिले के कलेक्टर ने पड़ताल शुरू कर दी। पूछने लगे मेरी शिकायत ते नहीं हुई।

प्याज की ताकत, कई सरकारें गिर चुकी

पिछले एक सप्ताह से प्याज की कीमत बढ़ रही है। बाजार में यह 60 रुपए या उससे अधिक में बिक रहा है। महानगरों में तो 80 से 100 रुपए तक चला गया है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान इसकी कीमत कितनी ऊंचाई पर जाकर रुकेगी यह देखना होगा, क्योंकि नई फसल मतदान के बाद दिसंबर दूसरे सप्ताह तक बाजार में आएगी।

प्याज एक ऐसी फसल है जिसने देश के कई चुनावों को प्रभावित किया। सबसे दिलचस्प घटना थी जब इंडिया शाइनिंग का नारा देने और पोखरण में परमाणु परीक्षण कर भारत का दुनिया में लोहा बनवाने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा 1998 में लोकसभा चुनाव हार गई। नतीजे के बाद वाजपेयी ने कहा था कि जब-जब कांग्रेस सत्ता में नहीं होती, प्याज के दाम बढ़ जाते हैं। इसके पहले 1980 के चुनाव में जनता कांग्रेस को हराकर इंदिरा गांधी सत्ता में वापस लौटीं तो प्याज की कीमत को उन्होंने बड़ा मुद्दा बनाया था। वे चुनाव प्रचार में प्याज की माला पहनकर निकलती थीं। सन् 2010 में एक हफ्ते के भीतर जब प्याज के दाम 30 रुपए से बढक़र 80 रुपए तक हो गए तब पाकिस्तान से आयात करना पड़ा था। केंद्र में दूसरी बार मोदी सरकार के बनने के कुछ महीने बाद ही जब प्याज के दाम आसमान छूने लगे तब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का यह चर्चित बयान आया था कि वह प्याज लहसुन नहीं खाती।

कई बार धर्म, जाति, कल्याणकारी योजनाओं और सत्ता विरोधी लहर जैसे मुद्दों पर प्याज भारी पड़ चुका है। फिलहाल केंद्र सरकार ने घरेलू बाजार में दाम को काबू पर रखने के लिए प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य 67 रुपए किलो तय कर दिया है।

नोटा वोटों को लेकर चिंता

चुनाव आयोग ने सन् 2014 के राज्यसभा चुनाव में पहली बार नोटा लागू किया था। बाद के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी अनिवार्य रूप से इसका इस्तेमाल होने लगा।? पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने इसे लेकर एक रिट याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी। कोर्ट ने तब यह मानते हुए नोटा के प्रावधान का आदेश दिया था कि देश में शासन के लिए जो जनप्रतिनिधि चुने जाते हैं, उन्हें उच्च नैतिक मूल्यों का पालन करना चाहिए। मतदाता को किसी भी एक उम्मीदवार का चुनाव करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यदि उसे कोई भी पसंद नहीं है, तो इसे व्यक्त करने का अधिकार उसे मिलना चाहिए। विशेषकर जब हमारे यहां जनप्रतिनिधि को मतदाता कार्यकाल के बीच में अयोग्यता के आधार पर हटा नहीं सकता।

कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से चुनाव आयोग से कोई मांग नहीं की है लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का यह विचार सामने आया है कि नोटा के प्रावधान को खत्म किया जाना चाहिए। उनके मुताबिक कई बार यह बटन गलती से दबा दिया जाता है। कई मौकों पर हार जीत के अंतर से अधिक वोट नोटा में चले जाते हैं।

चुनाव आयोग के आंकड़े भी बताते हैं कि नोटा विकल्प के प्रति मतदाता लगातार जागरूक हो रहे हैं। नोटा बटन ईवीएम में सबसे नीचे होता है। यदि कुछ वोट गलती से नोटा में जा रहे हैं तो ऐसा दूसरे उम्मीदवारों को जाने वाले वोटों में भी हो सकता है। बघेल ने एक चर्चा छेड़ी है। इस पर राजनीतिक दलों में बहस हो सकती है, लेकिन कह नहीं सकते कि चुनाव आयोग इसे गंभीर सुझाव के रूप में लेगा। नोटा प्रावधान के पीछे सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी है।

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