राजपथ - जनपथ
राम, भरत मिलाप
करीब डेढ़ दशक बाद भाजपा के दो बड़े नेताओं के एक होने की खबर है। ये दोनो,अब तक श्री राम और भरत की तरह रहते रहे हैं। दरअसल इनके बीच अपने मनोभाव से अधिक कई विभीषण आते रहे हैं। से सभी ,अपने फायदे कि लिए दोनों को एक नहीं होने दे रहे थे। इनमें पार्टी के लोग भी रहे और बाहरी भी। दोनों के टकराव के चलते 15 वर्ष की सरकार आखिरकार 14 पर आ सिमटी। दोनों को एक दूसरे से दूरी का नुकसान समझ में आया। यह सब देख, सुन, भांप रहे एक व्यक्ति ने पहल की। और दोनों को एक करने में अहम भूमिका निभाई। देखना यह है कि यह मिलाप राम, लक्ष्मण की तरह रहता है, फिर तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई की तरह।
इस बार मुस्लिम नहीं !
यह पिछले पांच चुनाव के बाद यह पहला ऐसा चुनाव होगा कि रायपुर दक्षिण में मुस्लिम प्रत्याशियों की अधिकता नहीं है। फिर भी एक दर्जन दावेदार खड़े हैं। वर्ना एक बारगी तो समाज से 24-24 खड़े, और करवाए गए थे। अबकी बार भी प्रयास किया गया लेकिन इन्हें खड़े करवाने वाले काम नहीं आए। प्रयास भी किया गया लेकिन हर प्रयास विफल किया गया। खड़े होने की खबर लगते ही कांग्रेस के चुनाव संचालक उनके ही घर बाहुबली भेज देते और बात खतम। इनमें से कुछ लोग शायद आज दावेदारी वापस भी ले लें। यानी इस बार टिकरापारा, संजय नगर, संतोषी नगर के 25 हजार वोट बूथ तक पहुंचने वाले है। क्योकिं इनकी निजामुद्दीन और अजमेर शरीफ की जियारत का भी इंतजाम अब तक नहीं हो पाया है। देखते हैं इनके लिए क्या इंतजाम करते हैं।
चुनावी चरण स्पर्श
बिलासपुर संभाग के एक नेताजी ने पूरा 5 साल लोगों के पैर छूकर काट दिया। चुनाव से कुछ समय पहले तक तो उनकी इस अदा पर लोग वाह-वाह कर रहे थे। नेताजी को जमीन से जुड़ा बताते नहीं थकते थे। अब जब चुनाव सिर पर है, तब नेताजी के पैर छूने की आलोचना होने लगी है। लोग कहने लगे हैं कि यह तो चुनावी चरणस्पर्श है। वैसे नेताजी की मुश्किलें बढ़ती दिख रही है, क्योंकि पैर छूने के बाद अपशब्द कहने की बात भी चर्चा में है और उनके ही लोग किस्से बताने लगे हैं।
चाचा-भतीजे की लड़ाई में पति-पत्नी
दो विधानसभा क्षेत्रों चाचा-भतीजे के बीच की लड़ाई में पति-पत्नी आ गए हैं। पाटन में भूपेश बघेल और विजय बघेल के बीच अमित जोगी और अकलतरा में सौरभ सिंह और राघवेंद्र सिंह के बीच ऋचा जोगी। पिछली बार ऋचा ने कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशियों को जमकर छकाया था। करीबी मुकाबले में सौरभ सिंह जीते थे। इस बार पाटन में अमित की उम्मीदवारी भी इसी तरह की मानी जा रही है। अब देखना यह है कि चाचा-भतीजे के बीच जोगी दंपति का भविष्य क्या रहेगा।
घुमा-फिरा कर बात क्यों करना?
वह जमाना भी अब लद चुका जब कोई नेता यह कहे कि नीतियों और कार्यक्रमों से प्रभावित होकर वह दूसरे दल में शामिल हो रहा है। सामरी विधायक चिंतामणि महाराज ने कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आने के लिए साफ-साफ शर्त रखी कि उन्हें अंबिकापुर से टिकट दी जाए। मगर भाजपा ने कोई दूसरा उम्मीदवार तय कर दिया। अब महाराज के भाजपा में लाने की योजना पर पेंच फंस गया। एक सप्ताह मसला हल नहीं हुआ। बाद जब शामिल हुए तो महाराज ने भी साफ कर दिया कि वे किस शर्त पर आए हैं। उन्हें आश्वासन मिला है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट दी जाएगी। बात घुमा-फिरा कर उन्होंने नहीं की। साफ-साफ सौदा है। समर्थन चाहिये तो पद दो या उसकी गारंटी। पर, यह सब भरोसे की ही बात है। भाजपा ने उन्हें सिर्फ आश्वस्त किया है, कोई अनुबंध नहीं हुआ है। अभी तो जशपुर और सरगुजा दोनों ही संसदीय सीट भाजपा के पास है। फिर क्या चिंतामणि महाराज की अपेक्षा आसानी से पूरी होगी? सन् 2019 में सारे सीटिंग सांसदों की टिकट काटी गई थी, इसलिये उम्मीद तो की जा सकती है।
तहखानों में कैद एफआईआर
मध्यप्रदेश के इंदौर क्रमांक एक से भाजपा प्रत्याशी कैलाश विजयवर्गीय का नामांकन निरस्त करने की मांग की गई। इसमें कहा गया था कि छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की एक अदालत में उनके खिलाफ 1999 से एक मामला लंबित है। कोर्ट ने उनको फरार बताया है। यह जानकारी प्रत्याशी ने नामांकन जमा करते हुए छिपाई है। कई घंटों की बहस के बाद निर्वाचन अधिकारी ने आपत्ति रद्द कर नामांकन मंजूर कर लिया। ऐसा कई बार होता है जब ठीक चुनाव के समय प्रत्याशियों के खिलाफ दर्ज मुकदमे बरसों से जमी धूल झाडक़र बाहर निकाले जाते हैं। हलचल होती है, पर चुनाव परिणामों के बाद सब शांत हो जाता है। भानुप्रतापपुर, बस्तर के उप-चुनाव में भी देखा गया था कि ब्रह्मानंद नेताम के खिलाफ झारखंड में दर्ज आपराधिक मामले को कांग्रेस ने चुनाव के दौरान उठाया। चुनाव खत्म होते ही सब भूल गए। राजनीतिक रसूख रखने वालों के प्रति पुलिस उदार रहती है, वारंट तामील नहीं करती। एफआईआर दर्ज कराने वाले भी शायद फैसला नहीं चाहते। फिर अदालत दिलचस्पी ले, क्या पड़ी है। ऐसे मुकदमे बड़ी संख्या में अदालतों में लंबित हो सकते हैं। पुलिस रिकॉर्ड में अनगिनत फरारी वारंट दबे पड़े हैं।
चुनाव लडऩे वालों की फाइल को सिर्फ इस्तेमाल करने के लिये ढूंढ लिया जाता है। चुनाव नहीं लड़ रहे हों तो लोग इससे भी बचे रहते हैं।
बंदर के हाथ में पॉलिथीन
प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व और अभयारण्य आज से खुल गए हैं। यह अचानकमार टाइगर रिजर्व की तस्वीर है। यहां पॉलिथीन प्रतिबंधित है। पर न तो पर्यटकों में समझदारी है, न ही वन विभाग का मैदानी अमला मुस्तैद, कि उन्हें तहजीब सिखाएं। भूखे वन्यजीव खाद्य पदार्थों साथ इन पन्नियों को भी उदरस्थ कर लेते हैं। पर्यावरण, जंगल नदी-नालों का नुकसान तो है ही।