राजपथ - जनपथ
हाथी मुद्दा तो है, मगर ऐसे..
कांग्रेस और भाजपा दोनों के बीच किसानों और गरीबों को लाभ देने के लिए घोषणाएं करने की होड़ मची रही। इस शोरगुल के बीच बहुत से मुद्दे पीछे रह गए। छत्तीसगढ़ के कम से कम दो दर्जन जिलों में हाथी मानव संघर्ष एक गंभीर समस्या है और यह बढ़ती जा रही है। वह किसानों की फसल और घरों को निशाना बनाते हैं। खेतों में काम करने और जंगल में वनोपज एकत्र करने के दौरान भी वे हाथियों के हमले में हताहत होते हैं। इस संकट के समाधान के लिए अगली सरकार क्या करने जा रही है, यह प्रभावित लोगों को पता नहीं। यह उन्हें जरूर पता है कि उनके गांव और मतदान केंद्र के बीच हाथियों के धमकने की आशंका बनी रहती है। सरगुजा, बलरामपुर कोरबा जिलों में निर्वाचन आयोग के निर्देश पर मतदाता जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। अभियान चलाने वाले कई दल हाथियों के डर से प्रभावित गांवों में नहीं पहुंच पा रहे हैं। सरगुजा जिले के मैनपाट के आसपास 6 महीने से अधिक समय से 13 हाथियों का दल घूम रहा है। एक दूसरा दल प्रेमनगर और उदयपुर रेंज में भी है। इन इलाकों में प्रचार करने वाले राजनीतिक कार्यकर्ता सहम-सहम कर घूम रहे हैं। शाम हो जाने से पहले अपने ठिकानों पर लौट रहे हैं। हाथी इस चुनाव प्रत्याशियों और मतदाताओं के लिए मुद्दा तो है लेकिन यह किसी राजनीतिक दल के एजेंडे में शामिल नहीं है।
वोट के लिए आभारी आयोग
राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी की ओर से दंतेवाड़ा जिले के दो परिवारों को आभार पत्र भेजा गया है। ऐसा इसलिए कि उन्होंने दुख की घड़ी में भी मतदान करने की जिम्मेदारी उठाई। एक परिवार मोहम्मद सोहेल का है, जिनके पिता का जिला अस्पताल में मतदान के दो दिन पहले इंतकाल हो गया था। यहीं के भगवत सलाम को भी आभार पत्र भेजा गया है। वे अपनी पत्नी के साथ वोट डालने आए, जबकि 4 नवंबर को उसने दो बच्चों को जन्म दिया जिनमें से एक की मृत्यु हो गई और अस्पताल में भर्ती दूसरे की मतदान के दिन भी हालत गंभीर थी।
इन दोनों परिवारों ने विषम परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य को लेकर सजगता दिखाई। 17 नवंबर को प्रदेश की 70 सीटों में दूसरे चरण का मतदान है। जिनको वोट डालना जरूरी नहीं लगता, वे इनसे प्रेरणा ले सकते हैं।