राजपथ - जनपथ
विज्ञापन देने वाला चला गया
अनुमान है कि सहारा इंडिया में छत्तीसगढ़ के करीब 15 हजार करोड़ रुपये फंसे हुए हैं, जो 7 लाख से अधिक निवेशकों ने जमा किए। इनमें मजदूर, छोटी मोटी नौकरी करने वाले और गृहणियां अधिक हैं, जिन्होंने बच्चों की पढ़ाई, बेटियों की शादी जैसे कामों के लिए ज्यादा ब्याज मिलने की उम्मीद में पैसे लगाए। परिपक्व होने के बावजूद रकम वापस नहीं होने पर घबराये निवेशकों ने हर उपाय कर डाले। रायपुर, रायगढ़, बिलासपुर जैसे जिलों में उनका कई बार प्रदर्शन हो चुका। स्थानीय कार्यालयों के कुछ शाखा प्रबंधकों की गिरफ्तारी भी हुई पर वे जमानत पर छूट चुके। इसी साल हाईकोर्ट में करीब 400 निवेशकों ने याचिकाएं दायर की। इस पर सुनवाई हो रही है। सरकार की ओर से बताया गया है कि सहारा की कुछ संपत्तियों को कुर्क करके नीलामी की गई है और उसके जरिये निवेशकों की रकम लौटाई जाएगी। पर छत्तीसगढ़ में उसकी अचल संपत्तियां काफी कम हैं। इस साल जुलाई महीने में केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने निवेशकों की रकम लौटाने के लिए एक पोर्टल सीआरसीएस सहारा पोर्टल लांच किया था। इसमें शुरू में ही 18 लाख से अधिक आवेदन जमा हो गए। अब तक इसके जरिये कितनों की रकम वापस की जा सकी, यह मालूम नहीं। पर, यह घोषणा उसी समय कर दी गई थी कि अधिकतम 10 हजार रुपये ही लौटाये जाएंगे। जिन लोगों के लाखों रुपये फंसे हैं उन्हें इतनी छोटी राशि से कैसे तसल्ली मिल सकती है? इतना तो वे रकम पाने के लिए दौड़-धूप में ही खर्च कर चुके।
अब सहाराश्री सुब्रत राय का निधन हो गया है। लाखों लोगों को उनकी मौत से झटका लगा है। राय जब तक जीवित थे, बड़े अखबारों में नियमित रूप से बड़ा-बड़ा विज्ञापन देकर बताते थे कि सेबी ने उसकी कंपनी के खातों को रोककर रखा है। जैसे ही सेबी की पाबंदियां हटेंगी, पाई-पाई लौटाई जाएगी। उनका यह आश्वासन हताश निवेशकों में उम्मीद जगाये रहने के काम आता था, साथ ही कई बार मारपीट और गिरफ्तारी झेल चुके सहारा के कर्मचारियों की खाल बचाता था। अब पता नहीं उन्हें कौन दिलासा देगा और रकम कभी वापस मिल सकेगी भी या नहीं।
शराब दुकान में पीएम का पोस्टर
चुनाव कोई भी हो, शराब की अपनी भूमिका होती है। राजनीतिक कार्यकर्ता इसे छिपाकर भी क्या कर लेंगे। वह एक साथ शराब भी बेच सकता है और अपने पसंद के दल का प्रचार भी। यह तस्वीर राजस्थान के झोटवाड़ा जिले की है, जहां से ओलंपिक रजत विजेता शूटर केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वहां के कांग्रेस नेताओं ने सोशल मीडिया पर यह तस्वीर वायरल करते हुए दावा किया है कि भाजपा ने शराब दुकान को ही पार्टी का कार्यालय बना दिया है।
धान 3 दिसंबर के बाद ही बिकेंगे?
एक नवंबर से पूरे छत्तीसगढ़ में धान खरीदी का सिलसिला शुरू हो चुका है, पर खरीदी केंद्रों में किसानों के बीच टोकन के लिए कोई मारामारी नहीं दिखाई दे रही है। इसके दो कारण हैं। एक तो सरकारी अमला चुनाव कराने में व्यस्त है, पर उससे बड़ी दूसरी वजह है धान की कीमत। चुनाव घोषणा पत्र में कांग्रेस भाजपा दोनों ही दलों के बीच होड़ मची रही कि कितना धान खरीदें और कितना भुगतान करें। भाजपा ने 3100 रुपये तो कांग्रेस ने 3200 क्विंटल की घोषणा कर दी है। कांग्रेस ने 20 क्विंटल प्रति एकड़ तो भाजपा ने 21 एकड़ खरीदने की बात कही है। भाजपा ने एकमुश्त राशि देने की बात कही है, कांग्रेस चार किश्तों में देती आई है। इस फॉर्मूले पर कोई बदलाव घोषित नहीं किया गया है। भाजपा ने अपने कार्यकाल के दो साल के बकाया बोनस को देने की घोषणा की है। कांग्रेस ने सन् 2018 में सरकार बनने पर इसे देने की घोषणा की, जो पूरी नहीं की गई। कांग्रेस ने कर्ज माफी फिर एक बार करने की बात कही है, भाजपा ने इस पर कोई बात नहीं की।
किसान को दोनों ही दलों की घोषणाओं में फायदे दिखाई दे रहे हैं, पर उनके वोट से पता लगेगा कि किसकी बात पर उन्हें ज्यादा भरोसा है। हालांकि भाजपा कांग्रेस दोनों ने ही किसानों से अपील की है कि वे धान बेचना बंद न करें, अतिरिक्त राशि का भुगतान सरकार बनने के बाद किया जाएगा। पर किसान असमंजस में हैं। खरीदी केंद्रों में धान आने की रफ्तार धीमी है। यदि वे 3 दिसंबर, चुनाव परिणाम का इंतजार करेंगे तो एकाएक खरीदी केंद्रों में बिक्री ने आपाधापी मचना तय है।