राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : फंस गए मंत्रीजी
18-Nov-2023 4:04 PM
 राजपथ-जनपथ : फंस गए मंत्रीजी

फंस गए मंत्रीजी

अंबिकापुर और आसपास के इलाके का माहौल मतदान के एक दिन पहले का तनावपूर्ण रहा। अंबिकापुर से डिप्टी सीएम टी.एस.सिंहदेव, तो पड़ोस की सीट सीतापुर से ताकतवर मंत्री अमरजीत भगत मैदान में थे। दोनों के समर्थकों ने काफी उत्पात मचाया। इसके कई वीडियो वायरल भी हुए हैं।

अमरजीत भगत के खिलाफ भाजपा प्रत्याशी पूर्व सैनिक रामकुमार टोप्पो मैदान में थे। भगत मिलनसार हैं, और चर्चा है कि भाजपा का स्थानीय संगठन उनके प्रभाव में रहा है। बताते हैं कि मतदान के एक-दो दिन पहले तो सीतापुर इलाके के भाजपा के कई मंडल पदाधिकारियों ने पार्टी प्रत्याशी के प्रचार से खुद को अलग कर दिया था। ऐसे कठिन समय में टोप्पो के समर्थन में कई पूर्व सैनिक आगे आए, और उन्होंने मतदाताओं को प्रलोभन देने की कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थकों की कोशिशों का कड़ा विरोध किया।

चर्चा है कि एक-दो जगहों पर तो कांग्रेस समर्थकों को लौटना पड़ा है। जिला प्रशासन पहले शिकायतों को नजरअंदाज करता रहा लेकिन पूर्व सैनिकों ने दिल्ली तक अलग-अलग स्तरों पर अपनी बात पहुंचाई, और भारी फोर्स वहां पहुंची। बाद में भगत के चुनाव संचालक का होटल भी सील कर दिया गया।

कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया टीएस सिंहदेव के खिलाफ भी हुई। अंबिकापुर से सटे उदयपुर इलाका सिंहदेव का गढ़ माना जाता है। यहां उनके करीबी सिद्धार्थनाथ सिंह के यहां फोर्स पहुंच गई थी। शिकायत यह थी कि सिंहदेव समर्थक मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए साड़ी-कंबल और अन्य सामग्री बांट रहे थे। अपने करीबी के यहां फोर्स पहुंचने की जानकारी मिलते ही सिंहदेव का काफिला उदयपुर पहुंचा लेकिन बात बिगडऩे से बच गई। पिछले चुनाव में सिंहदेव और भगत रिकॉर्ड वोटों से जीते थे। मगर इस बार दोनों ही कड़े मुकाबले में फंस गए हैं। दोनों ही प्रत्याशी की जीत और हार को लेकर बढ़-चढक़र दावे किए जा रहे हैं। 3 तारीख को सब कुछ साफ हो जाएगा। 

कम वोटिंग के कई निष्कर्ष

छत्तीसगढ़ की 70 सीटों पर शुक्रवार को हुए मतदान के कम प्रतिशत ने राजनीतिक दलों के साथ-साथ निर्वाचन से जुड़े अफसर को भी चौंकाया है। इसकी अलग-अलग वजह बताई जा रही है। कुछ लोगों का कहना था कि शहरी क्षेत्र में कम मतदान इसलिए हुआ क्योंकि दोनों ही प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा ने ग्रामीण मजदूर, किसानों का वोट हासिल करने के लिए तो ताबड़तोड़ घोषणा की है लेकिन शहरी निम्न मध्यम और मध्यम वर्ग के लिए कोई ऐसी घोषणा नहीं की। शहरों और कस्बों में इसका असर मतदान में कमी के रूप में दिखा। आंकड़े विस्तृत रूप से सामने आएंगे, तब मालूम होगा कि वोटिंग में महिला मतदाताओं का प्रतिशत कितना था। पर यह जरूर हुआ है कि उनकी लंबी-लंबी कतार बूथों में देखी गई।? इसे कांग्रेस और भाजपा की उस महतारी वंदन और गृह लक्ष्मी योजना के ऐलान का असर बताया जा रहा है, जिसके तहत उनके खाते में नगद राशि डाली जाएगी।


मतदाता के मन की बात

जब से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से मतदान शुरू हुआ, मतपेटी की भूमिका खत्म हो गई। और इसी के साथ समाप्त हो गई, गिनती के दौरान मतपेटी से निकलने वाली दिलचस्प पर्चियां। इनमें अनेक वोटर अपना मत पत्र डालने के अलावा अपने मन की बात भी लिखकर छोड़ देते थे। इसमें वे अपने प्रतिनिधि की शिकायत करते थे। गुण गाते, निजी समस्या, देश दुनिया का हाल, प्रिय कविता कहानी शायरी गजल भी पुर्जे में लिखकर डाल देते थे। वोट गिनने वालों का भी मनोरंजन होता था और इन पर खबर भी बनती थी।

17 नवंबर को वोट डालने के बाद एक सुशिक्षित महिला मतदाता ने सोशल मीडिया पर चुनाव आयोग से नाराजगी जताई। उन्होंने लिखा कि पहले मतपत्र के माध्यम से चुनाव होता था। मतदाता उसमें अपने मन की बात लिख सकता था। अब तो बटन दबाओ और मतदान हो गया। इस प्रणाली के कारण अब संवाद की संभावना समाप्त हो गई है। मतदाता अपने मन की बात या कहें भड़ास भी नहीं निकल पाता।

शिकायत वाजिब है। अब तो लोकसभा विधानसभा ही नहीं बल्कि स्थानीय निकायों के चुनाव भी ईवीएम से हो रहे हैं। पंचायत चुनाव जरूर अब भी मतपेटी से हो रहे हैं पर पंच सरपंच के दावेदार तो सामने खड़े होते हैं, उनके लिए पेटी में पर्ची नहीं छोडऩी पड़ती।

अंतिम समय में भारी मुकाबला

विधानसभा चुनाव में दोनों ही दल मतदाताओं को मुद्दों से जोडने में पीछे नहीं रहे। मोदी सरकार जो कल तक बोनस देने पर केंद्रीय पूल में चावल लेने से इंकार कर रही थी, उसने एक कदम बढक़र घोषणा की। कांग्रेस ने भी उनसे ज्यादा देने का वादा किया। महिलाओ के लिए 12 हजार की घोषणा हुई तो दूसरे ने 15 हजार कर दी। इस वजह से मतदान आते आते मुकाबला कांटे का दिखने लगा। अब बारी प्रत्याशियों की थी, सो उन्होंने आखरी रात में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उन्हें पता है कि अभी कंजूसी किये तो पांच साल बेरोजगार रहेंगे। अब उनका दांव कितना असर करता है नतीजे उसी पर निर्भर करेंगे।

बांध नहीं बनी बाधा

कुछ गांवों में सडक़ बनाने की मांग पूरी नहीं होने पर ग्रामीणों ने मतदान के बहिष्कार का ऐलान कर दिया। अधिकारियों के समझाने बुझाने पर कहीं-कहीं या तो बहिष्कार खत्म भी कर दिया गया। पर ऐसी घटनाओं के बीच कोरबा जिले के सतरेंगा ग्राम पंचायत के आश्रित  गांवों के मतदाताओं ने अनूठा उदाहरण पेश किया। यह खोखरा आमा, कुकरी चोली, कांसीपानी के कोरवा पहाड़ी आदिवासी हैं जो घने जंगल के भीतर घास फूस की झोपड़ी में रहते हैं। वोट डालने के लिए पहले वे 5 किलोमीटर पैदल चले। उसके बाद बांगो बांध के डुबान क्षेत्र में पहुंचे। नौका पर चढक़र बांध पार किया। उसके बाद फिर दो किलोमीटर चलकर मतदान केंद्र लाम पहाड़ पहुंचे। वोट डालने में तो उनको करीब आधा घंटा ही लगा, मगर यहां से घर तक आने-जाने में पूरा एक दिन लग गया। सुबह? से निकले ग्रामीण शाम तक वापस अपने गांव लौट पाए। पहाड़ी कोरवावों तक सुविधा पहुंचाने के लिए सरकार ने अलग प्राधिकरण बना रखा है, जिसमें करोड़ों रुपए का बजट है। अभावों के बाद भी इन मतदाताओं की लोकतंत्र में गहरी आस्था दिखी। 

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