राजपथ - जनपथ
सरकार के काम में कोर्ट की दखल
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सोशल मीडिया और अखबारों पर बारीकी से नजर रहती है। उसी के आधार पर वे खुद ही जनहित याचिका दर्ज कर जिम्मेदार अफसरों को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। अभी बारिश के दिनों में कोंडागांव का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें कुछ स्कूली बच्चे बांस के सहारे नदी पार करते हुए दिखे। हाईकोर्ट में तीन-चार पेशी हुई। अफसरों ने बताया कि पुल के लिए टेंडर हो गया है। बारिश के बाद काम शुरू हो जाएगा और अगले सीजन में ऐसी नौबत नहीं आएगी। इधर तीन दिन पहले उन्होंने रेल की पटरी को पार कर स्कूल जाते बिलासपुर के बच्चों की तस्वीर देखी। सीजे ने स्वत: संज्ञान लेकर एक पीआईएल दर्ज कर ली और रेलवे से 48 घंटे के भीतर जवाब मांगा। कोर्ट में रेलवे की ओर से जो बताया जाए, अधिकारियों ने मीडिया को बताया है कि वह कितनी मुस्तैद है। इसके मुताबिक अंडर ब्रिज और फुट ओवर ब्रिज का काम तेजी से चल रहा है। वैसे दोनों काम 4 साल से अधूरे हैं।
सिम्स मेडिकल कॉलेज बिलासपुर की बदहाली पर खबरें पढऩे के बाद चीफ जस्टिस ने उसे भी जनहित याचिका में लिया। सुनवाई के दौरान इस अस्पताल को उन्होंने कचरा घर तक कह दिया, कलेक्टर ने जो जांच रिपोर्ट जमा की, उसे फालतू बताया। सरकार को ओएसडी के रूप में यहां सचिव स्तर के एक अधिकारी को बिठाना पड़ा। अभी यह खबर भी आ रही है कि स्वास्थ्य विभाग की टीम दूसरे मेडिकल कॉलेजों में भी जाकर मरीजों के उपचार और उपकरणों के रखरखाव पर व्यवस्था देख रही है। जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में रायपुर से गई एक टीम 2 दिन से जांच कर रही है।
कई बार अदालतों की इस तरह की सक्रियता को सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप के रूप में भी देखा जाता है। मगर, ऐसी दखल से अकर्मण्य नौकरशाह सबक लें, तो नागरिकों का भला हो।
बिल्डिंग नहीं, अच्छे टीचर बनाएं..
पश्चिम बंगाल के पश्चिम बर्धमान जिले की कोयला सिटी आसनसोल के नजदीक जमुरिया ब्लॉक में एक आदिवासी गांव है, नमो जामदोबा। यहां आप पहुंचे तो एक असामान्य सा दृश्य देख सकते हैं। इसकी मुख्य सडक़ों में से एक पर, एक आउटडोर स्कूल है, जिसमें मिट्टी की दीवारों पर छोटे-छोटे ब्लैकबोर्ड पेंट किए गए हैं। यहां, किसी भी दिन, कोई भी छोटे बच्चों को आत्मविश्वास से भरा पढ़ते हुए देख सकते हैं। उसी तरह जैसे साधन संपन्न विद्यार्थी माइक्रोस्कोप और लैपटॉप जैसे गैजेट का उपयोग करते हुए पढ़ाई करते हैं।
इस परियोजना को शुरू किया है, जमुरिया के तिलका मांझी आदिवासी विद्यालय के 37 वर्षीय प्राइमरी शिक्षक दीपनारायण नायक ने। वे रस्तर मास्टर (सडक़ के शिक्षक) के रूप में लोकप्रिय हैं। इन बच्चों को वे अपने खर्चे पर हल्का-फुल्का खाना भी खिलाते हैं। 2014 में, उन्होंने इस ओपन-एयर लर्निंग स्पेस की शुरुआत की, जहां वंचित बच्चों को मुफ्त शिक्षा मिलती है। प्रत्येक दिन, शिक्षक नायक अपने स्कूल की ड्यूटी पूरी करने के बाद इस सडक़ स्कूल पर कम से कम 5-6 घंटे बिताते हैं।
बंगाल के आदिवासी क्षेत्रों में गरीबी, पीढ़ी-दर-पीढ़ी निरक्षरता और सडक़, बिजली पानी की कमी के कारण स्कूल छोडऩे की दर ज्यादा है। स्कूल जाने लायक लडक़े पास की दुकानों या कोयला खदानों में काम करने के लिए छोड़ दिए जाते हैं, वहीं लड़कियां घर के काम में मदद करती हैं या कम उम्र में शादी करने के लिए स्कूल छोड़ देती हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार का दावा है कि यहां ड्रॉप आउट बच्चों की संख्या बेहद कम, 0.8 प्रतिशत है। पर यह भी एक तथ्य है कि अपना प्रदेश प्राथमिक शिक्षा गुणवत्ता दर में 27वें स्थान पर है। इसकी जाहिर सी एक वजह यह है कि रिमोट एरिया में पोस्टिंग हो जाने पर शिक्षक शहर की तरफ भागने के लिए हाथ-पैर मारते हैं। प्रमोशन के बाद पोस्टिंग में पसंदीदा जगह के लिए शिक्षकों ने लाखों रुपए रिश्वत दी। यह हाल की घटना है। इसमें कई अधिकारी और बाबू सस्पेंड हुए हैं। जैसा ऐलान किया गया है, कांग्रेस सरकार दोबारा आती है तो सभी स्कूलों को स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालयों जैसा बनाया जाएगा। तब हो सकता है कि गांव के स्कूल भवन शानदार दिखें, पर क्या इनमें दीप नारायण नायक जैसे समर्पित शिक्षक मिलेंगे?