राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : देर से हुई डाक मतों की फिक्र
28-Nov-2023 3:35 PM
 राजपथ-जनपथ : देर से हुई डाक मतों की फिक्र

देर से हुई डाक मतों की फिक्र

इस बार सेवा मतदाता, मतदान की ड्यूटी पर लगाए गए अधिकारी कर्मचारियों के अलावा 40 प्रतिशत से अधिक दिव्यांग और 80 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों ने भी डाक से या घर से मतदान किया है, जो ईवीएम में पड़े वोटों से अलग रखे गए हैं। डाक मतदान तथा बुजुर्ग और दिव्यांगों का घर से मतदान के लिए हजारों आवेदन आए थे। इस बार बगैर ईवीएम डाले गए मतों की संख्या पिछले चुनावों से काफी अधिक हैं। ईवीएम तो मतदान होने के बाद स्ट्रांग रूम में जमा कर दिए गए, जिनके ताले 3 दिसंबर को खुलेंगे। उनकी सुरक्षा में जवान तैनात भी हैं। पर शेष मतों को कोषालयों में रखा गया है। भाजपा ने कल कई जिलों में एक साथ निर्वाचन अधिकारियों को ज्ञापन देकर मांग की, कि डाक मतों की पुख्ता सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। दुर्ग कलेक्टोरेट परिसर में तो भाजपा के डौंडीलोहारा प्रत्याशी देवलाल ठाकुर के साथ उनके समर्थकों ने नारेबाजी भी की। भाजपा का कहना है कि डाक मत जहां रखे गए हैं, वहां बाहरी लोगों का आना-जाना लगा रहता है, गड़बड़ी हो सकती है। इसलिये इन्हें कड़ी सुरक्षा के बीच स्ट्रांग रूम में ईवीएम की तरह सुरक्षित रखा जाए।  

अब दोनों चरणों में मतदान के पहले ही डाक मत डाल दिए गए थे। पर उन्हें सुरक्षित रखने की मांग पखवाड़े भर देर से की गई। चुनाव के पहले जिला निर्वाचन अधिकारी बैठक लेकर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से सुझाव लेते हैं, प्रक्रिया बताते हैं। पर उनमें यह बात किसी ने नहीं उठाई। धारणा यह रही होगी कि लाखों ईवीएम वोटिंग के बीच इन मतों से किसी क्या बिगड़ेगा? पर इस बार चिंता वाजिब है। इस चुनाव में बहुत सी सीटों पर हार-जीत का फासला कम वोटों से होने के आसार जो दिखाई दे रहे हैं।

नक्सल मुक्त इलाके में उपद्रव

बस्तर के किसी इलाके में यदि लंबे समय से माओवादी वारदात नहीं हुई हो तो इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि वह उनके प्रभाव से मुक्त हो चुका है। सरकार ने तीन साल पहले दंतेवाड़ा के भांसी को नक्सल मुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया था। मगर, जैसा उपद्रव 26 नवंबर की देर रात यहां हुआ है, दावे की पोल खुल गई। प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि देर रात एक बजे 10-20 नहीं बल्कि लगभग 100 हथियारबंद नक्सलियों ने सडक़ निर्माण कंपनी के कैंप और डामर प्लांट में धावा बोला था। यहां उन्होंने उनकी 14 गाडिय़ों को ही आग के हवाले नहीं किया बल्कि रेलवे लाइन बनाने के काम में लगी एक पोकलेन को भी फूंक दिया। नक्सली यहां कई घंटे रहे लेकिन कोई फोर्स नहीं पहुंची, जबकि घटनास्थल के दो किलोमीटर के भीतर ही फोर्स के तीन अलग-अलग कैंप हैं। मतदान हो जाने के बाद जवान और उनके अफसर कुछ निश्चिंत मुद्रा में रहे होंगे।  जब तक पुलिस और कैंपों से जवान घटनास्थल तक पहुंचे, नक्सली वहां से फरार हो चुके थे।

विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद एक भाजपा नेता की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। मगर वे बड़ी संख्या में एकत्र होकर सामूहिक हमला नहीं मतदान दल के वापस आते तक नहीं कर पाए। इस समय जब मौजूदा सरकार कोई नीतिगत निर्णय नहीं ले सकती हो और प्रशासन चुनाव आयोग के नियंत्रण में हो, नक्सलियों ने इस वारदात को शायद यह बताने के लिए अंजाम दिया कि सरकार कोई भी आए, कैसा भी दावा करे, बस्तर में उनकी मौजूदगी बनी रहेगी।

फेक पोल ऑफ पोल

इन दिनों हर कोई जानना चाहता है कि विधानसभा चुनावों का क्या नतीजा आने वाला है। एग्जिट पोल पर तो अभी पाबंदी है, पर रोजाना एक न एक सर्वे सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। जिनके नाम पर ये वायरल हो रहे हैं, उन्हें सफाई देनी पड़ रही है। ऐसा ही एक सर्वे एनडीटीवी के नाम पर चल रहा है। इसमें कई सर्वे एजेंसियों और न्यूज चैनल का ही नहीं बल्कि इंटेलिजेंस ब्यूरो का भी सर्वे डाल दिया गया है। इसमें दावा किया गया है कि कांग्रेस तेलंगाना में भारी बहुमत से जीत रही है। एनडीटीवी ने साफ किया है कि यह फर्जी खबर है। उसने ऐसी कोई रिपोर्ट तैयार नहीं की है। आज तक न्यूज चैनल तो स्क्रीन पर दो तीन माह से एक पट्टी नीचे चला रहा है। इसमें  भी कहा जा रहा है कि हमारे नाम से फर्जी सर्वे रिपोर्ट फैलाई जा रही है। 

हवा के रुख पर अफसर परेशान 

इस चुनाव में जनता के तो दोनों हाथ में लड्डू है। चाहे बीजेपी जीते या कांग्रेस पर सबसे ज्यादा कंफ्यूजन में अधिकारी हैं। यह वर्ग ऐसा है, जो हवा का रुख भांप लेता है और रिजल्ट आने से पहले ही कलेक्टरी या किसी मालदार विंग के एमडी या सचिव की कुर्सी पर एडवांस बुकिंग करा लेता है। इस बार अफसर चिंता में हैं कि क्या करें, क्योंकि दो ढाई दर्जन सीटें बुरी तरह फंसी हुई हैं। परिणाम किसी ओर भी जा सकता है।

 ऐसे में जीत हार किसकी होगी, यह तो केंद्र और राज्य के खुफिया विभाग के लोग भी स्पष्ट नहीं लिख पा रहे हैं।लेकिन अफसर तो अफसर हैं, उन्हें तो समस्याएं गिनाने नहीं, बल्कि हल निकालने के लिए अपॉइंट किया जाता है तो इसका भी हल उन्होंने निकाल लिया। लोगों के बीच सरकार के रिपीट होने के दावे कर रहे हैं और बीजेपी के नेताओं को बधाइयां भी देते जा रहे हैं, ताकि सरकार जिसकी भी बने, उनका कुछ न बिगड़े।

शर्त ऐसी भी 

चुनावी नतीजों को लेकर हर जगह  तरह तरह के, टोटके ,दावे, बहस और सट्टेबाजी तक हो रही है। लेकिन सब कुछ हवा हवाई कही जा सकती है। इसलिए इन शर्तों का कोई औचित्य नहीं है। इसी बीच मप्र में नाथ और राज के बीच सत्ता तय करने बकायदा कानूनी लिखा पढ़ी के साथ शर्त को नोटराइज्ड भी कराया गया है। शर्त लगाने वाले दो लोगों ने एक, एक लाख दांव पर लगाया है। एक ने तो चैक भी काट दिया है। दूसरे ने पांच गवाहों की मौजूदगी में एक लाख रूपए देने का वादा किया है।

स्कूल शिक्षा विभाग के प्रोफेसरों के वाट्एप ग्रुप में यह तस्वीर इस टिप्पणी के साथ वायरल है-शिक्षा विभाग के प्रमुख अधिकारी (डॉ. आलोक शुक्ला) द्वारा ऐसे ही बताया जाता है कि वे प्राचार्य पदोन्नति के लिए कितना प्रयास कर रहे हैं हर बार, बार-बार एसीआर (गोपनीय चरित्रावली) मंगा मंगाकर इसी तरह प्रयास जारी है। 

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