राजपथ - जनपथ
छत्तीसगढ़ की गरीबी का सबूत...
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान प्रलोभनों और कदाचार को रोकने के लिए इस बार चुनाव आयोग के आदेश पर की गई छापेमारी और तलाशी का आंकड़ा बताता है कि धन का चुनावों में असर कितनी तेजी से बढ़ रहा है। सन् 2018 में इन्हीं पांच राज्यों से चुनाव के दौरान 239.15 करोड़ रुपये की नगदी और अवैध सामान जब्त किए गए थे। इस बार 20 नवंबर को जारी आंकड़े के मुताबिक यह रकम 7.35 गुना अधिक 1760 करोड़ पहुंच गई। इस आंकड़े के जारी होने के बाद राजस्थान और तेलंगाना में वोट डाले गए थे। रकम बढ़ गई होगी। जब्ती के बावजूद प्रत्याशियों ने रास्ता निकाला और निर्धारित सीमा से कई गुना ज्यादा खर्च किए। वास्तविक खर्च का सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है जिसका एक आकलन 20 नवंबर के आंकड़ों से भी किया जा सकता है। जैसे, 119 सीटों वाले तेलंगाना से 659.2 करोड़ रुपये जब्त हुए। इसे प्रत्येक विधानसभा में बांट दें तो रकम 5.539 करोड़ रुपये होती है। राजस्थान से तेलंगाना के मुकाबले कुछ कम 650.7 करोड़ रुपये जब्त हुए यहां 199 सीटें हैं। एक सीट पर औसत जब्ती 3.269 करोड़ की बैठती है। मध्यप्रदेश से 323.7 करोड़ रुपये जब्त हुए। यहां 230 सीटों पर वोट पड़े। यानि एक विधानसभा से 1.407 करोड़ रुपये जब्त। मिजोरम में 40 सीटों पर चुनाव हुए। यहां से 49.6 करोड़ रुपये की जब्ती हुई। यानि एक सीट पर करीब 1.24 करोड़ रुपये की। छत्तीसगढ़ से 76.9 करोड़ की जब्ती हुई। 90 सीटों के हिसाब से एक विधानसभा क्षेत्र में यह 85.4 लाख रुपये के आंकड़े को छूता है।
इन सभी आंकड़ों में नगद राशि के अलावा जब्त सामान की कीमत भी शामिल है। ये भारी भरकम रकम वास्तविक खर्च का एक मामूली हिस्सा ही हो सकता है। वैसे एक प्रत्याशी को सिर्फ 40 लाख रुपये खर्च करने की अनुमति है, जिसका पालन नहीं होता। यदि किसी दिन चुनाव के दौरान होने वाली जब्ती को उस राज्य की संपन्नता का पैमाना माना जाएगा तो छत्तीसगढ़ की जगह बहुत नीचे होगी। यहां तो औसत एक करोड़ भी नहीं हुआ। तेलंगाना सबसे अमीर राज्य है, जहां एक के पीछे 5 करोड़ से अधिक की जब्ती है। मिजोरम जैसे छोटे राज्य का आंकड़ा भी हैरान कर सकता है, जहां प्रलोभन पर निगरानी के लिए चुनाव आयोग के समानांतर एक मजबूत सिविल सोसायटी काम करती है।
पति पत्नी के बीच प्रोफेशनल तालमेल..
राजनांदगांव का एक व्यवसायी प्रकाश गोलछा के खिलाफ अपने पार्टनर के नौकर की हत्या का आरोप है। घटना के बाद से वह फरार चल रहा था। देश के अलग-अलग हिस्सों में उसका लोकेशन मिला, लेकिन पुलिस के पहुंचने से पहले वह चकमा देकर भाग जाता था। कोतवाली टीआई एमन साहू के पास सूचना आई कि आरोपी सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन पर बैठा है और किसी ट्रेन का इंतजार कर रहा है। साहू को लगा कि उसकी पत्नी तरुणा साहू उसकी मदद कर सकती हैं, जो आरपीएफ में सब इंस्पेक्टर है और मंदिर हसौद में पदस्थ हैं। तरुणा को उन्होंने फोन पर पूरी जानकारी देकर आरोपी की तस्वीर भेजी। पत्नी तुरंत सक्रिय हो गईं। सिकंदराबाद में आरपीएफ से उन्होंने संपर्क किया। आरोपी पर वहीं से निगरानी रखी जाने लगी। आरोपी पटना स्पेशल ट्रेन में सवार हो चुका था। आरपीएफ जवानों के अलावा ट्रेन में चाय नाश्ता लेकर चलने वाले वेंडर देख रहे थे कि वे कहीं रास्ते में तो नहीं उतर रहा। जैसे ही ट्रेन छत्तीसगढ़ की सीमा पर पहुंची मौके पर तैनात आरपीएफ निरीक्षक प्रशांत अडल्क की टीम ने उसे हिरासत में ले लिया। मतलब यह है कि पति-पत्नी जब एक ही प्रोफेशन में हों तो एक दूसरे की समस्या को ठीक तरह से समझ सकते हैं और उसका समाधान अच्छा ही निकल आता है।
गिनती सिर्फ चार राज्यों में....
पांच राज्यों के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने विधानसभा चुनावों की एक साथ घोषणा की थी और 3 दिसंबर को एक साथ सभी में वोटों की गिनती भी तय थी। पर मिजोरम में तारीख एक दिन आगे बढ़ाई गई है और अब वहां के रिजल्ट सोमवार को आएंगे। यहां की 87 प्रतिशत आबादी ईसाई है और यहां के सात प्रमुख चर्चों का एक संयुक्त संगठन मिजो नेशनल फोरम है। इसी की मांग पर चुनाव आयोग को तारीख बदलनी पड़ी। यह फैसला तब लिया गया जब फोरम ने कहा कि 3 दिसंबर को रविवार है और वे सुबह चर्च जाते हैं। रविवार को मतगणना के दौरान न तो कर्मचारी उपलब्ध हो सकेंगे न ही प्रत्याशियों के एजेंट। चुनाव आयोग ने बात मान ली और गिनती एक दिन आगे बढ़ा दी। हालांकि कुछ दलों ने इसका विरोध भी किया। पर यह बदलाव करते समय धार्मिक आस्था की जगह संभवत: आयोग ने यह ध्यान रखा होगा कि इस दिन मानव संसाधन उपलब्ध होंगे या नहीं। राजस्थान में इसी वजह से एकादशी के दिन तय मतदान की तारीख को आगे बढ़ाकर 25 नवंबर किया गया, लेकिन छत्तीसगढ़ में छठ पूजा के दिन मतदान टालने की मांग नहीं मानी गई। जबकि सभी दलों की ओर से यह मांग उठाई गई थी।