राजपथ - जनपथ
मिलती-जुलती राम कहानी..
कलेक्टर जैसे अति व्यस्त पद पर रहते हुए भी आईएएस अफसर अवनीश शरण सोशल मीडिया के लिए वक्त निकाल लेते हैं। उन्होंने ताज़ा पोस्ट इन दिनों की चर्चित फिल्म ट्वेल्थ फेल की क्लिपिंग के साथ डाली है। इस फिल्म में एक आईपीएस मनोज कुमार शर्मा के संघर्ष का जिक्र होता है। इसमें बताया गया है कि 12वीं फेल होने के बावजूद कैसे उसने प्रबल इच्छाशक्ति से कामयाबी हासिल की। अवनीश शरण लिखते हैं कि यह सिर्फ आपका रिजल्ट नहीं, उन तमाम लोगों के संघर्षों का प्रतीक है, जो विषम परिस्थितियों के बावजूद यूपीएससी परीक्षा में बैठने की हिम्मत जुटा पाते हैं।
अवनीश शरण ने खुद की यात्रा भी इसी तरह से तैयार की। दसवीं में थर्ड डिवीजन थे, ग्रेजुएशन तक 60-65 परसेंट नंबर लाते रहे। स्टेट पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा में 10 से ज्यादा बार फेल हुए। अधिक आसान प्रतियोगी परीक्षाओं में बार-बार विफल होते रहे। मगर आखिरकार सफलता मिली।
उनके इस पोस्ट को प्रेरणास्पद बताते हुए तो अधिकतर टिप्पणियां की गई है लेकिन कुछ अलग तरह की प्रतिक्रियाएं भी है।? एक ने लिखा है कि असफलता आप इसलिए गिना पा रहे हैं, क्योंकि सफल हो गए । एक और ने लिखा है कि लोगों को अपना परिश्रम संघर्ष लगता है और दूसरों का तमाशा। एक और प्रतिक्रिया है कि आपने साबित कर दिया सर कि हमारी परीक्षा प्रणाली खराब है।एक ने फिल्म पर सवाल उठाया है, कहा है कि ये कोचिंग संस्थानों के प्रचार के लिए बनाई गई है। मतलब है कि कोई पोस्ट मोटिवेशन के लिए डाली गई हो तो जरूरी नहीं कि लोग मोटिवेट ही हों। हर किसी की राम कहानी अलग-अलग होती है।
इस्तीफे का राज
कांग्रेस शासन में सरकारी पदों पर नियुक्त पार्टी पदाधिकारियों में अचानक नैतिकता जाग रही तो कुछ कोर्ट से स्टे भी ले रहे हैं। स्टे लेने के बाद इस्तीफे भी दे रहे हैं। कारण दिलो जहन में जगी नैतिकता बताने से नहीं थक रहे। कारण की पड़ताल में मालूम चला कि सरकार तो सर्वाधिकारी है, दलगत विरोधी भी बहुतेरे हैं। वहीं बड़े बेआबरू होकर निकाले गए और? लाखों के वेतन की रिकवरी आदेश निकला तो लेने के देने पड़ जाएंगे। वैसे भी ज्यूडिशियल संस्थान में राजनीतिक नेता की नियुक्ति पहले ही गैरकानूनी है। और वे तीन चार वर्ष से सवा,से डेढ़ लाख वेतन और विवाद सुलझाने का दोनो पक्षों से उतना ही मेहनताना झोंकते रहे हैं। उनके विरोधी यह भी बताते हैं कि बिना कोर्ट गए नेताजी,फैसलों की कापी पर हस्ताक्षर करते रहे। नेताजी के खिलाफ चुनाव आयोग में भी शिकायत की जा चुकी थी।
अगला एजी कौन ?
चर्चा है कि रमन सरकार में एडिशनल एडवोकेट जनरल रहे ठाकुर यशवंत सिंह को साय सरकार एडवोकेट जनरल बना सकती है। यशवंत सिंह लोरमी के रहवासी हैं, और यही से डिप्टी सीएम अरुण साव चुनकर आए हैं। अरुण साव के पास विधि विभाग भी है।
यशवंत सिंह के पिता ठाकुर भूपेन्द्र सिंह लोरमी से विधायक रहे हैं। वो भाजपा के किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। पारिवारिक पृष्ठभूमि भी यशवंत सिंह के पक्ष में जा रही है। वैसे सीनियर एडवोकेट राजीव श्रीवास्तव के नाम की भी चर्चा रही है, और कई प्रमुख नेताओं ने उनके नाम की सिफारिश की है। संकेत है कि अगले दो-तीन दिनों में एजी की नियुक्ति के आदेश जारी हो सकते हैं।
अमित और अमित, 11 में 11?
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के कांग्रेस में विलय की चर्चाओं का अध्याय विधानसभा चुनाव के पहले से ही बंद हो चुका है। परिणामों के बाद पार्टी नेता पूर्व विधायक अमित जोगी का कहना था कि कांग्रेस को हराने के चक्कर में हम वे सीट भी गवां बैठे जहां जीत मिल सकती थी। चुनाव के समय ही भाजपा के प्रति जेसीसी का झुकाव दिख रहा था, विलय की भी चर्चा होने लगी थी। अपने चिर प्रतिद्वंद्वी भूपेश बघेल को मात देने के उद्देश्य से उन्होंने पाटन से चुनाव भी लड़ा।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की फोटो अमित जोगी ने सोशल मीडिया पर शेयर की है, उसके बाद से विलय की चर्चा और जोर पकडऩे लगी है। शाह से मिलना इतना आसान नहीं है। शायद इसलिए मुलाकात के दौरान अमित अति प्रसन्न दिख रहे हैं और शाह सिर्फ 2 इंच मुस्कुरा रहे हैं। सामने लोकसभा चुनाव है। भाजपा ने कहना शुरू कर दिया है कि इस बार बस्तर और कोरबा सीट भी कांग्रेस के लिए नहीं छोड़ेंगे, पूरी 11 की 11 जीतेंगे।
कोरबा संसदीय सीट का एक विधानसभा क्षेत्र मरवाही है, जहां राज्य बनने के बाद से ही जोगी परिवार का असर देखा जाता है।
सन् 2009 में डॉ. चरण दास महंत ने करीब 20 हजार मतों से करुणा शुक्ला को पराजित किया था। मगर अगली बार 2014 में डॉ. बंसीलाल महतो ने करीब 4600 मतों से उनको हरा दिया। सन् 2019 में मोदी लहर के बावजूद ज्योत्सना महंत ने भाजपा के ज्योति नंद दुबे को करीब 26 हजार से अधिक मतों से हरा दिया। उस चुनाव के ठीक पहले विधानसभा चुनाव भी हुआ था, जिसमें कांग्रेस से अलग होकर खुद स्व. जोगी ने मरवाही से चुनाव लड़ा था। तीनों ही लोकसभा चुनावों में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की अच्छी मौजूदगी देखी गई। माना जाता है कि इसने ज्यादातर कांग्रेस के वोट विभाजित किए। हर बार गोंगपा को यहां 30 हजार से अधिक वोट मिल जाते हैं। सन् 2019 में तो यह 37000 से अधिक था।
संयोग है कि 2019 में जेसीसी का कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं था इसलिए कटघोरा तानाखार के अलावा मरवाही के वोट भी गोंगपा और कांग्रेस में बंट गए। सन् 2023 के विधानसभा चुनाव में जीसीसी प्रत्याशी को यहां से करीब 40 हजार वोट मिले। कांग्रेस को उसने मामूली मतों के अंतर से तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया। अभी जीसीसी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। मगर ऐसा लगता है कि मिशन 11 में 11 के लिए भाजपा को उनकी जरूरत पड़ेगी। मरवाही में जेसीसी को मिले वोट कांग्रेस और गोंगपा में बंटने से रोकने के लिए।