राजपथ - जनपथ
किसको कैसा नर्क
अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर देश का माहौल एकदम ही धर्मालु हो गया है। अखबारों के पन्ने और टीवी के बुलेटिन रामायण के पन्नों और अखंड रामधुन सरीखे चल रहे हैं। ऐसे में ट्विटर पर नेताओं के बीच विरोधियों को नर्क भेजने की होड़ लगी हुई है। भगवान राम का न्यौता ठुकराने के जुर्म में किसे कैसा नर्क होगा, यह लिखने वाले लोग हमारे सरीखे कम पढ़े-लिखे लोगों को अलग-अलग नरकों के बारे में पढऩे को मजबूर कर रहे हैं।
अभी सबसे अधिक लोकप्रिय नर्क रौरव नरक बना हुआ है। इसके बारे में कुछ जगहों पर पढऩे पर पता लगता है कि झूठी गवाही देने वाले लोग रौरव नरक में जाते हैं। यह परिभाषा पढक़र लगता है कि अदालतों से निकलकर लोग सीधे रौरव नरक ही जाते होंगे, हालांकि ऐसा कुछ होते नहीं दिखता है। कुछ और पॉपुलर किस्म के नर्क बताते हैं कि मदिरा पीने वाले शुकर नरक में जाते हैं, और नर की हत्या करने वाले ताल नरक में। मतलब यह है कि नारी की हत्या करना तो चल जाएगा, लेकिन नर की हत्या करने पर ताल नरक होगा। अब अयोध्या को लेकर कुछ शंकराचार्य और बहुत से दूसरे लोग इसे शास्त्रों के खिलाफ प्राण-प्रतिष्ठा बता रहे हैं। शंकराचार्यों की खिल्ली भी उड़ाई जा रही है। इस बारे में नर्क की लिस्ट बताती है- धर्म मर्यादा का उल्लंघन करने वाला विमोहक नरक में जाता है। दूषित भावना से, और शास्त्रविधि के विपरीत यज्ञ करने वाला पुरूष कृमिश नरक में जाता है। दारू पीने वाले के लिए तो ऊपर एक नरक का जिक्र हो गया है, लेकिन मुर्गा, कुत्ता, बिल्ली, और पक्षियों को जीविका के लिए पालने वाला पूयवह नरक में पड़ता है। छत्तीसगढ़ में इन दिनों हसदेव के जंगल काटने को लेकर बड़ा बवाल चल रहा है, इस सिलसिले में यह पढऩा जरूरी है कि व्यर्थ ही वृक्षों को काटने वाला मनुष्य असिपत्रवन नरक में जाता है। राजनीति में जो लोग हैं, उन्हें भी यह पढ़ लेना चाहिए कि कपटवृत्ति से जीविका चलाने वाले लोग बहिज्वाल नामक नरक में गिराए जाते हैं। यह लिस्ट बताती है कि जो लोग भगवान शिव और विष्णु को नहीं मानते, उन्हें अवीचि नरक में जाना पड़ता है। अब हिन्दुओं के बीच भी हर कोई तो शिव और विष्णु को नहीं मानते, कई लोग सिर्फ राम को मानते हैं, कई लोग सिर्फ कृष्ण को, और कई लोग हनुमान को। अब ऐसे में दूसरे देवताओं को मानने वाले लोगों का क्या होगा?
अलग-अलग नर्कों का ब्यौरा बड़ा दिलचस्प है, और जिनको इसका सबसे भयानक रूप पढऩा हो, वे लोग गरूड़ पुराण पढ़ या सुन सकते हैं।
फूल छाप कांग्रेसी, पंजा छाप भाजपाई
राज्य में सरकार बदलने के बाद अधिकारियों के भी रंग बदलने लगे हैं। जो अधिकारी पंजा छाप बने फिर रहे थे, वे अब फूल छाप हो गए हैं। दरअसल, हाल में जो नियुक्तियां हुई है, उसमें ऐसे भी अधिकारी हैं, जो कांग्रेस के कई मंत्री विधायकों के साथ अटैच थे। जैसे जैसे नियुक्ति का आदेश जारी हो रहा है, वैसे वैसे संगठन और संघ से जुड़े लोगों की नाराजगी भी सामने आ रही है। फ्रंटलाइन और लूपलाइन में रहते हुए भाजपा के भले के लिए काम करने वाले कई अधिकारियों ने संघ के जरिए अपने नाम की अनुशंसा भेजी थी। पुराने खटराल अधिकारियों पर ही भरोसा जताया। अब संघ के लोग भी उन अधिकारियों के फोन उठाने में झेंप रहे हैं, जो यह दावा कर रहे थे कि टिकट बांटने से लेकर मंत्रिमंडल गठन में संघ की चली है। इससे पहले 2018 में कांग्रेसियों के सामने भी ऐसी स्थिति बनी थी, जब भाजपा सरकार में मलाई खाने वाले उनकी सरकार में भी क्रीम पोस्टिंग पा गए थे।
न्याय यात्रा से मदद कितनी कांग्रेस को?
राहुल गांधी की आज से शुरू हुई भारत जोड़ो न्याय यात्रा करीब 35 दिन बाद जब छत्तीसगढ़ के रायगढ़ से प्रवेश कर बलरामपुर होते हुए रांची की ओर निकल जाएगी तो उनमें सिर्फ कोरबा ऐसी सीट होगी, जहां कांग्रेस को बीते लोकसभा चुनाव में जीत मिल पाई थी। रायगढ़ में 66 हजार, जांजगीर में 83 हजार और सरगुजा में 1 लाख 57 हजार का भारी फासला रहा। जांजगीर, कोरबा से गुजरने के दौरान यात्रा बिलासपुर संसदीय सीट के करीब से भी जाएगी जहां एक लाख 41 हजार वोटों से भाजपा ने कांग्रेस को पटखनी दी थी। तब और अब के लोकसभा चुनाव में कुछ फर्क हैं। तब कांग्रेस की विधानसभा में सरकार बन चुकी थी, अब फिर से वह विपक्ष में रहते हुए मैदान में उतरेगी। सन् 2019 में मोदी का जादू चला था। भाजपा के सारे प्रत्याशी नए होने के बावजूद उनके नाम पर बंपर वोट पड़े। इस बार इस जादू में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा भी जुड़ गया है। कांग्रेस के हाथ अभी एक बड़ा मुद्दा हसदेव अरण्य की कटाई का लगा है, पर उसमें भी कांग्रेस सरकार का दामन पूरी तरह पाक-साफ नहीं है। खुद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने मान लिया कि गलती हुई जो फर्जी ग्राम सभा की जांच नहीं करा सके। इसके अलावा वनों की कटाई की अंतिम स्वीकृति दी। हसदेव की यात्रा अभी राहुल गांधी के कार्यक्रम में अधिकारिक रूप से शामिल नहीं हुआ है। कांग्रेस के कई बड़े नेता चाह रहे हैं कि सूरजपुर-अंबिकापुर के बीच हसदेव की ओर राहुल की न्याय यात्रा को मोड़ दिया जाए। दरअसल, विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की हताशा खत्म नहीं हुई है। अब ज्यादातर कांग्रेस कार्यकर्ता यही उम्मीद कर रहे हैं कि राहुल की यात्रा और उसके पहले की तैयारी विधानसभा की हार को भुलाकर एकजुट और रिचार्ज होने के मौके के रूप में सामने आया है।
मुरिया दरबार क्या होता है?
इस बार बस्तर के मुरिया दरबार दिल्ली में गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह का आकर्षण बनने जा रहा है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इसमें शामिल होने वाले युवाओं से उनकी दिल्ली रवानगी से पहले चर्चा की। मुरिया दरबार की बस्तर की अनोखी और विषिष्ट परंपराओं में से एक है। इसकी शुरुआत 8 मार्च, 1876 को हुई थी, जिसमें सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मेक जार्ज ने मांझी- चालकियों को संबोधित किया था। बाद में लोगों की सुविधा के अनुरूप इसे बस्तर दशहरा का अभिन्न अंग बनाया गया, जो परंपरानुसार 145 साल से जारी है।
बस्तर रियासत ने अपने राज्य में परगना स्थापित कर यहां के मूल आदिवासियों से मांझी (मुखिया) नियुक्त किए थे, जो अपने क्षेत्र की हर बात राजा तक पहुंचाया करते थे। वे राजाज्ञा से ग्रामीणों को अवगत भी कराते थे। मुरिया दरबार में राजा द्वारा निर्धारित 80 परगना के मांझी उन्हें अपने क्षेत्र की समस्याओं से अवगत कराते हैं। मुरिया दरबार में पहले राजा और रियासत के अधिकारी कर्मचारी मांझियों की बातें सुना करते थे और तत्कालीन प्रशासन से उन्हें हल कराने की पहल होती थी। आज़ादी के बाद मुरिया दरबार का स्वरूप बदल गया। 1947 के बाद राजा के साथ जनप्रतिनिधि भी इसमें शामिल होने लगे। 1965 के पूर्व बस्तर महाराजा स्व. प्रवीर चंद्र भंजदेव दरबार की अध्यक्षता करते रहे। उनके निधन के बाद राज परिवार के सदस्यों ने मुरिया दरबार में आना बंद कर दिया। वर्ष 2015 से राज परिवार के कमलचंद्र भंजदेव इस दरबार में शामिल हो रहे हैं। बाद में विधायक, मंत्री भी इसमें शामिल होने लगे। मुख्यमंत्री भी इसमें शामिल होते रहे हैं।