राजपथ - जनपथ
व्यस्त कर दिया
छत्तीसगढ़ सरकार में एक मंत्री पद खाली है। मुख्यमंत्री के अलावा जितने मंत्री रह सकते हैं, उस अधिकतम सीमा से अभी एक मंत्री कम है, और ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनाव तक पार्टी के विधायकों का योगदान देखकर पार्टी इस एक पद को भरेगी। इस बीच लोकसभा चुनाव की तैयारी में तीन वरिष्ठ विधायकों, जो कि भूतपूर्व मंत्री भी हैं, उन्हें भाजपा ने संसदीय क्लस्टर प्रभारी बनाया है, वे तीन-चार सीटों का काम देखेंगे, और ऐसा लगता है कि पार्टी ने इनमें से किसी एक को मंत्री बनाने के लिए उनके बीच यह मुकाबला छेड़ दिया है कि वे पार्टी की शानदार जीत तय करें, तो पार्टी उनका शानदार भविष्य तय करेगी। राजेश मूणत, अजय चंद्राकर, और अमर अग्रवाल, इन तीनों अनुभवी मंत्रियों को अभी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई है, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद हो सकता है कि इनमें से किसी की बारी आ जाए। फिलहाल तो पार्टी ने इन्हें व्यस्त कर दिया है।
अफसरों की नई रफ्तार!
बड़े-बड़े ओहदों पर बैठे हुए अफसर अब तक असमंजस में हैं कि मुख्यमंत्री विष्णु देव साय इन ओहदों पर नए लोगों को बिठाने का फैसला लेंगे, तो कब लेंगे? ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री न तो किसी हड़बड़ी में है, और न ही पिछली सरकार में बड़े ओहदों पर रहे लोगों से हिसाब चुकता करने के अंदाज में कोई काम कर रहे, इसलिए बहुत सी कुर्सियों पर लोग अभी जारी हैं। लेकिन जब कुर्सी पर बने रहने की गारंटी नहीं रह गई है, और सिर पर हटने की तलवार टंगी है, तो ऐसे बड़े-बड़े अफसर अपने मातहतों को साथ लेकर ऐसी-ऐसी कमेटियों की बैठक करने में लग गए हैं जिनकी बरसों से किसी ने याद भी नहीं की थी। सरकार में कई कमेटियां उपेक्षित पड़ी रह जाती हैं, लेकिन अब सभी अफसर बेहतर काम करके दिखाने की एक दौड़ में लगे हैं, पता नहीं यह रफ्तार कब तक कायम रहेगी। फिलहाल अफसरों के बीच इस बात को लेकर राहत है कि विष्णु देव साय की सरकार बदले की भावना से कोई काम करते नहीं दिख रही है, बल्कि बहुत सी कुर्सियों पर मौजूदा अफसरों में से सबसे काबिल को मौका दिया गया है।
फिर खुलने लगे जुए-शराब के अड्डे
राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद पुलिसकर्मियों ने तत्काल प्रभाव से जुए-सट्टे और कबाड़ के ठीयों को बंद करवा दिया था, ताकि किसी भाजपाई के शिकायत पर हिट विकेट न होना पड़े। उस समय यह भी कयास लगाए जा रहे थे कि आईजी-एसपी बदले जाएंगे तो नया सेटअप बैठेगा। एडिशनल एसपी, डीएसपी, और टीआई लेवल पर भी बड़े पैमाने पर बदलाव होंगे। इसके विपरीत सरकार अभी तक आईपीएस के तबादले नहीं कर सकी। धीरे-धीरे सारे थानेदार भी रिलैक्स हो गए हैं। वे अब जुए-सट्टे और कबाड़ के धंधे से जुड़े लोगों को फ्री हैंड देते जा रहे हैं।
पुलिस-प्रशासन की मुश्किल
प्रदेश में प्रशासन और पुलिस के अफसरों का काम तो नहीं पर तनाव बढ़ गया है। तनाव बढऩे की वजह है हाई कोर्ट की नजर। पिछले कुछ समय से जनहित से जुड़े मुद्दों पर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने जिस तरह से गंभीरता दिखाई है, तब से पुलिस और प्रशासन क्या स्वास्थ्य, खनिज, समाज कल्याण सभी में सक्रियता आ गई है। काम भले पूरा न हो लेकिन सक्रियता दिखाई जा रही है, क्योंकि जनहित की खबरों पर हाई कोर्ट के संज्ञान लेने पर कोर्ट में खिंचाई होगी। वैसे, बिलासपुर के लोग हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के काफी आभारी हैं। सिम्स की रंगत बदल रही है। अवैध अहाते बंद हो गए हैं। डीजे का शोर कम हो गया है। रेलवे में पार्किंग ठेकेदारों की मनमानी बंद हुई है। अब कोर्ट ने सडक़ों को लेकर मुख्य सचिव को तलब किया है, यानी अब सडक़ें भी चिकनी हो जाएंगी। स्पष्ट है जब प्रशासन काम न करे तो जनहित याचिका लगाए और कोर्ट के जरिए पूरा कराए।
स्वागत में बाधक सडक़...
स्वागत, अभिनंदन के तौर तरीकों पर अगले कुछ दिनों तक कोई रोक-टोक नहीं। चाहें तो सडक़ खोदकर बांस डाल सकते हैं, द्वार बना सकते हैं। वैसे तो यह प्रदेश की राजधानी की एक तस्वीर है, पर यहां जगह-जगह, और दूसरे शहरों में भी ऐसा दिखाई दे रहा है। नाहक बीच में यातायात सुरक्षा सप्ताह आ गया। उसे आगे खिसका दिया जाना चाहिए।
तैयारी के साथ मंच पर भेजें...
उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में विकसित भारत संकल्प यात्रा के दौरान भाजपा सांसद धर्मेंद्र कश्यप ने पीएम आवास के एक लाभार्थी को चाबी देते हुए पूछ लिया कि किसी ने पैसे तो नहीं लिए? सांसद ने ध्यान नहीं रखा कि इस तरह के सवाल तभी किया जाना चाहिए जब जवाब पहले से रटा दिया गया हो। महिला लाभार्थी ने मासूमियत से कह दिया कि हां, 30 हजार रुपये दिए हैं। भरी सभा में सुशासन की पोल खुल गई।
सच्चाई यह है कि यह योजना सरपंचों और ग्राम सचिवों के लिए अवैध वसूली का बहुत बड़ा जरिया है। यह न केवल यूपी में हो रहा है ना अभी शुरू हुआ है। इंदिरा आवास के जमाने से चला आ रहा है। छत्तीसगढ़ की पिछली कांग्रेस सरकार ने पीएम आवास के लिए अंशदान जारी नहीं किए पर इस बीच भी ठगी और वसूली चलती रही। पिछले साल मार्च महीने में दुर्ग जिले में एक गिरोह काम कर रहा था। प्रधानमंत्री आवास दिलाने के नाम पर उसने स्टांप पेपर पर इकरारनामा करके लाखों रूपए की वसूली की। दो साल पहले रायपुर के तेलीबांधा इलाके में भी इसी तरह की ठगी की गई थी।
भाजपा ने पीएम आवास को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था। सरकार बनते ही मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपनी पहली कलेक्टर कांफ्रेंस में निर्देश दिया कि इस योजना को सर्वोच्च प्राथमिकता दें। पात्र हितग्राहियों के एक वर्ग के लिए 25 हजार रुपये की पहली जारी भी कर दी गई है। पर इसमें भी वसूली शुरू हो गई है। शिकायतों के मुताबिक जांजगीर-चांपा जिले में जनपद पंचायत के दलाल हितग्राहियों से घूम-घूमकर मिठाई के नाम पर पैसे मांग रहे हैं। बलौदाबाजार के सकरी गांव से भी यही शिकायत आई है। दर्जनों शिकायतें तब भी थीं, जब आवास आवंटन नहीं हो रहे थे। अब जब आवास घोषित हो गए हैं, वसूली फिर हो रही है।
हाल ही में बसना जनपद पंचायत के एक पंचायत सचिव को वहां के सीईओ ने ऐसी ही शिकायतों पर निलंबित भी किया है। इस योजना में 1.30 लाख रुपये मिलते हैं। यह गरीबों के लिए बड़ी रकम है। खुद का आवास हो जाना उनके लिए बहुत बड़े सपने का पूरा होना है। ऐसे में पात्र लोगों की सूची में नाम डालने और राशि मिलने के बाद उपयोगिता का प्रमाण पत्र देने के नाम पर दबावपूर्वक राशि ली जाती है, वरना उन्हें आवास अधूरा रह जाने की चेतावनी दी जाती है।
टिकट की उम्मीद रखें या नहीं?
धरमलाल कौशिक, अभिषेक सिंह, लखन लाल साहू, कमलभान सिंह, डॉक्टर कृष्णमूर्ति बांधी और उनके जैसे कई भाजपा नेताओं के बारे में चर्चा चली हुई है कि वे लोकसभा चुनाव लडऩे के इच्छुक है। पर इन्हें प्रदेश अध्यक्ष किरण देव ने लोकसभा क्षेत्र के प्रभारी और संयोजकों की सूची में शामिल कर लिया है। इनमें से किसी को भी उन जिलों में तैनात नहीं किया गया है जहां से वे लडऩे की इच्छा रखते हैं। पूर्व में क्लस्टर प्रभारियों की घोषणा हुई थी। उसमें भी कम से कम दो नाम तो ऐसे हैं, जो लोकसभा जाना चाहते हैं। पर दूसरे जिलों, संभागों में व्यस्त कर देने से उनके समर्थकों में चिंता पैदा हो गई है कि क्या उनके नाम पर विचार नहीं होगा? फिर वे यह सोचकर संतोष कर लेते हैं कि भाजपा में कुछ भी हो सकता है, जिनको टिकट मिलने की उम्मीद है, वे देखते रह जाएंगे। जिसने सोचा भी नहीं होगा, उसे मिल जाएगी।