राजपथ - जनपथ
वे दिन हवा हुए...
लोकसभा चुनाव की रणनीति तैयार करने के लिए कांग्रेस ने ‘वार रूम’ का गठन तो कर लिया है, लेकिन इसके चेयरमैन शैलेष नितिन त्रिवेदी को राजीव भवन में ‘वार रूम’ के लिए अब तक जगह नहीं मिल पाई है। बताते हैं कि शैलेश ने पहले संचार विभाग के फ्लोर में ही ‘वार रूम’ तैयार करने के लिए जगह पसंद किया था, लेकिन संचार विभाग के मुखिया सुशील आनंद शुक्ला सहमत नहीं हुए। अब जाकर राजीव भवन में कहीं उपयुक्त जगह की तलाश की जा रही है ताकि काम शुरू हो पाए।
गौर करने लायक बात यह है कि विधानसभा चुनाव में तो ‘वार रूम’ के लिए शंकर नगर में एक आलीशान फ्लैट किराए पर लिया गया था। भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा की निगरानी में ‘वार रूम’ संचालित हो रहा था। पूरा ‘वार रूम’ हाईटेक था। इस पर भारी भरकम खर्च किए गए थे। ‘वार रूम’में किस तरह की गतिविधियां चल रही थी यह तो साफ नहीं है, लेकिन चुनाव नतीजे अब तक के सबसे खराब रहे हैं।
हाल यह रहा कि चुनाव नतीजे आते-आते तक ‘वार रूम’ में ताला लग गया, और वहां कार्यरत कर्मचारी हिसाब किताब कर निकल गए। विनोद वर्मा भी चुनावी परिदृश्य से गायब हैं। अब जब लोकसभा चुनाव के लिए ‘वार रूम’ तैयार करने की बारी आई, तो एक कमरे के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है।
जेसीसी-बीजेपी में सियासी कशमकश
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की भाजपा के लोकसभा चुनाव के लिए नियुक्त क्लस्टर प्रभारियों के साथ दिल्ली में हुई बैठक के 5 दिन के भीतर ही भाजपा ने आम आदमी पार्टी में सेंध लगा दी। इसके अलावा हजार पांच सौ वोटों की पहचान रखने वाली छोटी-छोटी पार्टियों के अनेक पदाधिकारी भाजपा में ले लिए गए हैं। आप पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेंडी ने इस्तीफा दिया था तब उनके ही भाजपा में जाने की चर्चा ज्यादा थी लेकिन शायद अभी शर्तें तय नहीं हो पाई हैं। या फिर उन्होंने अभी मन ही नहीं बनाया होगा। शाह की बैठक से लौटकर एक क्लस्टर प्रभारी अमर अग्रवाल ने बताया था कि उनको निर्देश मिला है कि जो लोग पार्टी में आना चाहते हैं, उनका स्वागत करें। यहां उनके निर्देश का पालन होने लगा है।
इस तोडफ़ोड़ के बाद एक बार फिर यह चर्चा गर्म हो गई है कि क्या अमित जोगी लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो जाएंगे? जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के संस्थापक पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन के बाद से ही पुत्र अमित जोगी ने पार्टी को फिर से खड़ा करने की बड़ी कोशिश की लेकिन विधानसभा चुनाव में आए नतीजे से यह साफ हो गया कि उसका भविष्य कैसा होगा। डॉ. रेणु जोगी पहले यह बता चुकी हैं कि कांग्रेस में पार्टी के विलय की चर्चा चली थी। बात इसलिए अटक गई क्योंकि बाकी सब के लिए सहमति तो थी लेकिन अमित को शामिल करने को लेकर कांग्रेस में एक राय नहीं थी। जेसीसी को खड़ा करने वाले ज्यादातर नेता अब पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं। स्व. जोगी के जाने के बाद उनके बेहद करीबी धर्मजीत सिंह अब भाजपा विधायक हैं।
मरवाही उपचुनाव में लडऩे का मौका नहीं मिलने पर जेसीसी ने भाजपा प्रत्याशी डॉक्टर गंभीर सिंह को समर्थन दे दिया था। बीते विधानसभा चुनाव में भी जेसीसी का भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने का मकसद पूरा हुआ। मगर उसे खुद नोटा जितने वोट भी नहीं मिल पाए। सूत्र बता रहे हैं कि इस नतीजे से पार्टी में बेचैनी महसूस की जा रही है और भाजपा में विलय की मांग हो रही है। अमित कह चुके हैं कि क्या करना है यह वक्त आने पर तय करेंगे। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से मिलकर वे उनको जीत की बधाई दे चुके हैं, पर बीते 8 जनवरी को शाह से उनकी मुलाकात के बाद चर्चा और तेज हुई है। लोग मान रहे हैं कि इन भेंट मुलाकातों का कोई न कोई मुकाम होगा।
मगर फैसला आसान नहीं है। पार्टी में जो लोग भी आज रह गए हैं उनमें से ज्यादातर कार्यकर्ता ऐसे हैं जो स्वर्गीय अजीत जोगी को जननायक और मसीहा मानते रहे और अमित जोगी से उनकी विरासत आगे बढ़ाने की उम्मीद करते हैं। जो लोग आज साथ हैं वे सब के सब भाजपा में जाना पसंद करें या जरूरी नहीं।
दूसरा पहलू बीजेपी का है। पार्टी के रणनीतिकारों को यह तय करना है कि जोगी की पार्टी का विलय ठीक रहेगा या उसका अलग अस्तित्व बनाए रखने में नफा होगा।
काम पर लग गए बुलडोजर
छत्तीसगढ़ भाजपा ने चुनाव अभियान के दौरान कई ऐसे वायदे किए जिसने रोमांच, बदन और जेहन में सुरसुरी, सनसनी पैदा की। इन्हीं में से एक वादा था आपराधिक तत्वों के खिलाफ बुलडोजर की कार्रवाई। बीते 2 दिसंबर को चुनाव परिणाम के बाद जीत के जश्न में बुलडोजर को भी शामिल किया गया था। राजधानी के जोश में भरे कार्यकर्ताओं ने बृजमोहन अग्रवाल को भी इसमें चढ़ाया था। बिलासपुर में भी जीत का जुलूस बुलडोजर के साथ निकाला गया था।
भाजपा सरकार अपने इस वादे पर खरा उतर रही है। जीत के 2 दिन बाद ही रायपुर में अवैध चौपाटी पर बुलडोजर की एंट्री हुई थी। अब पखांजूर में भाजपा नेता असीम राय की हत्या के मुख्य आरोपी विकास पॉल का होटल भी ढहा दिया गया है। पुलिस जांच में यह बात सामने आई थी कि इसी होटल को बचाने के लिए असीम राय की हत्या की गई थी, ताकि नगर पंचायत में भाजपा का कब्जा ना हो सके। मगर अविश्वास प्रस्ताव पास हुआ, भाजपा आ गई। आरोपी जेल में है और उसका होटल भी टूट गया।
कांग्रेस नेताओं की समाजसेवा
जन सेवा के लिए पद की कोई निर्धारित समय सीमा नहीं होती। और न ही प्रतिफल की चाह। इसी ध्येय के साथ कई बड़े बड़े समाजसेवी इतिहास में हुए हैं और उनके ही कारण समाजवाद का जन्म हुआ। कालांतर में इस समाज सेवा ने सरकारी पदों का रूप ले लिया। पांच वर्ष के एक निश्चित समयावधि के लिए हरेक को मौका मिलता रहा। लेकिन हाल के वर्षों में समय पूर्णता के बाद भी पद पर बने रहकर समाज सेवा की ललक के आगे आधुनिक समाजसेवी नेता जुटे रहते हैं। कारण प्रतिफल स्वरूप मोटा वेतन, सरकारी सुविधाएं और बेहिसाब बजट।
मानना पड़ेगा कांग्रेस के नेता लोगों को जनता के लिए काम करने की ललक है सरकार के जाने के बाद भी इतनी निष्ठा जनता के सेवा करने की। इसी समाज सेवा के लिए राज्य के तीन आयोग के अध्यक्ष, सदस्य और उनके पदाधिकारियों के साथ 40 लोग स्टे लेकर समाजसेवा कर रहे हैं । एक नेताजी ने भी स्टे लिया था, लेकिन रिकवरी के भय से अगले ही दिन इस्तीफा भेज कर अदभुत नैतिकता का परिचय दिया।
गोबर खरीदी पर सरकार का रुख
कांग्रेस सरकार ने जब गोबर खरीदी योजना शुरू की तो इसका मजाक उड़ाया गया था लेकिन बाद में भाजपा शासित राज्यों मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में इससे मिलती-जुलती योजना बनाई गई। बाद में गौठान समितियां और कृषि विभाग के अधिकारी-कर्मचारी, जिनके जरिये यह खरीदी हो रही थी गड़बड़ी करने लगे। विधानसभा में अजय चंद्राकर, धरमलाल कौशिक, सौरभ सिंह आदि ने इस मामले को कई बार उठाया। गोबर खरीदी और उसके एवज में किए गए भुगतान में भारी फर्क था। अब भाजपा सरकार ने तय किया है कि गोबर के एवज में किए गए 287 करोड़ रुपये भुगतान की जांच कराई जाएगी। भाजपा सरकार ने इस योजना को जारी रखने और भ्रष्टाचार के सुराखों को बंद करने का भी ऐलान किया है। तब गोबर खरीदी का भुगतान सरकार की दूसरी योजनाओं की राशि से किया गया था। नई सरकार ने मंशा जताई है कि वह अपने पैसे से गोबर नहीं खरीदेगी, बल्कि इसके प्रोडक्ट बेचकर समितियों को मुनाफे में लाया जाएगा। पिछली सरकार ने भी ऐसी कोशिश की थी। उसके कई बाई प्रोडक्ट बनाए गए लेकिन बाजार टिके नहीं। गोबर खाद को जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के नाम पर तैयार किया गया लेकिन उसे सोसाइटियों में पोटाश, यूरिया खरीदी के दौरान किसानों को जबरन थमाया गया। किसान इस जबरदस्ती से नाराज भी थे। वे इसका इस्तेमाल नहीं करते थे। खाद की जगह मिट्टी बेच दी जाती थी। गो काष्ठ और गोबर पेंट को भी उम्मीद के अनुरूप मार्केट नहीं मिला। सरकार को लग रहा होगा कि गरीबी खरीदी गांवों के बिल्कुल निचले तबके तक फायदा पहुंचाती है, इसलिये इसे बंद करना ठीक नहीं होगा, पर इसे मुनाफे कैसे चलाएगी, अभी साफ नहीं है।