राजपथ - जनपथ
गृहमंत्री का अनंत प्रेम
राज्य सेवा के पुलिस अफसर एएसपी अनंत साहू की हालिया हुई एक सिंगल आर्डर की पोस्टिंग पुलिस महकमें में सुर्खियां बटोर रही है। दरअसल अनंत को गृहमंत्री विजय शर्मा के प्रमुख सुरक्षा अधिकारी के तौर पर सरकार ने जिम्मेदारी दी है। बताते है कि एएसपी और गृहमंत्री के बीच दोस्ती है। रायपुर में कालेज की पढ़ाई के दौरान विजय शर्मा और अनंत साहू की आपस में दोस्ती हुई। एएसपी तब से लगातार गृहमंत्री के साथ मित्रता को लेकर बेहद गंभीर रहे। पुलिस सेवा में आने के बाद अनंत, शर्मा के गृहजिले में बतौर एएसपी भी रहे। चर्चा है कि दुर्ग ग्रामीण एएसपी रहते हुए अनंत की एक सीनियर अफसर से पटरी नहीं बैठ रही थी। भाजपा सरकार में दोस्त को गृहमंत्री का ओहदा मिलते ही अनंत ने ओएसडी बनने के लिए जोर लगाया, लेकिन पीएचक्यू ने तकनीकी पेंच डालकर उन्हें सुरक्षा अधिकारी का जिम्मा थमा दिया।
प्राचीन मूर्ति पर किसका हक?
इन दिनों आरंग में मिली एक दुर्लभ प्रतिमा का संरक्षण कौन करे, इस पर विवाद खड़ा हो गया है। सितंबर 2021 में एक तालाब की खुदाई के दौरान जैन तीर्थंकर की प्राचीन मूर्ति मिली। इसे रायपुर के तत्कालीन कलेक्टर सर्वेश्वर भूरे ने डोंगरगढ़ के जैन समाज की मांग पर उन्हें सौंपने का आदेश दे दिया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने भी इसे मंजूरी दे दी। नए कलेक्टर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहे हैं। कलेक्टर ने यह फैसला निखत निधि अधिनियम 1878 के प्रावधान का हवाला देते हुए दिया। आरंग में इसका विरोध होने लगा है। ग्रामीण और कुछ संगठन सामने आए हैं। उनका कहना है कि अधिनियम में सिर्फ पूजा पाठ की अनुमति देने का प्रावधान है, किसी व्यक्ति या संस्था को सौंपने का नहीं। इसका संरक्षण केंद्र और राज्य सरकार का काम है।
छत्तीसगढ़ पुरातात्विक वैभव से भरा-पूरा राज्य है। तालाब, कुओं और घरों की खुदाई के दौरान ऐसी कई मूर्तियां मिलीं हैं, जिनसे पता चलता है कि यहां बौद्ध और जैन धर्म का प्रभाव रहा है।
कहीं-कहीं इनका रखरखाव ठीक है पर ज्यादातर जगहों पर प्राचीन मूर्तियां असुरक्षित पड़ी हैं। अधिकांश पुरातत्व संग्रहालयों में मूर्तियों को सहेजने के लिए जगह और बजट दोनों की कमी है। ऐतिहासिक मंदिरों और इमारतों का भी संरक्षण नहीं हो पा रहा है। खुदाई के नए प्रोजेक्ट नहीं लिए जा रहे हैं। कई जिलों में तो संग्रहालय्यों की भी स्थापना नहीं हो पाई है। कई स्थानों पर ग्रामीणों ने खुद ही मूर्तियों के रख-रखाव की जिम्मेदारी भी उठा रखी है।
आरंग के मामले में समाधान क्या निकलेगा, यह आगे पता चलेगा। पर, राज्य के पुरातत्व धरोहरों की देखभाल हमेशा एक उपेक्षित विषय रहा है। आरंग में तो दो-दो संस्थाएं एक मूर्ति की दावेदार हैं लेकिन प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में ऐसी सैकड़ों बेशकीमती प्रतिमाएं खुले आसमान के नीचे धूल खाती पड़ी हैं।
आकार लेने लगे भाजपा के मुद्दे
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव घर-घर पहुंचने के बाद बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के लिए एक अच्छी बढ़त हासिल कर ली है, मगर इसका यह मतलब नहीं है कि वह हाथ पर हाथ धर कर बैठे। यह उसका मिजाज ही नहीं है। वह 180 डिग्री घेराबंदी करती है। उसने विधानसभा में एक हारी हुई लग रही बाजी को जीतकर इसे साबित भी कर दिया । लोकसभा चुनाव के पहले जिन चुनावी वादों को जमीन पर उतारते हुए भाजपा दिखाई दे रही है, उनमें से आवास योजना पर फैसला लिया जा चुका है। महतारी वंदन योजना बहुत जल्दी लागू होने की खबर है।
बिहार में जिस तरह से जनता दल यूनाइटेड को फिर से साथ ले लिया गया है, उसका भी एक संदेश यह है कि केवल राम मंदिर निर्माण का मुद्दा तीसरी बार की सरकार लिए काफी नहीं होगा। छत्तीसगढ़ में हाशिए पर रहने वाले राजनीतिक दलों के कई नेताओं को पार्टी में शामिल किया जा चुका है। आने वाले दिनों में कई और नाम चौंका सकते हैं। विधानसभा चुनाव की तरह धर्मांतरण को मुद्दे लोकसभा चुनाव में भी उठाए जाने की संभावना दिख रही है। घर वापसी का एक बड़ा आयोजन राजधानी में हो ही चुका। पहले केवल ईडी साथ थी, अब राज्य में ईओडब्ल्यू और एसीबी उसके नियंत्रण में है। सौ से अधिक अफसर, कारोबारी और नेताओं के खिलाफ हाल में दर्ज एफआईआर भी प्रतिद्वंदी कांग्रेस को घेरने के काम आएगी।
सोशल मीडिया पर नीतीश
मिस्टर क्लीन, सुशासन बाबू कहे जाते हैं नीतीश कुमार। नीतीश ने पहले भाजपा, फिर राजद, फिर भाजपा के पत्ते फेंटे तो समाज के हर वर्ग ने अपने-अपने तरीके की टिप्पणियों से सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म को भर दिया है। इनमें से कुछ इंटरेस्टिंग साझा कर रहे—
राजभवन का स्टाफ
कल शपथ लेने के बाद नीतीश कुमार जी अपना मफलर राजभवन में भूल गये। आधे रास्ते से वापिस लौटकर लेने आए तो राज्यपाल जी चौंक गए कि इस बार तो 15 मिनट भी नहीं हुए ।
कॉरपोरेट
कॉरपोरेट में नौकरी करने वालों के लिए नीतीश कुमार बहुत बड़ा सबक है...
1. जब तक दूसरा ऑफर लेटर हाथ में न हो, पहली कंपनी से रिजाइन मत करो। 2. एक बार दूसरा ऑफर स्वीकार कर लो तो पहली कंपनी कितना भी इन्क्रीमेंट, प्रमोशन का लालच दे, रुको मत। और आप रुक गए तो, कंपनी आपका रिप्लेसमेंट ढूँढने लगती है। 3. अगर आप में स्किल्स है और आप कंपनी के लिए असेट हो तो पहली कंपनी के दरवाजे आपके लिए हमेशा खुले रहेंगे। इसलिए अपने स्किल्स को तराशते रहिए, मार्केट में डिमांड बनी रहेगी! 4. कंपनी लॉयल्टी, एथिक्स, वर्क कल्चर वगैरह सब हवाई बात है। बस शिकार पर नजर रखिये और जब मौका मिले अपना हिस्सा लेकर अगले मिशन पर चल निकले। 5. नेटवर्किंग हमेशा सॉलिड बनाकर रखिये। किससे कब फिर से पाला पड़ जाए भरोसा नहीं!
शिक्षक
बिहार डिक्शनरी वाक्य
उसने मुझे धोखा दिया।
अनुवाद - ॥द्ग हृद्बह्लद्बह्यद्धद्गस्र द्वद्ग:
क्रिकेट
आईसीसी के नए कानून में...अब टॉस में गड़बड़ी रोकने के लिए आईसीसी ने फैसला किया है कि अब सिक्के की जगह नीतीश कुमार को उछाला जाएगा..क्योंकि सिक्का पलटने में काफी टाइम लेता है..!
ऐसे ही कार्यकर्ता जीतेंगे
रविवार को प्रदेश चुनाव समिति कांग्रेस लोकसभा की रणनीति को आकार देने में बैठी थी। और यह चर्चा चल रही थी कि सभी लोकसभा से बड़े नेताओं को चुनाव में उतारा जाए लेकिन बड़े नेता खर्च को लेकर एक के बाद एक ठिठक रहे थे। अंदर चर्चा चल ही रही थी कि अचानक शंकर मेहतर लाल साहू पहुंचे। असल में साहू उत्सुकतावश बैठक का दरवाजा खोल के झांक रहे थे तभी अंदर बैठे वरिष्ठ कांग्रेस नेता सतनाम शर्मा की उन पर नजर पड़ी और उन्होंने शंकर मेहतर लाल साहू को अंदर खींचकर पूरी कमेटी के सामने प्रस्तुत किया। और कहा कि ऐसे लोगों को टिकट देने से जीत तय है। उनके बताने का मकसद यह था कि अनिच्छुक बड़े नेताओं को मान मनौव्वल कर जबरदस्ती चुनाव में लडऩे के बजाय यह चुनाव प्रथम श्रेणी के ऐसे कार्यकर्ताओं को आगे करने का है। ऐसे कार्यकर्ताओं के साथ पूरा कांग्रेस जोश खरोश से लोकसभा चुनाव में जुट जाएगी ।
बैठक में चुनाव समिति के सभी सदस्य सचिन पायलट, रजनी पाटिल मौजूद थी। बड़े नेताओं को सामने देख शंकर मेहतर लाल साहू ने सभी का अभिवादन किया।और उसके बाद से शंकर मेहतर लाल साहू हर नेता को अपना बायोडाटा दे रहे हैं। शंकर मेहतर लाल साहू बलौदा बाजार से आते हैं और मेहतर लाल साहू के पुत्र हैं जो स्व. विद्याचरण शुक्ल और कई प्रमुख नेताओं के खास सिपाही के रूप में पूरे कांग्रेस में विख्यात रहे । लोकसभा चुनाव की परिस्थितियों में ऐसे कर्मठ कार्यकर्ताओं को टिकट देने की मांग अब जोर पकडऩे लगी है।