राजपथ - जनपथ
राज्यसभा में कौन?
भाजपा के राष्ट्रीय सह महामंत्री (संगठन) शिव प्रकाश रायपुर आए, तो देर रात सीएम, और अन्य नेताओं के साथ बैठ कर राज्यसभा चुनाव पर भी चर्चा की। राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय का कार्यकाल खत्म हो रहा है, और इसके लिए 15 फरवरी से नामांकन दाखिले के प्रक्रिया शुरू हो रही है।
विधानसभा सदस्यों की संख्या बल को देखते हुए यह सीट भाजपा की झोली में जाना तय है। कांग्रेस, चुनाव लड़ेगी या नहीं, यह अभी तय नहीं है। इससे परे भाजपा में सरोज को फिर से प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा चल रही है। कहा जा रहा है कि पार्टी उन्हें राज्यसभा में नहीं भेजती है, तो लोकसभा चुनाव मैदान में उतार सकती है। ऐसे में राज्यसभा में सरोज की जगह किसी और महिला नेत्री को भेजा जा सकता है। एक चर्चा यह है कि ओबीसी या एससी वर्ग की महिला को राज्यसभा में भेजा जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
जेल के मुखिया
आईपीएस संजय पिल्ले की संविदा नियुक्ति खत्म कर डीजी (जेल) के प्रभार से मुक्त कर दिया गया है। आईपीएस के 88 बैच के अफसर संजय पिल्ले पहले डीजीपी बनने से वंचित रह गए थे। उनकी जगह एक साल जूनियर अशोक जुनेजा डीजीपी की कुर्सी पा गए। संजय पिल्ले रिटायर होने के बाद मात्र पांच महीने ही संविदा पर रहे हैं।
दरअसल, राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में यह चर्चा रही कि प्रभावशाली कैदियों को जेल के भीतर वीआईपी सुविधाएं मिल रही हैं। इस पर सोशल मीडिया में काफी कुछ लिखा जा रहा था। चर्चा है कि संजय पिल्ले की संविदा अवधि खत्म करने के पीछे यही एक वजह है, जबकि वे पुलिस महकमे में सबसे अच्छी साख वाले माने जाते हैं। पिल्ले की जगह संविदा पर नियुक्त ओएसडी राजेश मिश्रा को डीजी (जेल) का प्रभार दिया गया है। मिश्रा जेल में क्या कुछ सुधार करते हैं यह
देखना है।
पीआरओ का रुतबा
पत्रकारिता की पढ़ाई करने वालों के लिये करियर के दो विकल्प होते हैं। पहला वह पत्रकार बन जैसे और दूसरा जनसंपर्क अधिकारी का काम करे। पत्रकारों को रूतबे वाला माना जाता है। कुछ पत्रकार ऐसा आभा मण्डल भी खींचकर रहते हैं। टीवी पर दिखने वाले पत्रकारों की टसन को पूछो ही मत।
लेकिन जो लोग जनसंपर्क अधिकारी बनते हैं, उन्होंने अत्यंत विनम्रता पूर्ण व्यवहार रखना पड़ता है। रूतबा तो होता ही नहीं, उल्टे अधिकारियों के आगे पीछे घूमते रहो, पर अधिकारी पीआरओ को तवज्जो नहीं देते। ऐसे में यह सरकारी गाड़ी अपने आप में कुछ कहती है जिसमें सरकारी नौकरी की सुरक्षा और सुविधा मिल रही है इसके साथ ही लाल रंग की पट्टी में बड़ा-बड़ा पीआरओ लिखा हुआ है, यानी रूतबा पत्रकारों जैसा। इस बच्चे को भी भ्रम हो रहा होगा कि मेरे पापा बड़े अधिक हैं।
गृह मंत्री का एकाएक सिलगेर दौरा
बस्तर में बीजापुर-सुकमा की सीमा पर नए-नए खोले गए सीआरपीएफ कैंप पर नक्सल हमला हुआ, जिसमें तीन जवान शहीद हुए और 15 घायल हो गए। नई सरकार बनने के बाद यह पहली बड़ी नक्सल वारदात थी। हाल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ में एक बैठक लेकर बस्तर से नक्सलियों के सफाये के लिए 730 दिन का लक्ष्य दिया। ऑपरेशन हंटर चलाने का निर्णय लिया गया। इसी सिलसिले में सीआरपीएफ की 40 और कंपनियां यहां तैनात की जाएंगीं। इसके अलावा बीएसएफ और आईटीबीपी की बटालियन भी तैनात होंगीं। उन सभी क्षेत्रों को कव्हर किया जा रहा है, जिन्हें नक्सलियों का गढ़ समझा जाता है। सीआरपीएफ कैंप पर नक्सल हमला ऐसे वक्त में हुआ है, अब जब ऐसे अनेक नए कैंप खोलने की तैयारी हो रही है। अब जवानों को अधिक सावधान रहना तथा उनका मनोबल बढ़ाना होगा। ऐसी परिस्थिति में गृह मंत्री विजय शर्मा अचानक सिलगेर पहुंचे। उनका कार्यक्रम शायद सुरक्षा कारणों से पहले से घोषित नहीं किया गया था। फोर्स का हौसला तो उन्होंने बढ़ाया ही, बच्चों से भी बात की। ग्रामीणों के साथ मिट्टी के चबूतरे पर बैठकर स्टील के गिलास में दी गई चाय पी। यह आत्मीय तस्वीर इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके पहले के गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू शायद ही कभी किसी नक्सल हमले के बाद बस्तर में दिखे हों। हालांकि हमलों की भर्त्सना हर बार उन्होंने भी की है। इधर, शर्मा ने कहा है कि कैंप के जरिये बस्तर के विकास का रास्ता खुलेगा। इन कैंपों का ग्रामीण भी विरोध कर रहे हैं। कैंपों और सुरक्षा बलों के प्रति ग्रामीण जब तक भरोसा नहीं करेंगे, विकास कैसे होगा? मुमकिन है, इसका हल भी निकले।
डहरिया को हटाने की मांग
कांग्रेस कार्यकर्ता सरकार रहते तक खामोश थे लेकिन अब मौका मिल रहा है उनको अपनी भड़ास निकालने का। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के सिलसिले में रखी गई बैठक में कांग्रेस पदाधिकारियों ने अचानक नारा लगाना शुरू कर दिया- डहरिया हटाओ, कांग्रेस बचाओ। इस समय वहां प्रदेश कांग्रेस प्रभारी, महासचिव सचिन पायलट, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत सहित कई मौजूद थे।
डहरिया के खिलाफ नाराजगी और नारेबाजी का कारण यह बताया गया कि उन्होंने पांच साल तक नगर निगम को राशि देने में भेदभाव किया, जिससे शहर का विकास रुक गया। अंतत: इसका नुकसान कांग्रेस को हुआ और पराजय का सामना करना पड़ा।
सत्ता होती तो शायद पूर्व नगरीय प्रशासन मंत्री के खिलाफ कार्यकर्ता इस तरह विरोध नहीं कर पाते और करते भी तो उनके खिलाफ अनुशासनहीनता की कार्रवाई हो जाती। मगर, आगे राहुल की यात्रा अच्छे से निपटाना है, फिर लोकसभा चुनाव की तैयारी भी चल रही है। कार्यकर्ताओं को समझा-बुझाकर जैसे-तैसे शांत किया गया।
गोबर खाद की पूछ ही घट गई..
समर्थन मूल्य पर सोसाइटियों में धान बेचने की मियाद आज पूरी हो रही है। किसानों को इस बार एक राहत रही। उन पर वर्मी कम्पोस्ट खरीदने का दबाव नहीं था। यह तत्कालीन कांग्रेस सरकार की महत्वाकांक्षा योजना का उत्पाद है। गौठानों में खरीदे जाने वाले गोबर से खाद बनाया जाता था और उसे किसानों में बेचा जाता था। ज्यादातर किसानों को इसकी गुणवत्ता को लेकर शिकायत रहती थी। मगर, धान बेचने और रासायनिक खाद खरीदने के दौरान उन्हें गौठानों में बना खाद थमा दिया जाता था। ऐसा करके प्रशासन कम्पोस्ट की बिक्री का आंकड़ा बढ़ा लेता था और योजना सफल दिखाई देती थी। पर सरकार बदलने के बाद यह मजबूरी नहीं रही।
शासन की ओर से अधिकारिक रूप से कोई आदेश जारी हुआ हो या नहीं, पर अधिकांश जगहों पर कम्पोस्ट खाद किसानों को जबरन थमाना बंद कर दिया गया है। पर, इस स्थिति का नुकसान भी हुआ है। ये खाद गौठानों में कार्यरत महिला स्व-सहायता समूहों ने बनाए हैं। खाद की बिक्री बंद होने के बाद उनकी आमदनी भी रुक गई है। भाजपा सरकार ने कहा कि कांग्रेस की प्रत्येक योजना बंद नहीं की जाएगी, बल्कि उसकी खामियों को दूर कर सही तरीके से लागू किया जाएगा। गौठानों को आत्मनिर्भर बनाने की बात भी कही जा चुकी है। अब यह देखना है कि गोबर खाद निर्माण से जुड़ी महिला समूहों को मेहनत का भुगतान और आगे काम मिलेगा या नहीं?