राजपथ - जनपथ
इनकी कोई थाह नहीं!
भाजपा ने जिस तरह छत्तीसगढ़ से राज्यसभा के लिए अकेले उम्मीदवार का नाम तय करते हुए ऐसा तकरीबन अनजाना सा नाम छांटा है जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। नतीजा यह है कि लोकसभा के लिए भाजपा उम्मीदवारों के नामों पर जो अटकलें लग रही थीं, वे अब थम गई हैं, लोगों का अब यह मानना है कि दिल्ली के दिमाग की थाह लगा पाना मुश्किल है, और समंदर में सीप ढूंढने की जहमत क्यों उठाई जाए? लोगों को याद है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सारे 11 उम्मीदवार ऐसे नए छांटे थे जो न कि पहले किसी भी चुनाव से परे के थे, बल्कि बड़े नेताओं की रिश्तेदारी के भी बाहर के थे। भाजपा ने राजस्थान में पहली बार के एमएलए को मुख्यमंत्री बनाकर एक अलग किस्म की साख बनाई है कि लोगों की वरिष्ठता, उनकी जात, उनकी उम्र, उनका दबदबा कुछ भी मायने नहीं रखते, और पार्टी ही सबसे ऊपर होती है। हमेशा ही हाईकमान संस्कृति के लिए बदनाम रहती आई कांग्रेस आज की भाजपा को देखकर हीनभावना में खुदकुशी कर सकती है।
स्कूल, अस्पताल, ट्रैफिक और मेला
महानदी, पैरी और सोंढूर नदी के संगम पर लगने वाला राजिम मेला इस बार फिर कल्प कुंभ के नाम से आयोजित होगा, जैसा सन् 2005 से 2018 तक होता रहा। वैसे तो कई दशकों से यह माघी पुन्नी मेले के रूप में विख्यात रहा पर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद सन् 2001 में यहां मेले के अवसर पर राजीव लोचन महोत्सव होता था। कल्प कुंभ के साथ इस मेले की लोकप्रियता बढ़ती गई है। देशभर से साधु संत आने लगे हैं और भीड़ पहले के मुकाबले बहुत हो जाती है। इसके चलते नाच-गाने, झूले, खान-पान और दूसरे व्यापार के स्टॉल भी बढ़ते जा रहे हैं। मगर, इसी के चलते कुछ समस्याएं भी सामने आने लगी हैं।
इस बार मेले की तैयारी शुरू होने के बाद पास के हाईस्कूल के प्राचार्य ने एसडीएम को लिखा कि एक मार्च से 10वीं-12वीं की बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो रही है। मेले में बहुत तेज लाउडस्पीकर बजते हैं। मौत का कुएं में चलने वाली कार, बाइक की कर्कश आवाज आती है, भीड़ का शोरगुल अलग। राजिम के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सक ने लिखा कि मेला जहां लगता है, उसके पास अस्पताल है। अस्पताल के 100 मीटर की दूरी को साइलेंस जोन घोषित किया गया है, पर यहां भारी शोरगुल होता है। मरीज परेशान होते हैं। थानेदार ने भी लिखा मेले तक पहुंचने का रास्ता चौड़ा नहीं है। मेले में लगने वाले स्टाल के सामान ट्रकों में आते हैं। पार्किंग की जगह नहीं मिलती। कई बार घंटों जाम लग जाता है। वीआईपी आते हैं, तब तो स्थिति संभालने में भारी दिक्कत होती है।
कोलाहल और यातायात की यह चिंता एक साथ अलग-अलग पत्रों में की गई। महत्वपूर्ण यह है कि पत्र लिखने वाले सभी सरकार के किसी न किसी विभाग के लोग थे। ऐसे में मेले की तैयारी कर रहे स्थानीय प्रशासन को बात गंभीरता से सुननी पड़ी। मगर, नई जगह तय करने की कई दिक्कतें थीं। मेले की नई जगह पर जमीन को समतल करना, बिजली लाइन खींचना, पेयजल की व्यवस्था करना आदि। पर सब किया जा रहा है। मगर, आखिरकार नई जगह तलाश कर ली गई है, तैयारी वहीं चल रही है।
स्टेशन में जवान का दम तोडऩा..
भारतीय रेल देशभर के 508 स्टेशनों को अमृत भारत योजना में शामिल कर उनके पुनर्विकास पर अरबों रुपये खर्च कर रही है। एसईसीआर के रायपुर सहित 9 स्टेशन भी इनमें शामिल हैं। पिछले साल अगस्त महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी आधारशिला रखी थी। कुछ स्टेशनों की ड्राइंग डिजाइन और मास्टर प्लान का काम शुरू हो चुका है।
शनिवार को रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स का एक जवान अपनी ही सर्विस गन से गोली चल जाने के कारण घायल हो गया। उसकी मौत हो गई। एक दूसरे यात्री को भी गोली लगी, जिसकी हालत गंभीर है। इन्हें जब घटना के बाद तत्काल अस्पताल ले जाने की जरूरत थी तो स्टेशन में एंबुलेंस ही उपलब्ध नहीं थी। जैसे-तैसे ऑटो रिक्शा में उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया। रायपुर, बिलासपुर जैसे बड़े स्टेशनों से रोजाना 50 से 60 हजार यात्री गुजरते हैं। मगर, इन्हें इमरजेंसी स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिलती है। दिसंबर महीने में ग्वालियर स्टेशन पर एक घटना हुई थी, जिसकी देशभर में चर्चा हुई। दिल्ली से आ रहे एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर को हार्ट अटैक के कारण रास्ते में उपचार नहीं मिला। ग्वालियर स्टेशन पर उनके गंभीर हालत में पहुंचने की पहले से सूचना रेलवे को दे दी गई थी, इसके बावजूद स्टेशन पर एंबुलेंस नहीं पहुंचा। उसे तत्काल हॉस्पिटल ले जाने के लिए एक हाईकोर्ट जज की कार को युवाओं ने बलपूर्वक अपने कब्जे में लिया और उन्हें अस्पताल पहुंचाया। हालांकि उस प्रोफेसर की जान नहीं बचाई जा सकी पर आरपीएफ ने इन युवाओं के खिलाफ डकैती का जुर्म दर्ज कर लिया। इस बार हादसे का शिकार उसी आरपीएफ का एक जवान हुआ है। केवल आम यात्री नहीं, रेलवे के सैकड़ों की संख्या में तैनात स्टाफ को भी इमरजेंसी सेवाओं की जरूरत कभी भी पड़ सकती है। स्टेशनों में वर्ल्ड क्लास सुविधाएं जब मिलेगी, तब मिले, पर आज तो आवश्यक सेवा भी रेलवे मुहैया नहीं करा पाती है।
जाति जनगणना पर शंकराचार्य
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के बयानों को लेकर बड़ा विवाद छिड़ा था। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और टीवी चैनलों पर लगातार बयान दिए। वे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा निर्माण पूरा हुए बिना किये जाने को गलत मान रहे थे। वे यह भी ठीक नहीं समझते थे कि धर्माचार्यों की जगह राजनेता से मुख्य पूजा कराई जाए। अन्य शंकराचार्यों की तरह प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में वे भी शामिल नहीं हुए। भाजपा और उसके सहयोगी संगठन शंकराचार्य के बयानों से असहज थे, लेकिन धर्मगुरू के खिलाफ सीधे बयान देने से बच रहे थे। अब ऐसे समय में जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी छत्तीसगढ़ की यात्रा पर हैं और वे जातिगत जनगणना की मांग को खास तौर से उठा रहे हैं, रायपुर में शंकराचार्य ने इस मांग को औचित्यहीन बताया है। शंकराचार्य के मुताबिक जो जिस जाति को मानता है मानने दिया जाए। भाजपा ने इस पर प्रतिक्रिया तुरंत दी है। उसने कहा कि कांग्रेस अपने अस्तित्व को बचाने के लिए यह मांग उठा रही है, जबकि 2011 में उसने जनगणना कराने के बावजूद जाति के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए।
वैसे शंकराचार्य के बयान में सिर्फ जाति जनगणना का विरोध नहीं था, उन्होंने यह भी कहा था कि किसी को धर्म की राजनीति भी नहीं करनी चाहिए। मतलब, कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए वे कुछ-कुछ कह रहे हैं।
राज्यसभा का नाम, लोकसभा की झलक?
राज्यसभा की एक सीट पर ऐसे प्रत्याशी का चुनाव कर, जिनका नाम चर्चा में नहीं था, भाजपा ने चौंकाने का सिलसिला जारी रखा। यह पिछली लोकसभा चुनाव के टिकट वितरण में देखा गया, काफी कुछ इस विधानसभा चुनाव के टिकट बांटने में और मंत्रिमंडल के गठन में भी। विधानसभा में मिली शानदार सफलता के बाद लोकसभा टिकट के लिए दावेदारी बढ़ गई है। एक-एक सीट से दर्जनभर या उससे अधिक गंभीर दावेदार हैं, नाम तो 50 पार चल रहे हैं। नए दावे इसी उम्मीद से आ रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि हाल के चुनावों में किए जा रहे प्रयोग का सिलसिला लोकसभा टिकट के वितरण में जारी रहेगा, जीती हुई सीटों पर भी। इससे फर्क नहीं पड़ता कि जीत का अंतर कितना था। चिंता उन 9 सांसदों की है, जिन्हें यह पता नहीं है कि उनको रिपीट किया जाएगा या 2019 का दोहराव किया जाएगा।
रिश्वतखोरों को श्राप
वैसे तो करंसी पर लिखा जाना अपराध है, पर लोग यह जुर्म करते ही रहते हैं। वाट्सअप ग्रुप के उकसाने वाले मेसैजेस की तरह इसका भी मूल स्रोत कहां है, यह पता नहीं चलता। बाजार में एक बंदे को यह 200 रुपये का नोट मिला, जिसमें लिखा है- रिश्वत के नोटों से महल तो बना सकते हो, मगर अपने बच्चों का भविष्य नहीं- दोगला बाबा।