राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : अमित अग्रवाल, और बाकी अफसर
23-Feb-2024 4:00 PM
राजपथ-जनपथ : अमित अग्रवाल, और बाकी अफसर

अमित अग्रवाल, और बाकी अफसर 

छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस अफसर अमित अग्रवाल केन्द्र सरकार में सचिव पद के लिए सूचीबद्ध हो गए हैं। अमित वर्तमान में यूआईएडीआई के सीईओ हैं। प्रशासनिक हल्कों में यह चर्चा रही कि अमित, सीएस अमिताभ जैन के रिटायर होने के बाद उत्तराधिकारी हो सकते हैं। जैन अगले साल रिटायर होंगे। 

अमित अग्रवाल की वापसी के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन अब कहा जा रहा है कि सचिव बनने के बाद शायद ही वो यहां आएँ । बताते हैं कि केन्द्र सरकार में अमित के विभागीय मंत्री अश्वनी वैष्णव भी उन्हें छोडऩे के लिए तैयार नहीं हैं। अश्वनी खुद 94 बैच के आईएएस अफसर रहे हैं। आईएएस में अमित, अश्वनी से एक साल सीनियर हैं। सचिव पद पर सूचीबद्ध होने के बाद अमित को केन्द्र में कोई और अहम जिम्मेदारी मिल सकती है। 

दूसरी तरफ, केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटे एसीएस रिचा शर्मा, प्रमुख सचिव सोनमणि वोरा, और सचिव मुकेश बंसल की भी जल्द पोस्टिंग हो सकती है। इन अफसरों की पोस्टिंग से प्रशासन में सुधार की गुंजाइश दिख रही है। देखना है आगे क्या होता है।

राजधानी की टिकट का पेंच 

प्रदेश की लोकसभा सीटों के लिए भाजपा प्रत्याशियों की एक सूची हफ्तेभर में आ सकती है। चर्चा है कि मौजूदा सांसदों में विजय बघेल, और सुनील सोनी को फिर टिकट मिल सकती है। हालांकि कई नेता सुनील की जगह लेने के लिए प्रयासरत हैं। 

पार्टी टिकट को लेकर कई प्रयोग कर चुकी है। ऐसे में सुनील सोनी के विरोधी नेता उम्मीद से हैं। कुछ लोगों का अंदाजा है कि रायपुर में महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस की पसंद को भी ध्यान में रखा जा सकता है। खुद बैस के भतीजे ओंकार बैस, और नाती अनिमेश कश्यप (बॉबी) भी टिकट के दौड़़ में हैं। वरिष्ठ नेता अशोक बजाज भी रायपुर से टिकट चाहते हैं, लेकिन उन्हें रायपुर लोकसभा का संयोजक बनाकर पार्टी ने एक तरह से उनकी दावेदारी खत्म कर दी है। बाकी दावेदारों  का क्या होता है, यह तो सूची जारी होने के बाद ही साफ होगा। 

कौन निकालेगा अब रेत से तेल?

विधानसभा में कई सदस्यों ने प्रदेशभर में रेत के धंधे में ताकतवर लोगों का कब्जा होने और इन्हें खनिज विभाग का संरक्षण होने का आरोप लगाया। रेत से जुड़े कारोबार को सत्ता से जुड़े लोगों का संरक्षण कोई नई बात नहीं है। दूसरे राज्यों में भी। अपने यहां भी पिछली कांग्रेस सरकार में भी और उसके पहले की सरकारों में भी। पिछली सरकार में कम से कम दो विधायकों शकुंतला साहू और छन्नी साहू का अपने समर्थकों के लिए अधिकारियों से भिड़ जाने का मामला तो चर्चा में आया ही था। मगर, अब जब सत्ता बदल गई है तो फिर कांग्रेस से जुड़े लोग कारोबार में क्यों हावी रहें? वैसे पक्ष-विपक्ष दोनों ने ही रेत को लेकर सरकार पर सवाल किए थे। वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने सदन में घोषणा की कि 15-20 दिन अवैध परिवहन के खिलाफ ताबड़तोड़ अभियान चलाया जाएगा। अलग से आदेश की जरूरत नहीं थी। सदन में घोषणा होते ही खनिज विभाग सक्रिय हो गया। कई जिलों से खबरें हैं कि अवैध रेत खनन पर कार्रवाईयां शुरू हो गई हैं। इसकी वजह से रेत के दाम आसमान पहुंच गए हैं। परिवहन करने वाले छापेमारी और चेकिंग का हवाला दे रहे हैं। लगे हाथ मुरुम और गिट्टी के सप्लायरों ने भी कीमत बढ़ा दी है। ग्राहकों को सप्लायर भरोसा दिलासा दे रहे हैं कि दो चार हफ्ते में सब ठीक हो जाएगा। अब देखना है कि अवैध खनन पर रोक लगेगी या फिर ऐसा करने की ताकत एक हाथ से दूसरे हाथ में शिफ्ट हो जाएगी।

सीमेंट सरिया ने सुकून दिया

मकान दुकान बनाने वालों का बजट रेत पर छापामारी ने जरूर बिगाड़ दिया है लेकिन सीमेंट और सरिया के दाम गिरने से थोड़ी राहत मिली है। सीमेंट सिंडिकेट ने सीजन देखकर बैग के दाम बढ़ाने की कोशिश की लेकिन उठाव के संकेत नहीं मिले। इसलिए दाम गिरते गए, गिरते गए। अभी ठीक-ठाक कंपनी की सीमेंट 270-275 रुपये तक आ गई है। यही दाम लगभग लगभग दो साल पहले था। सरिया भी 50 से 55 हजार रुपये टन तक उतर आया है। बीच में इसके दाम 80 हजार रुपये तक चले गए थे। सीमेंट और सरिया उत्पादकों को हो सकता है इस समय कम मार्जिन मिल रहा हो, पर अभी पूरा सीजन बाकी है। आगे भरपाई का रास्ता निकल सकता है।  

सुंदर लिखावट, समस्या गंभीर

छत्तीसगढ़ के स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं। ऐसे में यह पत्र नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर के एक छात्र की अर्जी है। आकर्षक लिखावट और व्याकरण की त्रुटियां भी नहीं के बराबर। मगर, इसमें इस छात्र ने जो समस्या बताई है वह बेहद गंभीर है। छात्र ने कलेक्टर को लिखा है कि छिन्दावाड़ा के आदर्श आवासीय विद्यालय में बच्चों को खान-पान की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा कई महीनों से चल रहा है।

नक्सल इलाकों में करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं। पर, क्या वहां पढऩे वाले बच्चों को ठीक खाना मिल जाए, इसकी तरफ अफसरों और जनप्रतिनिधियों का ध्यान नहीं है? 

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