राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : राहुल और प्रदीप चौबे
24-Feb-2024 3:56 PM
राजपथ-जनपथ : राहुल और प्रदीप चौबे

राहुल और प्रदीप चौबे

राहुल गांधी अपने बयानों को लेकर कई तरह के विवादों में पड़ रहे हैं। अभी उन्होंने ऐश्वर्या राय का जिक्र करते हुए कई ऐसे बयान दिए हैं जिन पर उनके खिलाफ जुर्म दर्ज हो सकता है। किसी महिला का अपमानजनक तरीके से जिक्र करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने कई बार लिखा है।

अभी कुछ समय पहले राहुल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जन्म की जाति को लेकर तथ्यों के खिलाफ एक बयान दिया था, जिसका खंडन तो हुआ है लेकिन अभी तक कोई मामला-मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है। उस बयान के समय छत्तीसगढ़ के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रदीप चौबे ने फेसबुक पर लिखा था- राहुलजी के छत्तीसगढ़ दौरे का भाषण कौन तैयार करता है? छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री की जाति का जिक्र करते हुए उन्हें मालूम होना चाहिए कि धर्म और जाति के मामले बड़े नाजुक होते हैं, सार्वजनिक भाषण में ऊंचे पद पर बैठे किसी व्यक्ति की जाति पर की गई टिप्पणी का बड़ा व्यापक असर होता है।

प्रदीप चौबेजी ने आगे लिखा था- कि देश की राजनीति में महंगाई, बेरोजगारी, देश की सुरक्षा, आर्थिक स्थिति, गरीबी, शिक्षा, चिकित्सा जैसी मूलभूत समस्याओं को छोड़ प्रधानमंत्री की जाति पर टिप्पणी करना बिल्कुल भी सही नहीं है। इसका राजनीतिक रूप से छत्तीसगढ़ में कितना नफा-नुकसान होगा इसका अंदाज लगाना भी समझ से परे है।

प्रदीप चौबे प्रदेश के एक वरिष्ठ मंत्री रहे रविन्द्र चौबे के बड़े भाई भी हैं, और अपनी समाजवादी पृष्ठभूमि की वजह से वे वैचारिक रूप से परिपक्व नेता हैं। लेकिन आज कांग्रेस में चापलूसों की भीड़ में समझदारी की बात कौन आगे बढ़ाए?

साहेब ऐसा कह गए !!

भाजपा के छोटे-बड़े नेता, नवप्रवेशी नेताओं को लेकर सशंकित हैं। न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश में दूसरे दलों से नेताओं की भाजपा में शामिल होने की होड़ मची है। भाजपा के पुराने नेताओं को लगता है कि दूसरे दलों से आए नेताओं की वजह से उनका महत्व कम हो जाएगा। मगर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बातों ही बातों में उनकी चिंता का निवारण कर दिया।

शाह कोंडागांव में बस्तर क्लस्टर की बैठक में आए तो काफी खुश थे। इसकी वजह भी थी कि  विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन राज्य बनने के बाद से अब तक सबसे बेहतर रहा है। बैठक में शाह ने नवप्रवेशी नेताओं का जिक्र किए बिना हास-परिहास में कह गए कि आप लोगों को 30-35 साल में क्या मिल गया, जो नए आए लोगों को मिल जाएगा। शाह की इस टिप्पणी की पार्टी के भीतर काफी चर्चा रही।

 वक्त अच्छा-बुरा हर कि़स्म का

साहब की विदाई क्या हुई मातहत उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का बखान करने लग जाते हैं। कहा भी गया है न कि उगते सूर्य की ही पूजा होती है। सो नए साहब का चालीसा पढऩे में ही भव सागर पार लगेगा। ऐसे ही मातहत, साहब के बारे में कहने लगे हैं कि कितने अच्छे थे साहब रम-व्हिस्की में काम कर देते थे। और डिमांड पूरी करने पर साहब कह देते थे कि मैं तो मजाक कर रहा था। ये तो हुई बात व्यक्तित्व की। कृतित्व की करें तो मातहतों के लिए कर्टसी चाय कॉफी बंद करा दिया था। भवन के वाउचर पर बंगले में आधा दर्जन चपरासी नौकर में तैनात थे। पोर्च में तीन से चार सरकारी गाडिय़ाँ थी। अब भविष्य ईओडब्लू और सीबीआई के हाथों में हैं।

अंडा चिकन का शाकाहारी ठेला

इस बुद्धिमान ठेले वाले को पता है कि शुद्ध शाकाहारी नाम जोड़ देने से दुकान चल निकलती है, फिर वह अंडा, चिकन, मटन भी बेच सकता है। वैसे ही जैसे हाइवे में कई फैमिली ढाबे दिखते हैं, पर फैमिलियर नहीं होते। तस्वीर पटना की है।

पीएससी के गलत जवाब

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने सरकार बदलने के बाद पहली प्रारंभिक परीक्षा ली। उसके मॉडल आंसर जारी करने के बाद यह साफ हो गया कि अभी गड़बड़झाला खत्म नहीं हुआ है। इसके कम से कम तीन सवालों के जवाब पीएससी ने गलत बता दिए। जैसे छत्तीसगढ़ से कितने राज्यों की सीमा जुड़ती है। सही उत्तर 7 है, पर जवाब तय किया गया छह। लिंगानुपात में कोंडागांव सबसे बेहतर स्थिति में है, जबकि जवाब दिया गया कांकेर जिला। सर्वोच्च न्यायालय में सरकार का मुख्य विधिक सलाहकार कौन होता है, यह बताया गया सॉलिसिटर जनरल को, लेकिन सही जवाब है अटॉर्नी जनरल।

इसके अलावा कुछ सवालों का एक जवाब नहीं हो सकता। जैसे लोक-संस्कृति में विवाह के मंडप के लिए कौन सी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। जवाब में महुआ को सही बताया गया है लेकिन इसका जवाब सरई भी हो सकता है। यह जरूर है कि मॉडल आंसर पर आपत्ति दर्ज कराने के लिए 27 फरवरी तक का समय दिया गया है लेकिन यह प्रश्न खड़ा होता है कि प्रश्न पत्र तैयार करने वाले विशेषज्ञों की वह कौन सी टीम है जो इन साधारण से सवालों का गलत जवाब बता रही है।

धर्मांतरण के खिलाफ कानून

छत्तीसगढ़ विधानसभा में एक महत्वपूर्ण विधेयक धर्मांतरण को लेकर आ सकता है। जैसी चर्चा है इसमें प्रावधान किया गया है कि कोई व्यक्ति धर्म बदलना चाहता है तो उसे कम से कम 60 दिन पहले कलेक्ट्रेट में खुद हाजिर होकर आवेदन देना होगा। नाबालिग, महिला, अनुसूचित जाति,जनजाति के सदस्यों का अवैध रूप से धर्म परिवर्तित कराने पर 10 साल तक की जेल हो सकती है। केस गैर जमानती चलेगा और सेशन कोर्ट में सुना जाएगा। जबरन धर्म परिवर्तन से पीडि़त को 5 लाख रुपये तक मुआवजा मिल सकता है। जबरन धर्मांतरण की शिकायत व्यक्ति खुद या उसका रक्त संबंधी या गोद लिया हुआ व्यक्ति भी कर सकता है।

धर्मांतरण पर कानून

बनाने का अधिकार राज्य का है। सबसे पहले ओडिशा में सन् 1967 में बना। उसके बाद 2017 में झारखंड में। अभी अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, मध्यप्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और उत्तराखंड में ये कानून लगा है। प्रावधान लगभग छत्तीसगढ़ के मसौदे की तरह हैं।

छत्तीसगढ़ में यह मामला हिंदू-मुस्लिम से अलग है। हिंदू धर्म से ईसाई धर्म में शामिल हो जाने का है। जनगणना के आंकड़ों से भी ईसाई धर्म मानने वालों की संख्या बढऩे की पुष्टि हो चुकी है। उत्तर छत्तीसगढ़ और बस्तर के कई इलाकों में दशकों से धर्मांतरण हो रहा है। मैदानी छत्तीसगढ़ में भी अनुसूचित जाति-जनजाति और अति पिछड़ा वर्ग के लोग इससे प्रभावित हैं। कानून बन जाने से संभव है कि प्रलोभन या दबाव की वजह से धर्म परिवर्तन की घटनाएं कम हो जाएं मगर असल समस्या इन तबकों में स्वास्थ्य और शिक्षा का नहीं पहुंच पाना है। धर्मांतरण विरोधी कानून में इसका कोई समाधान है या नहीं, यह विधेयक आने पर ही मालूम होगा।   ([email protected])

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