राजपथ - जनपथ
कलेक्टरी के रिकॉर्ड
विधानसभा सत्र के बीच सरकार ने एक छोटा सा फेरबदल किया है। इसमें बिलाईगढ़-सारंगढ़, बलौदाबाजार-भाटापारा, और गौरेला-पेंड्रा-मरवाही के कलेक्टर बदले गए। चर्चा है कि बलौदाबाजार-भाटापारा कलेक्टर चंदन कुमार को स्थानीय विधायक, और सरकार के मंत्री टंकराम वर्मा की सिफारिश पर बदला गया है।
विधानसभा चुनाव के वक्त ही चंदन कुमार और स्थानीय भाजपा नेताओं के बीच विवाद चल रहा था। इसको लेकर शिकवा शिकायतें भी हुई थी। चंदन कुमार को स्वास्थ्य विभाग का विशेष सचिव बनाया गया है। उनकी जगह बिलाईगढ़-सारंगढ़ कलेक्टर कुमार लाल चौहान की पदस्थापना की गई है। चौहान करीब डेढ़ महीने पहले ही बिलाईगढ़-सारंगढ़ कलेक्टर बने थे।
बिलाईगढ़-सारंगढ़ में सबसे कम समय कलेक्टरी का रिकॉर्ड राहुल वेंकट के नाम पर दर्ज है। वो एक महीना ही कलेक्टर रहे थे। मगर तत्कालीन कांग्रेस विधायक से अनबन के बाद उन्हें हटा दिया गया। इससे परे आदिवासी बाहुल्य जिला गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में लीना कमलेश मंडावी को कलेक्टर बनाया गया है।
ओम माथुर के जिम्मे बहुत कुछ
प्रदेश भाजपा के प्रभारी ओम माथुर लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में शायद ही समय दे पाएंगे। उनकी जगह सह प्रभारी नितिन नबीन ही सारा काम देखेंगे, और संगठन से जुड़े फैसले लेंगे। चर्चा है कि माथुर अपने गृह राज्य राजस्थान के अलावा अन्य राज्य भी देख रहे हैं। ऐसी चर्चा है कि माथुर को उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। इस पर जल्द फैसला हो सकता है।
कहा जा रहा है कि चुनाव की वजह से पार्टी के शीर्ष स्तर पर होने वाले संभावित फेरबदल के चलते माथुर बस्तर में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में हुई क्लस्टर की बैठक में शामिल नहीं हुए। हालांकि छत्तीसगढ़ की लोकसभा प्रत्याशी चयन में ओम माथुर की दखल रह सकती है। उन्होंने अपने सुझाव हाईकमान को दे भी दिए हैं। हाईकमान संभवत: 29 तारीख को टिकटों पर फैसला ले सकती है।
मगर दाखिला क्यों घट रहा?
बोर्ड एग्जाम में विद्यार्थियों का मानसिक दबाव कम करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया। अब 10वीं, 12वीं बोर्ड परीक्षा साल में दो बार होगी। फेल विषयों पर दोबारा बैठने का मौका तो मिलेगा ही, छात्र श्रेणी सुधार भी कर सकेंगे। अच्छी बात यह भी है कि दोनों बार की परीक्षाओं में जो रिजल्ट सबसे अच्छा होगा, उसे ही सर्टिफिकेट के रूप में मान्यता भी दे दी जाएगी।
मगर, इस बीच एक दिलचस्प आंकड़ा भी सामने आता है, जो यह बताता है कि सीजी बोर्ड की ओर विद्यार्थियों का आकर्षण घटा है। कोविड महामारी के चलते साल 2022 में जब किसी भी विद्यार्थी को फेल नहीं किया गया था, तब रिकॉर्ड 4 लाख 61 हजार छात्र-छात्रा सीजी बोर्ड एग्जाम में शामिल हुए थे। मगर अगले साल सिर्फ 3 लाख 30 हजार सम्मिलित हुए। यह संख्या 5 साल पहले लिए गए इम्तिहान में शामिल विद्यार्थियों से भी कम है, क्योंकि तब 3 लाख 86 हजार लोगों ने परीक्षा दी थी। साल 2016 के 4 लाख 21 हजार शामिल विद्यार्थियों से तुलना करें तो यह और भी कम है। प्रदेश के कुछ प्राइवेट, पब्लिक स्कूल सीजी पैटर्न से पढ़ाई कराते हैं, मगर आम तौर पर इनमें सीबीएसई लागू है। सीजी बोर्ड सरकारी स्कूलों में ही चलता है। यह आंकड़ा भी आया है कि इस साल 2024 की परीक्षा में 10वीं और 12वीं बोर्ड मिलाकर परीक्षा में 50 हजार विद्यार्थी पिछले साल के मुकाबले कम बैठेंगे।
इन आंकड़ों से दो बातों का अनुमान लगाया जा सकता है। या तो बोर्ड तक पहुंचने वाले बच्चों की संख्या ही घट रही है, या फिर वे केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।
परीक्षा पर चर्चा जैसी कोई सभा छत्तीसगढ़ में भी हो तो वजह साफ हो।
कोयला खदान में हुई मौतें
बीते दिनों जब झारखंड में न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी की चोरी से कोयला निकालने वालों के साथ तस्वीर आई थी। तब देश में चर्चा हुई कोयला खदानों के आसपास के गांवों में व्याप्त गरीबी और मजबूरी की। अनेक लोगों ने आलोचना भी की कि कांग्रेस सरकार के दौरान ही तो सबसे बड़ा कोयला घोटाला हुआ, अब राहुल सहानुभूति प्रकट कर रहे हैं। मगर, कोयला चोरी एक स्याह सच है। प्रदेश में कांग्रेस सरकार के दौरान एक वीडियो क्लिप वायरल हुआ था, जो कुसमुंडा का बताया जा रहा था, पर बाद में जांच के बाद दावा किया गया कि वह यहां का नहीं है, झारखंड का ही है। मगर छत्तीसगढ़ की खदानों में चोरी और मौतों पर प्राय: अफसोस नहीं जताया जाता। पिछले दिनों दीपका में कोयला निकालते पांच मजदूर मिट्टी धंसने से दब गए। उनमें से तीन की मृत्यु हो गई। उन पर चोरी का दाग था, शायद इसलिए किसी ने सहानुभूति नहीं दिखाई। इसी तरह जयनगर कॉलरी में एक युवक दब गया, जिसके शव का अब तक पता नहीं चला है। ये खदान मजदूर होते तो मुआवजा मिलता। जो लोग कोयला अपनी जान जोखिम में डालकर निकाल रहे हैं, उनके हिस्से में थोड़ी सी मजदूरी ही आती है, असली कमाई अवैध कारोबारियों के हाथ में होती है। कोयला कंपनी करोड़ों रुपए खदानों की सुरक्षा पर खर्च कर रही है। केंद्रीय सुरक्षा बल भी लगे हैं, पर न तो चोरियां रुकी, और न ही दुर्घटनाएं। यह घटनाएं यह भी बताती है कि जिन कोयला खदानों से रिकॉर्ड कमाई कंपनियों की हो रही है, उसके आसपास के गांव में रहने वालों की माली हालत कैसी है।
पुरुष को भी चाहिए मदद
पूरे छत्तीसगढ़ में इन दिनों महतारी वंदन योजना की चर्चा है। यह योजना सिर्फ निर्धारित कैटेगरी की महिलाओं के लिए है लेकिन गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में एक अजीब मामला आया। एक पुरुष कमल सिंह ने इस योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन लगाया। कर्मचारियों ने उसका आवेदन स्वीकार भी कर लिया। वह तो कंप्यूटर था, जिसने पकड़ लिया। डाटा फीड होते ही फॉर्म रिजेक्ट हो गया। अब इस पुरुष की दलील है कि उसके घर में तो कोई महिला ही नहीं है। इसलिए उसने खुद आवेदन कर दिया।
फिलहाल तो लगता नहीं कि सरकार उसकी दलील पर कुछ करने जा रही है। पुरुषों के लिए कोई योजना शुरू होगी, तब उसे मौका जरूर मिल पाएगा।