राजपथ - जनपथ
बस्तर सीट का गणित
कांग्रेस के दिग्गज नेता लोकसभा चुनाव लडऩे से मना कर रहे हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि भाजपा प्रत्याशियों की सूची देखकर एक-दो बड़े नेता चुनाव मैदान में उतर भी सकते हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने भी अभी पत्ते नहीं खोले हैं। वो बस्तर के सांसद भी हैं ऐसे में उन पर चुनाव मैदान में उतरने के लिए दबाव भी है। चर्चा है कि यदि बस्तर से भाजपा पूर्व सांसद दिनेश कश्यप को टिकट देती है, तो संभव है कि दीपक बैज चुनाव न लड़े। ऐसे में वो पूर्व मंत्री कवासी लखमा के बेटे हरीश को प्रत्याशी बनाने का समर्थन कर सकते हैं। लेकिन दिनेश की जगह भाजपा कोई नया चेहरा आगे लाती है, तो दीपक पूरे दमखम के साथ चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।
कुछ इसी तरह की स्थिति पूर्व सीएम भूपेश बघेल की भी है। उनके करीबियों ने राजनांदगांव, और महासमुंद से बूथ वार आंकड़े निकलवा लिए हैं। चर्चा है कि हाईकमान से दबाव पड़ा, तो दोनों में से किसी एक सीट से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।
सरोज के विरोध का वजन नहीं
कोरबा से सरोज पांडेय की टिकट पक्की होने की खबर से भाजपा में हलचल है। मगर कई स्थानीय नेता सरोज की खिलाफत भी कर रहे हैं।
बताते हैं कि कोरबा के एक पूर्व मेयर, और पूर्व विधानसभा प्रत्याशी एक राय होकर कुशाभाऊ ठाकरे परिसर पहुंचे, और सरोज पांडेय की दावेदारी का विरोध किया।
दोनों नेता किसी स्थानीय को ही टिकट देने पर जोर देते रहे। मगर संगठन नेताओं ने उनकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। सरोज की धमक ऐसी है कि पार्टी संगठन उनकी बातों को नजरअंदाज नहीं करता है।
दोनों पार्टी टेंशन में
अंबिकापुर में ईडी ने बड़े ठेकेदार अशोक अग्रवाल के यहां दबिश दी, तो राजनीतिक हलकों में खलबली मच गई। अशोक अग्रवाल पूर्व मंत्री अमरजीत भगत के करीबी माने जाते हैं, और भगत से जुड़े लिंक की वजह से ही ईडी उनके ठिकानों पर पहुंची है।
अशोक ने कांग्रेस सरकार के बदलते ही भाजपा नेताओं के करीबी बन गए, और दो माह के भीतर ही कई विधायकों के क्षेत्र में काम भी कर रहे हैं। अब जब ईडी अशोक अग्रवाल के घर पहुंची है तो भाजपा के नेता भी टेंशन में आ गए हैं। अब आगे क्या कुछ निकलता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
सभी के इम्तिहान !
आज से विद्यार्थियों की बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो गई हैं। इसमें सफलता असफलता उनके भविष्य का लक्ष्य तय करेगी। इस बार संयोग है कि बच्चों के साथ साथ नेताओं की भी परीक्षा होनी है। भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति ने कल रात बैठक कर परीक्षार्थी तय कर दिए हैं। इस पहले पर्चे में कौन सफल हुआ कौन असफल, यह लिस्ट आने पर ही पता चलेगा। लेकिन बच्चों और नेताओं के इस संयोग पर एक सांसद के निज सहायक ने अपने वाट्सएप स्टेटस में शब्दों को बेहतर तरीके से संजोया है। ये शब्द सांसद जी के लिए है या बच्चों के लिए,यह तो वे ही बता सकते हैं लेकिन शब्द दोनों के लिए प्रेरणादायी हैं । वैसे हम आपको बता दे कि सांसद पहली परीक्षा में ही संघर्ष कर रहे हैं। नमो एप से लेकर सर्वे तक में कुछ पिछड़ रहे हैं। इतना अवश्य है कि बी फार्म मिला तो जीतेंगे ये ही । बहरहाल निज सहायक के शुभकामना शब्द पढ़े।
हसदेव पर युवा जिज्ञासा
विद्यार्थियों में नेतृत्व क्षमता के विकास और उन्हें लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति जागरूक करने के लिए विभिन्न संभागीय मुख्यालयों में युवा संसद आयोजित किए गए। करीब एक घंटे के इस कार्यक्रम में प्रश्न कल भी होता है। अंबिकापुर में संभाग स्तर की युवा संसद आयोजित की गई, जिसमें सरगुजा, सूरजपुर, बलरामपुर, कोरिया, जशपुर और मनेंद्रगढ़ के विद्यार्थी शामिल हुए। इसमें विद्यार्थियों ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में हो रही पेड़ों की कटाई और कोयला खनन की अनुमति पर बहस की। इसके पहले बिलासपुर संभाग में भी रखी गई युवा संसद में यह मुद्दा विद्यार्थियों ने जोरों से उठाया था।
यह दर्शाता है कि नव युवाओं के मन में जल जंगल जमीन और पर्यावरण पर कितनी चिंता है। आखिरकार भविष्य में होने वाले नुकसान का खामियाजा उनको ही तो भुगतना होगा।
पानी बचाने की नुस्खे
कपड़े धोने के लिए यदि वाशिंग मशीन का इस्तेमाल किया जाए तो हाथ से धोने के मुकाबले बहुत अधिक पानी खर्च होता है। और यह पानी हम बर्बाद कर देते हैं। यह तस्वीर बता रही है कि कुछ लोग पानी के महत्व को समझते हैं। वाशिंग मशीन से निकलने वाले पानी को सहेजा जा रहा है ताकि उससे आंगन और बाथरूम को साफ किया जा सके।
छात्र का आत्मघाती कदम
सरगुजा के नजदीक दरिमा स्थित प्री मैट्रिक अनुसूचित जनजाति छात्रावास के आठवीं के एक छात्र मुकेश तिर्की ने हॉस्टल के कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। खबर यह बताई गई है कि वह छात्र पथरी की बीमारी से और दर्द सहन नहीं कर पाने के कारण उसने जान दे दी।
वजह हैरान करने वाली है और बहुत कुछ सोचने की जरूरत है। पथरी का रोग लाइलाज नहीं है। संभागीय मुख्यालय अंबिकापुर और मेडिकल कॉलेज दरिमा से काफी नजदीक है। सरकार की तमाम योजनाएं है जिसके तहत इस आदिवासी वर्ग के छात्र का इलाज मुफ्त में भी हो सकता था। क्या जिस हॉस्टल में रहता था, उसके अधीक्षक और स्कूल के प्रिंसिपल का बच्चों के साथ इतना संवाद नहीं है कि वे उनसे हालचाल पूछें, बीमारी की जानकारी लें। क्या छात्र के अभिभावक को यह जानकारी नहीं थी कि उसे सरकारी योजना का लाभ मिल सकता है और बच्चे का इलाज उस पर बिना किसी आर्थिक बोझ के हो सकता है? इन दिनों प्रशासन की गाडिय़ां गांव-गांव घूम रही है जो बता रही है कि सरकारी योजनाओं का लाभ कैसे लें। मगर, इस परिवार के घर और स्कूल तक शायद वह नहीं पहुंची।