राजपथ - जनपथ
आवारा कुत्तों के हमले
जशपुर जिले में महाशिवरात्रि पर्व के दौरान एकत्र लोगों पर एक आवारा कुत्ते ने हमला कर दिया, जिससे छह बच्चों सहित 11 लोग घायल हो गए। उनके आंख मुंह में चोटें आईं। राजधानी रायपुर के पुरानी बस्ती इलाके में पिछले 2 महीने के भीतर एक दर्जन से ज्यादा लोग कुत्तों के हमले से घायल हो चुके हैं। फरवरी के अंतिम सप्ताह में कोरबा जिले की गेवरा कॉलोनी में 24 घंटे के भीतर ही एक दर्जन लोगों को कुत्तों ने काटा। कोरबा नगर निगम इलाके में रोजाना 30 से 35 लोग रेबीज का टीका लगवाने विभिन्न अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। बस्तर के महारानी और दूसरे सरकारी अस्पतालों को मिलाकर रोजाना 20 से 25 लोग कुत्तों के हमले से घायल होकर पहुंच रहे हैं। यहां एंटी रैबीज इंजेक्शन के अतिरिक्त स्टाक की मांग की गई है। भिलाई, दुर्ग और दूसरे शहरों से भी रोजाना इसी तरह की खबरें आ रही हैं।
कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले की एक दहला देने वाली घटना सामने आई थी, जिसमें 2 साल के बच्चे को कुत्तों ने नोच-नोच कर मार डाला था। हैदराबाद में एक 4 साल के मासूम के साथ भी कुछ दिन पहले ऐसा ही हुआ। रायपुर के गुलमोहर पार्क में करीब 4 महीने पहले एक ढाई साल की बच्ची को कुत्तों ने घसीटते हुए नोच डाला था, 15 जगह जख्म के निशान मिले। यह बच्ची सही सलामत है।
जशपुर की घटना में उत्तेजित भीड़ ने कुत्ते को घेर कर मार डाला। अक्टूबर 2019 में बिलासपुर के रामा वैली में आवारा कुत्तों को तार से बांधकर बेरहमी से लाठियों से पीट-पीटकर ट्रैक्टर में लादा गया और दूर ले जाकर छोड़ा गया। कई कुत्तों की मौत भी हो गई। इस घटना की व्यापक प्रतिक्रिया हुई। थाने में शिकायत हुई थी, लोगों ने कैंडल मार्च निकाला।
संविधान का अनुच्छेद 51 ए (जी) सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया रखने का निर्देश देता है। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों के फैसलों के मुताबिक कुत्तों को उनकी गली से हटाया नहीं जा सकता। उनका टीकाकरण और नसबंदी ही बचाव का उपाय है। इस पर एक्ट 1960 से है। 2001 में भी अधिनियम संशोधित हुआ। केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालतों के फैसलों के सिलसिले में अप्रैल 2023 में एक अधिसूचना जारी कर कुत्तों के टीकाकरण और नसबंदी की पूरी जिम्मेदारी नगरीय निकायों और पंचायत पर डाली है। सन् 2022 की एक गणना के अनुसार छत्तीसगढ़ में आवारा कुत्तों की संख्या 40 हजार थी, अब और बढ़ चुकी होगी। बीते वर्षों में रायपुर, कोरबा, भिलाई बिलासपुर जैसे शहरों में पंजीकृत संगठनों के माध्यम से कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण के कुछ दिन तक कार्यक्रम अलग-अलग चलाए गए। मुंबई जैसे महानगर में यह काम सफलतापूर्वक किया जा चुका है। वहां आवारा कुत्तों की संख्या बेहद कम है। इसी तरह से देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में भी काफी काम हुआ है। पर छत्तीसगढ़ में लगातार जिस तरह से मामले आ रहे हैं उससे स्पष्ट है कि ज्यादातर शहरों में स्थानीय प्रशासन गंभीर नहीं है।
यहां गाय-बैलों से क्रूरता
कांकेर जिले के मुसुरपट्टा गांव में छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा पशु बाजार लगता है। यहां छत्तीसगढ़ के धमतरी, कोंडागांव, बस्तर जिलों के अलावा ओडिशा से भी गाय बैल बिक्री के लिए लाए जाते हैं। पंचायत की अकेले इस बाजार की नीलामी से होने वाली आमदनी 45 लाख रुपये के आसपास है। मगर, यहां पशुओं के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार की शिकायत है। बाजार हर बुधवार को लगता है। पशु दो दिन पहले से आने लगते हैं। इन्हें भूखा-प्यासा रखा जाता है। कई पशुओं की बाजार में ही या फिर लाने ले जाने के दौरान मौत हो जाती है। यह सिलसिला कई सालों से चल रहा है। मीडिया ने लगातार इसे कवर किया है, मगर पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारी और पंचायत के प्रतिनिधि इस कृत्य को रोकने की कोशिश नहीं करते।
कितने हैं सरकार के खिलाफ कोर्ट...
छत्तीसगढ़ पुलिस में 23 वर्षों में जो नहीं हुआ वो इस बार हुआ। एक साथ 76 एएसपी बदल दिए गए। जो सरकार की आंखों में किरकिरी बने हुए थे उन्हें दो सौ से चार सौ किमी दूर भेजा गया। उसके बाद से ट्रांसफऱ ऑर्डर को लेकर डर देखा जा रहा । दरअसल इस बार बिना पेटी, खोखे के तबादले हुए हैं, इसलिए। और अब तो पीएचक्यू ने सूची पर अदालत में कैवियेट लगाया है। स्टे लेने जाने वालों की आशंका के चलते कैवियेट दायर किया गया है।
अब इस पर चर्चा भी होने लगी है कि जिले को सम्हालने वाले एएसपी होते हैं उन्हें जिले की बजाय एक कैम्प का इंचार्ज बनाया गया तो क्यों नहीं जाएँगे कोर्ट ? इतना ही नहीं यह सुझाव भी दे रहे हैं कि एडीजी नक्सल आपरेशन का हेड क्वार्टर भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सुकमा या दंतेवाड़ा में हो वो ज़्यादा मुफ़ीद होगा बज़ाय एएसएपी को कैम्प इंचार्ज बनाने के। क्या पहले वालों ने ऐसा नही किया था किस गाइड लाइन के खिलाफ हुआ ये बताने का कष्ट करें। अब देखना यह है कि 76 में कितने 56 इंच वाले हैं जो सरकार को चुनौती दे, और कोर्ट कचहरी में लाखों खर्च करे।
एक पंडाल तीन सम्मेलन
वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने अपने बजट संबोधन में कहा था कि राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने फिजूलखर्ची रोकने के उपाए करेंगे । इसकी शुरूआत कर दी गई है। जैसा कहावत है कि एक टिकिट में दो सिनेमा। ऐसा ही कुछ राज्य शासन के तीन विभाग इन दिनों कर दिखाया है। साइंस कॉलेज मैदान में एक ही पंडाल में तीन सम्मेलन आयोजित कर बड़े खर्च से विभागीय मद को बचाया गया है। पहले शनिवार को किसान सम्मेलन, फिर आज महतारी वंदन और कल सोमवार को पंचायत सम्मेलन । साइंस कॉलेज मैदान में पूरा सेटअप वही केवल विभाग और सम्मेलन के फ्लेक्स, झंडें ही बदले गए और जाएंगे । यानी कुछ लाख रूपए में काम हो जाना चाहिए। अपने मंत्रियों के इस बेहतर तालमेल से वित्त मंत्री अवश्य खुश होंगे, कि साथी मंत्रियों की सोच भी मितव्ययिता की होने लगी है। लेकिन क्या विभाग के अधिकारी ऐसा सोच और कर रहे हैं। यह तो आरटीआई में पता चलेगा। कि तीन मैं से किस सम्मेलन में कम खर्च हुआ।
चर्चा 2005 की
रमन सरकार में पावरफुल रहे 2005 बैच फिर चर्चा है। उस सरकार में भी इस बैच के अधिकारी रमन सरकार के करीबी माने जाते थे, अब नई सरकार में भी। इस बैच के एक आईपीएस के लिए सरकार ने पूरी ट्रांसफर लिस्ट रोक दी थी। उनके आते ही आदेश जारी कर दिया। अभी इस अधिकारी की एसीबी ईओडब्ल्यू चीफ बनने की चर्चा है। वहां जाने के पहले ही अपने करीबियों को भेजकर अपनी टीम बना ली है। इसी तरह दिल्ली से लौट रहे अन्य अधिकारियों के लिए भी पावरफुल पद छोडक़र रखा गया है। उनके आते ही ताजपोशी हो रही है। सरकार में यह बैच धीरे धीरे मजबूत हो रहा है। इनसे जुड़े लोग भी पिछली सरकार में पावरफुल होने के बाद भी इस सरकार में अच्छी पोस्टिंग पर है।
बसपा की अलग राह का असर
सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में जांजगीर सीट पर बहुजन समाज पार्टी तीसरे स्थान पर थी। प्रत्याशी दाऊराम रत्नाकर ने एक लाख 31 हजार वोट हासिल किए। यहां कांग्रेस प्रत्याशी रवि भारद्वाज को भाजपा के गुहाराम अजगले ने 83 हजार मतों से हराया। बसपा ने तब सभी 11 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस भाजपा के बीच सीधा मुकाबला था, लेकिन यदि बसपा और कांग्रेस के बीच समझौता होता तो कुछ सीटों पर परिणाम अलग होते। पिछले कुछ दिनों से चर्चा चल रही थी कि इंडिया गठबंधन में मायावती को शामिल करने के लिए सोनिया गांधी प्रयास कर रही हैं। इसके लिए उन्हें प्रधानमंत्री पद का ऑफर भी दिया जा सकता है। मगर, अब मायावती ने स्पष्ट कर दिया है कि वे लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेंगीं। इसका मतलब यह है कि छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद से ही लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन कर रही कांग्रेस के लिए लड़ाई पहले की तरह इस बार भी कठिन है।