राजपथ - जनपथ
बिना लीडर की कांग्रेस
कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची जारी होने के बाद से पार्टी में भगदड़ मची है। कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं, और कई छोडऩे की तैयारी कर रहे हैं। खास बात यह है कि बड़े नेता असंतुष्टों की मान-मनौव्वल के लिए आगे नहीं आ रहे हैं।
बताते हैं कि पार्टी छोडऩे वालों को रोकने की कोशिश तक नहीं हुई। और जो जाने की तैयारी कर रहे हैं उनसे भी कोई बात नहीं हो रही है। प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट अपने गृहराज्य राजस्थान में ही व्यस्त हैं। प्रभारी सचिव चंदन यादव ने विधानसभा टिकट के लिए रिश्वतखोरी के आरोप के बाद से छत्तीसगढ़ आना ही बंद कर दिया है। एक अन्य प्रभारी सचिव सप्तगिरी उल्का खुद चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं, लिहाजा वो अपने क्षेत्र में व्यस्त हैं।
रही बात प्रदेश के नेताओं की, तो पूर्व सीएम भूपेश बघेल अपना सारा ध्यान राजनांदगांव में केन्द्रित कर रखा है। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज खुद की टिकट के लिए मेहनत कर रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरणदास महंत भी अपनी ऊर्जा कोरबा और जांजगीर-चाम्पा में लगाते दिख रहे हैं। ऐसे में असंतुष्टों की सुध लेने वाला कोई नहीं रह गया है। स्वाभाविक है कि पार्टी में भगदड़ तो मचेगी ही।
बनी-बनाई बिगाडऩे की तैयारी
कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि कांकेर लोकसभा सीट पर पार्टी की जीत की संभावना सबसे ज्यादा है। मगर यहां टिकट को लेकर जिस तरह किचकिच चल रही है, उससे दिनोंदिन सीट मुश्किल में दिख रही है।
कांकेर में वीरेश ठाकुर की स्वाभाविक दावेदारी है। वो पिछले लोकसभा चुनाव में मात्र 6 हजार से कम वोटों से हारे थे। बावजूद इसके वो काफी सक्रिय रहे हैं। लेकिन कई नेताओं ने अनिला भेंडिय़ा को आगे कर दिया है।
कुछ नेताओं ने पूर्व संसदीय सचिव शिशुपाल सोरी और पूर्व विधायक डॉ. लक्ष्मी ध्रुव को दावेदारी करने की सलाह दे दी है। रही-सही कसर छत्तीसगढ़ के पूर्व प्रभारी, जो कि कर्नाटक के रहने वाले हैं उन्होंने नरेश ठाकुर को दावेदारी करने के लिए कह दिया है। अब हाल यह है कि जिन्हें टिकट नहीं मिलेगी वो अब बागी तेवर दिखा सकते हैं। ऐसे में कांकेर की भी लड़ाई कठिन हो गई है।
मैनेजमेंट कौन करेगा
कांग्रेस ने पूर्व सीएम भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू, ज्योत्सना महंत, शिव डहरिया जैसे नेताओं को लोकसभा में उतार दिया है। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज भी बस्तर सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। टीएस सिंहदेव पारिवारिक कारणों से अभी सक्रिय नहीं हैं। ऐसे में बड़ा सवाल उठ रहा है कि चुनाव का मैनेजमेंट कौन संभालेगा। झीरम घाटी कांड के बाद जो शून्यता आई थी, उसमें बघेल ने जोश भरा था। 2018 के चुनाव में भूपेश-टीएस की जोड़ी ने ऐतिहासिक 68 सीटों पर जीत दिलाई। इस बार चुनाव में भले ही कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई, लेकिन पार्टी में स्वीकार्यता इन नेताओं की है। ये ही चुनाव में व्यस्त रहेंगे तो बाकी मैनेजमेंट में दिक्कत हो सकती है। वैसे लोग कहने लगे हैं कि दाऊजी ने चुनाव लडऩे का फैसला कर दो सीटें कांग्रेस के लिए फंसा दी हैं ।
कहीं आप तो नहीं जा रहे
कांग्रेस में अजीब दुविधा है। चुनाव में हारने के बाद ज्यादातर नेता निष्क्रिय हो गए हैं। पार्टी की बैठकों-कार्यक्रमों से दूर रहने लगे हैं। इस बीच पूर्व विधायकों और विधानसभा प्रत्याशियों के भाजपा प्रवेश की खबरों के बाद ऐसे नेताओं की परेशानी और बढ़ गई है। कार्यक्रम में जाना नहीं चाहते और गैर मौजूदगी में तरह-तरह की बातें होने लगती है। एक नेताजी से मीडिया ने सवाल कर दिया... आजकल दिखते नहीं, आप तो भाजपा में नहीं जा रहे। यह सुनकर नेताजी को सफाई देनी पड़ गई।
वन विभाग नहीं मानता आयोग के निर्देश
एक पद पर तीन वर्ष या अधिक समय से पदस्थ अफसरों के चुनाव पूर्व तबादलों के आयोग का निर्देश शायद वन विभाग में लागू नहीं होता। यही वजह है कि तीन ही नहीं वर्ष से पदस्थ भावसे,रावसे के अधिकारी न विधानसभा चुनाव के वक्त न लोकसभा से पहले टस से मस हुए हैं। प्रदेश मे 33 वन मंडल और 300 से अधिक रेंज कार्यालय है और यहां के 50 डीएफओ 70 एसडीओ 100 से ऊपर रेंजर हैं जो रायपुर से लेकर बीजापुर, सूरजपुर तक विगत 4 से 5 वर्षो से एक वन मंडल में जमे हैं । इनमें से कई पंजा छाप अफसर हैं। कुछ तो सरकार बदलने के बाद भी बदले। इन्हें विधानसभा चुनाव में आयोग के डंडे से बचाया गया। अब लोकसभा चुनाव की आचार संहिता बस लगने ही वाली है, और हर अधिकारी फिर से अपने को बचाने जंगल में मंगल करने की जुगत मे लग गया है। कोई मंत्री को अपना भैया बता रहा है तो कोई विधायकों ,पीसीसीफ और भाई साहबों को सेट करने मे लगा है। हालांकि बिग बॉस भी कैट में उलझे हुए हैं। उनका ही भविष्य तय नहीं है। अब देखना है कि अपनी कुर्सी बचाते हैं या मातहतों को ।
‘आप’ के इरादे क्या हैं?
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के एक डेढ़ साल पहले आम आदमी पार्टी ने अपने संगठन का बड़ी तेजी से विस्तार किया। दावा किया गया कि प्रदेश के सभी विधानसभा के सभी बूथों में उन्होंने कार्यकर्ताओं की टीम बना ली है। पर, चुनाव आते-आते उसने इरादा बदल लिया और करीब आधे सीटों पर ही चुनाव लड़ी। अब जब लोकसभा चुनाव को लेकर छत्तीसगढ़ में बाकी दल अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर रहे हैं, आम आदमी पार्टी के भीतर कोई हलचल दिखाई नहीं दे रही है। आप ने दिल्ली, पंजाब, गुजरात, हरियाणा, चंडीगढ़ और गोवा में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया है, पर यूपी में उसने कोई सीट नहीं मांगी। छत्तीसगढ़ में भी किसी लोकसभा सीट पर लडऩे के लिए उसने विशेष तैयारी नहीं की। कहा जा रहा है कि मोदी सरकार ने उसे शराब घोटाले और ईडी की नोटिस, गिरफ्तारियों में इतना उलझा दिया है कि वे नये राज्यों में पैर फैलाने से बच रही है। छत्तीसगढ़ प्रदेश इकाई के अध्यक्ष कोमल हुपेंडी को इस्तीफा दिए हुए दो माह हो चुके हैं, लेकिन उनकी जगह अब तक कोई नया अध्यक्ष भी नियुक्त नहीं किया गया है। आप को खड़ा करने के लिए जी तोड़ मेहनत करने के लिए हजारों कार्यकर्ताओं ने मेहनत की। यदि लोकसभा चुनाव के लिए इन्हें कोई टास्क नहीं दिया गया तो छत्तीसगढ़ में पार्टी का जो कुछ बचा है, उसके बिखर जाने का खतरा है। ([email protected])