राजपथ - जनपथ
अफसर सुनते नहीं
तीन महीने ही हुए हैं और भाजपा के कार्यकर्ता कांग्रेस शासन को याद करने लगे हैं। आईएएस और आईपीएस से लेकर निचले स्तर के अधिकारी-कर्मचारी अजीब से दबाव में थे। सत्ता बदली तो अफसर रिलैक्स हो गए। इतने रिलैक्स हो गए कि भाजपा कार्यकर्ताओं की ही नहीं सुन रहे। बिलासपुर क्षेत्र में तो एक टीआई ने भाजपा की बैठक के दौरान कार्यकर्ताओं की गाडिय़ों पर कार्रवाई शुरू कर दी और विधायक को हस्तक्षेप करना पड़ा। इसके बाद एसपी ने टीआई को लाइन अटैच कर दिया। मीडिया में जब यह खबर आई तो विधायक को पर्सनली एप्रोच करना पड़ा कि ऐसी खबरें छापने से उनकी छवि खराब होगी।
हाई रेटिंग वाले नेता
मंत्रिमंडल की दो सीटों पर किसे मौका मिल सकता है... यह सवाल तो सबके मन में है, लेकिन संभावित दावेदारों में हाई रेटिंग वाले नेता कौन हैं, यह जानना है तो नेताओं की सक्रियता और उनके आसपास की भी? से अंदाजा लगा सकते हैं। ठाकरे परिसर के एक कमरे में कुछ पदाधिकारियों के बीच ऐसी चर्चा चल रही थी। दरअसल, दो सीटों के दावेदार दर्जनभर हैं। यह भी कयास लगाए जाने लगे हैं कि देर-सबेर परफॉर्मेंस के आधार पर वर्तमान टीम से एक-दो को हटाकर कुछ नए चेहरों को भी लाया जा सकता है।
भोजन-पानी की तलाश में...
अभी ठीक तरह से गर्मी आई नहीं है। पूरा अप्रैल, मई और जून बचा है। पर वन्यजीवों को जंगलों में भोजन-पानी की कमी महसूस होने लगी है। यह तस्वीर डोंगरगढ़ के पास पलादूर ग्राम की है। गांव में विचरण करते भालू को देख ग्रामीण दहशत में आ गए। पर भालू ने कुछ घंटे बिताए, पानी पिया, कुछ भोजन किया, लौट गया।
बैज की टिकट पर लखमा की नजर
सांसद दीपक बैज ने छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पिछले साल जुलाई माह में तब संभाली थी, जब कांग्रेस की सत्ता में दोबारा वापसी की भरपूर संभावना दिखाई दे रही थी। इसी अनुमान के चलते चित्रकोट के तत्कालीन विधायक राजमन बेंजाम की टिकट काटी गई और बैज ने खुद वहां से चुनाव लड़ा। मगर, यह सीट कांग्रेस बचा नहीं पाई। यदि प्रदेश में कांग्रेस की जीत होती तो बैज अपने लिए संभावना देख रहे थे। आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में वे अपने नाम पर जोर डाल सकते थे। पर कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं होने के चलते यह हो नहीं सका। इधर भाजपा ने आदिवासी मुख्यमंत्री को शपथ दिला दी। कहते हैं कि इसी वजह से कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश और बस्तर में खराब प्रदर्शन के बावजूद बैज को प्रदेश अध्यक्ष पद से नहीं हटाने का निर्णय लिया।
विधानसभा में हार के बाद अब तुरंत लोकसभा चुनाव सामने आ गया है। प्रदेश अध्यक्ष बनने तक बस्तर से बाहर बैज की कार्यकर्ताओं से कोई मेल मुलाकात नहीं थी। उस समय उन्होंने प्रदेश के सभी जिलों का दौरा कर कार्यकर्ताओं से मिलने की योजना बनाई थी, पर ऐसा नहीं हो पाया। शायद चुनावी तैयारियों में जुटने की वजह से ऐसा हुआ। पर यह काम अब भी नहीं हो पाया है। 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले दो साल तक पूरे प्रदेश का धुआंधार दौरा कर भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव ने जिस तरह कार्यकर्ताओं से जीवंत संपर्क बनाया था, वह बैज अभी नहीं बना पाए हैं। एक के बाद एक कांग्रेस नेता, जिनमें कई पूर्व विधायक, प्रदेश-जिला कांग्रेस, जिला पंचायत और स्थानीय निकायों के पदाधिकारी हैं- भाजपा में शामिल हो रहे हैं। इनमें से कुछ लोगों ने बैज पर उपेक्षा का आरोप भी लगाया।
बेंजाम की जब टिकट काटी गई तो उनके समर्थकों की भारी भीड़ जुट गई थी, जो उनको निर्दलीय लड़ाने पर आमादा था। उनकी नाराजगी बैज को ही लेकर थी। हालांकि चित्रकोट से सन् 2018 में बैज ही विधायक बने थे, पर 2019 में सांसद बन जाने के बाद बेंजाम को उप चुनाव में मौका मिला था। प्रदेश में कांग्रेस की हार के बाद बैज के सामने चुनौती संगठन को फिर से मजबूत कर लौकसभा चुनाव की तैयारी करना और उपयुक्त उम्मीदवारों का नाम सुझाना था। पर अब उनकी खुद की टिकट पर खतरा है। कोंटा विधायक कवासी लखमा ने कुछ पूर्व विधायकों व बस्तर के अन्य नेताओं के साथ बस्तर से हरीश लखमा के लिए टिकट मांगी है। बस्तर में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन होने और विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद भी बैज अपनी टिकट बचा लें तो बड़ी बात होगी। कांग्रेस से जुड़े लोगों का कहना है कि उम्मीदवार तय करते समय यह भी देखा जा रहा है कि वह चुनाव का कितना खर्च खुद उठा सकता है। इस पैमाने पर तो हरीश लखमा शायद बैज पर भारी पड़ें। वैसे अमरजीत भगत के साथ कवासी लखमा को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सदस्य बना दिया गया है। ऐसा करके बस्तर में लखमा की ताकत पर हाईकमान ने मुहर लगाई है। क्या यह ताकत टिकट मांगने के काम आएगी? या फिर एआईसीसी में लेकर उन्हें टिकट नहीं मांगने के लिए मनाया गया है? आज कल में तस्वीर साफ होगी।