राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : गाड़ी-मालिक नाम से हडक़म्प
15-Mar-2024 3:20 PM
राजपथ-जनपथ : गाड़ी-मालिक नाम से हडक़म्प

गाड़ी-मालिक नाम से हडक़म्प

अवैध रेत खुदाई की खबरें बंद होने का नाम नहीं ले रही हैं। अभी छत्तीसगढ़ के एक सत्तारूढ़ विधायक, और बड़े चर्चित परिवार के अगले चिराग की ओर से जिला प्रशासन को अवैध रेत खुदाई की शिकायत की गई, और कहा गया कि उनके विधानसभा क्षेत्र में लगातार नियम-कानून तोड़े जा रहे हैं। विधायक ताकतवर हैं, इसलिए अफसरों ने आनन-फानन जांच की, और एक बड़ा सा डम्पर भी जब्त किया। इसके बाद अफसरों पर दबाव आना शुरू हुआ कि इस गाड़ी को छोड़ दिया जाए। लेकिन गाड़ी तो जब्त हो चुकी थी। जब उसके नंबर की जांच की गई, तो दिलचस्प जानकारी मिली कि विधायक ही इस डम्पर के मालिक हैं। उनकी तरफ से शिकायत इसलिए की जा रही थी कि कोई दूसरे लोग अवैध खुदाई कर रहे हैं वह बंद हो जाए, और अकेले विधायक का एकाधिकार चले। अब सत्तारूढ़ विधायक की जब्त गाड़ी अफसरों के गले की हड्डी बन गई है कि उसे उजागर करते ही सत्ता की ही बदनामी हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि एक सत्तारूढ़ विधायक धरमजीत सिंह ने विधानसभा में कहा था कि छत्तीसगढ़ की अलग-अलग नदियों में दो सौ अवैध पोकलैंड मशीनें रेत खुदाई कर रही हैं, और अगर मशीनें इससे कम निकलीं, तो वे विधानसभा से इस्तीफा दे देंगे। अब जब सत्तारूढ़ विधायक ही इसमें लगे हुए हैं, तो यह धंधा रूकेगा कैसे?

रामगोपाल को ढूँढना मुश्किल ही नहीं...

हल्ला है कि मनी लॉंड्रिंग केस में फंसे प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल सरेंडर कर सकते हैं। कोल केस में रामगोपाल पर 52 करोड़ की मनी लॉंड्रिंग का आरोप है।

ईडी ने रामगोपाल के खिलाफ वारंट जारी करने के लिए विशेष अदालत में आवेदन लगाया था लेकिन अदालत ने यह कहा कि आरोपी की गिरफ्तारी के लिए अलग से वारंट जारी करने की जरूरत नहीं है। इसके बाद से ईडी रामगोपाल की तलाश कर रही है।

रामगोपाल अग्रवाल करीब साल भर से गायब हैं, और विधानसभा चुनाव के दौरान भी गिरफ्तारी के डर से नदारद रहे। उन्होंने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन भी लगाया था लेकिन हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। चर्चा यह है कि रामगोपाल खुद होकर सरेंडर कर सकते हैं। क्या वाकई ऐसा होगा यह तो कुछ दिनों बाद पता चलेगा।

 खऱाब प्रभारी मंत्री अब प्रत्याशी

विधानसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेसजन पस्त पड़े हुए हैं। लोकसभा चुनाव के लिए कुछ जगहों पर तो सक्रियता बिल्कुल भी नहीं दिख रही है। महासमुंद सीट से पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू चुनाव मैदान में हैं।

ताम्रध्वज पर बाहरी का आरोप तो लग ही रहा है लेकिन मंत्री रहते उनकी खुद की कार्यप्रणाली को लेकर कार्यकर्ताओं में नाराजगी ज्यादा है। ताम्रध्वज के खिलाफ शिकायत यह है कि वो प्रभारी मंत्री रहते कार्यकर्ताओं की पूछ-परख नहीं की, और उनकी सिफारिशों को नजरअंदाज किया।

बताते हैं कि ताम्रध्वज के बेटे जितेन्द्र साहू, जो कि प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी भी हैं, उन्हें भी काफी कुछ सुनना पड़ रहा है। मगर ताम्रध्वज विनम्र हैं इसलिए उनसे जुड़े लोगों का दावा है कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। आगे क्या होगा यह देखना है। 

चिटफंड जैसी ही ठगी

छत्तीसगढ़ में चिटफंड कंपनियों ने मोटे रिटर्न का झांसा देकर हजारों करोड़ रुपये की ठगी की। अधिकांश गिरोह अंतर्राज्यीय थे। वसूली के लिए स्थानीय बेरोजगार युवकों को एजेंट बनाते थे। अनेक कंपनियों के डायरेक्टर गिरफ्तार भी हुए। उनकी प्रॉपर्टी नीलाम कर थोड़ी-बहुत राशि लौटाने की कोशिश भी की गई। हजारों लोगों की जिंदगी भर की कमाई डूब गई। जिलों में प्रशासन और पुलिस की प्राथमिकता में भी आगे कार्रवाई करने की नहीं दिखती। उनकी उम्मीद टूट चुकी है।

इधर, सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले की सरसीवां पुलिस ने हाल ही में ऐसे गिरोह के कुछ लोगों ने पकड़ा है जिन्होंने पहले तो प्राइवेट बैंकों से सरकारी कर्मचारी, प्रॉपर्टी डीलर्स या किसानों को बैंकों से लाखों रुपये के लोन दिलाए, फिर उस रकम को बड़े मुनाफे का लालच देकर निवेश करने कहा। शुरुआत में उन्होंने भरोसा बढ़ाने के लिए बैक की किश्त भी चुकाई। दूसरे लोग भी ऐसा होते देख झांसे में आ गए। कुछ महीने बाद उन्होंने किस्त पटाना बंद कर दिया, दोगुना-तीन गुना राशि भी डूब गई।

पूर्व में चिटफंड कंपनियों के संचालकों ने राजनीति और प्रशासन से जुड़े लोगों से योजनाबद्ध तरीके से संपर्क बना लिया था, अपने आयोजनों में उन्हें बुलाते थे। इसके चलते पुलिस इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने से कतराती रही। पिछली सरकार के दौरान इन पर शिकंजा कसा गया। कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार बदलने के बाद निवेश के नाम पर ठगी करने वाले भी अपने लिए नया अवसर देखने लगे हैं? पुलिस और प्रशासन को सतर्क होने की जरूरत है।

मतदान का कोई विकल्प है?

सन् 1985 में कानून बनने के बाद त्रिस्तरीय पंचायत में नियमित चुनाव होने लगे। ग्रामीण जनप्रतिनिधियों की अब बड़ी भूमिका है। गांवों के शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास आदि सभी मामलों में। इसी के जरिये कई नेतृत्व उभरे जो विधानसभा और लोकसभा तक पहुंचे। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने खुद गांव के पंच से राजनीति की शुरुआत की थी। इधर उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा जिनके पास पंचायत मंत्रालय भी है, ने एक गंभीर विषय की तरफ ध्यान दिलाया है। उन्होंने कहा है कि प्रत्यक्ष मतदान के कारण गांवों में लोगों के बीच कटुता बढ़ी है। आपसी विवाद और तनाव की स्थिति रहती है। इसका कोई विकल्प ढूंढेंगे। निर्वाचन की कोई ऐसी प्रणाली हो कि ऐसी अप्रिय स्थिति निर्मित न हो। उन्होंने इसके लिए लोगों से सुझाव लेने की बात कही है। पंचायती राज देश की संसद से पारित कानून है, इसलिये निर्वाचन के तरीके को बदला नहीं जा सकता। इसीलिये उन्होंने कहा कि उनकी सरकार सुझावों को विचार के लिए केंद्र सरकार के पास भेजेगी।

बीते 15-20 साल से पंचायतों को आवंटित किया जाने वाला फंड कई गुना बढ़ा है। उनका वित्तीय अधिकार भी बढ़ा। सरपंच जैसा पद हथियाने के लिए अब इतनी बड़ी रकम फूंक दी जाती है, जितने में कोई विधानसभा चुनाव लड़ ले। इस खर्च की भरपाई पंचायतों को मिलने वाले राजस्व या अनुदान से ही की जाती है। पंचायत चुनावों में आई विकृति, विधानसभा और लोकसभा के खर्चीले चुनाव से भी प्रेरित है। लोकतंत्र में गुप्त मतदान का तो विकल्प कुछ नजर नहीं आता। मतदान साफ सुथरा हो, यह जरूरी है। पर, शुरुआत कहां से हो?

एसपी की जी हुजूरी का नतीजा...

बलौदाबाजार में साइबर सेल के प्रभारी रहे इंस्पेक्टर परिवेश तिवारी और दो सिपाहियों के खिलाफ हाईकोर्ट ने एफआईआर का आदेश दिया है। आरोप है कि एक व्यवसायी को वे घर से जबरन थाना उठाकर ले गए। उसके साथ मारपीट की गई। उसके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी बल्कि ऐसा करने का मकसद यह था कि वह पुलिस अधीक्षक के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर की गई अवमानना याचिका को वापस ले ले। यह पुलिस का दुस्साहस ही है। उसने यह नहीं सोचा कि जो व्यक्ति हाईकोर्ट जाकर एसपी के खिलाफ अवमानना केस लगाने की हिम्मत जुटा सकता है, वह जबरिया मारपीट को कैसे बर्दाश्त करेगा। यह यकीन करना मुश्किल है कि जिस आईपीएस के खिलाफ याचिका लगाई गई है, उसकी सहमति के बगैर पुलिस निरीक्षक ने मारपीट की होगी। कुछ अधिकारी, अपने उच्चाधिकारी और स्थानीय सत्तारूढ़ दल के नेताओं का विश्वासपात्र बनने के लिए कानून-कायदों की सारी सीमाएं तोडऩे के लिए तैयार रहते हैं। उन्हें यह पता नहीं होता कि बड़े अफसर और नेता तो बच जाएंगे, सजा उनको भुगतनी पड़ेगी। लगे हाथ याद दिला दें कि कोविड काल में बिलासपुर में पदस्थ रहने के दौरान तत्कालीन विधायक शैलेष पांडेय के खिलाफ भी इसी अधिकारी ने एफआईआर दर्ज की थी। कांग्रेस के ही ताकतवर गुट को खुश करने के लिए। अभी जो बड़े-बड़े अफसर जेल में बंद हैं, वे अच्छे उदाहरण हैं कि सत्तारूढ़ नेताओं की भक्ति में पद को दांव पर लगाने का क्या नतीजा होता है। कुछ दिन पहले ही हाईकोर्ट ने रायगढ़ में एक पुलिस प्रताडि़त दंपती की याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रदेश के सभी थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने और उन्हें चौबीसों घंटे चालू रखने का निर्देश दिया था। बलौदाबाजार में पीडि़त व्यवसायी ने न्याय पाने के लिए थाने में लगाए गए सीसीटीवी कैमरे को ही सबूत के रूप में पेश किया था। इससे पता चलता है कि हाईकोर्ट का आदेश कितना जरूरी था। पर हाईकोर्ट को आदेश देने की जरूरत क्यों पडऩी चाहिए। यह काम तो सरकार का है कि वह पुलिस की छवि को बेहतर बनाए।

इंस्पेक्टर का पंडवानी प्रेम

पुलिस की नौकरी के बीच अपनी कला को बचाये रखना थोड़ा मुश्किल काम है। बचपन से पंडवानी गायन में रुचि रखने वाली तरुणा साहू आरपीएफ में इंस्पेक्टर हैं। पिछले साल मार्च महीने में ही उनकी चर्चा तब हुई थी, जब उन्होंने राजनांदगांव से फरार हत्या के आरोपी व्यवसायी प्रकाश गोलछा को पकडऩे में अपने पति एमन साहू की मदद की थी, जो कोतवाली में टीआई के पद पर थे। इस समय तरुणा साहू की चर्चा इसलिये हो रही है क्योंकि वह अयोध्या जा रही हैं। वहां हो रहे महोत्सव में 16 मार्च को वह पंडवानी की प्रस्तुति देंगीं। ([email protected])

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