राजपथ - जनपथ
पहले प्रवेश, फिर इस्तीफा
चुनाव के बीच दलबदल का खेल भी चल रहा है। कांग्रेस के सरगुजा संभाग के वार रूम प्रभारी अमर गिदवानी, बृजमोहन अग्रवाल से किसी काम से मिलने गए, तो उन्हें गमछा पहनाकर भाजपा प्रवेश करा दिया। फिर गिदवानी ने भाजपा के चुनाव दफ्तर में बैठकर कांग्रेस से अपना इस्तीफा टाइप करवाया।
गिदवानी व्यापारी नेता हैं, और कैट के चेयरमैन भी हैं। यही वजह है कि उन्हें आसानी से भाजपा में प्रवेश मिल गया। मगर कई ऐसे नेता भी हैं जो भाजपा में आना चाहते हैं, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं मिल पा रहा है। इन्हीं में से झीरम घाटी नक्सल हमले में घायल एक नेता पिछले कुछ समय से भाजपा में आने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं मिल पा रहा है।
चर्चा है कि उक्त कांग्रेस नेता को भाजपा में शामिल करने के प्रस्ताव पर पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने आपत्ति की है। खास बात यह है कि चंद्राकर को दूसरे दलों से आने के इच्छुक नेताओं की छानबीन के लिए बनी कमेटी के चेयरमैन हैं। यानी अजय चंद्राकर समिति की अनुशंसा पर ही किसी को भाजपा में शामिल किया जा सकता है।
उक्त कांग्रेस नेता को लेकर अजय चंद्राकर की आपत्ति इस बात पर है कि वो कई बार दलबदल चुके हैं। ऐसे में उन्हें भाजपा में शामिल नहीं करना चाहिए। साफ है कि अब पार्टी के प्रति निष्ठा दिखने पर ही प्रवेश दिया जा सकता है।
बृहस्पति सिंह का क्या होगा
आखिरकार निलंबित पूर्व विधायक डॉ. विनय जायसवाल, और बिलासपुर मेयर रामशरण यादव की कांग्रेस में वापसी हो गई है, लेकिन बृहस्पति सिंह को पार्टी में प्रवेश देने का मामला पचड़े में पड़ गया है। बृहस्पति सिंह ने टीएस सिंहदेव, और सुश्री सैलजा पर गंभीर आरोप लगा दिए थे। वो सुलह सफाई के लिए तैयार हैं, और कांग्रेस वापसी चाहते हैं। मगर सिंहदेव इसके लिए तैयार नहीं है।
चर्चा है कि सिंहदेव ने तो साफ तौर पर कह दिया है कि बृहस्पति सिंह की वापसी की दशा में वो अन्य विकल्प तलाश सकते हैं। सिंहदेव, बृहस्पति सिंह को माफ करने के लिए तैयार नहीं है। यही वजह है कि बृहस्पति सिंह की वापसी रूक गई है। हालांकि कई और प्रमुख नेता, बृहस्पति सिंह के लिए कोशिशें कर रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
अभी लंबा इंतजार
विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह था। बड़ी संख्या में ऐसे जुनूनी कार्यकर्ता थे, जो उम्मीद लगाए बैठे थे कि लोकसभा से पहले उन्हें कोई न कोई निगम मंडल मिल ही जाएगा।
लेकिन संगठन ने तो कुछ और ही सोच के रखा था। सब कार्यकर्ता-पदाधिकारियों को लोकसभा में लगा दिया। ठाकरे परिसर की एक बैठकी में कुछ नए कार्यकर्ताओं के बीच चर्चा चल रही थी कि लोकसभा चुनाव के बाद निगम-मंडल का बंटवारा होगा। पास ही बैठे एक सियान नेता ने अपना अनुभव बताकर सबको मायूस कर दिया। नेता ने बताया कि लोकसभा के बाद नगरीय निकाय और पंचायतों के चुनाव होंगे। इसके बाद ही कुछ हो सकता है। यानी अभी लंबा इंतजार करना होगा।
चुनाव के बाद फिर लौटेंगे
पुलिस अधिकारियों के तबादले में संशोधन को लेकर तरह-तरह की बातें सामने आ रही है। जिस पैमाने पर तबादले हुए हैं, उससे उन अधिकारियों की हिम्मत बंधी है, जो सुकमा, दंतेवाड़ा भेजे गए थे। इनमें कुछ के तबादले रद्द हो गए हैं, लेकिन कुछ के रद्द नहीं हुए हैं। तबादलों में संशोधन के बाद जो संदेश गया है, वह यह है कि चुनाव के बाद संशोधन की गुंजाइश बनी हुई है।
बघेल पर अपनों के हमले
लोकसभा चुनाव में राजनांदगांव के प्रत्याशी बनाए गए भूपेश बघेल के खिलाफ पिछले दो दिनों के भीतर पार्टी के भीतर ही दो बड़े हमले हो गए। रायपुर में पूर्व प्रभारी महामंत्री अरुण सिसोदिया ने बघेल के सलाहकार विनोद वर्मा पर कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल के साथ मिलीभगत कर पार्टी फंड के करोड़ों रुपए की गड़बड़ी का आरोप लगाया। दूसरी तरफ राजनांदगांव में प्रचार के लिए पहुंचे बघेल के सामने ही मंच से जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुरेंद्र वैष्णव ने पिछली कांग्रेस सरकार और सीधे बघेल पर ही मंच से हमला बोल दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि कार्यकर्ताओं का सीएम से मिलना मुश्किल था। उनका छोटा मोटा काम भी नहीं होता था।
ये दोनों हमले बीजेपी और जांच एजेंसियों की ओर से खड़ी की जा रही मुसीबतों से अलग है। कहा नहीं जा सकता कि यदि बघेल लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी नहीं होते तो क्या परिस्थितियां अलग होती। उनके लिए राहत की बात यह ज़रूर है कि संगठन और नेतृत्व उनके साथ खड़ा दिख रहा है। पर जिन कार्यकर्ताओं की बदौलत चुनाव जीता जाता हैए उनकी मन:स्थिति को टटोलना मुश्किल है।
कोरबा महापौर पर संकट
प्रदेश में सत्ता बदलने के बाद कांग्रेस को नई.नई मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। ठीक लोकसभा चुनाव के पहले कोरबा के महापौर राजकिशोर प्रसाद का अन्य पिछड़ा वर्ग जाति प्रमाण पत्र जिला स्तरीय जाति छानबीन समिति ने निलंबित कर दिया है। उनके प्रमाण पत्र को लेकर शिकायत कांग्रेस के शासन काल में की गई थीए मगर जांच रुकी हुई थी। अभी भी प्रमाण पत्र निरस्त नहीं किया गया है बल्कि निलंबित है। ओबीसी कोटे से किसी तरह का लाभ लेने से उन्हें मना कर दिया गया है। अब भाजपा पार्षद उनके निर्वाचन निरस्त करने की मांग उठा रहे हैं। महापौर पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल के करीबी माने जाते हैं।
हाल के दिनों में जिला और प्रदेश स्तर के कई कांग्रेस नेता भाजपा का दामन थाम चुके हैं। ठीक लोकसभा चुनाव के दिनों में जाति छानबीन समिति का यह आदेश बहुत कुछ इशारे करता है।