राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : सुरेंद्र दाऊ की नाराजगी का राज
24-Mar-2024 3:42 PM
राजपथ-जनपथ : सुरेंद्र दाऊ की नाराजगी का राज

सुरेंद्र दाऊ की नाराजगी का राज 

राजनांदगांव में कांग्रेस के कार्यकर्ता सम्मेलन में पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुरेन्द्र दाऊ ने अपनी भड़ास निकाली, तो पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी सकते में आ गए। चर्चा है कि सुरेन्द्र दाऊ की नाराजगी स्थानीय नेता नवाज खान, और गिरीश देवांगन से रही है। 

सुनते हैं कि दाऊ पीएचई के कॉन्ट्रेक्टर रहे हैं। कांग्रेस सरकार में उन्होंने काफी काम भी किया था। मगर उनका बिल अटक गया। चर्चा है कि बिल अटकाने में पूर्व सीएम के करीबी लोगों का हाथ रहा है। यही नहीं, सुरेन्द्र दाऊ सीएम से मिलने की कोशिश की, तो गिरीश देवांगन ने उन्हें मिलवाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। इससे उनका गुस्सा फट पड़ा। 

बताते हैं कि सरकार बदलने के बाद ही उनका बिल पास हुआ है। इसमें कितनी सच्चाई है यह तो पता नहीं, लेकिन भूपेश बघेल उनसे काफी खफा हैं। उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। चर्चा है कि सुरेन्द्र दाऊ को जल्द ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। 

नाराजगी, दोनों तरफ से 

चर्चा है कि भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष रवि भगत नाराज चल रहे हैं। भगत पहले विधानसभा की टिकट चाह रहे थे, और टिकट नहीं मिलने के बाद उन्हें रायगढ़ से लोकसभा टिकट की आस थी। लेकिन पार्टी ने उनकी दावेदारी को नजर अंदाज कर दिया। इसके बाद से भगत पार्टी की कई महत्वपूर्ण बैठकों में नहीं गए।

कहा जा रहा है कि प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन पिछले चार दिन तक प्रदेश दौरे पर थे। एक अहम बैठक में रवि भगत को भी आना था, लेकिन वो नहीं पहुंच पाए। चर्चा है कि नितिन नबीन ने इस पर नाराजगी जताई है, और उन्हें सख्त हिदायत देने के लिए कह दिया है। नबीन की नाराजगी का क्या कुछ असर होता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।

विधायक खिलाफ हो गए 

कांग्रेस की चार टिकट की घोषणा अभी बाकी है। इनमें से कांकेर से पूर्व प्रत्याशी विरेश ठाकुर की टिकट पहले पक्की मानी जा रही थी, लेकिन पार्टी के विधायक किसी नए को टिकट देने पर जोर दे रहे हैं। विरेश पिछला लोकसभा चुनाव करीब साढ़े 6 हजार वोट से हारे थे। कम वोटों से हार की वजह से प्रदेश के प्रमुख नेताओं ने उनके नाम पर सहमति दे दी थी। मगर अब पेंच फंस गया है। 

कांकेर लोकसभा में चार विधायक हैं। चर्चा है कि चार में से तीन विधायकों ने विरेश की जगह किसी नए को टिकट देने की मांग की है।  इस कड़ी में पूर्व मंत्री अनिला भेडिय़ा का नाम भी शामिल हो गया है। अनिला ने पार्टी हाईकमान को बता दिया है कि पार्टी टिकट दे तो वो चुनाव लडऩे के लिए तैयार है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम भी दौड़ में शामिल हो गए हैं। ऐसे में विरेश की टिकट पचड़े में पड़ गई है। 

दूसरी तरफ, सरगुजा से शशि सिंह का नाम तकरीबन तय माना जा रहा था। मगर अब अमरजीत भगत ने भी ताल ठोक दी है। पार्टी के रणनीतिकार भी मानते हैं कि अमरजीत भगत चुनाव लड़ते हैं, तो संसाधनों की कमी नहीं रहेगी। यही वजह है कि सरगुजा से अमरजीत के नाम पर पुनर्विचार हो रहा है। 

होली पर जल संकट की खबरें..

होली रंगों का त्योहार। बाल्टियों और ड्रमों में रंग घोल कर सराबोर हो जाने का का मौका। मगर रुकिए..। बेंगलुरु वह शहर है जहां देशभर के प्रतिभावान युवा आईटी सेक्टर में काम करते हैं। छत्तीसगढ़ से भी हजारों युवा वहां मौजूद हैं। अपना परिवार भी बसा चुके हैं। वहां पर होली की मस्ती फीकी पड़ गई है। होली पर होने वाले रेन डांस और पूल पार्टी पर रोक लगा दी गई है। गाडिय़ां धोने पर जुर्माना लगेगा। शहर भीषण जल संकट से जूझ रहा है। 10 बरस पहले जिन इलाकों में 200 फीट नीचे पानी मिल जाता था आज 1800 की खुदाई के बाद भी नहीं मिल रहा है। दक्षिण भारत के कई शहरों में पीने के लिए बोतल बंद पानी का इस्तेमाल हो रहा है। राजस्थान के कई शहरों का भी यही हाल है। वहां पर राजधानी जयपुर सहित कई  बड़े शहरों में 200-300 किलोमीटर दूर की किसी नदी से पेयजल पहुंचाया जाता है। 

अपने छत्तीसगढ़ की ही बात कर लें। बिलासपुर के बीचों-बीच अरपा नदी बहती है। जिस शहर की नदी ही उसकी सबसे बड़ी पहचान हो, वहां तो कोई जल संकट तो होना ही नहीं चाहिए। मगर, विडंबना है कि अरपा सूखी हुई है। इस वजह से अमृत मिशन योजना के तहत 40 किलोमीटर दूर खूंटाघाट बांध से पानी लाया जाएगा। इस बांध को खेतों में पानी पहुंचाने के लिए बनाया गया था। जल संसाधन विभाग और किसान लगातार बांध के पानी का बिलासपुर को पेयजल देने के लिए इस्तेमाल करने के फैसले के खिलाफ रहे। मगर सरकार के आदेशों के बाद लंबी पाइप लाइन बिछाकर यह व्यवस्था की जा रही है। आज ही की खबर है कि गंगरेल सहित प्रदेश के अधिकांश बांधों में जल भंडारण बेहद कम है। अभी मई, जून बाकी है और निस्तारी के लिए गांवों में अभी से पानी की मांग हो रही है। पानी हमारी बुनियादी जरूरत है। केवल होली मनाने में हो सकता है पानी बहुत कम खर्च होता हो लेकिन यह जल संकट के प्रति गंभीर होने का मौका है।

ताकि धर्मांतरण मुद्दा न बने..?

बस्तर संभाग की दो लोकसभा सीटों में काफी कशमकश के बाद कांग्रेस ने कोंटा के विधायक और पूर्व मंत्री कवासी लखमा को बस्तर से उम्मीदवार घोषित कर दिया है। कांकेर पर फैसला अभी भी रुका हुआ है।

दीपक बैज ने सन 2019 में करीब 4 दशकों से चल रही भाजपा की जीत का सिलसिला तोड़ा था। इस हिसाब से उनका दावा मजबूत था। यह जरूर है कि विधानसभा चुनाव में लडक़र उन्होंने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। वरना लखमा की दावेदारी को मजबूती नहीं मिलती। बैज की टिकट कटने के कारण को लेकर कुछ और अनुमान भी लगाए जा रहे हैं। 

भाजपा ने काफी पहले बस्तर की दोनों ही सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए। दोनों प्रत्याशी भोजराज नाग और महेश कश्यप हिंदुत्व की छवि वाले हैं और भाजपा के सहयोगी हिंदुत्व संगठनों से जुड़े रहे हैं।

विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने बस्तर में आदिवासियों के धर्मांतरण को एक बड़े मुद्दे के रूप में पेश किया था। नतीजे बताते हैं कि इसका उसे फायदा भी मिला। चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर कई भाजपा कार्यकर्ताओं के हैंडल पर दीपक बैज की ऐसी तस्वीर पोस्ट की गई जिसमें वे पादरी की वेशभूषा में दिख रहे थे। बैज की ओर से इसे तूल नहीं दिया गया। उन्होंने या कांग्रेस पार्टी ने कोई सफाई भी नहीं दी। कांग्रेस ने शायद यह सोचा हो कि भाजपा को फिर से धर्मांतरण को मुद्दा बनाने का मौका नहीं मिलना चाहिए।

महुआ बटोरने का मौसम..

महुआ वनों में बसे ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हर साल करीब 200 करोड़ का महुआ फल संग्रहित किया जाता है। फ्रांस, यूके सहित कई देशों में भी यहां से महुआ का निर्यात होता है। जिस तरह जमीन जायदाद का परिवार में बंटवारा होता है ,वन क्षेत्र में ग्रामीण महुआ के पेड़ों को भी बांटते हैं। धार्मिक अनुष्ठानों में इसके फूलों का उपयोग होता है। कोई भी त्योहार या शुभ काम हो, महुआ के बिना अधूरा है। महुआ फूलों को चुनना सबसे कठिन काम है। रात में पेड़ों से महुआ फल या फूल झड़ते हैं और भोर से पहले पहुंचकर ग्रामीण इसे घंटों इक_ा करते हैं। मगर पिछले साल से एक तकनीक का इस्तेमाल भी कई जगहों पर होने लगा है। पेड़ के नीचे नेट बिछा दी जाती है। सुबह सारा महुआ एक साथ बटोर लिया जाता है। कुछ सरकारी योजनाओं के तहत नेट खरीदने के लिए अनुदान भी मिलता है। इसके बावजूद बहुत से परिवार पारंपरिक तरीके से ही महुआ बटोरना पसंद करते हैं।

([email protected])

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news