राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : लीज बढ़ गई
07-Apr-2024 5:41 PM
राजपथ-जनपथ : लीज बढ़ गई

लीज बढ़ गई 

दो दिन पहले भाई की गिरफ्तारी के बाद रात यह खबर आई कि भाजपा महापौर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला रही है। राजनीति का तवा गर्म है अपदस्थ कर लिया जाए। अविश्वास प्रस्ताव के लिए आवश्यक संख्या बल की कमी के बाद भी प्रयास कर लिया जाए। कांग्रेस के नाराज पार्षद भी हवन में होम कर दें। मगर निगम में तो विधानसभा जैसा होता नहीं कि प्रस्ताव पर चर्चा के बाद वोटिंग हो। यहां तो प्रस्ताव के साथ ही दो तिहाई पार्षदों के साइन चाहिए। भाजपा के पास तो 32  हैं, चाहिए करीब 45 से अधिक। 

कांग्रेस के 13 नाराज तो हैं नहीं। हस्ताक्षर के लिए नाराज किया भी नहीं जा सकता। क्योंकि गांधीजी प्रबल हैं। भाजपा के बड़े भाई साहबों ने कहा कि केवल महज छ माह बचे हैं। कार्यकाल पूरा करने दो। निगम चुनाव में फायदा मिलेगा तब पूरे कांग्रेस को ही निपटा देंगे। फिर अभी लोकसभा चुनाव की आपाधापी है,गलत संदेश जाएगा। यानी महापौर को दिसंबर तक के लिए अभयदान दे दिया गया है।

कांग्रेसी, उम्मीद से नाउम्मीदी 

प्रदेश में चुनाव प्रचार धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा है। भाजपा का प्रचार तो अब तक व्यवस्थित ढंग से चल रहा है। सभाओं में भी भीड़ जुट जा रही है, लेकिन कांग्रेस में कई जगह प्रत्याशियों की स्थिति अच्छी नहीं है। वजह यह है कि ज्यादातर प्रत्याशी खर्च नहीं कर रहे हैं। जबकि कुछ को टिकट सिर्फ इसलिए मिली थी कि वो चुनाव खर्च के लिए पार्टी का मुंह नहीं देखेंगे। मगर ऐसे साधन संपन्न प्रत्याशी भी हाथ नहीं खोल रहे हैं। 

चर्चा है कि नामांकन दाखिले के साथ ही भाजपा प्रत्याशियों को चुनाव खर्च की पहली किश्त उपलब्ध करा दी गई है। इससे नामांकन रैली-सभाएं हुई हैं। अभी पहले और दूसरे चरण की कुल 4 सीटों के लिए ही नामांकन हुआ है। जबकि कांग्रेस का हाल यह है कि नामांकन रैली के बाद प्रत्याशी सिर्फ गांव-गांव संपर्क कर रहे हैं। चूंकि खर्च नहीं कर रहे हैं इसलिए छोटे कार्यकर्ता भी घर से बाहर निकल नहीं रहे हैं। कांग्रेस के कुछ प्रत्याशियों के करीबियों को उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में हाईकमान एक-दो किश्त जारी करेगी। इससे माहौल बनाने में मदद मिलेगी। मगर वाकई ऐसा होगा, यह 
देखना है। 

बिल दा मामला है 

पंजाबी गायक गुरदास मान का चर्चित गाना है- दिल दा मामला... है। यह पंक्ति पंजा छोड़ भगवा दुपट्टा पहनने वाले कांग्रेसियों के लिए कुछ बदले शब्दों में फिट बैठ रही है । वो यह कि- बिल दा मामला है...। इसके मायने भी भाजपा के ही नेता बता रहे हैं। दरअसल अब तक हाथ में कमल थामे सैकड़ों लोगों में कुछ बड़े  कांग्रेस सरकार में कई विभागों में निर्माण, सप्लाई के ठेकेदार रहे हैं। सरकार जाने के बाद सबके बिल अटक गए हैं। नई सरकार ने आते ही सभी पुराने कार्य, और नए कार्यों पर रोक लगा दिया है। सबका परीक्षण होगा और फिर पेमेंट। घर के जेवर और उधारी बारी कर लाखों करोड़ों के ठेके लिए तो बिल अटक गए। लेनदार पेमेंट, और घरवाले जेवर वापसी का तगादा कर रहे हैं। सो एक ही रास्ता बचा है भाजपा में शामिल हुआ जाए और बिल क्लीयर करा लिया जाए।

दुर्ग का दबदबा लौटेगा?

पिछली कांग्रेस सरकार में सर्वाधिक 6 मंत्री दुर्ग संभाग से थे। इन मंत्रियों के पास प्रदेश के 44 में से 26 विभाग थे। इसके बावजूद बीते विधानसभा चुनाव में ज्यादातर मंत्रियों को लोगों ने पसंद नहीं किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अलावा अनिल भेडिय़ा ही चुनाव निकाल पाईं।  इस बार भाजपा सरकार के मंत्रिमंडल में विजय शर्मा और दयालदास बघेल मंत्री हैं। पर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा दोनों ने दुर्ग को तरजीह दी है। यहां से तीन प्रत्याशी भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू और देवेंद्र यादव को चुनाव मैदान में कांग्रेस ने उतारा है। भाजपा ने भी सरोज पांडेय को कोरबा से टिकट दे दी है। चुनाव परिणाम आने पर ही पता चलेगा कि दुर्ग का दबदबा संसद में बढ़ेगा या नहीं।

अभी तो स्थिति यह है कि कांग्रेस के तीनों उम्मीदवारों के साथ उनके समर्थक भी प्रचार में संबंधित लोकसभा क्षेत्रों में चले गए हैं। इसके चलते दुर्ग के उम्मीदवार राजेंद्र साहू के लिए कार्यकर्ताओं की कमी दिखाई दे रही है। भाजपा प्रत्याशी सरोज पांडेय कोरबा के कार्यकर्ताओं के भरोसे हैं। यहां मंत्री लखन लाल देवांगन, ओपी चौधरी और श्याम बिहारी जायसवाल ने मोर्चा संभाल कर रखा है। एक दिलचस्प तथ्य और है कि बिलासपुर में भाजपा देवेंद्र यादव को बाहरी बताकर तथा कोरबा में कांग्रेस सरोज पांडेय को बाहरी बताकर चुनाव प्रचार कर रही है। इस तरह से दोनों ने ही दूसरे जिलों के प्रत्याशी उतारे हैं, पर मुद्दा ऐसे बनाया जा रहा है, मानो कोरबा और बिलासपुर के बीच इतनी ज्यादा दूरी हो कि एक जगह की बात दूसरी जगह नहीं पहुंच रही हो।

बाद में मंत्री, पहले कार्यकर्ता

नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत के निवास पर उनके मोदी के खिलाफ दिए गए भाषण के विरोध में भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन का गृह मंत्री विजय शर्मा ने नेतृत्व किया। डॉ. महंत के भाषण के विरुद्ध प्रशासनिक कार्रवाई भी ठोस तरीके से हो चुकी है। चुनाव आयोग के निर्देश पर राजनांदगांव जिले के निर्वाचन अधिकारी ने एफआईआर दर्ज कराई है। अब कांग्रेस ने मांग की है कि आयोग गृह मंत्री के खिलाफ अपराध दर्ज करे। कांग्रेस की शिकायत में एक गंभीर बात यह भी लिखी गई है कि भाजपा कार्यकर्ताओं की भीड़ ने डॉ. महंत के निवास का गेट तोडक़र भीतर घुसने की कोशिश की।

जब भी सत्ताधारी दल को किसी राजनैतिक आंदोलन में सडक़ पर उतरना पड़ा है तो सामान्य परंपरा रही है कि मुख्यमंत्री, मंत्री वहां पर रुक जाएं, जहां से कानून व्यवस्था संभालने की नौबत आए। गृह मंत्री ने आंदोलन करके ही विधानसभा टिकट, जीत और फिर उप मुख्यमंत्री पद तक का सफर पूरा किया है। शायद इसलिए वे अपने को रोक नहीं सके। मगर, यदि माहौल बिगड़ता तो पुलिस क्या करती? भले ही आचार संहिता लागू होने के कारण वह आयोग के नियंत्रण में है, पर क्या वह अपने विभाग के मुखिया को रोक पाती?

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