राजपथ - जनपथ
सिंहदेव चुने गए
सरगुजा राजघराने के मुखिया और पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव राजकुमार कॉलेज के निर्विरोध चेयरमैन चुने गए। रविवार को कॉलेज प्रबंध समिति के सदस्य ओडिशा, छत्तीसगढ़, और झारखंड के पूर्व राजाओं की बैठक में बकायदा चुनाव हुआ। सिंहदेव पांच साल के लिए चेयरमैन चुने गए।
सिंहदेव इससे पहले कॉलेज के प्रेसिडेंट के पद पर थे। ओडिशा के बारम्बरा राजघराने के मुखिया त्रिविक्रमचंद्र देव कॉलेज प्रबंध समिति के प्रेसिडेंट चुने गए। दोनों शीर्ष पदाधिकारी बाकी कमेटी के पदाधिकारियों का मनोनयन करेंगे।
सिंहदेव अपने पारिवारिक सदस्य के ईलाज के लिए मुंबई में थे। रविवार को रायपुर पहुंचे, और फिर कॉलेज के चुनाव में हिस्सा लेने के बाद अंबिकापुर के लिए रवाना हो गए। सिंहदेव की गैर मौजूदगी की वजह से सरगुजा से कांग्रेस प्रत्याशी शशि सिंह का प्रचार जोर नहीं पकड़ नहीं पा रहा था।
सिंहदेव अंबिकापुर पहुंचते ही कांग्रेस प्रत्याशी, और अन्य प्रमुख नेताओं के साथ बैठक की। उनके समर्थकों का मानना है कि सिंहदेव के प्रचार में जुटने से सरगुजा संभाग की सीटों पर कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनेगा। क्या वाकई ऐसा होगा यह देखना है।
सम्मेलन से गायब पदाधिकारी
अपने कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रचार में लगाए रखने के लिए भाजपा इन दिनों जगह-जगह कार्यकर्ता सम्मेलन कर रही है। इससे पता चल रहा है कि कौन-कौन बाहर निकल रहे हैं और काम कर रहे हैं। सम्मेलन में नहीं पहुंचने वाले नजर आ रहे हैं और उसे नोट भी किया जा रहा है। स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल और प्रत्याशी चिंतामणि महाराज की उपस्थिति में कल बलरामपुर में कार्यकर्ता सम्मेलन हुआ। कार्यकर्ताओं की उपस्थिति ठीक-ठाक नहीं दिखी तो जिला अध्यक्ष ओमप्रकाश जायसवाल की नाराजगी फूट पड़ी। मंच से ही उन्होंने कहा कि कई जिम्मेदार पदाधिकारी आज दिखाई नहीं दे रहे हैं। ऐसे होगा तो चुनाव कैसे लड़ा जाएगा?
जिला अध्यक्ष की नाराजगी स्वाभाविक थी। भाजपा अनुशासित लोगों की पार्टी है। एक-एक पद नाप-तौल कर दिए जाते हैं। यह सब कांग्रेस में होता है जहां जिला और प्रदेश अधिकारी बैठकों से गायब भी रहें तो कोई सवाल नहीं पूछा जाता। हो सकता है गायब रहे भाजपा पदाधिकारी मैदान पर काम कर रहे हों, पर कार्यकर्ता सम्मेलनों, बैठकों से ऊब गए हों। मंत्री जायसवाल का भाषण चल रहा था तो बहुत सी कुर्सियां खाली हो गई। पूछा गया तो कार्यकर्ता बोले- आंधी पानी का मौसम है। खुली जगह पर सम्मेलन रख दिया गया है।
मगर, आयोजकों को ही पता है कि निर्वाचन कार्यालय में हिसाब देना पड़ता है। पंडाल लगाकर सभा करने और बिना लगाए सभा करने में खर्च का बड़ा अंतर आ जाता है।
वैसे बीते दिनों बिलासपुर में भी कार्यकर्ता मंत्री दयालदास बघेल का भाषण सुनने के बजाय कुर्सियां छोडक़र चले गए थे। बात यह थी कि लंच की टेबल सज चुकी थी और भाषणों का सिलसिला खत्म ही नहीं हो रहा था।
लखमा का लाग लपेट
बस्तर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा चुनाव की लड़ाई को खूब इंजॉय कर रहे हैं और करा भी रहे हैं। उन्होंने टिकट मांगी थी बेटे हरीश के लिए, हाईकमान ने उन्हें ही पकड़ा दी। इसकी तुलना उन्होंने यह कहकर की कि वे अपने बेटे के लिए दुल्हन खोजने गए थे, मुझे ही थमा दिया गया। कुछ दिन पहले उन्होंने कहा दारू पैसा बांटने वालों से ले लो, और चार जून को नतीजा आने पर खूब नाच-नाच कर पियो। दारू मिल जाने के बाद 4 जून तक संभाल रखने का संयम?
अब एक और वीडियो वायरल हो रहा है जिसे जगदलपुर सीट के चिंगपाल ग्राम का बताया जा रहा है। अपने हल्बी भाषण वे अपनी पार्टी के लोगों का नाम ले लेकर बता रहे हैं कि किस किस ने क्या किया। यह भी कह रहे हैं कांग्रेस विधानसभा में हारने वाली नहीं थी, कांग्रेसियों ने ही रहा दिया। बीजेपी में हराने का दम नहीं था। चुनाव प्रचार जब चरम पर हो तो ऐसा आरोप पार्टी के वोटों को एकजुट करने में मदद करेगा या नहीं, यह लखमा ही बता सकते हैं। प्रचार में भाजपा आगे भले ही हो, चर्चा में लखमा पीछे नहीं हैं।
बहाव के खिलाफ तैरते विकास
रायपुर लोकसभा से कांग्रेस प्रत्याशी विकास उपाध्याय के प्रचार के तौर तरीकों ने लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। वो भाटापारा गए, तो ट्रेन में लोगों से आशीर्वाद मांगा, और गांवों में बैलगाड़ी से घर-घर दस्तक दे रहे हैं।
विकास उपाध्याय गांवों में जमीन पर साथियों के साथ रात्रि विश्राम कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव में भाटापारा को छोडक़र बाकी सीटों पर कांग्रेस की बुरी हार हुई है। खुद विकास भी चुनाव हार गए। लोकसभा चुनाव में उनका मुकाबला भाजपा के ताकतवर नेता बृजमोहन अग्रवाल से है। जिनसे पार पाना विकास के लिए बेहद कठिन है।
फिर भी विकास मेहनत में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। उनके सहयोगी गांव-गांव में नारी न्याय योजना का फार्म भी भरवा रहे हैं। फार्म लेकर भी कई लोग सवाल-जवाब कर रहे हैं। एक-दो जगहों से तो एडवांस की मांग भी आ गई है। जिसे सुनकर कार्यकर्ता आगे बढ़ गए।
दुर्घटना तो टल गई मगर...
कोरबा में मंगलवार को हिंदू नववर्ष पर एक शोभायात्रा निकाली जानी है। इसकी भव्य तैयारियां की गई है। सीतामणि से ट्रांसपोर्टनगर जाने वाली सडक़ पर अंडरपास जैसा लुक देते हुए एक विशाल पंडाल इस मौके पर आयोजकों ने तैयार किया था। पर रविवार को आई आंधी-पानी में टूटकर यह पुल के ऊपर गिर गया। पंडाल के गिरने से किसी राहगीर को चोट नहीं आई। इसके पीछे वहां तैनात एक यातायात सिपाही की मुस्तैदी थी। जैसे ही उसने देखा कि आंधी के चलते पंडाल हिलने लगा है, उसने खतरा मोल लिया और दोनों ओर सीटी लेकर दौड़ लगाते हुए ट्रैफिक रोक दी। उसने थाने में फोन करके और सिपाही बुलाए। जो पंडाल गिरने से पहले दोनों ओर खड़े हो गए। सडक़ खाली हो गई और थोड़ी देर में ही पंडाल जमींदोज हो गया। आम दिनों में भी व्यस्त रहने वाली इस सडक़ पर आवाजाही तीन घंटे तक ठप रही, जिससे जाम लग गया। यातायात में असुविधा पंडाल लगने के बाद से ही हो रही थी। प्राय: देखा गया है कि इस तरह की जुलूस रैलियों में प्रशासन सुरक्षा मानकों की अनदेखी करता है। कई बार आयोजक अनुमति लेना भी जरूरी नहीं समझते और लोगों की जान खतरे में पड़ जाती है।