राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : बस्तर के बाद, सरगुजा और...
09-Apr-2024 2:31 PM
राजपथ-जनपथ : बस्तर के बाद, सरगुजा और...

बस्तर के बाद, सरगुजा और...

आरएसएस ने बस्तर की दोनों सीटों के बाद सरगुजा, और रायगढ़ में अपनी ताकत झोंकने की रणनीति बनाई है। आरएसएस से जुड़े लोगों का कहना है कि पीएम की सभा के बाद बस्तर और कांकेर में मुफीद माहौल बन गया है। इन दोनों सीटों पर पहले और दूसरे चरण में मतदान होगा। सरगुजा, और रायगढ़ में तीसरे चरण यानी 7 मई को मतदान होगा। 

तीसरे चरण की सीटों के लिए आरएसएस ने रणनीति बनाई है। आरएसएस के मध्य भारत प्रमुख अभयराम 13 अप्रैल को अंबिकापुर पहुंच रहे हैं। इसके बाद वो रायगढ़ भी जाएंगे। सरगुजा के भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज के लिए आरएसएस के कार्यकर्ता प्रचार में जुट गए हैं। जबकि रायगढ़ से प्रत्याशी राधेश्याम राठिया तो आरएसएस से जुड़े धर्म जागरण मंच के पदाधिकारी हैं। ऐसे में दोनों सीटों पर अपनी ताकत झोंक रही है। 

आरएसएस की पहल पर जशपुर के मतांतरित आदिवासियों को अपने पाले में करने के लिए लूंड्रा के विधायक प्रबोध मिंज को रायगढ़ का प्रभारी बनाया गया है। प्रबोध मिंज, सीएम के साथ 3 सभाएं भी ले चुके हैं। कुल मिलाकर आरएसएस ने अपने जिन सहयोगियों को अडक़र टिकट दिलवाया है उसे जिताने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। इसमें कितनी सफलता मिलती है, यह देखना है।

चंद्राकर जुटे हैं 

पीएम नरेंद्र मोदी ने नारायणपुर के आमाबेल की सभा खत्म होने के बाद पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर को काफी महत्व दिया। भीड़ के लिहाज से सभा काफी सफल थी और चंद्राकर बस्तर क्लस्टर के प्रभारी हैं, इसलिए सफल कार्यक्रम का श्रेय कुछ हद तक अजय चंद्राकर को भी जाता है। 

पीएम ने अपने उद्बोधन के बाद सीएम, और दोनों डिप्टी सीएम से चर्चा के बीच अजय को बुलवाया और उनका हाथ पकड़ा। पीएम ने अजय से क्लस्टर का हालचाल भी लिया। बस्तर क्लस्टर में बस्तर, कांकेर के अलावा महासमुंद को भी शामिल किया गया है। यानी अजय चंद्राकर तीनों लोकसभा के प्रभारी हैं। 

सीनियर होने के बावजूद अजय चंद्राकर को कैबिनेट में जगह नहीं मिल पाई। बावजूद इसके वो तीनों सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों को जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। पार्टी के रणनीतिकार मानते हैं कि तीनों सीटों पर पार्टी की स्थिति काफी मजबूत है। ऐसे में नतीजे अनुकूल आए, तो अजय का कद बढऩा स्वाभाविक है। वैसे भी कैबिनेट में जगह खाली है। पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि चुनाव के बाद कैबिनेट विस्तार में अजय चंद्राकर को जगह मिल सकती है। देखना आगे क्या होता है। 

नाराज कांग्रेसियों की अब पूछ-परख

कई दर्जन प्रदेश पदाधिकारियों, जिला पंचायत और नगर निगमों के निर्वाचित प्रतिनिधियों और सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया तब कांग्रेस संगठन का ध्यान डैमेज कंट्रोल की तरफ गया है। उस दिन कांग्रेस सावधान नहीं हुई थी, जब भाजपा ने दूसरे दलों से आने वाले हर किसी का स्वागत करने का ऐलान किया। एक दावा यह है कि जितना मुमकिन था, दूसरे दलों को भाजपा तोड़ चुकी। अब वे ही बचे हैं जो मौसम का मिजाज देखकर खुद ही उतावले हैं। दूसरा दावा यह है कि अब भी कुछ चौंकाने वाले नाम 
बाकी हैं।

ऐसे मुश्किल वक्त में कांग्रेस ने 14 वरिष्ठ नेताओं की एक संवाद एवं संपर्क समिति बनाई है। इस समिति का गठन इशारा करता है कि लोकसभा चुनाव चल रहे होने के बावजूद कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं के साथ संपर्क-संवाद नहीं है। जिलों में बैठे अध्यक्ष, महामंत्री और थोक में बैठे पदाधिकारियों को भी पार्टी छोडऩे का इरादा रखने वालों की भनक नहीं लग रही। ऐसा भी हुआ कि पार्टी बदलने के एक दिन पहले तक वे कांग्रेस की सभा, बैठकों में दिख रहे थे।

कांग्रेस के जिन निर्वाचित पंचायत, नगरीय निकायों के प्रतिनिधियों को अपनी कुर्सी बचाने की परवाह थी, वे तो भाजपा में चले गए। इनका चयन ऐसे दूसरे दावेदारों को किनारे करके किया गया था, जिनकी अब भी कांग्रेस में निष्ठा बनी हुई है। ज्यादातर लोगों को कांग्रेस शासनकाल में हुई मनमानी, दो चार लोगों के बीच केंद्रित सत्ता की ताकत को लेकर रही है। पांच साल पद मिले नहीं। अब सरकार रही नहीं, विधानसभा की टिकट बंटी, परिणाम आ गए, लोकसभा की भी बंट चुकी। अब नाराज कार्यकर्ताओं को देने के लिए कांग्रेस नेतृत्व के पास कुछ नहीं है, केवल आश्वासन के।

बस्तर सीट का पहला वोट

पहले चरण में छत्तीसगढ़ की केवल एक बस्तर लोकसभा सीट पर 19 अप्रैल को वोटिंग होने जा रही है। कल से मतदान दलों ने ऐसे मतदाताओं के घर पहुंचना शुरू कर दिया, जो दिव्यांग हैं अथवा उनकी उम्र 85 वर्ष या उससे अधिक है। जगदलपुर की ऐसी ही एक दिव्यांग मतदाता खुशबू जॉनसन ने इस टीम के घर पहुंचने पर अपना वोट डाल दिया है।

जोगी जाति नहीं पदनाम...

बस्तर के जिस आदिवासी गांव आमाबाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी सभा हुई वहां और आसपास के गांवों में निवास करने वाले करीब 800 लोग ऐसे हैं जिनका सरनेम जोगी है। सरनेम से भ्रम हो सकता है पर, ये असल सरल आदिवासी हैं। मगर आदिवासियों के अधिकार से वंचित हैं। इसके पीछे 110 साल पहले की गई पुरानी गड़बड़ी है। प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की रस्म इनके बिना पूरी नहीं होती। महल के आदेश पर परंपरा चली आ रही है कि मंदिर में कलश स्थापना के दौरान इस समाज का एक युवक जगदलपुर के सिरहासार भवन में निर्जल उपवास शुरू करता है, जो पूरे नौ दिन चलता है। मान्यता है कि इस तप से बस्तर दशहरा निर्विघ्न संपन्न हो जाता है। ये मूल रूप से आदिवासी हल्बा जाति के हैं, लेकिन इनकी साधना के महत्व को देखते हुए राजपरिवार ने इन्हें जोगी की पदवी दी। और जब दस्तावेजों में जाति लिखने की बारी आई तो अंग्रेजों ने हल्बा की जगह पर जोगी लिख दिया। चूंकि, अनुसूचित जनजाति की सूची में जोगी सरनेम है ही नहीं। इसलिए दशकों बीत जाने के बावजूद इन्हें आदिवासियों को मिलने वाला कोई लाभ नहीं मिलता। इस बीच कांग्रेस भाजपा की कितनी ही सरकारें बन चुकी और उतर गईं। वे लगातार मांग करते रहे, किसी ने नहीं सुना। जब मोदी कल उनके गांव में पहुंचे तो समाज के दो सदस्य डमरू नाग और रघुनाथ नाग को मोदी से मिलवाया गया। उन्होंने अपनी समस्या बताई। मोदी ने आश्वस्त किया है। अब इन 800 की जनसंख्या वाले जोगी परिवारों को उम्मीद है कि चुनाव के बाद उनकी वर्षों पुरानी दिक्कत दूर हो जाएगी और वे अपनी आदिवासी पहचान दस्तावेजों में दर्ज करा सकेंगे। 

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