राजपथ - जनपथ
आरक्षण की जरूरत
राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पांडे ने फेसबुक पर लिखा कि जिस रफ्तार से कांग्रेसियों का भाजपा में प्रवेश हो रहा है, जल्दी ही भाजपाई अपनी ही पार्टी में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। गुजरात में तो मूल भाजपाईयों ने पार्टी में अपने लिए 33 फीसदी आरक्षण की मांग रख दी है। कहां तो कांग्रेस मुक्त भारत बना रहे थे, बन गई कांग्रेस युक्त भाजपा।
वीरेन्द्र पांडे से भाजपा के कई नेता सहमत दिख रहे हैं। कई कांग्रेस नेताओं ने पिछले दिनों भाजपा में शामिल हुए थे उस पर भाजपा के नेता अपने वॉट्सऐप ग्रुप में तीखी प्रतिक्रिया जता रहे हैं। एक-दो ने तो कांग्रेस नेताओं के भाजपा प्रवेश पर हताशा जाहिर करते हुए लिखा कि भाजपा में वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की कोई औकात नहीं रह गई है। चुनाव चल रहा है इसलिए पार्टी के रणनीतिकार इन सब पर ज्यादा चर्चा नहीं कर रहे हैं। लेकिन चुनाव निपटने के बाद दलबदलुओं को महत्व मिला, तो कलह उभरकर सामने आ सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
नाम टेलीग्राम जैसा...
छत्तीसगढ़ के पहले विश्वविद्यालय, रविशंकर विश्वविद्यालय का नाम बाद में अविभाजित मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल के नाम पर दुरूस्त किया गया, और विवि का नाम पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय किया गया। नाम कुछ लंबा हो गया, और विश्वविद्यालय के प्रवेशद्वार पर जब इस नाम को लिखे देखें, तो इसके शब्दों के बीच किसी तरह की कोई जगह नहीं छूटी है, और हिन्दुस्तानी नाम न जानने वाले लोग यह भी नहीं समझ सकते कि कौन सा शब्द कहां खत्म हो रहा है। अक्षर चाहे कुछ छोटे हो जाते, शब्द तो अलग-अलग रखने ही चाहिए थे। वैसे टेलीग्राम के जमाने में ऐसे शब्द से बचत हो सकती थी, और कुछ होशियार लोग बचत के ऐसे कुछ तरीके ढूंढ भी लेते थे।
अमित शाह की भारी डिमांड
भाजपा में शामिल होने के लिए कांग्रेस के नेताओं की लाईन है। तकरीबन सभी जिलों से विशेषकर कांग्रेस के असंतुष्ट नेता, भाजपा में आने के लिए प्रयासरत हैं। इन्हीं में से रायपुर के कांग्रेस के एक बागी नेता से भाजपा प्रवेश को लेकर पूछताछ की गई, तो उसने शर्त रख दी कि वो भाजपा में शामिल होना चाहते हैं लेकिन सदस्यता सिर्फ अमित शाह के सामने लेंगे। शाह से परे कई और भाजपा के राष्ट्रीय नेता प्रचार के लिए छत्तीसगढ़ आ रहे हैं। मगर दल बदलने के लिए अमित शाह के मंच को बेहतर मान रहे हैं। दल बदलने वाले नेताओं का सोचना है कि अमित शाह के सामने प्रवेश से भाजपा में पूछ-परख रहेगी। मगर वाकई ऐसा होगा यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
चीतल और लंगूर की दोस्ती
टाइगर जंगल का राजा है तो चीतल जंगल की शोभा। नर के सींग होते है, मादा के नहीं। ये लंगूर के दोस्त हैं, पर हिंसक जीव इसकी जान के दुश्मन।
बारनवापारा अभयारण में सोसर याने मानव निर्मित जल कुड़ में नटखट लंगूर और चीतल एक दूसरे को छेड़ते, पानी के लिए भिड़ते दिखे। इसका एक वीडियो वहां के गाइड चैनसिंह ने बनाया जिसे वन्यजीव प्रेमी प्राण चड्ढा ने सोशल मीडिया पर साझा किया है।
वे बताते हैं कि टाइगर या लैपर्ड की उपस्थिति की जानकारी यह अलार्म काल से देते हैं।
खतरे में चीतल ऐसी छलांग मारते दौड़ते हैं, जैसे हवा में उड़ रहे हों। नर चीतल दो पांव से खड़े होकर पेड़ से पत्ती या फल तोड़ कर खाते दिखते हैं।
मेटिंग के दौरान नर चीतल का रंग गहरा हो जाता है और इनके झुंड बड़े हो जाते हैं। तब नर चीतल मादा के लिए लड़ पड़ते हैं। ऐसे वक्त आपस में सींग फंस गए तो छोटे हिंसक जीव दोनों का शिकार भी बन सकते हैं।