राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : रमन सिंह तस्वीर से बाहर
15-Apr-2024 4:00 PM
राजपथ-जनपथ : रमन सिंह तस्वीर से बाहर

रमन सिंह तस्वीर से बाहर 

भाजपा सभी सीटों को जीतने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है। इस बार प्रदेश भाजपा का चेहरा रहे पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह चुनावी परिदृश्य से गायब हैं। वजह यह है कि वो विधानसभा अध्यक्ष होने के नाते पार्टी की गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकते हैं। ऐसे में रमन सिंह की जगह सीएम विष्णुदेव साय ने लिया है। 

साय प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में सभाएं ले रहे हैं। रोजाना 3-4 क्षेत्रों में सभाएं ले रहे हैं। सीएम साय पार्टी का आदिवासी चेहरा भी है। सीएम के प्रचार से आदिवासी समाज का पार्टी को भरपूर समर्थन मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। साय पूरे प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। वो प्रत्याशियों के नामांकन दाखिले के मौके पर भी साथ रहे हैं। पार्टी ने इस बार सभी 11 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है। देखना है कि पार्टी को इसमें कितनी सफलता मिलती है। 

भूपेश का खेल आदिवासी वोटों पर 

राजनांदगांव में पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने अपनी ताकत झोंक दी है। यहां भाजपा प्रत्याशी संतोष पाण्डेय से कांटे का मुकाबला है। भूपेश रोज 20-25 गांवों का दौरा कर रहे हैं। पार्टी के आदिवासी इलाके मानपुर-मोहला, खैरागढ़, और कवर्धा के रेंगाखार इलाके में विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया है। 

कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि आदिवासी इलाकों में पार्टी को अच्छी बढ़त मिलती है, तो भूपेश की राह आसान हो जाएगी। वैसे भी विधानसभा चुनाव में मानपुर मोहला से कांग्रेस प्रत्याशी इंदरशाह मंडावी अच्छे वोटों से जीते थे। खैरागढ़ में भी कांग्रेस के विधायक हैं। नांदगांव शहर से पिछड़ते भी हैं, तो आदिवासी इलाकों से भरपाई हो सकती है। मगर वाकई ऐसा होगा, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद साफ हो पाएगा। 

कांग्रेस समर्थित अफसर

2018 के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस 68 सीटें जीती थी, तब आईएएस और आईपीएस अफसरों का एक वर्ग था, जो 2019 के चुनाव में कांग्रेस को 9- 10 और भाजपा को एक दो सीटें मिलने का दावा कर रहा था। 

इन अफसरों ने हाल में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की दोबारा जीत का दावा किया था। दोनों में फेल हो गए। अब ये सार्वजनिक रूप से कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। डर है, कहीं ऊंच नीच हो गई तो बेवजह पांच साल के लिए सरकार से अदावत हो जाएगी। लूप लाइन की पोस्टिंग से उबरने का मौका नहीं मिलेगा वो अलग।

साइबर ठगों के निशाने पर बोर्ड परीक्षार्थी

छत्तीसगढ़ पुलिस ने बोर्ड परीक्षा देने वाले विद्यार्थी और उनके पालकों को आगाह किया है कि अंक सूची में नंबर बढ़ाने या फेल छात्रों को पास कराने का झांसा देने साइबर ठग सक्रिय हो गए हैं। ये ठग पहले छात्रों को फोन करके बताते हैं कि उसे किस विषय में कितना कम अंक मिला है और कितना बढ़ा देंगे। फिर यह भी झांसा देते हैं कि किस बैंक खाते पर या ऑनलाइन वालेट पर पैसे डालने हैं। फोन करने वाला अपने आपको माध्यमिक शिक्षा मंडल का कर्मचारी या कम्प्यूटर ऑपरेटर बताता है। भरोसा जीतने के लिए वह यह भी कहता है कि पैसे मिलते ही वह अंक सूची को उसके वाट्सएप पर डाल देगा। काम नहीं हुआ तो पूरे पैसे वापस भी कर देगा।

साइबर ठगों के ज्यादातर फोन झारखंड, बिहार और दिल्ली से आ रहे हैं। सवाल उठता है कि ठगों को छात्रों के फोन नंबर और डिटेल कैसे मिल रहे हैं। गूगल पर आप सर्च करें- स्टूडेंट्स डेटा प्रोवाइडर वेबसाइट। दर्जनों वेबसाइट्स की सूची आपके सामने स्क्रीन पर आ जाएगी। एक वेबसाइट यह दावा करता है कि उसके पास भारत का सबसे बड़ा डेटा कलेक्शन है। करीब 100 करोड़ रिकॉर्ड्स मौजूद हैं, जिनमें से 95 प्रतिशत प्रामाणिक हैं। हर सप्ताह डेटा अपडेट होता है। हजारों हैप्पी क्लाइंट्स हैं। जानकार बता रहे हैं कि कुछ हजार रुपयों में ये डेटा उपलब्ध करा दिए जाते हैं, जिनमें फोन नंबर ही नहीं बल्कि वे दस्तावेज जो आपकी पहचान और शैक्षणिक योग्यता को दर्शाते हैं- भी शामिल हैं। विभिन्न राज्यों के शिक्षा मंडलों की वेबसाइट्स पर डेटाबेस में प्रवेश करने के लिए लॉगिन पासवर्ड की जरूरत पड़ती है। साइबर विशेषज्ञ बताते हैं कि या तो इन परीक्षा लेने वाली संस्थाओं की वेबसाइट्स को क्रेक कर लिया जाता है, या फिर वहां काम करने वाले कर्मचारियों से साठगांठ की जाती है। हाल ही में एक टीवी चैनल ने बताया है कि ये ठग महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में भी सक्रिय हैं। उसने ठगी के शिकार कई विद्यार्थियों से बात भी की। इससे पता चलता है कि कौन सा छात्र किस विषय में कमजोर है, और उसे फेल होने का डर है- यह भी ठगों को मालूम है। वे छात्रों को उनका इनरोलमेंट नंबर भी बताते हैं। कई छात्र 10-20 से लेकर 50 हजार रुपये तक गवां चुके हैं। रकम मिलने के बाद ठग उसका नंबर ब्लॉक कर देता है।
इस समय चुनाव चल रहे हैं। पिछले कई चुनावों में हमने पाया है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश और दूसरे राज्यों के प्रत्याशी आपको कॉल कर वोट देने की अपील करने कहते हैं, जबकि आप उसके वोटर ही नहीं हैं। ये सब नंबर ऐसे ही डेटा प्रोवाइडर वेबसाइट्स उपलब्ध कराते हैं।

पुलिस ने सतर्क रहने के लिए तो कह दिया है लेकिन जो वेबसाइट्स खुले आम आपकी निजी जानकारी और फोन नंबर की नीलामी कर रहे हैं, उन पर शिकंजा नहीं कसा जा रहा है।

शाह के जाने के बाद बस्तर बंद

पिछले साल विधानसभा चुनाव के पहले बस्तर प्रवास के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लक्ष्य रखा था कि लोकसभा चुनाव के पहले नक्सल समस्या का अंत कर दिया जाएगा। अब कल खैरागढ़ की आमसभा में उन्होंने इसके लिए तीन साल मांगे। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद नक्सल हिंसा से निपटने के लिए तेजी से काम हो रहे हैं। सीएम साय और डिप्टी सीएम विजय शर्मा की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार के चार माह में ही 56 नक्सली मारे गए, 150 को गिरफ्तार किया गया और 250 ने सरेंडर किया।

पिछले एक साल के भीतर बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और नारायणपुर में नक्सलियों ने अनेक भाजपा नेताओं की हत्या की है। इसे भाजपा ने टारगेट कीलिंग भी बताया। इस बीच गृह मंत्रालय ने पैरामिलिट्री फोर्स की कई नई बटालियनों को बस्तर में तैनात किया है और नए कैंप भी खोले जा रहे हैं। इससे साफ है कि भाजपा की केंद्र व राज्य की सरकार नक्सलियों की हिंसा का जवाब अधिक आक्रामक तरीके से देना चाहती है। इसी आक्रामकता के विरोध में नक्सलियों ने 15 अप्रैल सोमवार को बंद का आह्वान किया है। यह बंद पांच राज्यों में करने का ऐलान सोशल मीडिया के जरिये किया गया है। इनमें छत्तीसगढ़ के अलावा तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा शामिल हैं। बंद की घोषणा 3 अप्रैल को कर दी गई थी। नक्सलियों का विरोध सुरक्षा बलों द्वारा लगातार चलाये जा रहे सर्चिंग अभियान और उनमें अपने साथियों के मारे जाने पर है। वे कथित तौर पर बेकसूर ग्रामीणों पर गोली चलाने के विरोध में भी हैं। बस्तर में 19 अप्रैल को मतदान है। दो दिन बाद यहां चुनाव प्रचार समाप्त हो जाएगा। ऐसे समय में जब बस्तर के विभिन्न जिलों में प्रशासन और पुलिस के आला अधिकारी चुनाव की तैयारी में लगे हैं, बंद की नक्सली अपील ने नई चुनौती खड़ी कर दी है। पुलिस प्रशासन ने व्यापारिक, सामाजिक संगठनों, ट्रांसपोर्टरों के साथ बैठक लेकर बंद को विफल करने की अपील की है। वैसे भी बंद के आह्वान के बगैर भी कई इलाके इतने संवेदनशील हैं कि राजनीतिक कार्यकर्ता प्रचार के अंतिम दौर में भी नहीं पहुंच पा रहे हैं। नक्सलियों ने वैसे तो जगह-जगह चुनाव बहिष्कार के बैनर लगा रखे हैं। पर बस्तर में वोट का प्रतिशत तो हर बार बढ़ा है। ऐसे में अंदरूनी खबरें आ रही कि नक्सली चाहते हैं कि जो वोट पड़ रहे हैं वे भाजपा के पक्ष में न हों। सच क्या है, इसका अनुमान चुनाव परिणाम आने से लगाया जा सकेगा।

([email protected])

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news