राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : बिना हिंसा अधिक मतदान
21-Apr-2024 5:14 PM
राजपथ-जनपथ : बिना हिंसा अधिक मतदान

बिना हिंसा अधिक मतदान 
बस्तर में पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार मतदान में दो फीसदी से अधिक की बढ़ोत्तरी हुई है। वर्ष-2019 के लोकसभा चुनाव में 66.19 फीसदी मतदान हुआ था। मगर इस बार 68.29 फीसदी मतदान हुआ। 

बस्तर के सबसे ज्यादा संवेदनशील विधानसभा बीजापुर में भी पिछले चुनाव की तुलना में ज्यादा मतदान हुआ है। पिछले चुनाव में करीब 42 फीसदी मतदान हुआ था। इस बार 43.42 फीसदी मतदान हुआ है। 

बताते हैं कि कई जगहों पर नक्सलियों ने लोगों को धमकाकर रखा था। इसलिए वो वोट डालने नहीं निकले। ऐसे अतिसंवेदनशील करीब 99 मतदान केन्द्रों में 10 से 15 फीसदी ही मतदान हुआ। इससे परे बासागुड़ा इलाके में ग्रामीणों ने प्रशासन को खबर भिजवाई कि उन्हें सुरक्षा उपलब्ध कराई जाती है, तो वो वोट डालने आएंगे। फिर क्या था प्रशासन ने वहां सुरक्षा बल भिजवाए, और वहां करीब 30 फीसदी मतदान हुआ। 

बीजापुर के भोपालपटनम इलाके के एक-दो मतदान केन्द्रों में तो 90 फीसदी से अधिक मतदान हुआ। खास बात यह रही कि  रविवार को दोपहर तक सारे मतदान केन्द्रों से पोलिंग पार्टी सकुशल लौट आई। इससे पहले के चुनावों में पोलिंग पार्टी पर भी नक्सली घात लगाकर हमला कर देते थे। मगर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। 

वीआईपी फकीर और फकीर संघ
हिन्दुस्तान में किसी महान व्यक्ति ने कहा था कि साधुओं की कोई जमात नहीं होती, लेकिन बाद में धीरे-धीरे साधुओं के अखाड़े बनने लगे, और उनकी गुटबाजी चलने लगी। छत्तीसगढ़ के एक पुराने फोटोग्राफर गोकुल सोनी ने एक दिलचस्प तस्वीर आज सुबह फेसबुक पर पोस्ट की है। इसमें तीन चक्कों की गाड़ी में चलते किसी व्यक्ति ने अपने को छत्तीसगढ़ प्रदेश फकीर संघ का अध्यक्ष बताया है, और खुद को वीआईपी फकीर लिखा है।

किसका आईटी सेल मजबूत..
मतदाताओं का रुझान अपनी ओर मोडऩे के लिए सभी दल बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत करने पर जोर देते हैं। पर, यह तीसरा लोकसभा चुनाव है जब सोशल मीडिया पर मजबूती भी राजनीतिक दलों को जरूरी लग रहा है। सिंगापुर स्थित ‘चैनल न्यूज एशिया’ की एक डाक्यूमेंट्री उसके यू ट्यूब चैनल ‘सीएनए इनसाइट’ पर ‘फैक्ट वर्सेस फिक्सन’ नाम से आई है। इसमें कहा गया है कि फर्जी खबरों को फैलाना पिछले एक दशक से भारत में उद्योग बन गया है। चुनाव असली दुनिया नहीं, आभासी दुनिया में लड़े जा रहे हैं। इनके जरिये लोगों की केवल राजनीतिक नहीं बल्कि धार्मिक और जातीय गोलबंदी भी की जा रही है। एक विशेषज्ञ ने इसे ‘सूचना महामारी’ का नाम दिया है। आईटी सेल में काम करने वाले लोग बिना फैक्ट चेक की प्रक्रिया से गुजरे कुछ भी अपलोड कर देते हैं। सिर्फ वे यह ध्यान रखते हैं कि कंटेंट से उनकी पार्टी को फायदा पहुंचे। इस डाक्यूमेंट्री में दावा किया गया है कि भारत में संचालित होने वाले 750 फर्जी मीडिया आउटलेट दुनिया भर के 119 देशों में फैले हैं और 550 अलग-अलग डोमेन से फर्जी खबरें फैलाते हैं।

इस डाक्यूमेंट्री में बताया गया है कि कैसे भाजपा की आईटी सेल के जरिये फर्जी सूचनाएं फैलाई जाती है। इसमें काम करने वाले किसी अनिल नाम के युवक की बातचीत भी है जो बता रहा है कि 40 से 50 हजार रुपये के वेतन पर उन्हें रखा गया है। हमारी टीम में एडिटर, स्क्रीन राइटर, स्क्रिप्ट राइटर सब होते हैं। वीडियो के टॉपिक मोदी की घोषणाएं, राष्ट्रवाद, हिंदुत्व आदि होते हैं। हम कार्टून, मीम सब बनाते हैं। फिलहाल हमारा टारगेट सिर्फ कांग्रेस है। कंटेट को आगे बढ़ाने  का काम डेटा एनालिटिक्स करते हैं। सोशल मीडिया प्रबंधन, डिजिटल मार्केटिंग, ई मेल और संदेश मैनेजमेंट सब उनके काम का हिस्सा  है।

ऊपर की पूरी पड़ताल एक न्यूज चैनल की है। आप इससे सहमत हों या नहीं हों। पर, ऐसा लगता है कि पुराने अनुभवों ने कांग्रेस को भी काफी कुछ सिखा दिया है और इस ‘ डिजिटल महामारी’ की ओर उसका भी झुकाव बढ़ा है। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में सर्वाधिक प्रसारित होने का दावा करने वाले दैनिक अखबार के भोपाल संस्करण के फ्रंट पेज की हू-ब-हू नकल पिछले सप्ताह सोशल मीडिया पर वायरल की गई। इसमें उस अखबार का ‘नीलसन’ के साथ मेगा सर्वे लीड खबर थी। बिल्कुल असली सी लगने वाली इस खबर का शीर्षक था-इंडिया गठबंधन एनडीए गठबंधन को चुनौती देने तैयार, बीजेपी शासित राज्यों में पीएम मोदी का प्रभाव फीका पडऩे का अनुमान। जब यह पोस्ट ट्विटर और वाट्सएप पर लाखों लोगों में वायरल हो गई तब किया गया फैक्ट चेक सामने आया। अखबार का पूरा पन्ना असली है। सिर्फ यही खबर, दूसरी खबर को हटाकर फर्जी तरीके से चिपका दी गई। उस अखबार ने और चुनाव आयोग ने इस फर्जी खबर पर क्या एक्शन लिया, अभी यह पता नहीं चला है। कह सकते हैं कि सोशल मीडिया में फर्जी खबरें इस चुनाव में ज्यादा दिख सकती हैं। सूचनाओं की सच्चाई तलाशने में मतदाताओं को ज्यादा माथापच्ची करनी पड़ेगी।

गर्मी में बाकी चरण के मतदान...
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में देश की ज्यादातर सीटों पर 2019 के मुकाबले मतदान का प्रतिशत कम रहा। बिहार की नवादा सीट ऐसी थी जहां सिर्फ 44 प्रतिशत वोट पड़े, मध्यप्रदेश की सीधी सीट पर 55 प्रतिशत वोट ही डाले गए। लक्षद्वीप में सबसे ज्यादा 83.9 प्रतिशत मतदान हुआ। इन सबके बीच छत्तीसगढ़ की जिस एकमात्र बस्तर सीट पर पहले चरण में वोटिंग हुई, वहां मतदान का प्रतिशत 68.30 प्रतिशत था, जबकि 2019 में यहां 83.90 प्रतिशत वोट डाले गए थे। बस्तर में सुरक्षा बलों के नए कैंप खोले गए, जिसके चलते अंदरूनी इलाकों में नए मतदान केंद्र खुल सके। विधानसभा चुनाव के दौरान एक दो छुटपुट नक्सल घटनाएं तो हुई थीं, पर लोकसभा में एक भी नहीं हुई। बस्तर में हर बार मतदान का प्रतिशत बढ़ रहा है। देश के दूसरे स्थानों से कम मतदान को लेकर कुछ बातें सामने आई हैं। इसके अनुसार गर्मी एक बड़ा कारण था। अधिकांश बूथों पर इंतजाम नहीं था कि लोग छाया में कतार लगा सकें। अमूमन टेंट लगा दिया जाता है पर कुछ मुख्य मार्ग के मतदान केंद्रों में ही यह देखा गया। पीने की पानी की व्यवस्था भी अधिकांश बूथों में नहीं थी। मतदाता वोटिंग के लिए बूथों तक पहुंचे, इसके लिए सभी जिलों में निर्वाचन अधिकारी स्वीप के अंतर्गत कार्यक्रम कर रहे हैं। सामाजिक संगठनों के बीच खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम, दौड़, रंगोली, शपथ जैसे आयोजन हो रहे हैं। पर दूसरे और तीसरे चरण में गर्मी भी अधिक रहेगी। जिन 10 सीटों पर मतदान अभी होना है। प्रशासन का स्वीप कार्यक्रम बेहद प्रचारित है, पर बूथ में सुविधाएं नहीं मिली, तो मतदान का प्रतिशत पहले चरण की तरह अनुमान से कम हो सकता है।

फ्यूज कॉल सेंटर
कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर कंपनी के नये चेयरमैन पी. दयानंद ने बिलासपुर दौरा किया था। लोगों ने शिकायत की थी कि दिन में दस-दस बार बिजली जा रही है। थोड़ी सी हवा चली कि घंटो गुल। ऐसा लगा कि बिजली विभाग के अधिकारी कर्मचारियों पर कुछ तो असर होगा। मगर, हालत और खराब हो गई। अब दस बार बिजली बंद नहीं होती, कई इलाकों में एक बार बंद होती है तो दस घंटे में आ रही है। ऐसे लोग जब सर्वाधिक उपभोक्ता वाले नेहरू नगर के फ्यूज कॉल सेंटर में शिकायत करते हैं तो फोन नहीं लगता। जब सेंटर में जाकर शिकायत करते हैं तो उनको वहां का नजारा ऐसा दिखाई देता है।  ([email protected])

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