राजपथ - जनपथ
भ्रष्टाचार डहरिया की मुसीबत
जांजगीर-चांपा में कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. शिवकुमार डहरिया के खिलाफ भाजपा ने भ्रष्टाचार को प्रमुुख मुद्दा बनाया है। भाजपा के नेता अपनी सभाओं में डॉ. डहरिया के नगरीय प्रशासन मंत्री रहते भ्रष्टाचार के मामलों को प्रमुखता से गिना रहे हैं।
सीएम विष्णुदेव साय ने तो डॉ. डहरिया को सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी करार दिया है। भाजपा नेता अपनी सभाओं में डॉ. डहरिया के खिलाफ आरंग में खुद गरीब बनकर सरकारी जमीन का पट्टा लेने के मामले को प्रमुखता से प्रचारित कर रहे हैं।
सीएम तो यह भी कहने से नहीं चूके कि अगर भूल से भी वो जीते तो जांजगीर की जमीनों पर भी कब्जा कर लेंगे। उन्होंने मतदाताओं को सतर्क रहकर डहरिया को सबक सिखाने का आहवान किया। भाजपा का डहरिया के खिलाफ अभियान का कितना फर्क पड़ता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही साफ होगा।
चिल्हर गिनने की मशीन
नोट काउंटिंग मशीन से आप और हम अभ्यस्त हो गए हैं।यह समय की बचत, सुविधा होने के बावजूद कभी कभी लोग नोट गिनते-गिनते,मशीन और जांच अधिकारी भी थक जाते है। जैसे झारखंड के एक सांसद को यहां मिले तीन सौ करोड़ रुपए गिनने पड़े थे।
ऐसा बताया गया था कि पूरे दो दिन लगे थे। इतनी बड़ी रकम गिनने की सफलता के बाद अब नोट मशीन बनाने वाली कंपनी ने चिल्लर (सिक्के) गिनने वाली मशीन लांच कर दिया है। शायद कंपनी को मालूम चल गया है कि कुछ लोग चिल्हर में भी अकूत इक_ा कर रहे हैं। सही है, हाल में दिवंगत हुए मप्र के दौर के एक मंत्री, तबादले के लिए नग स्वरूप 51 रूपए तक ले लेते थे। मशीन चिल्हर में होने वाले ऐसे भ्रष्टाचार के टोटल अमाउंट को भी गिन लेगी। इस मशीन में सभी सिक्कों का ढेर डाल दीजिए और वह चंद मिनटों में 10, 5, 2, 1 रूपए की छंटनी कर न केवल टोटल कर देगी बल्कि उन्हें अलग अलग छांट कर प्रिंट आउट भी दे देगी।
98 फीसदी पोलिंग, नोटा भी नहीं
विधानसभा 2023 के चुनाव में बस्तर की 12 में से 8 सीटों पर नोटा वोट तीसरे नंबर पर थे। यानि कांग्रेस भाजपा के बीच तो मुख्य मुकाबला था, पर इन दोनों की टक्कर नोटा से थी। नोटा का विकल्प चुनने का सामान्य अर्थ यही है कि मतदाता ने किसी भी उम्मीदवार को पसंद नहीं किया। इस आधार पर बस्तर के मतदाता बाकी स्थानों के मतदाताओं से ज्यादा जागरूक माने जा सकते हैं। मगर, ऐसा नहीं है। नोटा का एक मतलब यह भी हो सकता है कि मतदाता को अपने पसंद के उम्मीदवार का बटन ही समझ में नहीं आया।
इस लोकसभा चुनाव में दंतेवाड़ा जिले कटेकल्याण ब्लॉक के दूधिरास गांव में 98 प्रतिशत वोट डाले गए। मतगणना के बाद पता चलेगा कि इनमें कितने नोटा को गया लेकिन शत-प्रतिशत मतदान की कोशिश में लगे ग्राम के सरपंच को उम्मीद है कि नोटा वोट शायद ही हो। इस गांव में मतदान के पहले एक नकली बूथ बनाई गई। एक पीठासीन अधिकारी बिठाया गया। इसमें लोगों को बताया गया कि मतदान कैसे करना है। अपनी पसंद के उम्मीदवार को बटन कैसे दबाना है। बीप बजने के बाद पर्ची में देखकर तसल्ली करना है कि जिस चुनाव चिन्ह का बटन दबाया, उसी की पर्ची भी निकली है। जब असल मतदान हुआ तो करीब 300 मतदाताओं वाले इस बूथ में सिर्फ 6 लोग वोट नहीं डाल सके। बाकी सभी ने मतदान किया। यह वाकया सोशल मीडिया पर वायरल है। ग्रामीणों का दावा है कि बस्तर में नोटा वोट बढऩे का कारण वोट डालने के दौरान की गई गलतियां हैं। सुदूर दूधिरास में ग्रामीणों ने खुद से पहल कर सबको वोट डालने और अपनी पसंद से डालने की जो पहल की, वह निर्वाचन आयोग के स्वीप कार्यक्रम से ज्यादा असरदार रहा। भले ही यह किसी एक गांव में सीमित क्यों न रहा हो।
इसी दौरान कई बूथों पर बस्तर की संस्कृति और परंपरा के अनुसार की गई साज-सज्जा भी मतदाताओं को आकर्षित कर रही थी, जिसने मतदाताओं को बूथ तक खींचा।
चुनाव ने रोका मुफ्त इलाज
पिछले साल कांग्रेस सरकार ने छत्तीसगढ़ के कुछ निजी अस्पतालों में आयुष्मान योजना और खूबचंद बघेल योजना के तहत होने वाले मुफ्त इलाज में गड़बड़ी पाई। यह पाया गया कि मरीजों को जिस बीमारी का इलाज मुफ्त ही करना था, उसके एवज में उनसे लाखों रुपयों की अवैध वसूली की गई। ऐसे कुछ अस्पतालों से मरीजों को रकम वापस भी लौटाई गई। इसके बाद नये निजी अस्पतालों के साथ अनुबंध की प्रक्रिया निलंबित कर दी गई। अब खबर यह है कि करीब साल भर होने जा रहा है नए अस्पतालों का पंजीयन रुका हुआ है। इस बीच कई शहरों, कस्बों में नए अस्पताल खुले लेकिन उनमें दोनों मुफ्त योजनाओं से मरीज इलाज नहीं करा पा रहे हैं। कुछ तो ग्रामीण इलाकों के अस्पताल भी हैं। विधानसभा चुनाव के बाद थोड़ा वक्त था, जब नई सरकार कुछ बड़े फैसले ले रही थी। निजी अस्पतालों के संचालकों ने इस दौरान पंजीयन कराने की कोशिश की थी, मगर रोक नहीं हटी। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता जब जून के पहले सप्ताह में समाप्त हो जाएगी, हो सकता है इन अस्पतालों को और इनके पास पहुंचने वाले मरीजों की सुविधा तब मिलने लगे।