राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : केजरीवाल की क्रोनोलॉजी
12-May-2024 4:31 PM
राजपथ-जनपथ : केजरीवाल की क्रोनोलॉजी

केजरीवाल की क्रोनोलॉजी

आप नेता अरविंद केजरीवाल अंतरिम बेल पर जेल से बाहर निकलते ही पीएम मोदी और भाजपा के खिलाफ आग उगलने लगे हैं। 1 जून को  वापसी से पहले मन की पूरी कोफ्त निकाल कर जाएंगे। कल उन्होंने दावा किया कि अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाने मोदी यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को रास्ते से बाहर करेंगे, कहा कि मोदी की यह चाल अगले पांच वर्ष की नहीं दो महीने को भीतर होगी। इसके पीछे अरविंद ने छत्तीसगढ़-मध्य प्रदेश का दृष्टांत भी जोड़ा। कहा कि पहले डॉ. रमन सिंह को निपटाया, फिर शिवराज चौहान को। एक-एक कर निपटा रहे हैं। अब अगली बारी योगी की। केजरीवाल की इन भविष्यवाणियों पर लोगों ने प्रश्न किया कि जेल में किसके साथ थे भाई?

केजरीवाल को सुनने के बाद लोगों ने पिछले एक वर्ष की क्रोनोलॉजी को जोड़ा। वह यह कि विधानसभा चुनाव रमन सिंह को आगे किए बिना लड़ा। सीएम की बात आई तो रमन सिंह प्रस्तावक बना दिए गए और अंत में बना दिए गए स्पीकर। राजनांदगांव लोकसभा के लिए प्रत्याशी की बारी आई तो परिवारवाद नहीं चलेगा कहकर बेटे की टिकट काट दी गई। मंत्रिमंडल में अपने करीबी को शामिल नहीं करा सके, आदि आदि।

शांतिपूर्वक चुनाव से प्रेक्षक हैरान

देश के बाकी राज्यों की तुलना में विशेषकर तमिलनाडु, और केरल में चुनाव बिना किसी विवाद के शांतिपूर्वक निपट जाते हैं। इन राज्यों में चुनाव प्रेक्षक बनकर गए अफसर वहां के चुनाव प्रचार के तौर तरीकों से काफी खुश भी नजर आए।

छत्तीसगढ़ कैडर के सचिव स्तर के दो अफसरों को तमिलनाडु और केरल की एक-एक लोकसभा सीट का प्रेक्षक बनाया गया था। दोनों वहां प्रेक्षक बनकर महीने भर रहे। चुनाव आयोग के निर्देशानुसार दोनों ने अपना मोबाइल नंबर मीडिया में जारी किया था, ताकि किसी तरह की शिकायत उन तक पहुंच सके। पूरा चुनाव निपट गया, किसी ने मौखिक और न ही लिखित में उनसे कोई शिकायत की। चुनाव प्रचार का तरीका भी अलग था। राजनीतिक दल के नेता नुक्कड़ या बड़ी सभा के पहले बैनर-पोस्टर, झंडा लगाते थे। सभा निपटते ही उसे निकालकर साथ ले जाते थे। कहीं से कोई चुनाव का माहौल नहीं दिखता था। लोगों की जागरूकता देखकर अफसर काफी प्रभावित रहे।

वन विभाग का डीएमएफ यानी कैम्पा

वन विभाग में एक कैम्पा फंड होता है। यह किसी बड़ी योजना के लिए काटे गए पेड़ों की भरपाई के लिए वहीं आसपास या अन्यत्र नए पेड़ लगाने खर्च की जाती है। इस केंद्रीय मद के गठन काल से दुरूपयोग के कई किस्से उजागर हुए हैं, विधानसभा के सत्रों में भी गूंजते रहे हैं। इस फंड को वन विभाग का डीएमएफ कहा जा सकता है। इससे कुछ भी किसी भी काम के लिए खर्च किया जा सकता है। फिर क्या, जंगल दफ्तर के साहबों ने एक महामंत्री को स्कार्पियो खरीद कर दे दी।

सो साहबों ने महामंत्री को दौरे करने में हो रही दिक्कत बताने पर खरीद लिया गया। पड़ोसी जिले के नेताजी के प्रभार में राजधानी जिला है। ऐसे में भला दौरे कहां करेंगे। बस घर से आने जाने के लिए। वैसे इन नेताजी की जमीनों पर भी अच्छी पकड़ है। वैसे इनका कद भी अचानक ही ऊंचाई की ओर बढ़ा है।

यह कोई नई बात नहीं

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जेल से निकलने के बाद अपने पहले भाषण में छत्तीसगढ़ के स्पीकर व पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, मध्यप्रदेश के शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान की वसुंधरा राजे सिंधिया का नाम लिया। केजरीवाल ने कहा कि आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की राजनीति मोदी ने सबसे पहले खत्म की उसके बाद इन नेताओं का कर दिया। इन तीनों राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम आये तो भाजपा ने मुख्यमंत्री के रूप में नए चेहरों को लाकर सबको चौंका दिया। राजस्थान में तो मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा पहली बार के ही विधायक हैं। पिछले दशक से भाजपा की जीत का सिलसिला चला तो डॉ. सिंह और चौहान अपने-अपने राज्यों में लगातार मुख्यमंत्री रहे। चौहान के खाते में तो मध्यप्रदेश में सबसे लंबे समय तक सीएम रहने का रिकॉर्ड भी है। एक धारणा जरूर बन गई थी कि इन सब का कद इतना ऊंचा है कि और कोई नाम सामने नहीं लाया जाएगा। पर भाजपा ने न केवल सीएम बदले बल्कि मंत्रिमंडल में भी भारी परिवर्तन किया। कुछ समय पहले हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर बदल दिए गए। कर्नाटक में जब येदियुरप्पा को हटाया गया तो सुर बगावत के थे, पर वे पार्टी में बने रहे। गुजरात में केशुभाई पटेल ने नई पार्टी बना ली थी। ऐसा ही मध्यप्रदेश में उमा भारती ने किया और यूपी में कल्याण सिंह ने। मदन लाल खुराना तो बाहर ही कर दिए गए थे। झारखंड में बाबूलाल मरांडी करीब 14 साल तक पार्टी से बाहर रहे, तीन साल पहले वापस आए। कई दूसरे राज्यों में भी ऐसे उदाहरण हैं जब स्थापित समझे जाने वाले नेताओं को भाजपा ने एक झटके में बदल दिया। असम में सर्बानंद सोनोवाल-हेमंत बिस्वा, त्रिपुरा में बिप्लब देव-माणिक साहा आदि। सार यह है कि मोदी-शाह की जोड़ी का पार्टी में वर्चस्व नहीं था तब भी ऐसे फैसले लिये जाते थे। खुद मोदी को गुजरात का सीएम सन् 2001 में केशुभाई पटेल को हटाने के बाद बनाया गया था। मोदी के पहले और और उनके कुर्सी छोडऩे के बाद गुजरात में बार-बार सीएम बदले गए। केजरीवाल की मानें तो मोदी खुद ही एक साल बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी अमित शाह को सौंपने वाले हैं। योगी आदित्यनाथ भी चुनाव के दो माह बाद हटाए जाने वाले हैं। कुछ लोगों को लगता है कि लोकसभा चुनाव परिणाम के साथ न केवल योगी बल्कि तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के टिके रहने पर भी फैसला आ जाएगा।

साइबर ठगी में नादानी या लालच?

बढ़ती साइबर ठगी लोगों की एक बड़ी चिंता बनती जा रही है। कबीरधाम जिले के सहसपुर-लोहारा में व्हाट्सएप मैसेज और वीडियो लाइक करने के नाम पर एक युवक 7 लाख रुपये से अधिक रकम गंवा बैठा। इसी तर्ज पर छत्तीसगढ़ में पहले भी ठगी हो चुकी है। इसके बावजूद लालच और जानकारी के अभाव में नए-नए लोग शिकार बन रहे हैं। कुछ दिन पहले दिल्ली से सटे गुरुग्राम से पुलिस ने 11 ठगों को पकड़ा था, जिन पर आरोप है कि उन्होंने देशभर में इसी तरीके से लोगों को 15 करोड़ रुपये का चूना लगाया। वे वाट्सएप के अलावा ये इंस्टाग्राम और टेलीग्राम चैनल का भी इस्तेमाल कर रहे थे। लाइक, शेयर, फॉरवर्ड के अलावा शेयर ट्रेडिंग और क्रिप्टो करेंसी में भारी मुनाफे का लालच भी दिया जाता है। वाट्सएप ने हाल ही में बताया था कि साल जनवरी से मार्च तक ही भारत में 2 करोड़ 23 लाख संदिग्ध खातों को बैन कर चुकी है, जो पिछले साल से दोगुना है। मगर नए-नए नंबरों से ठगी शुरू हो जाती है। धोखाधड़ी की शुरूआत में छोटी रकम लगाने के लिए कहा जाता है और कुछ रुपये लौटाए भी जाते हैं। ठगी की रकम विश्वास जीत लेने के बाद लाखों रुपयों में पहुंच जाती है, जैसा कबीरधाम के मामले में हुआ है। हैरानी यह है कि कम-पढ़े लिखे लोग ही नहीं- बैंक और पुलिस में काम करने वाले भी झांसे में आ रहे हैं। स्मार्ट फोन और इंटरनेट अब हर किसी के हाथ में है, पर सतर्क नहीं रहने पर चूना लगना तय है। सोशल मीडिया पर पुलिस और दूसरे जागरूक लोग लगातार आगाह करते हैं कि अनजान लिंक पर न जाएं, कोई बड़ी कमाई का ऑफर दे रहा है तो भरोसा न करें। पर, लोगों को यह नसीहत पसंद नहीं आती। 

तप से कम नहीं ट्रेन का इंतजार

गर्मी के दिनों में रेल यात्रियों को दी जा रही सुविधाओं की कई अच्छी तस्वीरें आ रही हैं। रेलवे ने कहीं-कहीं मिस्टिंग मशीन से छिडक़ाव की व्यवस्था की है। कहीं पर सामाजिक संस्थाओं की मदद से शीतल जल दिया जा रहा है। पर, यह एकतरफा तस्वीर है। मगर ऐसे भी स्टेशन हैं जहां न वहां शेड है, न पेयजल। ट्रेनों के विलंब से चलने से सफर कर रहे यात्री परेशान हो रहे हैं तो ऐसी ट्रेनों का इंतजार करते हुए 40 प्लस डिग्री सेल्सियस तापमान में यात्री झुलस रहे हैं। यह यूपी के प्रतापगढ़ रेलवे स्टेशन की तस्वीर है, यह यूपी के प्रतापगढ़ जंक्शन के एक प्लेटफार्म की तस्वीर है। ([email protected])

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