राजपथ - जनपथ
अफसरों की तैनाती
चर्चा है कि सीएस अमिताभ जैन के छुट्टी से लौटने के बाद प्रशासन, और पुलिस में छोटा सा बदलाव हो सकता है। एसीएस रिचा शर्मा केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से लौट चुकी हैं, और उन्होंने मंत्रालय में जॉइनिंग भी दे दी है। उन्हें विभाग मिलना बाकी है। इसी तरह पुलिस में भी आईजी स्तर के अफसर ध्रुव गुप्ता भी केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से लौट आए हैं।
गुप्ता आईपीएस के 2005 बैच के अफसर हैं। वो महासमुंद, और कोरिया एसपी रह चुके हैं। लिहाजा, यहां जल्द ही पोस्टिंग हो सकती है। इससे परे ध्रुव गुप्ता के ही बैच के अफसर आईजी बीएस ध्रुव भी रिटायर हो गए हैं। इन सबको देखते हुए जल्द ही पुलिस और प्रशासन में फेरबदल हो सकता है।
पीडब्ल्यूडी की मनोकामना
पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर और ठेकेदारों को 4 जून का बेसब्री से इंतजार है। क्यों न हो उनका हक मारे जाने से जो बचने जा रहा है । नई सरकार के पहले बजट में घोषणा हुई थी कि अब शिक्षा विभाग में अलग इंजीनियरिंग विंग बनाया जाएगा। जो स्कूल भवन बनाने का काम विभागीय तौर पर करेगा। इससे भवन जल्द बनेगें। स्कूल शिक्षा विभाग और पीडब्ल्यूडी के बीच प्रशासकीय, वित्तीय स्वीकृति, बजट हस्तांतरण में होने वाली देरी से भवन निर्माण में सालों के विलंब को टालने में मदद मिलेगी।
इसके बाद तो मानो पीडब्ल्यूडी में ईएनसी से लेकर जेई पर गाज गिर गई थी। और स्कूल शिक्षा विभाग के अफसर में खुशी की लहर थी कि अब छपाई खरीदी के अलावा एक नया मद मिलेगा। क्यों न हो, लोनिवि का आधा बजट तो स्कूल शिक्षा विभाग के कंस्ट्रक्शन फंड से ही आता है। वैसे भी अजजा विभाग पहले ही निर्माण कार्य पीडब्ल्यूडी से छीन चुका है। नगर निगम के स्कूलों का निर्माण संधारण नगरीय निकाय विभाग के ही इंजीनियर करते हैं।
अब ये भी चला जाएगा तो पीडब्लूडी में एवं रेट टेंडर, रिएस्टीमेशन के जरिए कमाई जाती रहेगी। मगर ऐसा नहीं हो पाएगा। यह हम नहीं पीडब्ल्यूडी के ही अफसर कह रहे हैं कि 4 जून को उनकी मनोकामना पूरी हो रही है। यही सोचकर तो वोट किया है। भैया जीत रहे हैं। वो दिल्ली चले जाएंगे तो सब कुछ जैसा चल रहा वैसा चलता रहेगा।
तुम्हीं ने दर्द दिया तुम्ही...
पुलिस की एक एजेंसी की कार्रवाई चर्चा का विषय बनी हुई है। क्योंकि राज्य की नई सरकार जिस मुद्दे पर चुनाव लड़ी और जीती। उसमें कार्रवाई का जिम्मा इस एजेंसी का है। और उसने कई प्रभावशाली लोगों पर कार्रवाई भी की है। लेकिन पिछली सरकार में कुछ प्रभावशाली लोग थे, जिनसे 80000 से ज्यादा पुलिस परिवार नाराज था। क्योंकि कहीं न कहीं उन परिवार के सदस्यों को पांच साल सफर करना पड़ा। इन प्रभावशाली लोगों का नाम एक मामले में भी है। इनके खिलाफ जांच भी चल रही है। लेकिन जांच का जिम्मा इनके चाहते वरिष्ठ को दिया गया है।
इस वरिष्ठ ने जांच में फंसे एक चर्चित अधिकारी के करीबी लोगों को ही अपने पास रखा है। पीएचक्यू में चर्चा है कि जांच में फंसा अधिकारी ही अपनी पसंद की टीम बनाकर कार्रवाई करा रहे है। ताकि जांच चलती रहे और उन तक आंच भी न आए। यानी तुम्ही ने दर्द दिया तुम्ही दवा देना। यही वजह है कि आज तक उन्हें जांच या पूछताछ के लिए तलब नहीं किया है। उनके ठिकानों की जांच करने की जहमत नहीं उठाई है,जबकि उनकी शह में ही पूरा सिस्टम चलता रहा।
पूर्व भाजपाई की नसीहत...
छत्तीसगढ़ राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र पांडेय का कहना है कि भाजपा कार्यकर्ता पार्टी के लिए कोई भी कुर्बानी देने के लिए तैयार रहता है। उसे घुट्टी में पिलाया जाता है कि पहले देश, फिर पार्टी। आज यह सिद्धांत शीर्षासन कर गया है। एक व्यक्ति ही पार्टी और देश है। एको अहं, द्वितियो नास्ती। कार्यकर्ताओं की दशा बंधुआ मजूदर से अधिक नहीं रह गई है..। फिर पांडेय भाजपा कार्यकर्ताओं से अपील करते हैं कि आप सभी देशभक्त हैं। व्यक्ति का बलिदान कर देश को बचा लें। आखिरी मौका है। इस बार चूक गए तो न आप बचेंगे, न देश और न पार्टी।
उन्होंने भाजपा छोडऩे के बाद गोविंदाचार्य के साथ स्वाभिमान पार्टी भी बनाई थी। सन् 2003 की घटना की चर्चा आज भी होती है जिसमें उन्होंने कांग्रेस के चुनाव हारने के बाद तब के मुख्यमंत्री स्व.अजीत जोगी पर भाजपा की खरीद-फरोख्त का मामला उजागर किया था। वे जोगी को छत्तीसगढ़ में गंदी राजनीति के जनक और डॉ. रमन सिंह को इस राजनीति का पोषक मानते हैं।
पांडेय बेबाकी से अपनी बात रखने और फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं। पांडेय आज भाजपा से अलग हो चुके हैं, पर इसके संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। आज उन्हें लग रहा होगा कि पार्टी में जो चल रहा है वह ठीक नहीं है।
नक्सल मोर्चे पर शाह की तारीफ
भाजपा सरकार बनने के बाद साढ़े 4 महीनों में 112 नक्सली मारे गए। आत्मसमर्पण और गिरफ्तारियों की संख्या भी अच्छी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस सफलता पर छत्तीसगढ़ सरकार को बधाई दी है। शाह की तारीफ सरकार को अच्छी तो लगी ही है, साथ ही नक्सल क्षेत्रों में तैनात सुरक्षा बलों का भी हौसला बढ़ा होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि भाजपा सरकार बनने के बाद नक्सलियों के खात्मे की कार्रवाई में तेजी आई है। मगर, यदि सुरक्षा बल इस तारीफ का मतलब यह न निकाल लें कि ज्यादा लोगों को मार गिराने को सफलता मानी जाएगी। वरना कई गलतियां हो सकती हैं। निर्दोषों की जान जा सकती है। ऐसा कई बार हुआ है कि भीड़ में बेकसूर ग्रामीण कौन है और कौन नक्सली यह पहचान करना मुश्किल हो जाता है। बस्तर के पीडिया में हुए मुठभेड़ को लेकर यही बात कही जा रही है। इसमें मारे गए लोगों को आम ग्रामीण बताए जा रहे हैं। तेंदूपत्ता तोडऩे निकले लोगों की मौत हो गई। कुछ के दुधमुंहे बच्चे हैं। इनके नाम पर आधार कार्ड और जमीन भी है। मुठभेड़ को फर्जी बताने और बेकसूरों की मौत को लेकर कांग्रेस और सीपीआई ने आवाज उठाई है। मगर, इससे पहले ही स्थानीय ग्रामीण इसका विरोध कर चुके हैं। यह देखा गया है कि कोई भी सरकार निर्दोष लोगों के मारे जाने के आरोप को मानती नहीं। उन्हें लगता है कि जांच बाहर आएगी तो जिम्मेदार जवानों को सजा देनी पड़ेगी, जिससे वहां तैनात दूसरे जवानों का मनोबल टूटेगा। क्या ही अच्छा होता कि शाह नक्सलियों को मार गिराने की तारीफ करने के साथ-साथ निर्दोंषों का ख्याल रखने की बात कह देते।