राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : पहली बार पार्टी नहीं नेताजी लड़े
24-May-2024 3:46 PM
राजपथ-जनपथ :  पहली बार पार्टी नहीं नेताजी लड़े

पहली बार पार्टी नहीं नेताजी लड़े

जैसे जैसे 4 जून करीब आ रहा है वैसे वैसे नतीजों के दावे बढ़ते जा रहे हैं। इसके पीछे चुनाव अभियान के साथ बूथ वार मतदान के अंतिम आंकड़े और एग्जिट पोल, यानी मतदाताओं के समूहों से चर्चा का इनपुट। इन्हीं आधारों पर एक प्रत्याशी के कुछ रणनीतिकारों का दावा है कि वे पिछले सांसद का रिकार्ड काफी पीछे छोड़ देंगे। हालांकि इस लांग जंप को रोकने पार्टी ने कई प्रयास किए और लागू भी किया। जैसे इस सीट से पार्टी के सभी विधायकों को अलग अलग इलाकों में प्रचार के लिए भेज दिया। एक को बसना, दूसरे को नांदगांव, तीसरे को महासमुन्द और चौथे को हेलीकाप्टर में सवार कर दिया। अब इसके बाद प्रत्याशी अपनी टीम के भरोसे मैदान में उतरे। और गांव-गांव छान आए। चर्चित तो वे बरसों से हैं ही। 7 मई को भरपूर समर्थन मिला और ईवीएम की बीप भी बजी। इसे देख लोग कहने लगे हैं इस बार पार्टी नहीं लड़ी, पहली बार लगा नेताजी चुनाव लड़े।

आउट ऑफ कोर्ट 

एक फिल्मी डायलॉग हुआ था कि जेलर साहब आपकी जेल की दीवारें इतनी ऊंची नहीं हैं कि डॉन फांद न सके। लेकिन हम यहां फांदने की नहीं निकलने की बात कह रहे हैं। यह सब आउट आफ कोर्ट सेटिंग के हो जाता है। हाल में एक बड़े घोटाले के आरोपी, किंग पिन कुछ ऐसी सेटिंग से बाहर निकल आए। और बीस वर्ष पुराने हत्याकांड के कुछ आरोपी भी ऐसे ही जुगाड़ में है। एक मामले के आरोपी महीनों से जेल में गुजारने के बाद मानसिक रूप से असहज होने लगे थे। उस पर बड़े जेलर ने सारी सुविधाएं छीन ली। बाहर निकलने के प्रयास में जमानत की एकाधिक याचिकाएं खारिज हो गईं थीं। तो एक दो स्वयं भी वापस लेनी पड़ी। इस घोटाले की जांच में एक दूसरी एजेंसी भी कूदी। पूछताछ के लिए एजेंसी ने अपने कब्जे में बाहर निकाल लिया। अब कम से कम 10-15 दिन कुछ राहत भरी सांस मिलेगी। इस घोटाले के दूसरे आरोपी साहब भी यही उक्ति अपनाने में जुट गए हैं। और हत्याकांड के आरोपी मेडिकल सर्टिफिकेट पर लाखों खर्च करने तैयार हैं। वे कम से कम मेकाहारा ही पहुंचना चाहते हैं। 

10 निर्दलीय भाजपा समर्थित

आम चुनाव के नतीजे घोषित होने में करीब 10 दिन बाकी है। इन सबके बीच चुनाव प्रचार को लेकर पार्टी नेताओं के अनुभव सुनने को मिल रहे हैं। रायपुर लोकसभा से सबसे ज्यादा 38 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इनमें से कुछ प्रत्याशी तो अंबिकापुर, राजिम, और अन्य जगहों के हैं।  हल्ला है कि 38 प्रत्याशियों में से 10 निर्दलीय प्रत्याशी भाजपा समर्थित हैं। इन प्रत्याशियों को भाजपा समर्थकों ने बैनर पोस्टर तक उपलब्ध कराए थे। यही नहीं, पांच निर्दलीय प्रत्याशी कांग्रेस खेमे के बताए जाते हैं। निर्दलीयों से कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों को कितना फायदा मिलता है, ये तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही साफ होगा। 

प्रियंका के शावक नजर आए..

नया रायपुर स्थित जंगल सफारी में कल खास दिन रहा। शेरनी प्रियंका के दो प्यारे शावकों को पहली बार पर्यटकों के देखने के लिए छोड़ा गया है। दोनों शावक अपनी मां के साथ अठखेलियां करते रहे। कल ही यहां के एक बाघ बादशाह का 9वां जन्मदिन भी है। जंगल सफारी के स्टाफ ने वहां घूमने आए बच्चों के साथ केक काटकर 
बर्थ डे मनाया।

मेडिकल कॉलेजों पर जुर्माना

चुनाव आचार संहिता खत्म होने के तुरंत बाद राज्य सरकार को कई मोर्चों पर फटाफट फैसला लेना पड़ सकता है। इनमें से एक है प्रदेश के कई मेडिकल कॉलेजों में सीटों की कमी या मान्यता ही खत्म कर देने के खतरे को टालना। नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने हाल ही में कांकेर मेडिकल कॉलेज पर एक करोड़ रुपये, दुर्ग मेडिकल कॉलेज पर पांच लाख तथा बिलासपुर, अंबिकापुर, महासमुंद और जगदलपुर मेडिकल कॉलेज पर तीन-तीन लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। कांकेर को छोडक़र बाकी कॉलेजों पर लगाया गया जुर्माना एक या दो डॉक्टर की एक माह की सैलरी के बराबर ही है। पर इतने ही छुटकारा नहीं मिलेगा। एनएमसी से फैकल्टी और इंफ्रास्ट्रचर की कमी को दूर नहीं करने पर सीटें कम कर देने या मान्यता खत्म कर देने की चेतावनी दी है। कांकेर, महासमुंद और कोरबा में तो कॉलेजों के पास अपनी खुद की बिल्डिंग भी नहीं है। कोरबा, दुर्ग, जगदलपुर, राजनांदगांव और अंबिकापुर में प्रोफेसरों की भी कमी है।

राज्य बनने के 23 सालों में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों ने नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना की ओर ध्यान दिया। विभिन्न जिलों से राजनीतिक स्तर पर उठने वाली मांग और छत्तीसगढ़ में चिकित्सकों की कमी को पूरा करने के लिए ऐसा करना जरूरी था। पर बुनियादी सुविधाओं की तरफ ध्यान नहीं दिया गया। जैसे रायगढ़ में मेडिकल कॉलेज को खुले 10 साल हो चुके हैं। महासमुंद, कांकेर में खुले तीन साल हो चुके हैं,  पर अब भी वह प्रोफेसर, एसोसियेट प्रोफेसर, रेजिडेंट डॉक्टरों की जरूरत के अनुसार नियुक्ति नहीं हुई है। एनएमसी पहले भी कई बार कॉलेजों को जीरो ईयर घोषित कर चुकी है। सिम्स मेडिकल कॉलेज में एक बार 150 सीटों को घटाकर 100 कर दिया गया था। तीन साल बाद उसे घटाई गई 50 सीटें वापस मिल सकीं। अब सरकार को संविदा पर ही सही तत्काल नई भर्तियां करनी होगी, बुनियादी सेवाओं के लिए बजट आवंटित करना होगा।

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