राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : दावा और अफसोस
26-May-2024 4:16 PM
 राजपथ-जनपथ :  दावा और अफसोस

दावा और अफसोस

रायपुर की राजनीति में दो दोस्त। दोनों ने एक दूसरे के लिए खूब मेहनत की। राजनीतिक ओहदे के रूप में लगभग बराबर ही रहे। एक विधायक तो दूसरा संयुक्त चार विधानसभाओं का एक नेता। फिर दूसरा आठ विधानसभाओं का नेता बना। अब उलट हुआ। दूसरे नेता के बजाए पहले को अवसर मिला। दूसरे नेता ने दोस्त के लिए खूब मेहनत की। प्रचार के दौरान भी,और उससे पहले पांच साल भी।

क्षेत्र के विकास के लिए  तीन हजार करोड़ की योजनाएं या तो शुरू की या मंजूर करा लाए। जो सात बार के पूर्व नेता से कहीं अधिक। और जीई रोड पर सोडियम वैपर लैंप से भी कहीं अधिक, जो नेताजी की जीत के पैमाने में भी अहम होगा। दावा करते हैं कि 4 जून को  मेरा रिकार्ड भी टूटेगा। मगर दूसरे नेता को अफसोस कि विकास के लिए क्षेत्र में सक्रियता, दोबारा टिकट का पैमाना नहीं बन सका। इसका पैमाना दल के भीतर गुटीय राजनीति। वो पूछते भी हैं कि आखिर मेरा कुसूर क्या था? खैर अब दोस्त के जरिए राजधानी की राजनीति करने की उम्मीद है।

मान्यता रद्द वाले स्कूल को भी !!

स्कूल शिक्षा विभाग में आईटीई के तहत गरीब परिवारों के बच्चों के निजी स्कूलों में दाखिले को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। उन स्कूलों में भी बच्चों को एडमिशन देने की अनुशंसा की गई है, जिनकी मान्यता सीबीएसई बोर्ड ने खत्म कर दी थी। मसलन, द्रोणाचार्य स्कूल में भी 6 सीट गरीब बच्चों के लिए आवंटित किया गया है। द्रोणाचार्य स्कूल की मान्यता दो महीना पहले सीबीएसई बोर्ड ने निरस्त कर दी है। 

कहा जा रहा है कि स्कूल शिक्षा सचिव ने निचले स्तर के अफसरों को फटकार लगाई है। अब इस गड़बड़ी के लिए डीईओ को नोटिस थमाने की तैयारी भी है। चर्चा है कि राजनीतिक दबाव के चलते गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों में एडमिशन की अनुशंसा कर दी गई। आने वाले दिनों में विवाद और बढ़ सकता है। 

मुफ्त की पढ़ाई पसंद नहीं?

शिक्षा विभाग में तबादले, पोस्टिंग, अनुकंपा नियुक्ति में हुए घोटालों के बाद अब आरटीई के तहत पढऩे वाले बच्चों का दाखिले से जुड़ी गंभीर अनियमितता सामने आई है। गरीब बच्चों को पब्लिक स्कूलों में मुफ्त शिक्षा देने की इस योजना पर केंद्र व राज्य सरकार मिलकर हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है। बच्चों की पढ़ाई के खर्च का पूरा भुगतान निजी स्कूलों को किया जाता है। अब यह बात निकलकर आ रही है कि बीते वर्षों में इनमें से सैकड़ों बच्चों ने चुपचाप पढ़ाई छोड़ दी। 

उन्होंने स्कूल आना बंद कर दिया। इन ड्रॉप आउट बच्चों ने दूसरे स्कूलों में दाखिला लिया या पढ़ाई ही छोड़ दी इस बारे में किसी को कुछ पता नहीं। पर निजी स्कूलों ने इन बच्चों का नाम अपने स्कूल से नहीं काटा। उन पर आरोप लग रहा है कि बच्चों की पढ़ाई जारी रहने का झूठा आंकड़ा देकर उन्होंने शासन से अनुदान लेना जारी रखा। यह कांग्रेस सरकार के समय से हुआ या पहले से होता आ रहा है, यह जांच पड़ताल से मालूम होगा। फिलहाल तो पांच साल का आंकड़ा प्राचार्यों और शिक्षा अधिकारियों से मांगा गया है। इस मामले में एक सवाल तो निजी स्कूलों पर पढ़ाई छोड़ चुके बच्चों के नाम पर अनुदान लेकर शासन को चूना लगाना है।

मगर, दूसरा पक्ष इससे भी ज्यादा गंभीर है। यदि किसी गरीब बच्चे को अच्छे स्कूल में मुफ्त में पढ़ाई का मौका मिल रहा है तो वह भला इसे वह क्यों ठुकरा रहा है? क्या इन बच्चों को इस नाम से प्रताडि़त किया जाता है कि वे फ्री एजुकेशन ले रहे हैं? निजी स्कूल ट्यूशन और एग्जाम फीस के अलावा अलग-अलग कारण बताकर वसूलते हैं। कहीं इन बच्चों और उनके पालकों पर अतिरिक्त राशि देने का दबाव डाला जाता है?

आला दर्जे का तेंदूपत्ता

आदिवासियों की आमदनी में तेंदूपत्ता का विशेष स्थान है। पूरे प्रदेश में इस समय पत्ते तोडऩे का काम चल रहा है। 50 पत्तों की एक गड्डी बनती है। ऊपर और नीचे वाले एक-एक पत्ते को इस तरह से लपेट दिया जाता है कि इसमें दीमक न ले। राजनांदगांव जिले के मानपुर इलाके का तेंदूपत्ता छत्तीसगढ़ में सबसे अच्छी क्वालिटी का माना जाता है। इसकी कीमत सरकारी दर से भी ज्यादा होता है। तेंदूपत्ता व्यापारी तोडऩे से पहले ही इसकी बोली लगा लेते हैं और आदिवासियों को हाथों-हाथ भुगतान हो जाता है। कई बार एडवांस में भी। 

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