राजपथ - जनपथ
![राजपथ-जनपथ : 10-1 की एक ही वजह राजपथ-जनपथ : 10-1 की एक ही वजह](https://dailychhattisgarh.com/uploads/sthayi_stambh/1717937511687437024hadhi_Chauk_NEW_1.jpg)
10-1 की एक ही वजह
लोकसभा चुनावों में छत्तीसगढ़ में भाजपा एक बार फिर 11-0 का स्कोर खड़ा ही नहीं कर पाई। अटलजी के इतने बड़े वादे के वक्त भी छत्तीसगढ़ कृतार्थ नहीं हुआ था। उसके बाद से पांच चुनाव हो चुके हैं और नतीजे 9-2,10-1 के ही आते रहे। 10-1 दो बार। दोनों ही बार एक ही वजह- सरोज पांडे । पहले दुर्ग से हारीं, और अब कोरबा से। दुर्ग में साहू समाज को नाराज किया और कोरबा में बाहरी कहलाईं। हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस के चार और बाहरी रहे। लेकिन कोरबा में कहावत चल गई कि मायावी महंत के आगे नहीं चलने वाली। हुआ यही। उन्होंने भाजपा के भी वोट बैंक में सेंधमारी की ।
हमने प्रचार अभियान के दौरान पहले ही कहा था कि न केवल प्रत्याशी बल्कि कार्यकर्ता भी महाराष्ट्र, हरियाणा दुर्ग के गए थे कोरबा। उपर से मैडम ने स्थानीय कार्यकर्ताओं की भूमिका पर नजर रखने अपनी बैक अप टीम छोड़ रखी थी। बस फिर लोकल ने अपना काम कर दिया। वैसे भी कोरबा के भाजपा नेता यह नहीं चाहते थे कि उनकी राजनीति दुर्ग से चले। और भाजपा का प्रदेश नेतृत्व भी नहीं चाहता था कि छत्तीसगढ़ सरोज के इशारे पर चले।
मारपीट की रिपोर्ट के भी पैसे लगेंगे
पिछली सरकार में पुलिसिंग का जो स्तर गिरा है। वह उठ नहीं पाया है। अब भी वही परंपराएं चल रही हैं। इलाके में जुआ, सट्टा, कबाड़ की खुली छूट है। मारपीट की रिपोर्ट करने वालों से भी पैसा लेना है। हर मामलों की भी कीमत तय हैं। दरअसल जिलों में हर थाने की बोली होने लगी है। हर थाने की कीमत तय कर दी है। हर माह उतना देना ही है। उस आधार पर टीआई की पोस्टिंग हो रही है। टीआई भी दुकानदार हो गए हैं, कितना जिले के गुल्लक में डालना है, कितना घर ले जाना है यह फिक्स कर दिया है। सुबह अगरबत्ती जलाकर थाना की कार्रवाई शुरू करते हैं। जैसे दुकानदार। चर्चा है कि छोटे-छोटे जिलों में भी बड़ी बोली लगने लगी है। एक छोटे जिले में शहरी थाने का 3 लाख फिक्स कर रखा है। जो उतना देगा वह थाना प्रभारी बनेगा। इसी तरह अन्य थाना का 50 हजार से लेकर डेढ़ लाख रुपए फिक्स किया हुआ है।
वीकली ऑफ भर्ती के बाद
सरकार बनने के बाद डिप्टी सीएम ने बैठक में बोल दिया कि पुलिसकर्मियों को वीकली ऑफ दिया जाए। अब अफसर परेशान हैं कि वीकली ऑफ कैसे शुरू करें। देने की स्थिति रहती तो पिछली सरकार में ही दे देते। तब कांग्रेस की सरकार की प्राथमिकता में वीकली ऑफ देना भी था। कांग्रेस सरकार का फोकस भी ऐसी कोशिशों में था जिसमें पैसे खर्च न हों। पर जब थानों के स्टाफ को हर हफ्ते एक दिन छुट्टी देने की बात आई, तब यह संभव नहीं हुआ, क्योंकि इतने पुलिस वाले ही नहीं हैं कि वीकली ऑफ दिया जा सके। अब नए सिरे से मंथन शुरू हो चुका है कि किस तरह इसे पूरा किया जा सके। वैसे पिछले दिनों गृहमंत्री कह चुके हैं कि वीकली ऑफ के लिए सभी उपाय कर रहे हैं। इसमें स्टाफ की कमी दूर करने 4 हजार सिपाही की भर्ती करने जा रहे हैं। यानी इनकी भर्ती तक इंतजार करना होगा। कहीं ऐसा न हो फिर से यह वादा अगली सरकार के पाले न चला जाए ।
नई गुलेल का अविष्कार
बस्तर में रथयात्रा या गोंचा पर्व उमंगों से मनाया जाता है। आषाढ़ में जिस दिन गोंचा पर्व प्रारंभ होता है उस दिनसे लेकर अंतिम दिन तक पूजा अर्चना होती है। इस बार यह पर्व 7 जुलाई से 17 जुलाई के मनाया जाएगा। इस मौके पर युवा अपनी तरह-तरह की कलाकारी का प्रदर्शन करते हैं। इसी मौके के लिए तैयार किया गया है- पेंग या तुपकी का नया अवतार। सोशल मीडिया पर इसके वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे लकड़ी की छोटी-छोटी गोलियां एक साथ लोड की जा सकती है, जो लक्ष्य को भेद सकती है। यह कुछ-कुछ गुलेल के बड़े रूप की तरह है। वैसे बस्तर के कई इलाकों में आदिवासी तीर-कमान का त्याग कर चुके हैं। शिकार प्रतिबंधित है ही। इसलिए इस तरह के उपकरण मनोरंजन और प्रतिभा के प्रदर्शन के लिए तैयार किए जाते हैं।
दिल्ली में कैद प्रदेश के बच्चे..
बचपन बचाओ आंदोलन संगठन की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने दिल्ली की दो प्लेसमेंट एजेंसियों के ठिकानों पर पुलिस की मदद से छापा मारकर पॉश कॉलोनियों में काम पर लगाए गए 21 किशोरों को मुक्त कराया है। इनमें 14 लड़कियां हैं। जिन राज्यों के बच्चे यहां कैद मिले, उनमें छत्तीसगढ़ से हैं। झारखंड और उससे लगे जशपुर जिले में मानव तस्करी की समस्या लंबे समय से है। यहां कई प्लेसमेंट एजेंसियों के एजेंट घूमते हैं और गरीब परिवारों को बेहतर वेतन और अच्छी रहन-सहन की सुविधा देने का लालच देते हैं। फिर बच्चों को अमीर घरों में लगभग कैद करके रख लिया जाता है। उनका हर तरह से शोषण होता है। जबरिया विवाह कर दिया जाता है, छोड़ दिए जाते हैं। कई लापता हो चुकी हैं। संदिग्ध परिस्थितियों में मौत भी हो जाती है। गरीबी और महानगरों में काम करने का आकर्षण यह है कि कई रिश्तेदार ही बच्चों की खरीदी बिक्री में शामिल पाए गए हैं। बीते अप्रैल महीने में एक महिला ने अपने रिश्तेदार के तीन अनाथ बच्चों को दिल्ली ले जाने की कोशिश की। पुलिस का दबाव पडऩे पर उन्हें अंबिकापुर वापस लाकर छोड़ा गया। एक अन्य रिश्तेदार 16 साल की उम्र में एक लडक़ी को बहला-फुसलाकर दिल्ली ले गई। वर्षों वहां वह कैद रही। 24 साल की उम्र में वह किसी तरह बचकर हाल ही में वापस लौट पाई। यहां के नारायणपुर थाने में उसकी गुमशुदगी की एफआईआर दर्ज थी। बहुत से लोग दिल्ली ही नहीं, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश भी ले जाए गए हैं। फरवरी माह से अब तक 4 महीनों में जशपुर पुलिस ऐसे 120 नाबालिगों को कैद से छुड़ा कर ला चुकी है। बहुत बार यह पाया गया है कि पुनर्वास ठीक नहीं होने के कारण छुड़ाकर लाए गए बच्चे फिर वापस लौट जाते हैं। कानून व्यवस्था के अलावा यह समस्या सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों से भी जुड़ी है।
हसदेव पर मंत्री का जवाब
हसदेव में पेड़ों की कटाई रोकने और कोल ब्लॉक आवंटन निरस्त करने के लिए राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन को नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत ने पत्र लिखा है। इस पर सरकार के एक मंत्री टंकराम वर्मा का बयान आया है कि कांग्रेस के समय पेड़ों को काटने की मंजूरी दी जा चुकी थी, अब विरोध क्यों किया जा रहा है। यह बात सही है कि कांग्रेस सरकार के दौरान पेड़ों को काटने की शुरुआत हो गई थी। पर कांग्रेस के कई नेता इसके खिलाफ हो गए। उनके ही दबाव में विधानसभा में संकल्प भी पारित किया गया कि अब हसदेव में कोई नया कोल ब्लॉक नहीं, पेड़ों की कोई कटाई नहीं होगी। मगर, हुआ यह कि प्रदेश में सरकार बदलते ही बिना नए मंत्रिमंडल के गठन हुए ही पेड़ों को काटना फिर शुरू कर दिया था। हसदेव अरण्य के हरिहरपुर इलाके में आंदोलन जारी है। इधर अडानी की कंपनी शायद इंतजार कर रही थी कि आचार संहिता खत्म होने के बाद सरकार से मंजूरी हासिल कर ले, लेकिन इसी बीच डॉ. महंत के पत्र से स्पीड ब्रेकर लग गया है।