राजपथ - जनपथ
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तबादले, नक्सल मोर्चा और मजबूत होगा
चुनाव निपटते ही कांकेर कलेक्टर को एक झटके में बदलकर सरकार ने सामान्य प्रशासन को लेकर अपने तेवर दिखा दिए हैं। और कानून व्यवस्था को लेकर भी यही नजरिया होगा। क्योंकि थानों की बोलियां लगने की खबरें आ रहीं हैं।
इसकी पृष्ठभूमि में पुलिस महकमे में बड़ी सर्जरी की तैयारी चल रही है। पीएचक्यू में आधा दर्जन एडीजी, आईजी, एसपी रैंक के अधिकारी खाली बैठे हुए हैं। उन्हें नई जिम्मेदारी दी जाएगी। उन्हें सीआईडी, प्रशासन, नक्सल ऑपरेशन, तकनीकी सेवा से लेकर अन्य शाखाओं में पदस्थ किया जाएगा।
पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन और एसएसबी में भी फेरबदल किया जाएगा। सरकार नक्सल मोर्चे पर बड़ी लड़ाई की तैयारी कर रही है। इसलिए नक्सल ऑपरेशन और उससे जुड़े विंग को मजबूत किया जाएगा बस्तर, दुर्ग , राजनांदगांव रेंज आईजी से लेकर जिलों में भी कई कप्तान को बदलने की तैयारी है। इसमें राजनांदगांव, कवर्धा से लेकर कोरबा, गरियाबंद, महासमुंद, बलरामपुर की चर्चा है। और पिछली सरकार में ब्लूआइड रहे अफसरों ने पांच महीने में अपनी स्थिति सुधार ली है। इन्हें भी फ्रंट रनर माना जा रहा है ।
अब नई प्लानिंग
राजनीति में यदि आपने संघर्ष के साथ शीर्ष हासिल करने बाद यदि उसे विनम्रता, गुटबाजी रहित और कार्यकर्ताओं को सम्मान देकर सहेज लिया तो ठीक वर्ना करियर में नेपथ्य तय है। इसी नेपथ्य से भाजपा के एक नेता जूझ रहे हैं। नेताजी कभी पार्टी के कुबेर माने जाते रहे हैं। इसी के बूते लोकतंत्र के एक स्तंभ के शीर्ष पर भी रहे। उसके बाद से परावर्तन का दौर शुरू हुआ। सरकार के साथ पार्टी के भी पदों से हटा दिए गए । अब वे भाई साहबों से संगठन का काम मांग रहे हैं। चुनाव में एक संसदीय क्षेत्र के क्लस्टर का काम मिला। मैडम के लिए जुट गए तन मन धन और पुत्र के साथ । आदिवासी वोटरों के लिए गांधीजी को साथ लेकर डटे रहे। इस उम्मीद और प्लानिंग से कि मैडम जीती तो, उनके जरिए रायपुर दक्षिण से सदन में प्रवेश कर लिया जाए। लेकिन उम्मीदें हर बार सफलीभूत नहीं होतीं। इसीलिए कहा गया है माया मिली न राम । अब नए सिरे नई प्लानिंग करनी होगी ।
नीट के नतीजे और लॉबी
नीट के नतीजों ने एक बेदाग अफसर के कामकाज पर उंगली उठाने का अवसर दे दिया है । सफाई देनी पड़ी है। एनटीए के डीजी छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस सुबोध सिंह ने गड़बड़ी के सारे लूप होल्स बंद करने की योजना बनाई थी, अमल भी किया। इसमें सबसे बड़ा अहम था पेपर लीक। यह तो नहीं हो पाया।दिल्ली में सक्रिय कोचिंग सेंटर्स गिरोह चारों खाने चित्त रहा। लेकिन क्वेश्चन पेपर की सेंटर्स तक डिलीवरी लेट करवा कर बदला ले लिया गया। इस गिरोह में कोचिंग वालों के साथ निजी मेडिकल कॉलेज संचालक, केंद्रीय उच्च शिक्षा विभाग के अफसरों का रिंग शामिल है।
दरअसल मेडिकल के एनआरआई, मैनेजमेंट, पूर्व सैनिक,स्वतंत्रता सेनानी कोटे की सीटें इसी गिरोह के हाथों में है। लीक करने से चुके गिरोह ने योजना बनाई कुछ सेंटर्स में पेपर बंडल लेट भेजा जाए। ताकि बच्चों का साल्विंग टाइम कम हो और ये बच्चे पिछड़ जाएं। हुआ भी ऐसा ही । देरी की वजह से एनटीए को ग्रेस नंबर देने पड़े। ऊपर से एसआईटी जांच बिठानी पड़ी । दरअसल ये पूरा खेल दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, चंडीगढ़, पंजाब और कर्नाटक के आईएएस लॉबी की बताई गई है। एनटीए डीजी (सुबोध सिंह, छत्तीसगढ़ कैडर के, केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर )से लेकर उच्च शिक्षा सचिव (संजय के मूर्ति) में शीर्ष पदों पर इन कैडर के लोग नहीं हैं। कोचिंग लॉबी की दाल नहीं गल रही थी। सो बच्चों के भविष्य के साथ यह षड्यंत्र रचा गया ।
गोद लेने के खतरे भी जान लीजिए...
कबीरधाम जिले के कुरदुर के पास बाहपानी में एक भीषण सडक़ हादसे में 19 आदिवासियों की पिछले महीने मौत हो गई थी। इसके साथ ही मृतकों पर आश्रित 24 बच्चों के सामने अंधेरा छा गया। विधायक भावना बोहरा पीडि़त परिवारों से मिलने गईं और वहां घोषणा की कि वे इन बच्चों की आगे की पढ़ाई, रोजगार और विवाह पर आने वाला खर्च अपने सामाजिक संस्था के माध्यम से वहन करेंगी, ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। इसका मतलब कुल मिलाकर यह था कि वे इन बच्चों को गोद लेंगीं। अब पूर्व मंत्री व इलाके के पूर्व विधायक मोहम्मद अकबर ने गोद से संबंधित कानूनी पक्ष की याद दिलाई है। उनका बयान आया है कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम-1959 के तहत बच्चों को गोद लेने वाले की संपत्ति पर अधिकार मिलता है। 15 साल से अधिक उम्र के बच्चों को गोद नहीं ले सकते। गोद लेने वाले और बच्चे की उम्र में कम से कम 21 साल का फर्क हो, आदि।
विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति की घोषणा की थी, जिससे पता चला कि बोहरा सबसे अमीर उम्मीदवार हैं। क्या इसलिये उनको गोद लेने के खतरे के बारे में याद दिलाया जा रहा है? हो सकता है कि बोहरा के इस फैसले के पीछे राजनीति हो, पर इससे बच्चों का भला ही होगा। जिस कानून की मो. अकबर याद दिला रहे हैं वह तब लागू होगा, जब गोद लेने के लिए लंबी प्रशासनिक और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाए। इसमें इश्तहार छपवाना भी शामिल है, जिसमें गोद लेने पर आपत्ति की जा सकती है। यह सब तो हुआ है नहीं। विधायक बोहरा की नैतिक जिम्मेदारी जरूर है कि सार्वजनिक घोषणा कर देने के बाद बच्चों के साथ उन्होंने जो वादा किया है, पूरा करें। अकबर चुनाव में तो बुरी तरह निपट गए, एक मानवीय मामले में भावना वोहरा की भावना को कुचलने के लिए वे क़ानून की अपनी सतही जानकारी का इस्तेमाल कर रहे हैं। जब प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति किसी आदिवासी जाति को, या सांसद किसी गाँव को गोद लेते हैं, तो उसका मतलब क़ानूनी दत्तक संतान बनाना नहीं होता। जिस इलाक़े ने अकबर को 2018 के चुनाव में प्रदेश में सबसे अधिक लीड से जिताया था, वहाँ इतनी मौतों पर अकबर ने अपनी एक दिन की कमाई भी भेजी? झांकने गए?
लगे हाथ उन गांवों की दशा भी देख लेनी चाहिए, जो सिर्फ प्रचार के लिए कभी प्रधानमंत्री, कभी मुख्यमंत्री तो कभी सांसद-विधायक के नाम पर गोद ले लिए जाते हैं। इसमें जनप्रतिनिधियों को अपनी जेब भी ढीली नहीं करनी पड़ती, सरकारी फंड का सही इस्तेमाल ही करना होता है। फिर भी गोद लिए गांव विकास के लिए तरसते हैं।
बस जांच ही चलती रहेगी..?
पूर्ववर्ती सरकार में स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेम साय सिंह टेकाम को हटाने से पहले एक बड़ा भ्रष्टाचार हुआ था। प्रदेशभर के शिक्षकों की पदोन्नति के बाद पोस्टिंग में मनमाना संशोधन किया गया था। 2000 से अधिक शिक्षकों को मनचाही जगह देने के एक-एक केस में लाखों रुपयों का वारा-न्यारा होने की शिकायत आई थी। हाईकोर्ट में दूर भेज दिये जाने से प्रभावित शिक्षकों की याचिका लगी थी। तब सरकार ने माना था पोस्टिंग के नियमों का पालन नहीं हुआ। तत्कालीन संयुक्त संचालक, जिला शिक्षा अधिकारी से लेकर बाबू तक इसमें लिप्त पाये गए थे। कई का निलंबन किया गया। टेकाम के बाद स्कूल शिक्षा विभाग संभालने वाले मंत्री रविंद्र चौबे ने दोषी अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दे दिया था। पर यह चर्चा में ही रह गई। कोई आदेश नहीं हुआ, उसके बाद चुनाव आ गया। अब आचार संहिता हटने बाद शिक्षा विभाग के एक अतिरिक्त संचालक को फिर जांच अधिकारी बना दिया गया है। शिक्षा विभाग में जांच के लिए नोटिस जारी करना, जवाब मांगना एक बड़ा खेल है। प्राचार्य कोई खरीदी करते हों तब, शिक्षक गायब रहते हों तब, शिकायत होती है और जांच होती है। कार्रवाई क्या होगी, यह जांच अधिकारी पर निर्भर होता है। क्लीन चिट भी दी जा सकती है। पिछली सरकार इस बात से संतुष्ट थी कि एफआईआर होनी चाहिए। पर, नई सरकार नए सिरे से जांच करा रही है। ([email protected])