राजपथ - जनपथ
इस बार सावधानी से
भाजपा का सदस्यता अभियान तामझाम से शुरू हुआ। इस बार सदस्यता की प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन है। पिछली बार मिस्ड कॉल के जरिए सदस्यता बनाया गया था, और इसमें कई तरह की चूक हुई थी। टीएस सिंहदेव सहित कई कांग्रेस नेताओं को भाजपा का सदस्य बनाने की खबर भी चर्चा में रही। मगर इस बार पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी रखने की कोशिश की गई है।
प्रत्येक विधायकों को अपने विधानसभा क्षेत्र से 10 हजार और सांसदों को 20 हजार सदस्य बनाने हैं। सांसद, या विधायक या फिर अन्य पदाधिकारी के रेफरल लिंक दबाकर सदस्य बना जा सकता है। जो भी सदस्य बनेगा, उसे बकायदा ऑनलाइन सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा। यानी इस बार फर्जीवाड़ा की गुंजाइश नहीं के बराबर है। सांसद, और विधायकों को टारगेट पूरा करने के लिए काफी मेहनत करनी होगी।
सदस्यता अभियान के लिए कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में कंट्रोल रूम बनाया गया है। जिसकी जिम्मेदारी अनुराग सिंहदेव, और पूर्व विधायक नवीन मारकंडेय को दी गई है। दिल्ली पार्टी दफ्तर से भी पूरे अभियान की मॉनिटरिंग हो रही है। यानी इस बार जो भी सदस्य बनेगा, उसका पूरा ब्यौरा पार्टी के पास होगा। देखना है कि अभियान में कितनी सफलता मिलती है।
नंदकुमार साय और बैस की वापिसी
कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में सीएम विष्णुदेव साय ने अपनी सदस्यता का नवीनीकरण कराया। महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल रमेश बैस भी सदस्यता अभियान के मौके पर सीएम के बगल में बैठे थे। उन्होंने भी सदस्यता ली। बरसों बाद बैस भाजपा कार्यालय पहुंचे थे। सीएम, और प्रदेश अध्यक्ष व अन्य नेताओं का भाषण तो हुआ, लेकिन बैस जी को संबोधन का मौका नहीं मिला। ऐसे में आने वाले दिनों में उनकी क्या भूमिका होगी, इसको लेकर चर्चा है।
बैस की तरह दिग्गज नेता नंदकुमार साय ने भी ऑनलाइन सदस्यता लेकर पार्टी में वापसी की है। पिछले साल मई दिवस के दिन साय भाजपा छोडक़र कांग्रेस में शामिल हो गए थे। बाद में सरकार जाने के बाद वो कांग्रेस से अलग हो गए थे। सामान्य सदस्य तो बन सकते हैं। अगले महीने सक्रिय सदस्यता अभियान शुरू होगा। सक्रिय सदस्यता ऑफलाइन होगा। पार्टी या सरकार में पद के लिए सक्रिय सदस्य का होना जरूरी है। ऐसे में साय या अन्य बड़े नेता, सक्रिय सदस्य बनते हैं या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा। कुछ हद तक इससे पार्टी का रुख भी पता चलेगा।
रैलियों की इंटेलिजेंस रिपोर्ट
बलौदाबाजार में जो हिंसा हुई, वह अभूतपूर्व और अप्रत्याशित थी। कम से कम प्रदेश की इंटेलिजेंस एजेंसी के लिए। जिस एजेंसी का काम है अंजाम से पहले भांप लेना, वो शायद नींद में थी। पर अब जब जाग गई है, तो हर राजनीतिक और सामाजिक सम्मेलन में उसे बलौदाबाजार जैसा खतरा दिखाई दे रहा है। मानपुर में जून महीने में हुए जमावड़े की तैयारी भी कुछ ऐसी ही थी। बलौदाबाजार हिंसा के बाद यह पहला बड़ा प्रदर्शन था, और पुलिस ने मैदान को ही नहीं, पूरे मानपुर और आसपास के गांवों को छावनी में तब्दील कर दिया। उस जेल भरो आंदोलन में प्रदर्शनकारियों से ज्यादा पुलिस दिखाई दे रही थी।
जशपुर में कल हुई राजी पड़हा की जनाक्रोश रैली भी कुछ ऐसी ही थी। आयोजकों ने 50 हजार लोगों के जुटने का दावा किया था, लेकिन भीड़ का आंकड़ा आयोजकों के दावे से काफी दूर था। प्रशासन ने सुरक्षा के नाम पर रणजीता स्टेडियम में सभा की मंजूरी नहीं दी, यह कहते हुए कि शहर के लोग परेशान होंगे। लेकिन लोग तो उस भीड़ से नहीं, बल्कि सुरक्षा इंतजामों से ज्यादा परेशान हुए। जगह-जगह बेरिकेड्स, नाकेबंदी और 12 फीट ऊंचे टिन के शेड्स ने लोगों का रास्ता रोक रखा था।
इंटेलिजेंस का काम तो यही है कि वह सही अनुमान लगा ले, चाहे भीड़ ज्यादा हो या कम। लेकिन लगता है कि इन दोनों मामलों में इंटेलिजेंस का अनुमान या तो काफी ऊपर उड़ गया या फिर जमीन से भी नीचे रह गया। मानपुर और जशपुर की भीड़ को लेकर खुफिया पुलिस ने क्या रिपोर्ट दी थी, यह तो उसे ही पता होगा, लेकिन यह अनुमान लगाया जा सकता है कि दोनों जिलों के कलेक्टर और एसपी को बलौदाबाजार हिंसा के बाद किस पर गाज गिरी थी, यह अच्छी तरह याद है।
फरियादी बच्चों को फटकार
टीचर्स नहीं होने के बावजूद जैसे-तैसे हमने 11वीं की परीक्षा पास कर ली, लेकिन इस साल तो 12वीं बोर्ड का एग्जाम देना है। टीचर्स नहीं होंगे तो कैसे पास होंगे, साल खराब हो जाएगा- इसी चिंता में डूबे डोंगरगढ़ ब्लॉक के आलीवारा स्थित हायर सेकेंडरी स्कूल के बच्चे जनदर्शन में फरियाद करने राजनांदगांव पहुंच गए। कलेक्टर संजय अग्रवाल ने उन्हें डीईओ अभय जायसवाल के पास भेज दिया। जायसवाल उन्हें देखकर तमतमा गए। आवेदन को देखकर फटकार लगाई- किसके कहने पर यह सब लिखा है, अंदर जाओगे तब समझ में आएगा। जेल भेजने की बात सुनकर बच्चे सहम गए और रोने लगे। उन्हें रोते देख रिपोर्टर वहां पहुंच गए। उन्होंने रोते-सुबकते पूरा वाकया बता दिया। वैसे, अहंकार में डूबे, बच्चों के प्रति संवेदनहीन इस लापरवाह अधिकारी पर कोई कार्रवाई शायद ही हो। क्योंकि, शिक्षा विभाग सबसे भ्रष्ट विभागों में से एक है।