राजपथ - जनपथ

दक्षिण में सामाजिक दबाव
रायपुर दक्षिण सीट उपचुनाव को लेकर हलचल तेज हो गई है। सामाजिक बैठकों का दौर भी चल रहा है। सबसे पहले अग्रवाल समाज ने कांग्रेस, और भाजपा से टिकट के लिए दबाव बनाया है। यहां से बृजमोहन अग्रवाल विधायक रहे हैं। ऐसे में अग्रवाल समाज के नेता विशेषकर भाजपा की टिकट पर स्वाभाविक हक मान रहे हैं।
भाजपा से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल, प्रदेश कोषाध्यक्ष नंदन जैन (अग्रवाल), प्रदेश प्रवक्ता अनुराग अग्रवाल, बृजमोहन अग्रवाल के छोटे भाई विजय अग्रवाल के अलावा भी कई व्यापारी नेता दावेदारी कर रहे हैं। जबकि कांग्रेस से कन्हैया अग्रवाल, और सन्नी अग्रवाल की दावेदारी है। इससे परे ब्राम्हण समाज भी पीछे नहीं है।
सर्व ब्राम्हण समाज के बैनर तले ब्राम्हण नेताओं की एक बैठक हो चुकी है। रायपुर दक्षिण में करीब 35 हजार ब्राम्हण वोटर हैं। इन सबको देखते हुए सामाजिक रूप से एकजुट कर दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों से टिकट के लिए दबाव बनाने की रणनीति पर काम हो रहा है। कांग्रेस से सभापति प्रमोद दुबे, ज्ञानेश शर्मा सहित कई नाम चर्चा में हैं, तो भाजपा से मीनल चौबे, सुभाष तिवारी, मृत्युंजय दुबे और मनोज शुक्ला के नाम चर्चा में हैं।
दूसरी तरफ, पिछड़ा वर्ग, और अल्पसंख्यक नेता दोनों ही पार्टियों में सक्रिय हैं, और वो टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। सामाजिक दबाव का राजनीतिक दलों पर कितना असर होता है, यह तो प्रत्याशी की घोषणा के बाद ही पता चल पाएगा।
सत्ता और संघ
छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के सीएम विष्णुदेव साय निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिए गए। यहां ओलंपिक संघ का तो कोई काम नहीं है, क्योंकि अलग-अलग खेलों के संघ के मार्फत टूर्नामेंट होते रहते हैं। मगर सीएम के अध्यक्ष बनने से पद जरूर प्रतिष्ठापूर्ण रहा है। खास बात यह है कि राज्य बनने के बाद से ओलंपिक संघ के अध्यक्ष सीएम ही बनते आए हैं। बाकी राज्यों में ऐसा नहीं है।
ओलंपिक संघ अध्यक्ष पद पर सीएम के बनने के पीछे खेल संघों की अपनी राजनीति है। राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के अध्यक्ष के पद पर अजीत जोगी निर्वाचित हुए। मगर उन्हें अध्यक्ष बनने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी, और अंत तक उनका निर्वाचन विवादों से घिरे रहा।
विवाद की शुरुआत तत्कालीन मंत्री विधान मिश्रा के महासचिव बनाने के प्रस्ताव पर हुई। तब ओलंपिक संघ के अध्यक्ष पद पर खेल संघ के शंकर सोढ़ी, और महासचिव विधान मिश्रा बनने वाले थे, तब खेल संघ के कुछ पदाधिकारियों ने सीधे अजीत जोगी से संपर्क साधकर उन्हें अध्यक्ष बनाने के लिए तैयार कर लिया।
जोगी अध्यक्ष तो बन गए, लेकिन भारतीय ओलंपिक संघ से मान्यता नहीं मिली। क्योंकि उस वक्त दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल भारतीय ओलंपिक संघ के आजीवन अध्यक्ष थे। शुक्ल ने जोगी को रोकने के लिए अपने करीबी पूर्व महापौर बलवीर जुनेजा को अध्यक्ष, और सलाम रिजवी को महासचिव बनवा दिया। भारतीय ओलंपिक संघ ने शुक्ल समर्थक संघ के पदाधिकारियों को मान्यता दे दी। बाद में यह लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक गई। सरकार बदलने के बाद डॉ. रमन सिंह ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बने। उन्हें अध्यक्ष बनवाने में डॉ. अनिल वर्मा ने भूमिका निभाई।
कांग्रेस सरकार आने के बाद भूपेश बघेल ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बन गए। कुछ समय के लिए गुरुचरण सिंह होरा महासचिव बने, बाद में उनकी जगह देवेन्द्र यादव महासचिव बनाए गए। कांग्रेस सरकार के जाते ही भूपेश बघेल को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया, और उनकी जगह सीएम विष्णुदेव साय अध्यक्ष बने। महासचिव पद पर विक्रम सिसोदिया का निर्वाचन हुआ, जो कि इस चुनाव के केन्द्र में रहे हैं। यानी सरकार बदलने के साथ-साथ ओलंपिक संघ के पदाधिकारी भी बदलते रहे हैं।
आस्था पर ज्यादा खर्च होगा...
तीन अक्टूबर से शुरू हो रहे नवरात्रि पर्व पर तिरुपति लड्डू प्रकरण की छाया दिखाई दे रही है। राज्य सरकार की ओर से घी के मामले में तो यह कहा गया है कि देवभोग ब्रांड, जो सरकार का ही एक सहकारी उत्पाद है उसका घी जलाने में काम लिया जाए, मगर तेल का क्या होगा? उनमें भी मिलावट की शिकायत है। अप्रैल महीने में आने वाले चैत्र नवरात्रि के दौरान अंबिकापुर में खाद्य विभाग ने करीब 8 हजार लीटर नकली तेल जब्त किया था। अन्य अखाद्य तत्वों के अलावा इसमें खतरनाक एसिड मिला होने की भी आशंका थी। जब्ती के बाद लैब रिपोर्ट क्या आई, इसकी जानकारी नहीं है। पर, इन्हें मंदिरों में खपाने से पहले जब्त कर लिया गया था। यहां पर नकली घी का भी भंडार मिला था। महंगाई के इस दौर में लोगों का ध्यान आस्था की अभिव्यक्ति के दौरान भी बजट की ओर ध्यान रहता है। प्राय: सभी मंदिर समितियां नौ दिन जलने वाले घी व तेल के ज्योति कलश के लिए शुल्क का निर्धारण करते समय इस बात का ध्यान रखते हैं कि इनका शुल्क कम ही रखा जाए, ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रद्धालु ज्योत प्रज्ज्वलित करा सकें। जब तक तिरुपति का मामला सामने नहीं आया था मंदिर समितियां रेट सूची मंगाकर सप्लायर या निर्माताओं को सीधे ऑर्डर कर देती थीं। पर इस बार भक्तों की आस्था डगमगा गई है। वे पूछताछ कर रहे हैं कि किस ब्रांड के तेल या घी से ज्योति जलने वाली है।
चैत्र व क्वांर नवरात्रि पर घी और तेल का कारोबार करोड़ों में है। रतनपुर स्थित महामाया मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां देश में सबसे ज्यादा ज्योति कलश प्रज्ज्वलित होती है। पिछली चैत्र नवरात्रि में 500 टिन घी और 3 हजार टिन तेल की खरीदी की गई थी। पहले आपूर्ति करने वाली कंपनियों की जगह इस बार देवभोग घी का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया गया है। तेल भी इस बार केवल ब्रांडेड कंपनियों का होगा। इसी तरह की खबर दूसरे जगहों से भी है। बालोद जिले के गंगा मईया मंदिर में घी और तेल का पहले लैब टेस्ट कराया जाएगा, फिर इस्तेमाल किया जाएगा।
ज्योति कलश के लिए खरीदे जाने वाले घी, तेल की गुणवत्ता पर पहली बार इतनी सावधानी बरती जा रही है। इसके पहले श्रद्धालुओं को विभिन्न मंदिरों में जो प्रतिस्पर्धी शुल्क दिखाई देते थे, आने वाले दिनों में हो सकता है उन्हें ज्यादा खर्च करना पड़े। शुद्धता की कीमत तो चुकानी होगी।
एक माह में इतनी उछाल !
राशन, सब्जी, सीमेंट. छड़ की महंगाई पर रोजाना चर्चा हो जाती है पर दवाओं की कीमत अचानक बढ़ जाती है और कुछ खबर भी नहीं लगती। यह दवा सितंबर में 195 रुपये में मिलती थी। अगले महीने अक्टूबर में इसका दाम हो गया 350 रुपये। क्यों, क्या इस एक महीने में कच्चा माल महंगा हो गया। सरकार ने टैक्स बढ़ा दिया? लोग सवाल नहीं कर पाते। जवाब देने वाला कोई होता भी नहीं। एक बात जरूर ध्यान में आती है कि दवा कंपनियों ने जमकर इलेक्टोरल बांड खरीदे थे। (rajpathjanpath@gmail.com)